अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया का इतिहास – अंकोरवाट मंदिर का रहस्य Naeem Ahmad, March 16, 2022March 27, 2024 सैकड़ों वर्षों तक दक्षिण पूर्व एशिया के संघन जंगल मनुष्य की आंखों से एक ऐसा रहस्य छिपाए रहे जिसे आज अंकोरवाट मंदिर के नाम से जाना जाता है। कंबोडिया के मध्यवर्ती मैदानों में अंकोरवाट की सभ्यता के खंडहर खड़े हुए हैं। जो एक ऐसी सभ्यता के प्रतीक है जो हिन्दू संस्कृति से बेहद प्रभावित थी। अपने देवता रूपी राजाओं के नेतृत्व में की शताब्दियों तक अंकोरवासियो ने प्रकृति का मुकाबला किया और उसे नियंत्रित करना सीखा। उन्होंने जल व्यवस्था पर आधारित एक राज्य को जन्म दिया। जिसकी तत्कालीन उन्नति और वैभव का अनुमान आज भी आंखें चौंधिया देने के लिए पर्याप्त है। परंतु इस खोज के साथ एक रहस्य भी जुड़ा हुआ है कि इस सभ्यता के निवासी इसे क्यों छोड़ ग्रे और कहां चले गए। अपने इस लेख में हम अंकोरवाट का इतिहास, अंकोरवाट की खोज किसने की, अंकोरवाट का मंदिर किसने बनवाया आदि सभी रहस्यों पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।अंकोरवाट मंदिर का रहस्यसन् 1860 में फ्रांसीसी प्रकृति वैज्ञानिक हेनरी मौहात (Henri Mouhot) ने पहली बार कंबोडिया के मध्यवर्ती मैदानों में घने जंगलों की आड़ में छिपे अंकोर (Angkor) सभ्यता के खंडहरों को खोज निकाला। पुरातात्विक शास्त्रियों द्वारा किए गए अध्ययन से यह सिद्ध हो गया है कि जल व्यवस्था (Water system) पर आधारित इस सभ्यता में अद्भुत कला कौशल तथा तकनीकी निपुणता का विकास हुआ था। अंकोरवाट के जंगलों की यह सभ्यता कैसे नष्ट हुई तथा अंकोरवाट शहर में रहने वाले 10 लाख से अधिक ख्मेर (Khmer) लोग 15 वीं शताब्दी में एकाएक कहा चले गए, अभी तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है। अंकोर सभ्यता के इतिहास का पूरा पूरा ज्ञान हो जाने पर भी यह रहस्य अभी तक अनसुलझा रह गया है। हेनरी मौहात ने अपनी डायरी में लिखा है कि अंकोरवाट के मंदिर, नहर तथा यूनान और राम की सभ्यता के अवशेषों से भी सुंदर है। हेनरी मौहात अपनी इस खोज को आगे बढ़ाने के लिए जीवित नहीं रहे, और उष्णकटिबंधीय ज्वर ने उनके प्राण ले लिए।रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्यसन् 1866 में हिन्द-चीन के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाने के बाद फ्रांसीसी सरकार ने अंकोरवाट के शानदार खंडहरों क्रमबद्ध अध्ययन प्रारम्भ किया। एक अनुसंधान केन्द्र ने सन् 1855 तक अंकोर के आश्चर्यजनक रूप से विकसित सभ्यता द्वारा बनाए गए इस शहर अंकोरवाट के इतिहास को खोज निकाला। सन् 1898 में पुरातात्विक शास्त्रियों वह श्रमिकों ने कठोर परिश्रम करके अंकोरवाट के खंडहरों को जंगलों से मुक्त किया और 400 वर्ष पश्चात एक बार फिर सूर्य की रोशनी उन भव्य महलों, मंदिरों व सामुदायिक भवनों के खंडहरों पर पड़ी, जो आज मानवीय प्रयासों की कलात्मक पराकाष्ठा के रूप मे देखे जाते है।अंकोरवाट मंदिर कंबोडियाअब यह पता चल गया है कि अंकोरवाट मंदिर का निर्माण दक्षिण पूर्व एशिया की समेर जाति द्वारा 500 वर्षो की लम्बी अवधि में किया था। ईसाई सभ्यता के उषाकाल के समय से ही भारत व दक्षिण पूर्व एशिया मे व्यापारिक व अन्य सम्पर्क स्थापित होने प्रारम्भ हुए। दक्षिण पूर्व एशिया के वासियों ने भारतीय अध्यात्म से प्रेरणा ग्रहण की। फनोम (Phnom) नामक राज्य की स्थापना की गई। एक दंतकथा के अनुसार देवताओं के आवेश से एक कोंडिन्या (Kaundniya) नामक ब्राहमण कम्बोडिया के तट पर उतरा और उसने उस देश की रानी को जादुई बाण चला कर अपने वश में कर लिया। दोनों के विवाह से जो संतानें उत्पन्न हुई व शासकों के फुनान (Funan) वंश की पूर्वज थी। ख्मरो के भी यही पूर्वज थे। 5 शताब्दियों तक फुनानो का राज्य चलता रहा। उन्होने सिंचाई और यातायात के लिए नहरों का निर्माण करके मीकांग (Mekong) नदी की घाटी को बहुत उपजाऊ बना दिया।अपोलो की मूर्ति का रहस्य क्या आप जानते हैं? वे आश्चर्य550 इस्वी में फुनान राजधानी को कम्बूजा (Kambujas) लोगों ने हमला करके जीत लिया। कम्बूजा राजा भी हिंदू देवी देवताओं, ब्रह्मा, विष्णु व महेश की पूजा करता था। 18वी शताब्दी मे जावा के राजा ने हमला करके कम्बूजा को पराजित करके उसका सिर काट लिया। जावा के सैनिक लूट-मार करके वापिस चले गए 802 इस्वी में पहला महान कम्बोडियायी राजा जयबर्मन द्वितीय गद्दी पर बैठा, जिसके वंश ने 600 वर्ष तक राज्य किया। जयवर्मन कुशल प्रशासक व सेनापति था। उसने अपने 48 वर्षीय शासन मे अपनी जनता को एकताबद्ध किया तथा उसे बाहरी हमलावरों से बचाने की व्यवस्था की। जावा के प्रभुत्व से आजादी घोषित करने के बाद जयवर्मन ने अंकोरवाट के मैदानों के ऊपर कुलन (Kulen) पहाड़ी पर सुरक्षा की दृष्टि अपनी राजधानी बनाई। जयवर्मन की छवि अपनी जनता के बीच शिव के अवतार के रूप में थी। इसी छवि ने बाद में अंकोरवाट के भव्य मंदिरों के निर्माण की वैचारिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की।बाद में कुलन पहाड़ी पर अपनी राजधानी को अनुपयुक्त समझ कर जयबर्मन ने अपनी राजधानी अंकोरवाट के मैदानों मे ही स्थापित कर डाली जहां नदियां और पानी की बहुतायत थी। इस क्षेत्र में समर का लोक प्रिय भोजन मछली और चावल का उत्पादन आसानी से किया जा सकता था। जयवर्मन ने ही पुजारियों का वंशानुक्रम के अनुसार एक संगठन बनाया जो राजा की प्रशासन में तो मदद करता ही था, साथ साथ राष्ट्रीय जीवन व धार्मिक सहित प्रत्येक पक्ष की देख-भाल भी करते थे। जयवर्मन ने (शिव के प्रतीक) मंदिर बनवाने प्रारम्भ किए।Nazca Lines information in Hindi – नाजका लाइन्स कहा है और उनका रहस्यजयवर्मन के भतीजे इद्रबर्मन-प्रथम ने 877 ईस्वी में अंकोर के 15 मील दक्षिण पूर्व में एक शहर का निर्माण कराया, जिसे अंग्कोरथोम (Angkor Thom) के महान शहर के नाम से जाना गया। इद्रवर्मन ने अपने 11 वर्षीय शासनकाल में राष्ट्रीय संसाधनों का सर्वेक्षण कराया झीलों व बांधों का निर्माण कराया। इन कार्यो के लिए इद्रवर्मन ने दासा से काम लिया। इद्रवर्मन के प्रयास से ख्मेर किसान मई से अक्तुबर तक की अवधि तथा शरद के शुष्क मौसम मे भी चावत की फसल उगान में सफल हुए। उन्हानें साल मे तीन फसल काटनी प्रारम्भ कर दी।जयवर्मन तथा उसके बाद के 30 राजाओं ने धीरे-धारे करके भव्य पिरामिड जैसे शिखरों वाले मंदिर बनवाए। 12वी शताब्दी ओर 13वी शताब्दी में यशोवर्मन प्रथम के प्रयासों के पश्चात् सूयवर्मन द्वितीय (1113-50) तथा जयवर्मन-सप्तम (1181-1219) युग में अंकोरवाट की राजधानी अपने स्वर्ण युग में पहुंची। सूर्यवर्मन ने चीन सागर से हिंद महासागर तक अपना साम्राज्य फलाया। उसी के जमाने में ख्मेर कलाकारों ने मंदिरों के शानदार गुम्बद बनाए। ये मंदिर एक तरह के मकबरे थे, जिनमे राजा तथा अन्य सामंतों की अस्थियां तथा राख रखी जाती थी। मंदिरों और समाधियों के इन मिले-जुले स्मारकों का प्रवेश-द्वार परम्परागत रूप से पूर्व की ओर हाने की बजाय पश्चिम की ओर है। वैज्ञानिकों का मत है कि संभवतः यशोवर्मन ने यह परम्परा इसलिए तोड़ी होगी क्योकि वह सूर्य की वर्ष भर होने वाली गति, कलैण्डर, ज्योतिष तथा धार्मिक मिथकशास्त्र का समन्वय बनाना चाहता होगा।सहारा रेगिस्तान कहा पर स्थित है – सहारा रेगिस्तान का रहस्ययशोवर्मन-द्वितीय की मृत्यु के बाद निकटवर्ती चाम्स (Chams) कबीलों के आक्रमण तथा नागरिक विद्रोह के कारण अंकोरवाट का पतन प्रारम्भ हो गया। ख्मेर सेनाओं ने चाम्स कबीलो को हरा अवश्य दिया लेकिन जनता का राजा, धर्म व शासन पर से विश्वास उठ गया। स्वेच्छिक वनवास काट रहे मृत राजा के भाई जयवर्मन सप्तम ने वापिस आकर सिंहासन संभाला ओर विद्रोह को कुचलकर चाम्स कबीलो को सबक सिखाया। इस नए राजा की अधीनता मे ख्मेर कला-कौशल ने नया जीवन प्राप्त किया। जयवर्मन-सप्तम ने अकोर शहर का पुनः निर्माण कराया तथा शहर की दीवारों की लम्बाई 10 मील तक बढ़ा दी। अपने माता-पिता की स्मृति मे जयवर्मन ने तोप्रोहम (To prohm) तथा प्रियाह खान (Preah khan) के भव्य मंदिर बनवाए। शहर के पहले से बने मंदिरों का भी जयवर्मन ने विस्तार कराया। बाद मे बौद्ध प्रभाव के अंतर्गत बने मंदिरों, 102 अस्पतालो व 121 हांस्टलो के निर्माण का श्रेय भी इसी महान् राजा को जाता है। इनमे सबसे विशिष्ट स्मारक है बेयन (Beyon) का मंदिर। इस मंदिर की वास्तुकला इतनी विचित्र है कि वह विद्वानों को भी भ्रमित कर देती है। जयवर्मन-सप्तम का विशालकाय मुस्कराता हुआ चेहरा इस मंदिर के प्रत्येक स्तम्भ के चारों कोनों पर बना हुआ है। यह मंदिर जयवर्मन ने स्वयं अपने लिए बनवाया था।सन् 1226 मे चीनी यात्री और वाणिज्य दूत चाऊ ता कूआन (Chau ta kuan) ने इस शहर की यात्रा की। चाऊ ने अपनी पुस्तक ‘ नोट्स आन द कस्टम्स ऑफ कम्बोडिया’ मे 700 वर्ष पहले के ख्मेर जीवन के विविध पहलुओं को प्रस्तुत किया है। चाऊ ने देखा कि शहर में घुसने से केवल कुत्ता व अपराधियो को रोका जाता है। नौकर नीचे की मंजिल पर काम करते हैं तथा उनके मालिक ऊपर बैठ कर बैठक करते हैं। चाऊ ने बेयन मंदिर को भी देखा। उसने इस पायों और 20 छाटे टावरो को देखा। चाऊ ने पवित्र तलवार हाथ में लिए सोने की चौखट वाली खिड़की में खडे़ होकर जनता को दर्शन देने वाले राजा का भी वर्णन किया।मिस्र के पिरामिड का रहस्य – मिस्र के पिरामिड के बारे में जानकारीताऊ ने ख्मेर समाज की दास प्रथा, लोगों के आर्थिक स्तर, मकानों की बनावट से झलकने वाली उनकी सामाजिक हैसियत इत्यादि के बारे में विस्तार से लिखा है। जिससे उस समय के वैभव पर अच्छा खासा प्रकाश पड़ता है। सन् 1431 में सियामीस (Siamese) आक्रमणकारियों ने अंकोरवाट की फौजों को पराजित कर दिया। सात महीने चले इस युद्ध ने अंकोर की जनता को निराश कर दिया। जब सियामीस अगले वर्ष पुनः लूटपाट करने के लिए लौटे तो उन्होंने पूरा शहर खाली पाया। 10 लाख से भी अधिक शहरवासी अपने पौराणिक शहर को छोड़ कर जा चुके थे। ख्मेर जनता कहां चली गई? वह अपनी महान परंपरा का पालन करने के लिए सियामीस से पुनः क्यों नहीं लड़ी? उनका विश्वास कैसे खंडित हो गया? इन प्रश्नों के उत्तर अभी भी रहस्यों के अंधेरों में छुपे हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े[post_grid id=’8656′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... अद्भुत अनसुलझे रहस्य अनसुलझे रहस्य