हौज खास राष्ट्रीय राजधानीदिल्ली का एक गांव है यह गांव यहां स्थित ऐतिहासिक हौज खास झील और और उसके किनारे स्थित ऐतिहासिक स्मारक भवन के लिए जाना जाता है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र में कुतुब सड़क पर सफदर जंग मक़बरे से दो तीन मील की दूरी पर मक़बरों का एक समूह है यहीं से हौज़ खास को दाई’ ओर सड़क घूमती है। प्रधान सड़क से आध मील की दूरी पर सड़क के अन्त में हौज़ खास है। एक द्वार मार्ग से घेरे के भीतर प्रवेश करके हम एक सुन्दर बाग में पहुँच जाते हैं।
हौज खास का इतिहास
हौज़ खास एक सरोवर है। इसकी दो भुजाएँ लगभग आधा आधा मील लम्बी ओर दो भुजाएं तीन तीन फर्लाग लम्बी हैं। सरोवर के केन्द्र में एक द्वीप है जिस पर खंडहर दिखाई पड़ते है। वर्षा के पश्चात् जाने पर हौज़ भरा रहता है नहीं तो सूखा रहता है। यह सरोवर रिज के बहाव वाले पानी से भर जाता था। प्राचीन समय में वर्षा के पानी से हौज़ भर दिया जाता था। ग्रीष्म काल में पानी सूख जाने पर ईख, गन्ना, तरबूज, खरबूज़ा आदि बोये जाते थे। जब तैमूर ने आक्रमण किया था तो अपना ‘डेरा हौज़ खास पर डाला था। हौज़ खास की भूमि बड़ी उपजाऊ थी और शीत काल में अनाज के खेत लहलहाते हुये दिखाई पड़ते थे।
हौज खास दिल्लीअलाउद्दीन बादशाह ने हौज खास को अपने प्रयोग के लिये बनवाया था। इसी कारण इसका नाम भी हौज़ खास है। इसकी मरम्मत फीरोज़ शाह ने कराई थी और इसके तट पर एक मदरसा तथा अपना मक़बरा बनवाया था। मदरसा के प्रधान भवन के ऊपर स्तम्भों वाले बड़े कमरे हैं नीचे कमरों की पंक्तियाँ हँ जिनके सामने बराम्दे बने हुये हैं। ऊपर बड़े कमरों में लड़के पढ़ा करते थे ओर नीचे के कमरों में वे रहा करते थे। फोरोज़ शाह के समय में यहां सबसे बड़ा अरबी का मदरसा था। मदरसे के अन्त में विद्याथियों के प्रयोग के लिये एक मस्जिद थी।
अरबी मदरसा के अंत में फीरोज शाह का मक़बरा है यह एक चौकोर मज़बूत इमारत है। इसके भीतर बादशाह और उसके वंश के दो दूसरे व्यक्तियों की समाधियां हैं। जब बादशाह 1388 ई० में मरा तो उसकी अवस्था लगभग नव्बे वर्ष की थी। मदरसा के बाहर बाग में छोटी-छोटी’ छतरियां बनी हुई है। यह छतरियां स्तम्भों पर बनी हैं इनमें अधिकांश समाधियां हैं। मदरसे में मजलिस खाना बना है जिसमें समस्त विद्यार्थी तथा मोलवी एकत्रित हुआ करते थे।
हौज खास के चारों ओर बहुत से बड़े-बड़े मक़बरे हैं। यह मक़बरे तुग़लक़ वंश के सरदारों के है। इन पर शिला लेख नहीं हैं जिससे ठीक तोर पर नहीं कहा जा सकता कि यह किसके मक़बरे हैं। तुग़लक़ काल के काज़ी तथा मोलवी लोग इसी बड़ी पाठशाला के पढ़े हुये लोग होते थे और वह समस्त राज्य में न्यायाधीशों के स्थान पर नियुक्त किये जाते थे।
हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-

यमुना नदी के तट पर भारत की प्राचीन वैभवशाली नगरी दिल्ली में मुगल बादशाद शाहजहां ने अपने राजमहल के रूप
जामा मस्जिद दिल्ली मुस्लिम समुदाय का एक पवित्र स्थल है । सन् 1656 में निर्मित यह मुग़ल कालीन प्रसिद्ध मस्जिद
भारत की राजधानी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन तथा हजरत निजामुद्दीन दरगाह के करीब
मथुरा रोड़ के निकट
हुमायूं का मकबरास्थित है।
पिछली पोस्ट में हमने हुमायूँ के मकबरे की सैर की थी। आज हम एशिया की सबसे ऊंची मीनार की सैर करेंगे। जो
भारत की राजधानी के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है। यह उपासना स्थल हिन्दू मुस्लिम सिख
पिछली पोस्ट में हमने दिल्ली के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
कमल मंदिरके बारे में जाना और उसकी सैर की थी। इस पोस्ट
इंडिया गेट भारत की राजधानी शहर, नई दिल्ली के केंद्र में स्थित है।( india gate history in Hindi ) राष्ट्रपति
यमुना नदी के किनारे पर बसे महानगर दिल्ली को यदि भारत का दिल कहा जाए तो कोई अनुचित बात नही
गुरुद्वारा
शीशगंज साहिब एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण गुरुद्वारा है जो सिक्खों के नौवें
गुरु तेग बहादुर को समर्पित है।
दिल्ली भारत की राजधानी है। भारत का राजनीतिक केंद्र होने के साथ साथ समाजिक, आर्थिक व धार्मिक रूप से इसका
कालकाजी मंदिर दिल्ली के सबसे व्यस्त हिंदू मंदिरों में से एक है, श्री कालकाजी मंदिर देवी काली को समर्पित है,
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर लोकसभा के सामने गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब स्थित है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब की स्थापना
मोती बाग गुरुद्वारादिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। गुरुद्वारा मोती बाग दिल्ली के प्रमुख गुरुद्वारों में से
गुरुद्वारा मजनूं का टीला नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर एवं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी
भारत शुरू ही से सूफी, संतों, ऋषियों और दरवेशों का देश रहा है। इन साधु संतों ने धर्म के कट्टरपन
देश राजधानी दिल्ली में स्थित
फिरोज शाह कोटला किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो दिल्ली के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग
पुराना किला इन्द्रप्रस्थ नामक प्राचीन नगर के राज-महल के स्थान पर बना है। इन्द्रप्रस्थ प्रथम दिल्ली नगर था। यहाँ कौरवों और
दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों में
सफदरजंग का मकबरा या सफदरजंग की समाधि अपना एक अलग महत्व रखता है। मुगलकालीन स्मारकों
सफदरजंग के मकबरे के समीप
सिकंदर लोदी का मकबरा स्थित है। यह आज कल नई दिल्ली में विलिंगटन पार्क में पृथ्वीराज
दिल्ली में विश्व प्रसिद्ध कुतुबमीनार स्तम्भ के समीप ही
कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद है। इसे कुव्वतुल-इस्लाम मसजिद (इस्लाम की ताक़त वाली) अथवा
दिल्ली में हौज़ खास के मोड़ से कुछ आगे बढ़ने पर एक नई सड़क बाई ओर घूमती है। वहीं पर
दिल्ली में स्थित
जंतर मंतर दिल्ली एक खगोलीय वैधशाला है। जंतर मंतर अथवा दिल्ली आवज़स्वेट्री दिल्ली की पार्लियामेंट स्ट्रीट (सड़क
तुगलकाबाद किला दिल्ली स्थित तुगलकाबाद में स्थित है। शब्द तुग़लकाबाद का संकेत तुग़लक़ वंश की ओर है। हम अपने पिछले लेखों
लालकोट का किला दिल्ली महरौली पहाड़ी पर स्थित है। वर्तमान में इस किले मात्र भग्नावशेष ही शेष है। इस पहाड़ी
कुतुब सड़क पर हौज़ खास के मोड़ के कुछ आगे एक लम्बा चौकोर स्तम्भ सा दिखाई पड़ता है। इसी स्तम्भ