हौज खास का इतिहास – हौज खास क्या है और कहां है Naeem Ahmad, February 12, 2023February 17, 2023 हौज खास राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का एक गांव है यह गांव यहां स्थित ऐतिहासिक हौज खास झील और और उसके किनारे स्थित ऐतिहासिक स्मारक भवन के लिए जाना जाता है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र में कुतुब सड़क पर सफदर जंग मक़बरे से दो तीन मील की दूरी पर मक़बरों का एक समूह है यहीं से हौज़ खास को दाई’ ओर सड़क घूमती है। प्रधान सड़क से आध मील की दूरी पर सड़क के अन्त में हौज़ खास है। एक द्वार मार्ग से घेरे के भीतर प्रवेश करके हम एक सुन्दर बाग में पहुँच जाते हैं। हौज खास का इतिहास हौज़ खास एक सरोवर है। इसकी दो भुजाएँ लगभग आधा आधा मील लम्बी ओर दो भुजाएं तीन तीन फर्लाग लम्बी हैं। सरोवर के केन्द्र में एक द्वीप है जिस पर खंडहर दिखाई पड़ते है। वर्षा के पश्चात् जाने पर हौज़ भरा रहता है नहीं तो सूखा रहता है। यह सरोवर रिज के बहाव वाले पानी से भर जाता था। प्राचीन समय में वर्षा के पानी से हौज़ भर दिया जाता था। ग्रीष्म काल में पानी सूख जाने पर ईख, गन्ना, तरबूज, खरबूज़ा आदि बोये जाते थे। जब तैमूर ने आक्रमण किया था तो अपना ‘डेरा हौज़ खास पर डाला था। हौज़ खास की भूमि बड़ी उपजाऊ थी और शीत काल में अनाज के खेत लहलहाते हुये दिखाई पड़ते थे। हौज खास दिल्ली अलाउद्दीन बादशाह ने हौज खास को अपने प्रयोग के लिये बनवाया था। इसी कारण इसका नाम भी हौज़ खास है। इसकी मरम्मत फीरोज़ शाह ने कराई थी और इसके तट पर एक मदरसा तथा अपना मक़बरा बनवाया था। मदरसा के प्रधान भवन के ऊपर स्तम्भों वाले बड़े कमरे हैं नीचे कमरों की पंक्तियाँ हँ जिनके सामने बराम्दे बने हुये हैं। ऊपर बड़े कमरों में लड़के पढ़ा करते थे ओर नीचे के कमरों में वे रहा करते थे। फोरोज़ शाह के समय में यहां सबसे बड़ा अरबी का मदरसा था। मदरसे के अन्त में विद्याथियों के प्रयोग के लिये एक मस्जिद थी। अरबी मदरसा के अंत में फीरोज शाह का मक़बरा है यह एक चौकोर मज़बूत इमारत है। इसके भीतर बादशाह और उसके वंश के दो दूसरे व्यक्तियों की समाधियां हैं। जब बादशाह 1388 ई० में मरा तो उसकी अवस्था लगभग नव्बे वर्ष की थी। मदरसा के बाहर बाग में छोटी-छोटी’ छतरियां बनी हुई है। यह छतरियां स्तम्भों पर बनी हैं इनमें अधिकांश समाधियां हैं। मदरसे में मजलिस खाना बना है जिसमें समस्त विद्यार्थी तथा मोलवी एकत्रित हुआ करते थे। हौज खास के चारों ओर बहुत से बड़े-बड़े मक़बरे हैं। यह मक़बरे तुग़लक़ वंश के सरदारों के है। इन पर शिला लेख नहीं हैं जिससे ठीक तोर पर नहीं कहा जा सकता कि यह किसके मक़बरे हैं। तुग़लक़ काल के काज़ी तथा मोलवी लोग इसी बड़ी पाठशाला के पढ़े हुये लोग होते थे और वह समस्त राज्य में न्यायाधीशों के स्थान पर नियुक्त किये जाते थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”7649″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल ऐतिहासिक धरोहरेंदिल्ली पर्यटनहिस्ट्री