होवरक्राफ्ट ये नाम भारत के अधिकतर लोगों के लिए नया है, अधिकतर लोग होवरक्राफ्ट के बारे में नहीं जानते। होवरक्राफ्ट क्या है, यह एक विचित्र प्रकार का वाहन है जो समुंद्र में पानी पर और समुद्र तट, तथा किचड़ में भी चल सकता है। अपने इस लेख में हम जानेंगे कि होवरक्राफ्ट का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ तथा इसका उपयोग किस लिए होता है।
होवरक्राफ्ट का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ
होवरक्राफ्ट वाहन इस शताब्दी के अनेक विलक्षण साधनों में से एक है। इस विचित्र वाहन का निर्माण कार्य एक अंग्रेज इंजीनियर सी एस काकरल ने 1953-54 में शरू किया था। छह वर्ष के अथक परिश्रम के बाद सन 1959-60 मे उन्होंने अपने द्वारा बनाए वाहन को प्रदर्शित किया। इन्ही दिनों ऐसे ही वाहन के निर्माण में स्विटजरलैंड के एक आविष्कारक काल वाइलैंड भी लगे हुए थे।अमेरिका की कुछ कंपनियां भी ऐसे ही वाहन के विकास पर कार्य कर रही थी।
परतु होवरक्राफ्ट के आविष्कार का श्रेय ब्रिटेन के काकरेल को
ही जाता है। इस वाहन को वायुयान और जलयान के मध्य का वाहन माना जाता है। दरअसल काकरेल महोदय जहाज की उस प्रतिरोधक समस्या के हल की तलाश में थे, जो जलयान की सतह और पानी के बीच घर्षण से पैदा होती है और इस घर्षण से उर्जा का बहुत बडा भाग फिजूल में ही नष्ट हो जाता है इस घर्षण के परिणामस्वरूप जहाज की गति भी सीमित हो जाती है। अतः वे इस युक्ति पर विचार कर रहे थे, जिसके आधार पर जहाज का पानी की सतह से ऊपर उठाकर वायु के गद्दे पर चलाया जाए। इस विचार को कार्यरूप देने के लिए उन्होंने एक वाहन बनाया जो इस प्रकार था- वाहन के पदे में लगें एक बडे पंखे से वायु का एक अति उच्च दाब (High Pressure) वाला वायु का गद्दा-सा निर्मित हो जाता था। और हवा आस-पास कई टोटीदार छिद्गों से बाहर निकलती रहती थी। इस प्रकार ‘एक लचकीला-सा आवरण इस वायु को जहाज के तल के नीचे गद्दे की सूरत में बनाए रखता था और जहाज पानी, जमीन या बर्फ अथवा किसी भी ऊंची-नीची, ऊबड-खाबड जगह पर लगभग तीन-चार फूट ऊपर ही टंगा रहता था। इस क्रिया के लिए किसी सतह, पानी या जमीन का आधार होना आवश्यक था। बिना आधार के यान ऊपर टंगा नही रह सकता था। साथ ही यह बहुत ऊंचा भी नहीं उठ सकता था। ऐसे यान का नाम होवरक्राफ्ट रखा गया।
होवरक्राफ्टइसी आधार पर निर्मित सन् 1959 में एक चार टन भारी होवरक्राफ्ट का सफल परीक्षण किया गया। यह वाहन लगभग 30 नॉट के वेग से चलता हुआ समुद्र की सतह पर ऊपर उठकर दौडने लगा और समुद्र से बाहर निकलकर बालू पर दौडने लगा। बालू के ढेर से निकलकर यह एक सडक पर आ गया। इस विचित्र वाहन को सभी सतहो पर समान रूप से दौडता देख लोग विस्मित रह गए। ब्रिटेन के सागर तटों पर इस वाहन के कई परीक्षण किए गए। उसके बाद 1968 से इंग्लिश चेनल के आर-पार एक नियमित होवरक्राफ्ट सेवा आरम्भ कर दी गयी।
एक होवरक्राफ्ट लगभग 250 यात्रियो को तथा तीस मोटर कारो को लेकर लगभग 60-70 नॉट के वेग से समुद्र की सतह के ऊपर दौड सकता है। तेज रफ्तार में इसकी ऊचाई छह फुट तक हो जाती है। समुद्र की ऊंची-ऊंची लहरे इसके लिए कोई बाधा उत्पन्न नही करती। काकरेल के इस आविष्कार से अन्य कई देशो के
इंजीनियरो ने भी प्रेरणा ली ओर इसमे कुछ सुधार कर इसे और अधिक सुविधाजनक बनाया।
ब्रिटिश इंजीनियरो का मत है कि होवरक्राफ्ट उन देशो के लिए बडे उपयोगी सिद्ध हो सकते है, जहां संचार साधनों का पर्याप्त विकास नही हो पाया है। उदाहरण के लिए भारत, अफ्रीका, उत्तरी कनाडा, मध्य आस्ट्रेलिया आदि ऐसे देश है। इन देशो में 50 से 100 टन वाले होवरक्राफ्ट नदियों के ऊपर, रेगिस्तान में खंदको आदि में सवारियों और सामान को सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढो सकते है। इस वाहन को न सड़को की जरूरत है, न बदरगाहों की।
अमेरीकी इंजीनियरों ने एक ऐसी होवर-रेल का परीक्षण किया है, जो पटरियो को बिना छुए वायु की एक पतली-सी गद्दी पर लगभग 300 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौडती है। फ्रांस, अमेरीका, रूस, जर्मनी आदि देशो में इस किस्म की माना रेले बन चुकी है और उन्हे अधिक सफल बनाने का कार्य तजी से हो रहा है।
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