हैदराबाद रियासत का इतिहास – history of the Hyderabad state Naeem Ahmad, November 3, 2022March 28, 2024 भारत में हैदराबाद रियासत सबसे बड़ी रियासत थी। पर यह उतनी प्राचीन नहीं है जितनी भारत की अन्य रियासतें है। जिस वृस्तित स्थान पर तत्कालीन समय में हैदराबाद राज्य था, अत्यन्त प्राचीन काल में वहां द्रविड़ राजाओं का राज्य था। पर इस संबंध में अब तक ठीक ठीक प्रमाण नहीं मिले हैं। ईस्वी सन पूर्व 272 से 231 वर्ष में इस प्रांत पर सम्राट अशोक का अखंड शासन था। इसके बाद यहां एक के बाद एक तीन हिन्दू वंशीय राजाओं ने राज्य किया। तेरहवीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता में यवनो ने इस प्रांत पर हमले शुरू किये। वे लगातार दक्षिण के हिन्दू राजाओं से लडते रहें। आखिर में सम्राट औरंगजेब ने अपनी ताकत के जौहर दिखलाएं और उसने दक्षिण हिन्दुस्तान का बहुत सा हिस्सा फतह कर लिया। दक्षिण में आसफ खां नामक अपने बहादुर सिपेहसालार को निजामुल मुल्क का खिताब देकर दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आसफ खां जंग के मैदान में जैसे बहादुर थे वैसे ही बुद्धिमान और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ भी थे।चेदि कहां है – चेदि राज्य का इतिहाससम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद जब मुग़ल साम्राज्य अंतिम सांसें गिन रहा था, जब वह मृत्यु शैय्या पर पड़े पड़े आखरी दम ले रहा था, उस समय उस स्थिति का फायदा उठाकर आसफ खां ने अपने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इस समय दिल्ली की हकुमत बहुत कमजोर पड़ गई थी। उधर दिल्ली के बादशाह ने खानदेश के सूबेदार को हुक्म दिया कि वह आसफ खां पर फौजी चढ़ाईं कर दे। ऐसा ही हुआ। उल्टे मुंह की खानी पड़ी। लड़ाई में आसफ खां की जीत हुई। अब उनकी स्थिति और भी मजबूत हो गई। आसफ खां ने हैदराबाद को अपने राज्य की राजधानी बनाई। उन्होंने अपने निज का राज्य कायम किया। वर्तमान हैदराबाद रियासत के निजाम उन्हीं आसफ खां के वंशज हैं।हैदराबाद रियासत (दक्षिण) का इतिहासइस्वी सन् 1748 में आसफ खाँ की मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु के बाद इनके दूसरे पुत्र नासिरजंग और भतोजे मुजफ्फरजंग में राज्य गद्दी के लिये झगड़ा चला। दोनों में लड़ाई ठनना चाइती थी।विद्रोह मचना चाहता था, पर इसी समय हिन्दुस्थान में एक दूसरी परिरिथति उत्पन्न हो रही थी। भारतवर्ष के आधिपत्य के लिये अंग्रेज और फ्रेंच परस्पर लड़ रहे थे इन्होंने अपने अपने मतलब के लिए इनमें से एक एक का पक्ष लिया। अंग्रेजों ने आसफ खाँ के दूसरे पुत्र नासिरजंग के पक्ष का अवलम्बन किया।मुज़फ्फरजंग की फौज में बदनामी छा जाने से उन्होंने अपने आपको अपने चाचा नासरिजंग के हाथ में आत्म-समर्पण कर दिया। नासिरजंग ने मुजफ्फरजंग को कैद कर अंधेरी कोठड़ी में बन्द कर दिया। नसिरजंग भी इसी समय के लगभग फ्रेंच सेना के पठान सिपाहियों के हाथों मारे गये। बस इस वक्त मुज़फ्फरजंग की तकदीर चमकी। वे जेल से छोड़ दिये गये और गद्दी पर बैठा दिये गये। इस समय हैदराबाद रियासत में फ्रेंचों की तूती बोलने लगी। पर मुजफ्फरज़ंग का राज्य भी अल्पस्थायी रहा। वे भी नासिरजंग की तरह तलवार की घाट उतार दिये गये।विजयनगर साम्राज्य का इतिहास, स्थापना और पतनइसके बाद फ्रेंचों ने निजाम-मुल-मुल्क आसफ खां के तीसरे पुत्र सलाबतजंग को हैदराबाद रियासत का निजाम घोषित कर दिया। पर आसफ खां का सब से बड़ा पुत्र गाजीउद्दीन अपना दिल्ली का पद त्याग कर एक बढ़ी फौज के साथ सलाबतजंग का राज्यच्युत करने के लिये हैदराबाद पर चढ़ आया। इस समय मराठों ने भी इनको खुब मदद की। पर इनके भाग्य में हैदराबाद की राजगद्दी नहीं लिखी थी। अकस्मात इनकी मृत्यु हो गई। इससे इस बखेडे का यहीं खात्मा हो गया। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि, जब से सलाबतजंग हैदराबाद की मसनद पर बैठे तब से वहाँ फ्रेंचों का खुब दौर-दौरा था। वहाँ जो कुछ वे चाहते थे वही होता था। पर काइव की तेज गतिविधियों ने फ्रेंचो का ध्यान अन्य प्रान्तों की ओर विशष रूप से खीचा, जो उन्होंने पहले फतह किय थे।History of the Hyderabad Deccan state in hindiअंग्रेज़ों ने दिल्ली के बादशाह से कुछ प्रान्तों में तथा पश्चिमीय समुद्र किनारे के बन्दगाहो पर व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। पर सन 1761 में निजाम सलाबतजंग के वारिस अली खाँ ने इसका विरोध किया। उन्होंने अंग्रेजों की गतिविधि को रोकने के लिये एक बड़ी फौज भी तैयार की। आखिर ब्रिटिश और निजाम में आपसी समझौता हो गया। अंग्रेजों का उपरोक्त जिलों पर अधिकार कायम रखा गया। पर साथ ही यह शर्त भी तय हुई कि, ब्रिटिश निजाम को 600000 प्रति साल और जब जब निजाम को आवश्यकता पड़े, तब सब व उन्हे फौज की मदद भी दें। जिन जिलों का ऊपर उल्लेख हुआ है, वे“नादर्न सरकार के नाम से मशहूर हैं। हैदराबाद रियासत सन् 1780 के लगभग कुछ ऐसी घटनाएँ हुई, जिन्होंने हैदराबाद रियासत के भविष्य पर बड़ा प्रभाव डाला। इन घटनाओं का संक्षिप सारांश इस प्रकार है — मैसूर के सुलतान हैदरअली की मृत्यु हो जाने पर उनका पुत्र टिपू सुल्तान गद्दी-नशीन हुआ। इसने आसपास के उन मुल्क पर जिन पर अंग्रेज़ों ने अधिकार कर रखा था, हैदराबाद राज्य के प्रन्तों पर हमले करने शुरू कर दिये। इससे टिपू के खिलाफ अंग्रेज और हैदराबाद के निजाम मिल गये। दोनों ने टिपू को अपना दुश्मन मान कर उस पर संयुक्त आक्रमण करने का निश्चय किया। पर टिपू के पास भी बहुत बडी सेना थी, उसके अतिरिक्त वह रणकुशल भी था। अतएव बहुत दिन तक वह ज्यों त्यों मुकाबला करता रहा। पर चारों ओर उसके दुश्मन थे। एक ओर तो मराठा उसके नाकों दम कर रहें थे, दूसरी ओर अंग्रेज और हैदराबाद के निजाम उसकी छाती पर मूँग दल रहे थे। अन्त में सन् 1798 में टिपू सुल्तान अंग्रेजों से हार गया और वह लड़ता हुआ एक बहादुर सिपाही की तरह युद्ध में मारा गया। इस समय विजेताओं के हाथ जो मुल्क लगा, उसमें 2400000 प्रति साल आमदनी का मुल्क हैदराबाद के निजाम के हिस्से में आया। लॉर्ड वेलेस्ली, जो उक्त युद्ध में ब्रिटिश फौजों का संचालन कर रहे थे, लिखते हैं–‘ It would have been impossible to conquer the dominious of tippu had it not been for the active support and co-operation of Nijamali. अर्थात अगर निजाम अली की सहायता और सहयोग न मिलता तो टिपू सुल्तान का मुल्क जीतना असम्भव होता।इसके बाद सन् 1800 में निजाम और ब्रिटिश सरकार के बीच एक सुलह हुई, इसमें यह तय हुआ कि, निजाम अंग्रेज सरकार के लियें अपने खर्च से 8000 पैदल और 10000 घुड़सवारों की सहायक फौज रखें और उसका सारा खर्चा निजाम दे, इसके अतिरिक्त बिना अंग्रेज सरकार की अनुमति के निजाम किसी के साथ युद्ध की घोषणा न करे। इसके साथ अंग्रेज सरकार ने निजाम और उनके दुश्मनों के बीच के झगड़े तय कर देने का वचन दिया।महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहासपाठक जानते हैं कि टिपू सुल्तान का बहुत सा मुल्क निजाम साहब के हिस्से में आया था। पर यह उनके हाथ में न रहने पाया। ब्रिटिश कूटनीति ने ( British diplomacy ) ने उसे उनके हाथ से ले लिया। निजाम पर अतिरिक्त फौजी खर्च का भार लाद कर उनसे वह मुल्क ले लिया गया जो टीपू सुल्तान से उन्हें प्राप्त हुआ था। इस तरह सहज ही में कोई 240000 आमदनी का मुल्क निजास के हाथों से चला गया। इसके तीन वर्ष बाद निजाम ने बरार के राजा के खिलाफ अंग्रेजो की मदद की। इसके बदले में उक्त राजा से जीते हुए मुल्क का एक हिस्सा निजाम को भी मिला।इस प्रकार कई प्रकार के चढाव उतार तथा परिवर्तन देख कर हैदराबाद रियासत के तत्कालीन निजाम अली का सन् 1803 में देहांत हो गया। आपके बाद सिकन्दर खाँ गद्दी पर बैठे। इन्होंने अपनी प्रजा के हित की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इन्होंने राज्य का सारा कारोबार अपने दीवान वजीर मीर आलम और अपने जामाता मुनीर-उल-मुल्क को सौंप दिया था। इन लोगों ने भी निजाम की तरह ऐशो आराम की जिन्दगी बसर करना ही ठीक समझा। राज्य कारोबार बिगड़ने लगा। प्रजा तंग होने लगी। आखिर ब्रिटिश सरकार ने हस्तक्षेप किया, उसने राज्य-शासन का सूत्र चलाने के लिए कायस्थ जाति के चन्दुलाल नामक एक अनुभवी मनुष्य को मुकर्र किया। इसके समय में गरीब रिआया और भी तंग होने लगी। उस पर अत्याचार होने लगे। इस बात को अंग्रेज सरकार के एक ऊँचे अधिकारी ने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है। चन्दूलाल बड़ा शक्तिशाली हो गया। वह अपने सामने किसी को कुछ न समझने लगा। निजाम के दो लड़कों ने इसे निकलवाने के लिये पड़यन्त्र किया, पर वे सफल न हो सके। उलटे वे कैद कर राज्य कैदी के रूप में रखे गये। जिस आदमी को वे अधिकार च्युत करना चाहते थे, वे ही उसकी दया के भिखारी बन गये। इसे कहते हें– कर्मणो विचित्रा गति:।”सन् 1829 में निजाम सिकन्दर का देहान्त हो गया। उनके बाद उनके सबसे बड़े पुत्र नासिरुदौला मसनद पर बेठे। इस वक्त चन्दूलाल ही हैदराबाद रियासत के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने कर वसूली का काम अपने ही आदमियों के सुपुर्दं रखा था। इससे खजाने में हानि पहुँचने लगी। थोड़े ही समय के बाद चंदूलाल की मत्यु हो गई, चन्दूलाल का नाम आज भी हैदराबाद में मशहूर है। कहा जाता है कि उन्होंने एक प्रकार हैदराबाद पर राज्य किया। आज भी वहाँ “चन्दूलाल का हैदराबाद” की कहावत मशहूर है। यद्यपि चन्दूलाल के शासन में कई दोष थे, उनकी कई बातें निन्दास्पद थीं, पर उन्होंने कुछ ऐसी बुद्धिमत्ता के काम भी किये थे, जिन्हें उनके बाद आने वाले मंत्रियों ने प्रशंसा की दृष्टि से देखा है।सन् 1853 में हैदराबाद रियासत के जिम्मे अंग्रेज सरकार ने एक बड़ी रकम पावना निकाली और इसके बदले में निजाम सरकार को बरार प्रान्त अंग्रेज सरकार के पास गिरवी रखना पड़ा। इस सम्बन्ध में अधिक प्रकाश वर्तमान निजाम महोदय के उस पत्र में मिलेगा, जो कभी उन्होंने प्रकाशित किया था। यह कहते की आवश्यकता नहीं कि बरार के चले जाने से निजाम को हार्दिक दुःख और असाधारण मानसिक कष्ट हुआ।मखदूम कुंड दरगाह का इतिहास राजगीर बिहारसन् 1853 में हैदराबाद के दिन कुछ फिरे ओर सालारजंग नामक एक अत्यन्त अनुभवी और योग्य सज्जन वहाँ के दीवान बनाये गये। सर सालारजंग ने राज्य के भिन्न भिन्न शासन-विभागों को सुसंगठित किया।इन्होंने राज्य का इतना अच्छा इन्तजाम किया कि पहले की गड़बड़ और अशांति बहुत कुछ मिट गई। चारों ओर अशान्ति और अव्यवस्था के बदले शान्ति और व्यवस्था का साम्राज्य हो गया। उन्होंने पुलिस-विभाग को इतना सुधारा कि वहाँ जो चोरियां और डकेतियां नित्य की घटनायें हों गई थी’, वे बहुत कुछ मिट गई। रिश्वतखोरी भी पहले की अपेक्षा कम हो गई। उन्होंने बढ़ी मजबूती के साथ चोर और डाकू कौमों को हैदराबाद रियासत में बसने से रोका। आपके सुशासन की वजह से राज्य की आमदनी भी बढ़ी। लोगों की सुख-समृद्धि में भी बहुत उन्नति हुईं। ये सब बातें देख कर निजाम साहब ने आपके अधिकार भी बहुत कुछ बढ़ा दिये। इसी समय हैदराबाद राज्य के तत्कालीन निजाम नासीरादौला का देहान्त हो गया और उनके पुत्र आसफुदौला मसनद पर बेठे। इनके मसनद पर बैठते ही सन् 1857 का विद्रोह की आग ने सारे भारतवर्ष में सनसनी पैदा कर दी। ब्रिटिश राज्य की जड़ हिलने लगी। ऐसे कठिन और विपत्ति के समय में निजाम महोदय ब्रिटिश सरकार के मित्र बने रहे। उन्होंने इस समय अपनी फौजों द्वारा ब्रिटिश सरकार की पूरी पूरी सहायता की। इस पर प्रसन्न होकर ब्रिटिश सरकार ने निजाम के साथ एक नई संधि की। इसमें नालढंग और रायपुर का दुआब प्रान्त, जिसकी आमदनी लगभग 2000000 थी, निजाम महोदय को वापस लौटा दिया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें 5000000 का कर्ज भी माफ कर दिया गया। हाँ, बरार प्रान्त लौटाने की इस समय भी उदारता न दिखलाई गई। उसे ब्रिटिश सरकार ने बतोर ट्रस्ट के रखा। जब विद्रोह अग्नि शान्त हो गई, तब तत्कालीन बड़े लाट लॉर्ड केनिंग ने तत्कालीन निजाम और उनके सुयोग्य दीवान सर सालारजंग का उस महान सहायता के बदले में, जो उन्होंने इस भीषण विपत्ति के समय ब्रिटिश सरकार को दी थी, हार्दिक धन्यवाद दिया और उनके बड़े उपकार माने। इतना ही नहीं, लॉर्ड केनिंग ने अंग्रेज सरकार की ओर से निजाम को 100000 भेंट किये तथा उपाधियों द्वारा उनका और सर सालारजंग का सम्मान किया। सर सालारजंग को भी ब्रिटिश सरकार की ओर स्वत 30000 का पुरस्कार मिला।महाराजा महेन्द्र सिंह और महाराजा राजेन्द्र सिंह पटियाला रियासतअब फिर सर सालारजंग को राज्य शासन सुधारने के सुअवसर प्राप्त हुए। ओर उन्होने शासन के भिन्न भिन्न विभागों को सुधारना शुरू किया इनके इस प्रशनीय कार्य में धनवान मुसलमानों द्वारा बढ़ी बड़ी बाधाएं उपस्थित की गई। एक वक्त उनकी जान लेने का भी प्रयत्न किया गया, पर निष्फल हुआ। उन्होंने हैदराबाद रियासत के शासन को बहुत कुछ ऊँची श्रेणी पर पहुँचा दिया। सन् 1869 में निजाम आसफुद्दौला साहब की भी मृत्यु हो गई। आपके बाद हैदराबाद रियासत के भूतपूर्व निजाम प्रिन्स महबूब अली खां बहादुर हैदराबाद की मसनद पर बेठे। इस समय आपकी अवस्था केवल तीन वर्ष की थी। अतएव अंग्रेज सरकार ने हैदराबाद राज्य के शासन का सारा भार सालारजंग पर रखा। आपकी सहायता के लिये “कौंसिल ऑफ, रेजिडेसी” भी रखी गई।निजाम महोदय की शिक्षा के लिये अच्छा प्रबंध किया गया। आपको शिक्षा देने के लिये योग्य अनुभवी और अच्छे शिक्षक रखे गये। श्रीमान ने फारसी, अरबी और हिन्दुस्तानी भाषा में अच्छी पारदर्शिता प्राप्त कर ली। आपने अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छा अधिकार जमा लिया।यहाँ फिर यह बात कह देना आवश्यक है कि हैदराबाद रियासत के शासनकार्य में सर सालारगंज ने जिस अपूर्व योग्यता, असाधारण राजनीतिज्ञता, अलौकिक बुद्धिमत्ता का परिचय दिया उसे देखकर बड़े बड़े अंग्रेज राजनीतिज्ञ दाँतों अंगुली दबाते थे। एक सुप्रख्यात् अंग्रेज राजनीतिज्ञ ने तो यहाँ तक कह दिया कि, संसार में अब तक सर सालारजंग और सर० टी० माधवराव जैसे राजनीतिज्ञ पैदा नहीं हुए। निजाम महोदय ने भी आपका आप के योग्यतानुरूप ही सत्कार और सम्मान रखा।सन् 1875 में श्रीमान् निजाम महोदय तत्कालीन प्रिन्स ऑफ वेल्स ( पीछे जाकर एडवर्ड सप्तम ) से मिलने के लिये बम्बई में निमन्त्रित किये गये। पर इस समय अस्वस्थता के कारण श्रीमान् निजाम महोदय बम्बई न जा सके। आपने अपने प्रतिनिधि के रूप में सर सालारजंग को बम्बई भेजा। प्रिंस ऑफ वेल्स ने वहाँ आपका बड़ा सत्कार किया। इतना ही नहीं, बढ़े सम्मान के साथ आपको कुछ बहुमूल्य जवाहरात भी भेंट किये। सन् 1876 में हैदराबाद से सम्बन्ध रखने वाली कुछ महत्वपूर्ण बातों के सम्बंध में इंडिया ऑफिस के अधिकारियों के साथ बात चीत करने के लिये सर सालारजंग विलायत गये। वहाँ आपका बड़ा सम्मान हुआ। खुद महारानी विक्टोरिया ने बड़े सम्मान के साथ बंकिंघम पैलेस में भोजन करने के लिये आपको निमंत्रित किया।सन् 1886 में आप विलायत से स्वदेश के लिये लौटे और सन 1877 के पहली जनवरी को महारानी विक्टोरिया के भारतवर्ष की सम्राज्ञी का पद धारण करने के उपलक्ष्य में दिल्ली में जो दरबार हुआ था, उसमें निजाम महाशय के साथ पधारे। सन् 1884 की 5 फरवरी में श्रीमान् निजाम महोदय को राज्य के पूर्ण अधिकार प्राप्त हुए। आपने बड़ी योग्यता से शासन किया। आप बड़े लोकप्रिय शासक थे। मुसलमान होते हुए भी आप पक्षपात शून्य थे। हिन्दू और मुसलमान दोनों को एक दृष्टि से देखते थे। आपका स्वभाव बड़ा दयालु था। आप गरीबों की बड़ी सहायता किया करते थे। आप शासन का काम खुद देखते थे, आज भी हैदराबाद की प्रजा बड़े प्रेम से आपको स्मरण करती है।बीकानेर राज्य का इतिहास – History of Bikaner stateसन् 1911 के अगस्त मास में इन लोकप्रिय निजाम महोदय को अकस्मात् लकवा मार गया और उसी से आप यहलोक छोड़ने में विवश हुए। आपके स्व॒र्गवास के समाचार से सारे राज्य में शोक छा गया। श्रीमान् सम्राट और अन्य ब्रिटिश अधिकारियों ने आपके कुटम्बियों के पास समवेदना और शोक-सूचक तार भेजे। आपके बाद निजाम नवाब उस्मान अली खां बहादुर मसनद पर बेठे। आपका जन्म सन् 1886 में हुआ था। आपका बचपन प्राय: महलों ही में व्यतीत हुआ। पर जब आपने युवा अवस्था में पैर रखा, तबआपकी शिक्षा का भार मि. ब्रायन ईगरटन नामक एक उच्च-कुलोत्पत्र अंग्रेज के हाथ सौंपा गया। निजाम महोदय ने अंग्रजी की अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। नवाब इमाद-उल-मुल्क नामक एक विद्वान मुसलमान सज्जन से आपने फारसी, अरबी ओर हिन्दुस्थानी भाषाओं में भी अच्छी पारदर्शिता प्राप्त कर ली। कहने की आवश्यकता नहीं कि आपके आस पास अधिकतर मुसलमान सज्जन ही रहने के कारण आप में आवश्यकता से अधिक इस्लाम धर्म की कट्टरता आ गई थी।सन् 1906 में आपका विवाह नवाब जहाँगीर जंग की पुत्री के साथ हुआ। आपके तीन शाहजादे और एक शहजादी हैं। इनमें नबाव मीर हिमायत खाँ बहादुर युवराज हैं। सन् 1912 में स्वर्गीय सर सालारजंग के पौत्र नवाब सालार जंग को आपने अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया। पर आपसे आपकी न बनी। इसलिए सालारजंग को एक वर्ष के बाद ही इम्तीफा देना पडा। सन् 1913 के अक्टूबर मास में श्रीमान लॉड हार्डिज फिर हैदराबाद रियासत पधारे, जिनका नजाम साहब ने बडा सत्कार किया। निजाम महोदय, जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, इस्लाम धर्म के कट्टर पक्षपाती थे, दुख के साथ कहना पडता है कि अपने आपने स्वर्गीय पिता की तरह हिन्दुओं को नहीं अपनाया। गुलबर्गा के दंगे में मुसलमानों के द्वारा हिन्दुओं पर जो जुल्म हुए उसमें आपके हाथ से हिन्दुओं को न्याय नहीं मिला। और निर्दोष हिंदुओं पर भयंकर से भयंकर हमला करने वाले मुसलमान लोग बेदाग छोड़ दिये गये। हिंदुओं की अधिक संख्या होते हुए भी वहाँ की सरकारी नौकरियों में उनकी नाम-मात्र की संख्या थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि निजाम महोदय की इस नीति पर राज्य के हिंदुओं में घोर असंतोष छा गया था। ब्रिटिश भारत में इसके लिये सभाएँ हुई’ जिनका हाल समाचारपत्रों के पाठकों को विदित ही है। इस नीति के कारण राज्य में बड़ी अव्यवस्था हो गई थी और ब्रिटिश सरकार को हस्तक्षेप भी करना पड़ा।सन् 1926 में निजाम महोदय ने बरार का प्रश्न बड़े जोर से उठाया और इस सम्बन्ध में उन्होंने समाचारपत्रों में अपना एक लम्बा चोड़ा वक्तव्य प्रकाशित किया। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने इसका कड़ाउत्तर दिया, जो समाचारपत्रों में यथासमय प्रकाशित हो चुका है।हैदराबाद रियासत के उद्योग धंधेयह कहने की आवश्यकता नहीं कि, प्राचीन काल से अपने अद्भुत कला-कौशल के लिये इस प्रान्त की कीर्ति मिस्र, ग्रीस और इरान तक फैली हुई थी। इस प्रान्त में सोने और चांदी के काम किये हुए बढ़िया वस्त्र बढ़िया मलमलें, मुलायम रेशम, आदि कई काम बनते थे। इनकी सुन्दरता से तत्कालीन संसार मोहित था। यद्यपि कालचक्र के परिवर्तन से इस वक्त वहाँ इतनी बढ़िया चीजें तैयार नहीं होती हैं, पर फिर भी समयानुसार यहाँ उद्योग धंधों और कला कौशल की संतोष कारक उन्नति हो रही है। उस वक्त हैदराबाद राज्य मे रूई की कोई 60 जरीनिंग फेक्टरियाँ थी। तीन बड़े बड़े कपड़ों के तथा 62 आटे के मिल थे। इसके अतिरिक्त 33 चावल निकालने के मिल, एक सिल्क के केबल बनाने की तथा एक बर्फ की फेक्टरी थी। यहाँ एक आयर्न फाउन्डरी भी थी। यहाँ वाटरपम्पिग स्टेशन भी था। यहाँ सोने और चांदी के बढ़िया तार तेयार होते थे। कसीदे का काम भी यहाँ गजब का होता था। पिताम्बर की कीमत 500 सौ रुपये तक रहती। और भी यहाँ कई प्रकार के बढ़िया कम होते थे। हैदराबाद रियासत के उद्योग धन्धों को उत्तेजन देने के सदुद्देश से श्रीमान निजाम महोदय ने सन् 1917 में वहां तेयार होने वाली वस्तुओं की एक प्रदर्शनी की थी। इसी समय हैदराबाद के कई अनुभवी सज्जनों ने इस विषय पर कई पुस्तिकाएं प्रकाशित की थीं कि वहाँ कोन कौन से उद्योग धन्धों के साधन हैं और वे किस प्रकार सफलता पूर्वक चल सकते हैं। इसी समय यह बात भी प्रकाश में आई थी कि, सारा भारतवर्ष जितना तिलहन विदेशों को भेजता है उसका आधा हिस्सा केवल हैदराबाद से जाता है।भरतपुर राज्य का इतिहास – History of Bhartpur stateहैदराबाद से प्रति साल 70000000 रुपयों की रुई बाहर जाती थी। इतना होते हुए भी वह एक साल में 22338000 रुपयों का रुई का तैयार और पक्का माल भी बाहर भेजता था। यहाँ से प्रति साल लाखों रुपयों की उन भी यूरोप को भेजी जाती थी। अगर इसी ऊन का यहाँ पक्का माल तैयार किया जाता तो रियासत को बहुत बढ़ा फायदा हो सकता था। सन 1916-17 में हैदराबाद रियासत में 19310000 रुपयों के माल का कारोबार हुआ। वहाँ उद्योग-धन्धों और व्यापार का एक खास महकमा भी था। वहाँ के औद्यौगिक और व्यापारिक विकास के लिय प्रयत्न करना उसका प्रधान कार्य था। उद्योग धन्धों की उन्नति रेलवे के प्रचार पर भी बहुत कुछ निर्भर है, अतएव निजाम साहब अपने राज्य में रेलवे को भी बढ़ाया। सन् 1920 में वहाँ की रेलवे का विस्तार 910 मील था। वहाँ बड़ी लाईन भी थी। हैदराबाद स्टेट को रेलवे से अच्छा मुनाफा होता था।हैदराबाद रियासत में कई सार्वजनिक पुस्तकालय भी थे। वहाँ के सबसे प्रधान पुस्तकालय का नाम “असाफिया स्टेट लायबरी” है। इसमे कोई 23663 ग्रन्थ थे। इनमें 15927 अर्बी, फ़ारसी और उर्दू भाषा के थे। शेष अंग्रेजी तथा अन्य युरोपीय भाषा के थे। हैदराबाद राज्य में कोई 103 अस्पताल थे। इनमें 88 राज्य की ओर से थे। विक्टोरिया जनाना अस्पताल की नींव सन् 1906 में प्रिन्स ऑफ वेल्स ने डाली थी। यहाँ एक मेडिकल स्कूल और यूनानी हिकमत स्कूल भी था। सन 1916-17 में इनमें कोई 982326 रोगियों की चिकित्सा की गई।हैदराबाद रियासत मे पुरातत्व की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण स्थान हैं । औरंगाबाद जिले की एलोरा और अजंता की गुफाएँ विशेष उल्लेखनीय है। एलोरा की गुफाओं में पत्थर की नक्काशी जो काम हैं वह तो एकदम ही अपूर्व है। यह औरंगाबाद से कोई 14 मील की दूरी पर है। ये गुफाएं हिन्दू , बौद्ध और जैन-धर्म से सम्बन्ध रखती हैं। बौद्धों से सम्बन्ध रखने वाली 12, हिन्दुओं से तथा जैनियों से सम्बन्ध रखने वाली क्रम से 17 भर 5 हैं। इसमें जो खास इमारत है उसे कैलाश कहते है। अजंता की गुफाएँ खास अजंत नाम॒ के गाँव में हैं। यह जलगाँव से 38 मील के अन्तर पर है। इनमें 42 बौद्ध-मठ भी हैं। इनमें भी बौद्धकाल की कारीगिरी का अच्छा नमूना मिलता है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=’12754′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की प्रमुख रियासतें हिस्ट्री