हेलियोडोरस स्तंभ भारत केमध्य प्रदेश के विदिशा जिले में आधुनिक बेसनगर के पास स्थित पत्थर से निर्मित प्राचीन स्तम्भ है। इसका निर्माण ११० ईसा पूर्व हेलिओडोरस ने कराया था।हेलियोडोरस प्राचीन भारत का यूनानी राजनयिक था। वह पांचवें शुंग राजा काशीपुत भागभद्र के राज्य काल के चौदहवें वर्ष में तक्षशिला के यवन राजा एण्टिआल्कीडस (140-130 ई.पू.) का दूत बनकर विदिशा आया था। हेलियोडोरस यवन होते हुए भी भागवत धर्म का अनुयायी हो गया था। उसने भगवान विष्णु का एक ‘गरुड़ स्तम्भ’ बनवाया था, जिसे हेलियोडोरस स्तंभ’ भी कहा जाता है। यह सारी सूचना उक्त स्तम्भ पर अंकित है, जिससे प्रकट होता है कि हेलियोडोरस को महाभारत का परिचय था।
हेलियोडोरस स्तंभ जिसकी संसार के सर्व प्रसिद्ध स्मारकों में इस स्तम्भ की गणना की जाती है क्योंकि यह ने केवल वैष्णव धर्म का प्राचीनतम एक अक्षुण्य स्मारक है अपितु एक यवन राजदूत द्वारा वैष्णव धर्म स्वीकार करने का उदाहरण भी है।
विदिशा-अशोकनगर मार्ग पर विदिशा से तीन किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन विदिशा नगर के बाहर, बेस नदी के तट पर तथा टिला नामक छोटे गाँव के निकट तथा आधुनिक बेसनगर के पास यह स्तम्भ अपने मूल स्थान पर स्थित है। इसे यहां के निवासी खामबाबा के नाम से जानते है तथा इसकी पूजा भी करते हैं। यदाकदा कुछ लोग बकरे की बलि भी चढ़ाते हैं।
हेलियोडोरस स्तंभ को खामबाबा क्यों कहते हैं
मार्शल के समय में हेलिओडोरस स्तम्भ के निकटवर्ती टीले पर खामबावा का पुजारी प्रतापपुरी गोसाई था, जो यहां के पुजारी हीरापुरी की तीसरी पीढी का था। हीरापुरी सन्यासी था, जो खामबाबा को मदिरा समर्पित करता था। भण्डारकर ने इस हेलियोडोरस स्तंभ की पूजा प्रारम्भ होने के विषय में लिखा है कि एक बार एक महत्वशाली व्यक्ति अपनी सेना के साथ सन्यासी हीरापुरी के स्थान पर आया, सन्यासी ने उस व्यक्ति से सदैव के लिये अपने साथ रहने की प्रार्थना की। आगंतुक हीरापुरी के आतिथ्य से इतना प्रसन्न हुआ कि उसने हीरापुरी की प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा स्वयं को खामबाबा में परिवर्तित कर लिया। स्तम्भ की पूजा प्रायः भोई अथवा ढीमर जाति के लोग करते है क्योंकि उनका विश्वास है कि खामबाबा मौलिक रूप से उन्हीं की जाति का था। इसके प्रमाण में वह मकर स्तम्भ शीर्ष को, जो उस समय यही पर था, खामवाबा का रूप धारण करने के पूर्व ढीमर द्वारा पकड़ी हुई मछली समझते हैं। ढीमर ने जब खामबाबा का रूप धारण किया, मकर ने भी स्वयं को पत्थर में परिवर्तित कर लिया। यही कारण हैं कि इस स्तंभ पर उस समय तेल मिश्रित गेंहू आदि का गहरा लेप था। वस्तुतः यह खंभ (स्तंभ) बाबा आधुनिक शब्द है।
हेलियोडोरस स्तंभ बेसनगरग्वालियर राज्य के समय में इस स्तम्भ के चारों ओर एक चबूतरा बना दिया गया था क्योंकि इसकी नींव के एक चतुर्थ भाग के उत्खनन से यह स्पष्ट हो गया था कि स्तम्भ एक ओर को थोड़ा सा झुका है। चबूतरे के ऊपर का भाग 5 मीटर ऊंचा है। यह भूरे गुलाबी स्फटिक बालुकाश्म का बना है तथा ऊपर की ओर शुण्डाकार है, जहां गरूड़ स्तम्भ शीर्ष शोभित था। स्तम्भ तथा क्षीर्ष अलग-अलग एकाश्म है। इसके अष्टाभुजी भाग पर द्वितीय शताब्दी ई० पू० के दो अभिलेख हैं। इसका ऊपरी भाग क्रमशः सोडप तथा बत्तीस भुजी है व सर्वोपरि भाग गोल है। इसी प्रकार के एक अन्य गरुड़ध्वज की स्थापना सम्बन्धी अभिलेख वर्तमान विदिशा की एक गली से प्राप्त हुआ था। सम्भवतः यह अभिलेख भी हेलियोडोरस स्तंभ के समकालीन अन्य सात स्तम्भों का एक भाग रहा हो।
हेलियोडोरस स्तंभ के पार्श्व में जिस टीले पर पुजारी का मकान था, उसके नीचे अनगढ़ पत्थरों की चार दीवारें 33 मी० वर्ग की अनावृत की गई थीं, जो मिट्टी के बने चबूतरे की रक्षा हेतु निमित की गई थी। इस चबूतरे पर हेलियोडोरस स्तंभ का समकालीन वायुदेव का मंदिर था। इस मंदिर के उत्तर की ओर अनगढ़ पत्थर की दीवार के समान्तर सात स्तम्भों के अवशेप प्राप्त हुये थे। सात स्तम्भों की इस पंक्ति के मध्यस्थ स्तम्भ के सम्मुख आठवां स्तम्भ था। हेलियोडोरस स्तंभ इस पंक्ति के एक कोने पर था।
इस स्थान से गरूड़ स्तम्भ-शीर्ष के अतिरिक्त, केल्प वृक्ष, मकर ताम्रपत्र, वेदिका आदि स्तम्भ शीर्ष भी एकत्र किये गये थे, जो उपर्युक्त स्तम्भों को सुशोभित करते रहे होंगे।
अनगढ़ पत्थर की दीवारों के नीचे तथा कोरी मिट्टी के ऊपर एक वृत्तायत मंदिर की नींव अनावृत की गई थी। इस मंदिर में वृत्तायत गर्भग्रह वृत्तायत प्रदक्षिणापथ, अंतराल व मंडप थे। ई० पूृ० चौथी-तृतीय शताब्दी का विष्णु मंदिर काष्ठ का बनाया गया था, जो बाढ़ग्रस्त हुआ। इस समय इस स्थल पर खामबाबा के अतिरिक्त केवल अनगढ़ पत्थरों की धारक दीवार ही हैं। शेष भाग बालू तथा अलकाथीन से ढक दिया गया है।
हेलियोडोरस स्तंभ पर उत्कीर्ण अभिलेख तथा अनुवाद
- देव देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
- कारिते इष्य हेलियो दरेण भाग
- वर्तन दियस पुत्रेण नखसिला केन
- योन दूतेन आगतेन महाराज स
- अंतलिकितस उपता सकारु रजो
- कासी पु (त्र) (भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
- वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
अर्थात:– देवों के देव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज, तक्षशिला से दियोन के पुत्र हेलिओडोरस, एक भागवत, के अनुरोध पर बनाया गया, जो अपनी इच्द्रियों को निरुद्ध कर चमददसेन के साथ यहां आया। कौत्सगोत्र के स्त्री पुत्र, वंश के राजा भागभद्र, रक्षक, यश में स्व वृद्धि होती है। महाराज अंताइककीद्स का दास मूछभूत तीन ग्रुणों की प्रतिज्ञा करता है, जिनका अनुकरण करने से अमरत्व, स्वनियन्त्रण, उदारता तथा विनम्रता प्राप्त होती है।
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