रेडार और सर्चलाइट लगभग एक ही ढंग से काम करते हैं। दोनों में फर्क केवल इतना ही होता है कि जहां सर्चलाइट प्रकाश-शक्ति की एक किरण को बाहर फेंकता है, वहां रेडार हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो-एनर्जी को प्रयोग में लाता है। सार्च लाइट की रोशनी जब किसी चीज़ से जाकर टकराती है, तब उस रोशनी का कुछ हिस्सा टकराने के बाद वापस लौट आता है, ओर उसी के जरिये देखने वाला उस वस्तु को देख पाता है। यही कुछ रेडार के साथ होता है, रेडार किरण जब किसी वस्तु से टकराती है, तो उस किरण का कुछ हिस्सा लौटकर वापस रेडार-रिसीवर को ही आ जाता है, जिसके द्वारा रिसीवर अब उस वस्तु को देख सकता है। रेडार का प्रयोग नजदीक आते हवाई जहाज को पहचानने के लिए, तुफानों-झंझाओं की गतिविधि का अनुसरण करने के लिए और समुंद्र यात्रा तथा आकाश यात्रा में जहाज़ों के दिशा-निर्देश के लिए भी किया जाता है। किसी वस्तु की दूरी प्रथ्वी से कितनी है, यह भी अब रेडार-आल्टीमीटरों के द्वारा सही-सही जाना जा सकता है। इसके लिए अब पुराने बैरोमीटरों की आवश्यकता नहीं रही, ना ही यह जानने की कि जिस पहाड़ के ऊपर हवाई जहाज उड़ रहा है, वह भूमि से कितने हज़ार फूट दूर है। दूसरे विश्व-युद्ध में शत्रु के जहाज़ की गतिविधि समय पर बतलाकर, और अपनी रक्षा के लिए अपने हवाई जहाज़ों को समय पर यथास्थान पहुंचाकर, रेडार ने मित्र-राष्ट्रों की पर्याप्त सहायता की थी। 1940 तक रेडार की खोज को बहुत ही सुरक्षित रखने का प्रबन्ध था, यद्यपि इसके मूल सिद्धान्तों का आविष्कार तब से प्रायः 50 वर्ष पूर्व, 1888 में हेनरिक हर्ट्ज ने कर लिया था। यही नही उसके पहले भी इस प्रकार के किसी उपकरण की आवश्यकता वैज्ञानिक बहुत देर से अनुभव कर रहे थे। और हर्ट्ज ने सचमुच एक प्रकार का एंटिना जो टेलीविजन ट्रांसमिशन और रिसेप्शन में प्रयुक्त होता है, बहुत पहले बना भी लिया था। आज कृतज्ञता पूर्वक हम उस एंटिना को हर्ट्ज-डाइपोल कहते भी है।
हेनरिक हर्ट्ज का जीवन परिचय
हेनरिक हर्ट्ज का जन्म जर्मनी के उत्तर-समुद्री बन्दरगाह हेम्बुर्ग मे 22 फरवरी, 1857 को हुआ था। परिवार समृद्ध एवं प्रतिष्ठित था। हेनरिक हर्ट्ज के लिए वास्तु-शिल्प तथा इजीनियरिंग पढाने की व्यवस्था की गई, किन्तु बहुत जल्दी ही घर वालो को पता चल गया कि बालक की अपनी अभिरुचि शुद्ध विज्ञान तथा अनुसंधान की ओर है। उन दिनों हर्मान वान हैल्महोत्त्शबर्लिन विश्वविद्यालय में भौतिकी का प्रोफेसर था। यही विज्ञान के अध्ययन के लिए हर्ट्ज पहुंचा। भौतिकी के अतिरिक्त हैल्महोल्त्श शरीर क्रिया विज्ञान, शरीर-रचना विज्ञान तथा गणित का प्रोफेसर भी समय समय पर रह चुका था। उसकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण विभिन्न क्षेत्रों में उसके किए गए प्रामाणिक अनुसधान है—शराओ के स्पन्दन की गति को उसने मापकर रख दिया, ध्वनि के अभ्याघातो का तथा तरगिमा का विश्लेषण, संगीत मे स्व॒र-संगति का एक नया सिद्धान्त, जिसका आधार उसके निजी भौतिक पर्यवेक्षण थे। इसी प्रकार उसने शक्ति की अनश्वरता के नियम का एक नूतन प्रतिपादन किया,दृष्टि मे वर्ण-विभ्रम का कारण खोजा और ऑप्थेल्मोस्कीप का आविष्कार किया जिसका प्रयोग नेत्र विशेषज्ञ नेत्र-दोषो की परीक्षा मे आज तक वैसे ही करते आ रहे है।
हेनरिक हर्ट्ज को जहा आचार्य हैल्महोल्त्श के सम्पर्क से पर्याप्त लाभ हुआ, वहा हैल्महोल्त्श ने भी अनुभव किया कि एक असाधारण विद्यार्थी उसके संपर्क मे आ गया है। 1880 में स्नातक होते ही हर्ट्ज, हैल्महोल्त्श के यहां ही भौतिकी में एक सहायक के रूप में नियुक्त हो गया। 1883 में हर्ट्ज की नियुक्ति भौतिकी के प्राध्यापक के रूप में कील में हो गई, और वही पहुंच कर मैक्सवेल की विद्युत-चुम्बकीय स्थापना के सम्बन्ध में उसने अपनी गवेषणाएं आरम्भ की। आधुनिक समीक्षाओं मे युगान्तर ला देने वाले इस निबन्ध का प्रकाशन 1865 में हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप हर्ट्ज को प्रतिष्ठा तो मिली ही, साथ ही उसके जीवन का ध्येय भी विनिश्चित हो गया मैक्सवेल की सूत्र-रूप कल्पना का कुछ परीक्षणात्मक सबूत क्या नही दिया जा सकता कि–विद्युत तथा चुम्बक-शक्ति की प्रकृति भी प्रकाश की तरंगो की तरह ही होती है और कि उसे भी प्रकाश ही की तरह संचारित किया जा सकता है। हेनरिक हर्ट्ज अपनी इन परीक्षण-मालाओं में जुट गया। तब तक वह काल्सरूहे पॉलिटेक्निक में भौतिकी का प्रोफेसर लग चुका था। युगान्तर का आरम्भ एक रेडियो-ट्रांसमीटर और एक रेडियो रिसीवर के आविष्कार के साथ हुआ। इससे पहले ये उपकरण कही सुनने में भी न आए थे। किन्तु यही हमारे आधुनिक रेडियो, टेलीविजन, और रेडार के निर्माण की आधारशिला है।
पहले-पहल जो समस्याए हर्ट्ज ने समाधान के लिए अपने हाथ में ली, उनमें एक यह थी कि विद्युत और चुम्बक शक्ति की तरंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए कुछ समय लगता है (और सचमुच लगता भी है), किन्तु उसकी गणना की कैसे जाए ? आज हम जानते हैं कि ये तरंगें 30,0 0,00,000 मीटर प्रति सेकण्ड की अविश्वसनीय तीव्रता के साथ चलती है। परीक्षण कर्ताओ ने इस प्रकार की एक तरंग के विकिरण एवं आदान के बीच के अन्तराल को मापने की कोशिश की भी, किन्तु यदि वह कमरा, जिसमे यह परीक्षण हो रहा हो केवल 10 मीटर या लगभग 33 फुट लम्बा ही हो, तो उसकी लम्बाई को तय करने में हमारी तरंग को सेकण्ड का केवल तीस-करोडवां हिस्सा ही लगेगा बस। क्या इतनी सूक्ष्म गणना कभी संभव हो सकती है ? मनुष्य की बुद्धि तो यह सोचकर ही चकरा जाएगी।
हेनरिक हर्ट्जहेनरिक हर्ट्ज को सूझा कि लीडन जार मे विद्युत के डिस्चार्ज को प्रस्तुत प्रश्न के समाधान के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। लीडन जार में जो डिस्चार्ज होता है वह एक पेंडुलम की गतागति की तरह ही बडी तेजी के साथ दो बिन्दुओं के बीच चलता रहता
है–धीरे-धीरे ही उसकी यह गति विरत हुआ करती है किन्तु डिस्चार्ज की गतागति में भी पेंडुलम की गतागति की भांति सदा वही समय लगता है। क्यों न लीडन जार के अन्दर हो रहे (एक ही) वैद्युत उत्थान-पतन को एक काल-गणक उपकरण की तरह उपयोग मे लाया जाए ? लेकिन इस एक उत्थान-पतन में भी कितना ज्यादा वक्त लग जाता था। सेकण्ड का दस-लाखवां हिस्सा। और इतने समय मे तो तरंग 1,000 फुट तय कर जाएगी। अब इन तरंगों को इतनी दूर भेजने की भी तो कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। आजकल एक सशक्त सिग्नल को उत्पन्न करने के लिए एम्प्लिफाइग ट्यूब्स इस्तेमाल में लाई जाती है, किन्तु हर्ट्ज के पास वे तब नही थी।
हेनरिक हर्ट्ज ने पता किया कि कोई भी कंडक्टर एक डिस्चार्ज पैदा कर सकता है, लीडन जार का होना जरूरी नहीं है। किसी कंडक्टर से उत्पन्न डिस्चार्ज में एक करोड और दस करोड़ साइकल प्रति सेकण्ड के उत्थान-पतन संभव हो आते हैं। (आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स में यही गति 100 मेगासाइकल तथा एक किलो-मेगासाइकल प्रति सेकण्ड की गति कहलाएगी। अर्थात विद्युत तरंग के एक ही उत्थान-पतन मे माइक्रो-सेकण्ड के एक-सौवें और एक हजारवें हिस्से के बीच समय लगता है। (एक माइक्रो सेकण्ड सेकण्ड का एक-लाखवां हिस्सा हुआ करता है।) हर्ट्ज आधुनिक रेडार तथा सूक्ष्म-तरंग संचरण मे प्रयुक्त हाई-फ्रीक्वेन्सियों के क्षेत्र में खोज कर रहा था।
हेनरिक हर्ट्ज ने इसके लिए एक इंडिकेटर का आविष्कार किया कि सिग्नलों का आदान तो पहले कुछ संभव हो। और उसे स्पष्ट था कि यह तो बडी आसानी के साथ किया जा सकता है। जिस जगह हमे विद्युत अथवा चुम्बक-शक्ति की परीक्षा अभीष्ट हो, एक सीधे तार को बीच मे रखकर एक स्पार्क-गैप द्वारा उसे व्यवच्छिन्त कर दिया जाए। तीव्रता के साथ अदल बदल रही कंडक्टर की विद्युत अन्तराल मे एक चिंगारी पैदा कर देगी। हर्ट्ज के परीक्षण मे यह स्फुलिंग-अन्तराल बहुत ही छोटा था–एक पृष्ठ की मोटाई से कुछ अधिक नही। किन्तु हैरानी तो यही है कि हर्ट्ज ने इस नन्ही चिंगारी को भी प्रत्यक्ष देखने मे सफलता प्राप्त की कमरे को बिलकुल अंधेरा करके और देखने वाले को उसी अंधेरे का आदी बनाकर।
हेनरिक हर्ट्ज ने यह तो कर दिखाया कि तरंगों का विकिरण भी संभव है, आदान भी किन्तु–यह किस तरह सिद्ध किया जाए कि उनके संचरण में समय भी लगता है ? इसके लिए उसने ध्वनि के सिद्धान्त का तथा हेल्महोल्त्श की गवेषणाओं का सूक्ष्म अध्ययन
किया तरंगों में परस्पर अवरोध की स्थापना के अनुसार एक ही स्रोत से दो भिन्न मार्गो द्वारा एक ही लक्ष्य पर पहुंचती हुई दो तरंगें या तो दुर्बल पड जाएगी, या पहले से भी अधिक प्रबल हो जाएगी । ज्यो-ज्यो रिसीवर को एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर ले जाया जाता है, तरंग के आदान की स्थितियों में शान्त-अवस्थाओ का प्रत्यक्ष भी होता है, और दो शान्त-बिन्दुओं के बीच का अन्तर एक तरंग की लम्बाई के आधे के समान होता है।
इस प्रकार हेनरिक हर्ट्ज ने अपने माइक्रो-वेव ट्रांसमिटर तथा रिसीवर को और एक और रिफ्लैक्टर को यथावस्थित करके अब रिसीवर को परे हटाना शुरू किया। कुछ ऐसे सचमुच क्षेत्रो की परम्परा-सी स्थापित हो गई जहा एक भी सिगनल ग्रहण नही हो सकता था। इस प्रकार उसने तरंग की लंबाई को माप लिया। तरंग के उत्थान-पतन की फ्रीक्वेंसी उसे पहले ही मालूम थी, अत अब किसी और सामग्री की आवश्यकता नही रह गई थी। फ्रीक्वेंसी अथवा आवृत्ति को तरंग के आयाम से गुणा करे तो गुणनफल तरंग की गति को द्योतित करेगा। और इन विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की गति इन परीक्षणो से वही निकली जोकि प्रकाश की गति हुआ करती है 30,00,00,000 मीटर प्रति सेकण्ड।
यह परीक्षण समाप्त करके हर्ट्ज चुप नही बैठ गया। अभी तक इन तरंगों की प्रकृति के विषय में बहुत कुछ जानना बाकी था। उसने अपने ट्रांसमीटर और रिसीवर में रिफ्लेक्टर या नतोदर दर्पण जोड दिए और देखा कि विद्युत तथा चुम्बक की इन तरंगों को भी प्रकाश की तरंगों की भांति ही कही भी केन्द्रित किया जा सकता है। इन्हीं रिफ्लेक्टरों को जब एक ओर सेट कर दिया गया, और उन पर तरंगों को फेक कर देखा गया, तो पता लगा क्रि लेन्सों के द्वारा भी इन्हे फोकस किया जा सकता है। हर्ट्ज ने देखा कि तरंगे ध्रुवित हो गई हैं। आप ध्यान से देखें कि टेलीविजन का एण्टिना दिगन्त-सम दिशा में अवलम्बित है, शीर्ष-दिशा में वह उतना सही काम नही करेगा। अर्थात विद्युत तथा चुम्बक की तरंगे भी सभी कुछ वही कर सकती है जो कि प्रकाश की तरंग करती है।जेम्स क्लर्क मैक्सवेल की स्थापना का बहुत-कुछ इस प्रकार मूर्तरूप प्रमाणित हो गया।
हेनरिक हर्ट्ज के परीक्षणो मे अदभुत निपुणता अपेक्षित थी, और उनका महत्त्व भी कितना था। किन्तु इन्ही आविष्कारों के सम्बन्ध मे उसके अपने शब्द है कि मेक्सवेल की स्थापना की ही विजय इनसे सिद्ध होती है। अपनी ही सफलताओ को किस नम्रता के साथ तिरोहित कर दिया। 1889 में इन परीक्षणो तथा गवेषणाओं पर हाइडेलबर्ग में जर्मन एसोसिएशन फॉर द एडवान्समेट ऑफ नेचरल साइन्स की मीटिंग में खुलकर विचारों का आदान-सम्प्रदान हुआ, और हर्ट्ज को बॉन विश्वविद्यालय मे भौतिकी का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया। अभी वह 32 वर्ष का ही कच्ची उम्र का एक छोकरा था।
विज्ञान ने उसके नाम को अमर करने की कोशिश की साइकल प्रति सेकण्ड को हर्ट्ज’ का नाम देते हुए। जर्मनी में तो आज भी इसी को प्रयोग मे लाया जाता है किन्तु अन्यत्र यह इतना लोकप्रिय नही हो सका। खेर, अगली बार जब भी आपकी की नज़र अपने टेलीविजन सेट पर पडे तो उसे स्मरण हो आएगा कि उसके एंटिना को दिगन्तसम दिशा सर्वप्रथम हेनरिक हर्ट्ज ने दी थी। टी-बी के परदे पर जब नाचता-कूदता ‘भूत’ उतरता है तो यह भ्रान्ति भी एक प्रत्यावर्तित तरंग के परदे पर देरी से पहुंचने के परिणाम स्वरूप ही उत्पन्न होती है, और यह भी हर्ट्ज ने सर्वप्रथम सिद्ध कर दिखाया था कि विद्युत्-चुम्बकीय तरंग को रास्ता तय करने मे कुछ समय लगा करता है।
1894 मेंहेनरिक हर्ट्ज की मृत्यु हुई। तब उसकी आयु केवल 37 वर्ष थी। अगर वह जिन्दा रहता, क्या कुछ और कर जाता। इसकी तो अब केवल कल्पना ही की जा सकती है। किन्तु विज्ञान में उसका स्थान स्थायी है। हमारे घरों मे रेडियो उसी का प्रसाद है।
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