भारत की राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन तथा हजरत निजामुद्दीन दरगाह के करीब मथुरा रोड़ के निकट हुमायूँ का मकबरा स्थित है। यह मुग़ल कालीन इमारत दिल्ली पर्यटन के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। तथा यहाँ के पर्यटन स्थलों में अपना अलग ही मुकाम रखती है। इस खुबसूरत इमारत को देखने के लिए दुनिया भर के इतिहास प्रेमी, वास्तुकला प्रेमी तथा पर्यटक आते है। इसकी प्रसिद्धि और महत्वता का अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी इस भव्य इमारत के दर्शन के लिए यहाँ आ चुके है। तथा 1993 में यूनेस्को द्वारा इस इमारत को विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
हुमायूँ का मकबरा
हुमायूँ की मृत्यु सन् 1556 में हुई थी। और हाजी बेगम के नाम से जानी जाने वाली उनकी विधवा पत्नी हमीदा बानू बेगम ने 9 वर्ष बाद सन् 1565 में इस मकबरे का निर्माण शुरू करवाया था। 1572 में हुमायूँ का मकबरा बनकर तैयार हुआ था। एक फारसी वास्तुकार मिराक मिर्जा ग्यासुद्दीन बेग को इस मकबरे के निर्माण के लिए हाजी बेगम ने नियुक्त किया था। जिसको अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलाया गया था। मकबरे के निर्माण के दौरान मिराक मिर्जा ग्यासुद्दीन की मृत्यु होने पर बाद में उसके पुत्र सय्यद मुबारक इब्ने मिराक ग्यासुद्दीन ने मकबरे का निर्माण पूर्ण किया था। यह इमारत भारत में प्रथम मुगल शैली का उदाहरण है। जो इस्लामी वास्तुकला से प्रेरित था। हुमायूँ का मकबरा मे वही चारबाग़ शैली का प्रयोग किया गया था जो भविष्य में ताजमहल तथा अन्य इमारतों में भी देखी गई है।

हुमायूँ का मकबरा इस इमारत में पश्चिम और दक्षिण में लगभग 16 मीटर ऊचे दो मंजिला प्रवेश द्वार है। इन द्वारो में दोनों ओर कक्ष है। प्रवेश द्वार से अंदर की ओर निकलते ही इमारत का सुंदर मनमोहक नजारा अचंभित करता है। सामने मुख्य मकबरे की इमारत व उसका सफेद चमकता गुम्बद दिखाई पड़ता है। गुम्बद के ऊपर पितल के ऊचे कलश पर चन्द्रमा बना हुआ है। मकबरा चारों ओर से सुंदर बाग़ ( गार्डन) से घिरा हुआ है। जिसमें जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल पौधे और हरी मखमली घास लगायी गई है। बगीचे में बने मनोहारी पानी के फव्वारे इसकी सुंदरता और बढ़ा देते है। मकबरा लगभग 7 फुट ऊचे महराबदार चबूतरे पर बना है। जिसको किसी भी दिशा से देखने पर यह समान दिखाई देता है। मकबरे का मुख्य अष्टभुजाकार कक्ष ठीक गुम्बद के निचे है जिसमें हुमायूँ की कब्र है। मकबरे के अलग अलग हिस्सों में लगभग 100 से भी ज्यादा कब्र है जिनमें अधिकतर पर नाम अंकित न होने की वजह से पहचान करना मुश्किल है की किस की कब्र रही होगी। पुरातत्व विभाग अनुमान के अनुसार यह कब्रे मुग़ल शासकों के करीबियों और दरबारियों की रही होगी। इसलिए इसे मुगलों का कब्रिस्तान भी कहा जाता है। यह पुरी इमारत लाल बलुआ पत्थर से बनी है जिसके गुम्बद ओर नक्काशी मे सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है।
मकबरे का प्रवेश टिकट
भारतीय यात्रियों के लिए 30 रूपये प्रत्येक व्यक्ति शुल्क लिया जाता है। अमेरिका तथा अन्य देशों के यात्रियों के लिए प्रति व्यक्ति 300 रूपये शुल्क लिया जाता है। समय के साथ शुल्क घट व बढ भी सकता है।