हल्लूर एक आर्कियोलॉजिकल साइट है। हल्लूर खुदाई में बस्ती होने के संकेत मिले हैं। हल्लूर भारत केकर्नाटक राज्य के हावेरी जिले में स्थित है। पहले यह धारवाड़ जिले में था। धारवाड़ जिले से अलग कर हावेरी जिला बनाया गया। हल्लूर एक पुरातात्विक महत्व का स्थल है। यह स्थान गोदावरी नदी के दक्षिण में है। हल्लूर में नवपाषाण तथा महापाषाण काल के अवशेष मिले हैं। यहाँ इन कालों की तीन अवस्थाएँ मिली हैं, जिनमें विकारा का क्रम सतत है।
हल्लूर कि खुदाई में बस्ती होने के प्रमाण
इनमें बस्तियाँ एक ही स्थान पर रहीं। इनके पत्थर के औजार मध्य भारत तथा दक्षिणापथ के मध्यपाषाण युगीन औजारों जैसे हैं। लोगों का मुख्य धंधा पशु पालन और चने तथा बाजरे की कृषि करना था। पहली अवस्था के मिट॒टी के बर्तन बुर्जहोम के बर्तनों जैसे हैं। यहाँ के मिट्टी के भूरे रंग के बर्तन, उत्तर-पूर्वी ईरान के बर्तनों जैसे तथा लाल और काले रंग के बर्तन बलुचिस्तान की हड़प्पा पूर्व काल की संस्कृति जैसे हैं। दूसरी अवस्था में मालवा तथा तीसरी अवस्था में जोर्वे के मिट्टी के बर्तनों जैसे बर्तन मिले हैं।
हल्लूर आर्कियोलॉजिकल साइटसन् 1942 और 1947 में हल्लूर में की गई खुदाइयों में यहाँ महापाषाण युग की कब्रें पाई गई हैं। उस युग के लोग समाधियाँ बड़े-बड़े अनगढ़े़ पत्थरों से बनाते थे। हर बस्ती में 90 से लेकर 100 तक झोपड़ियां होती थीं। हर झोंपड़ी का आकार 3×2.7मी होता था। ये झोंपडियाँ वर्गाकार, गोल अथवा आयताकार होती थीं। इनकी दीवारें मिटटी की और खंभे लकड़ी के होते थे। छत बांस तथा पत्तो के ऊपर मिट॒टी डालकर बनाई जाती थी। फर्श को पक्का बनाने के लिए बजरी तथा रेती का प्रयोग होता था।
मिटटी के बड़े-बड़े माट, चूल्हा तथा ओखली प्रायः हर घर में मिले हैं। कटोरे और लोटे भी मिले हैं, परंतु थालियाँ नहीं मिलीं। मिट॒टी के बर्तनों की लाल सतह पर हिरण, कूत्तों तथा ज्यामितीय नमूनों काले रंग की चित्रकारियाँ हैं। इस सभ्यता के लोग कते हुए सूत तथा रेशम के कपड़ों का प्रयोग करते थे। लोग तांबे और सोने से परिचित थे, परंतु चांदी से अपरिचित थे। आभूषणों में वे कीमती मोतियों की मालाओं, अंगूठी तथा ताँबे, हाथी दाँत, हड्डी अथवा पकी मिटटी की चूड़ियों का प्रयोग करते थे।
वे ताँबे की कुल्हाड़ियों, काल्सिडोनी के फलक वाले बाणों, गुलेल के लिए क्वार्टजाइट की गोलियों, हसियों, तकुओं, खुर्पों और दुधारी चाकूओं का प्रयोग करते थे। बड़े-बड़े औजार डोलेराइट या तांबे के होते थे। पत्थर के पहियों का भी उपयोग होता था। लोगों का भोजन गाय, भैंस, भेड़, बकरी और घोंघों का मास तथा अन्न था। अन्न को ओखलियों में कूटा जाता था। हल्लूर एक ऐतिहासिक रूची रखने वाले पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है। इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटक हल्लूर की यात्रा कर सकते हैं।
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