हजूर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – नांदेड़ साहिब का इतिहास
हजूर साहिब गुरूद्वारा महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ जिले में स्थापित हैं। यह स्थान गुरु गोविंद सिंह जी का कार्य स्थल रहा है। यह सिक्ख धर्म के पांच प्रमुख तख्त साहिब में से एक है। जिसे तख्त सचखंड साहिब, श्री हजूर साहिब और नादेड़ साहिब के नाम से जाना जाता है। अपने इस लेख में हम नांदेड़ साहिब की यात्रा करेंगे और जानेगें— हजूर साहिब हिस्ट्री इन हिंदी, हजूर साहिब का इतिहास, नांदेड साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी, नांदेड़ साहिब का इतिहास, तख्त सचखंड साहिब का इतिहास, नांदेड़ के प्रमुख सिक्ख स्थान आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
नादेड़ साहिब गुरूद्वारे की स्थापना सन् 1708 में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा करवायी गयीं थी। यह स्थान श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के अद्वितीय जीवन की अंतिम सुनहरी यादों से जुडा है। यह स्थान सिक्खों के लिए उतना ही महत्व रखता है जितना कि हिन्दुओं के लिए काशी तथा कुरूक्षेत्र। प्रथम नौ गुरू साहिबान के बसाए गये अधिकतर स्थान सुल्तानपुर लोधी, खडूर साहिब, गोइंदवाल, अमृतसर, तरनतारन, कीरतपुर आदि पंजाब राज्य में ही स्थित है।
परंतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने विशाल भारत के कोने कोने को अपनी पावन चरण रज से पवित्र किया। पटना साहिब में आपका जन्म हुआ। उत्तर दिशा में स्थित नगर श्री आनंदपुर साहिब में आपने खालसा पंथ स्थापना की। माता पिता और अपने चारों पुत्रों को देश, कौम और धर्म की खातिर न्यौछावर करने के पश्चात दमदमा साहिब मालवा देश में प्रवेश किया। औरंगजेब की मौत के बाद उसके बड़े पुत्र बहादुर शाह जफर को दिल्ली का तख्त सौंप के संगत को तारते हुए भारत की दक्षिण दिशा में पहुंचे। गोदावरी नदी के किनारे बसे नगर नांदेड़ की धरती को पावन किया।

हजूर साहिब का इतिहास – हजूर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी
सरबंसदानी श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज ने जहां पटना की धरती को मान दिया वहीं आपने अपनी जवानी का सुंदर समय श्री आनंदपुर साहिब की रमणीक पहाडियों में गुजारा। 9 साल की उम्र में कश्मीरी पंडितो के धर्म की हानि को न सहते हुए आपने अपने प्यारे पिता का बलिदान देना भी स्वीकार कर लिया। इतनी छोटी उम्र में गुरु गद्दी का भार आपके कंधों पर रखा गया। जिसे आपने बडे ही अच्छे ढंग से सम्भाला। भाई जैता सिंह जी जब गुरु पिता का शीश लेकर आनंदपुर साहिब पहुंचे तो आपने अकाल पुरख का यह काम भी सिर माथे पर माना। आपने बड़ी गम्भीरता के साथ सारे हालत का जायजा लिया। अकारण ही किसी से लड़ना मुनासिब न समझते हुए, आप कुछ समय के लिए आनंदपुर साहिब छोड़कर श्री पोंटा साहिब जाकर बस गये। पोंटा साहिब में यमुना नदी के किनारे बहुत भव्य एवम विशाल गुरूद्वारा है।
परंतु बाईधार में राजपूतों ने वहाँ जाकर लड़ाई लड़ी। भंगानी के मुकाम पर भारी युद्ध हुआ जिसमें सभी बाईधारी की हार हुई। यह गुरू गोविंद सिंह जी की पहली जंग थी। इसके बाद नदोण का, हुसैनी का, आनंदपुर साहिब का, चमकोर साहिब और मुक्तसर साहिब की भारी जंग लड़ी। आप करीब 28 साल श्री आनंदपुर साहिब रहे और कुल 14 लड़ाईयाँ लड़ी। सिरसा नदी के किनारे भारी युद्ध में आपके तीरों की बौछार ने दुश्मनो के हौसले पस्त कर दिये थे। इस युद्ध में दोनों साहिबजादे व काफी सिंह जी शहीद हुए थे। फिर भी विजय सदैव खालसा की ही रही। आपने श्री गुरूग्रंथ साहिब जी की दोबारा लिखाई करवाई। आप आसन पर पर बैठ मुंहजबानी गुरूवाणी उच्चारते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते उस समय आप दमदमा साहिब में थे।
अगस्त 1708 को गुरू गोविंद सिंह जी दक्षिण को गये अभी आप बधारे राजस्थान ही पहुंचे थे किभाई दया सिंह और धर्म सिंह ने बादशाह से मुलाकात के लिए विनती सुनाई, आपने औरंगजेब को एक फारसी पत्र जफरनामा के नाम से लिखा था, पहले भी एक पत्र फतिहनामा के नाम से माहीबाडे से औरंगजेब को भेज चुके थे। जफरनामे को पढ़कर औरंगजेब कांप उठा था। और उसने गुरू से विनती की कि शाही खर्चे पर मेरे से मुलाकात करें। गुरू महाराज अभी पास में ही थे कि औरंगजेब के मरने की खबर मिली। आप दिल्ली गये और गुरूद्वारा मोतीबाग आ पहुंचे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद शहजादों में तख्त के लिए लड़ाई छिड़ गई थी।
शहजादा बहादुर शाहजफर ने गुरूजी से मदद मांगी और आपने कुछ शर्तें रखी जो लिखित रूप से मानी गई। आगरे के पास बेजू के मुकाम पर खालसा फौज ने भाई दया सिंह के नेतृत्व में भारी जंग की जिसमें आजम मारा गया। बहादुरशाह जफर तख्त ताज का मालिक बन गया। गुरू जी को दरबार में बुलाया गया और बेशुमार भेंट देकर अपने पीरों जैसा आदर किया गुरू जी चार महीने आगरा रहें। दक्षिण मे बहादुरशाह के छोटे भाई कामबक्श ने बगावत कर दी । बहादुर शाह जफर गुरूजी को साथ लेकर दक्षिण की ओर चल पडे। और नांदेड़ पहुंच गए, वहां गोदावरी नदी के किनारे डेरा लगाया। बहादुर शाह जफर गुरूजी से आशीर्वाद लेकर हैदराबाद चला गया।
नांदेड़ पहुंच कर सबसे पहले आपने सतयुगी तप स्थान श्री सचखंड साहिब को प्रकट किया और तख्त स्थापित किया। फिर माधोदास को सुधार कर मलेच्छों पापियों को सुधारने के लिए अपने पांच तीर देकर पंजाब भेजा। गुरूद्वारा शिकारघाट पर सियालकोट वाले मुले खतरी का खरगोश की जून से उद्धार किया। नगीनाघाट, हीराघाट, मालटेकरी, संगत साहिब आदि गुरूद्वारे प्रकट किये, और कार्तिक शुदी दूज को भारी दीवान में श्री गुरूग्रंथ साहिब के आगे 5 पैसे और नारियल रखकर माथा टेका और गुरूगद्दी तिलक बक्स कर कार्तिक शुदी पंचमी 1765 को यहां नांदेड़ में ज्योति जोत मे समा गए।
गुरू गोविंद सिंह जी ने ज्योति ज्योत में समाने से पहले ही सब तख्तों पर योग्य व्यक्तियों को सेवा के लिए लगा दिया था। तख्त श्री अनचल नगर पर आपने गढ़वई सेवक भाई संतोख सिंह जी की सेवा लगाई और हुक्म दिया कि यहाँ पर देग तेग का पहरा रखना। और आपने हुक्म दिया कि लंगर बनवा कर बांटते जाना किसी बात की कमी नहीं आयेगी, धन की चिंता नहीं करनी जितना धन आये सब लंगर में खर्च करते जाना।
समय रहते ही यहाँ पर गुरु का लंगर का कार्य काफी कम हो गया। अब केवल एक ही समय सुबह का लंगर चलता था। तब संत बाबा निधान सिंह जी का मन यह देखकर बहुत उदास हो जाता। संत बाबा निधान सिंह जी तब संचखंड साहिब में जल और झाडू आदि की अनथक सेवा करते थे। लंगर का ढ़ीला काम देखकर संत बाबा निधान सिंह जी ने उदास होकर वापिस पंजाब जाने का निश्चय किया और स्टेशन पर आकर गाड़ी के इंतजार में इमली के पेड़ के नीचे बैठ गये और ध्यान लगा लिया। आधी रात का समय था, कि अचानक भारी प्रकाश हुआ, बाबा जी की आंखें खुल गई और क्या देखते है, कि अर्शो पर रहने वाले फर्शों पर खड़े होकर दर्शन दे रहे है। बाबा जी गुरू के चरणों पर गिर गये, गरीब नवाज ने बाबा को उठाकर छाती से लगा लिया, और हुक्म किया कि हमको छोड़कर कहाँ जा रहे हो? अभी तो आपसे बहुत सेवा लेनी है। जाओ लंगर पर और लंगर चलाओ, गुरूजी ने और बख्शीश करते हुए यह वरदान दिया कि आज से जेब मेरी और हाथ तेरा कोई कमी नहीं आयेगी। गुरू जी से वरदान लेकर बाबा निधान सिंह जी यहां लंगर वाले स्थान पर पहुंचे और जंगल में मंगल लग गया। गुरू का लंगर आठों पहर अटूट चल रहा है। संतो के आराम के लिए कमरे बने हुए है। स्नान योग्य प्रबंध है। उसके बाद बाबा जी ने कई गुरूद्वारों की सेवा करवाईं, जहां पर गुरू महाराज ने उदास संत निधान सिंह जी को दर्शन दिये थे, वहां रत्नागिरी पहाड़ी के पास गुरूद्वारा रतनगढ़ बनवाया।

गुरूद्वारा नांदेड़ साहिब का स्थापत्य
तख्त सचखंड साहिब का गुरूद्वारा 8 एकड़ में फैला हुआ है। गुरूद्वारे में प्रवेश के लिए 6 तरफ से विशाल द्वार बनाये गये है। सभी द्वार लगभग 40 फुट ऊंचे है और सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित है। तख्त साहिब के चारों तरफ श्वेत संगमरमर के 160 वातानुकूलित कक्ष अतिथियों के ठहरने के लिए बनाये गये है। यह भवन दो मंजिला है, भूतल से 15 फुट ऊंचाई पर तख्त साहिब विराजमान है। गुरूद्वारे का मुख्य द्वार सोने का है, अन्य सभी द्वार चांदी के है। सम्पूर्ण सिंहासन साहिब सोने के पत्तरों से सुसज्जित है। छत, दीवारें, द्वार, श्री गुरू ग्रंथ साहिब का सिंहासन सब कुछ स्वर्ण मंडित है। गुम्बद का कलश भी स्वर्ण मंडित है। गर्भ गृह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। सम्पूर्ण निर्माण श्वेत संगमरमर एवं ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है।
गुरूद्वारा बोर्ड नांदेड के इतिहास से सम्बंधित यहां नौ अन्य गुरूद्वारे और है। बोर्ड उनका भी प्रबंधन देखता है। इन नौ गुरूद्वारे के दर्शन के लिए निशुल्क बस सेवा चलाई जा रही है। गुरूद्वारा बोर्ड की ओर से जनकल्याण के अनेकों कार्य किये जा रहे है। धार्मिक संगीत विद्यालय, प्राईमरी स्कूल, नर्सरी स्कूल, खालसा स्कूल, हजूर साहिब आई.टी.आई, सिलाई केन्द्र, सिख अस्पताल, गरीब छात्रो को आर्थिक मदद, गुरू गोविंद सिंह म्यूजियम, पुस्तकालय, यात्री निवास, दसमेश अस्पताल, धर्म प्रचार कार्य, मासिक पत्रिका, विधवा आश्रम, सामूहिक विवाह मेलो का आयोजन आदि अनेक जन सेवा के कार्य किए जा रहे है। तख्त सचखंड साहिब नांदेड़ में गुरू पर्वों के अलावा, दशहरा, होली वैशाखी, दिपावली , गुरुगद्दी, कार्तिक पूर्णिमा, आदि बड़ी धूमधाम से मनाये जाते है। शस्त्रो की सफाई की जाती है। और बड़े बड़े जूलूस, घोडों की सवारी निकाली जाती है।
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3 Comments
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