स्वर्ण मंदिर हिस्ट्री इन हिंदी – श्री हरमंदिर साहिब का इतिहास Naeem Ahmad, May 21, 2019March 11, 2023 स्वर्ण मंदिर क्या है? :- स्वर्ण मंदिर सिक्ख धर्म के अनुयायियों का धार्मिक केन्द्र है। यह सिक्खों का प्रमुख गुरूद्वारा और मुख्य तीर्थ स्थान है। जिसे श्री हरमंदिर साहिब के नाम से जाना जाता है। हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे को गोल्डन टेम्पल या स्वर्ण मंदिर क्यों कहा जाता है? हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन को सोने की पत्तरों से सुसज्जित किया गया है। इसलिए इसे संसार में स्वर्ण मंदिर या गोल्डन टेम्पल के नाम से जाना जाता है। स्वर्ण मंदिर कहाँ स्थित है?:- स्वर्ण मंदिर भारत के प्रमुख राज्य पंजाब के मुख्य शहर अमृतसर में स्थित है। Contents1 स्वर्ण मंदिर की स्थापना कब हुई? या गोल्डन टेम्पल का निर्माण कब हुआ? या हरमंदिर साहिब की नीवं कब रखी गई?1.0.0.1 स्वर्ण मंदिर आरती, स्वर्ण मंदिर दर्शन टाइम, हरमंदिर साहिब आरती, हरमंदिर साहिब आरती टाइम, हरमंदिर साहिब दर्शन1.0.1 भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- स्वर्ण मंदिर की स्थापना कब हुई? या गोल्डन टेम्पल का निर्माण कब हुआ? या हरमंदिर साहिब की नीवं कब रखी गई? श्री गुरू अमरदास जी की प्रेरणा से श्री गुरू रामदास जी ने 1577 ईसवीं में यहां अमृत सरोवर की खुदाई आरम्भ करवाई तथा 1588 ईसवीं में श्री अर्जुन देव जी ने अमृत सरोवर को पक्का करवाया। 15 दिसंबर 1588 को सिक्खों के पांचवें गुरू श्री अर्जुन देव जी ने श्री हरमंदिर साहिब की आरम्भता करवाई तथा श्री ग्रंथ साहिब का आदि स्वरूप सम्पूर्ण होने पर 16 अगस्त 1604 ईसवीं को पहली बार हरमंदिर साहिब में प्रकाशमान कर, हरमंदिर साहिब के आदर्श को सम्पूर्णता प्रदान कर सर्व सांझी गुरवाणी के निरंतर जाप की मर्यादा निर्धारित की। गुरू घर के निष्ठावान सेवक बाबा बुड्ढा जी को पहले मुख्य ग्रंथी होने का सम्मान प्राप्त हुआ। स्वर्ग मंदिर का निर्माण किसने करवाया? हरमंदिर साहिब की आधारशिला किसने रखी? गोल्डन टेम्पल के निर्माणकर्ता कौन थे? हरमंदिर साहिब का निर्माण कैसे हुआ? स्वर्ण मंदिर का इतिहास, स्वर्ण मंदिर हिस्ट्री, गोल्डन टेम्पल हिस्ट्री, हरमंदिर साहिब का इतिहास अपने जीवन काल में ही सिक्खों के तृतीय गुरू, गुरू अमरदास जी ने सिक्खों के चौथे गुरू, गुरू रामदास जी को अमृतसर साहिब पवित्र सरोवर एवं हरमंदिर साहिब के निर्माण कार्य के लिए भेज दिया था। परंतु गुरू रामदास जी के पास समय ही बहुत कम था। जिसके कारण वह सिर्फ अमृतसर शहर और पवित्र सरोवर ही बनवा पाए थे। उन्होंने सरोवर के मध्य एक चबूतरा बनवा दिया था। और हुक्म किया था कि यहां दीवान शोभायमान किए जाएं और अनमोल कीर्तन किया जाए। परंतु ज्योति ज्योत समाने से पहले उन्होंने सिक्खों के पंचम गुरू, गुरू अर्जुन देव जी को यह हिदायत दी कि इस चबूतरे पर पक्की इमारत बनवाई जाएं। जहां सुबह शाम गुरूवाणी का कीर्तन हो। गुरू के हुक्म का पालन करते हुए गुरू अर्जुन देव जी ने इस चबूतरे पर हरमंदिर साहिब की पवित्र इमारत बनाने की योजना बनाई। उनहोंने ऐसा मंदिर बनाने की योजना बनाई जो दुनिया में अपनी मिसाल आप हो। गुरू जी ने सिक्ख संगतों से विचार-विमर्श किया। सिक्खों ने विनती की महाराज ऐसा मंदिर बनाओ जो हिंदू मंदिरों की तरह पर्वत सरीखा ऊंचा हो, जो दूर से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करें और दिखाई भी दे। पर गुरू जी ने समझाया कि यह मंदिर आसपास की धरती से ही नीचा बनाया जाएगा। गुरू साहिब सोचते थे। कि यह मंदिर नम्रता एवं अदब का प्रतीक होगा। उन्होंने सिक्खों को समझाया कि इस मंदिर के चार दरवाजे सबके लिए खुले होगें। जैसे हिन्दू पूर्व की तरफ मुंह करके पूजा करते है, और मुस्लिम पश्चिम की तरफ। उन्होंने यह बात दृढ़ करवाई कि हर दरवाजा दो दिशाओं के मध्य होगा। जैसे उत्तर-पूर्व, पूर्व-दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम। गुरू जी ने स्वर्ण मंदिर की आधारशिला भी एक मुसलमान फकीर साईं मियां मीर जी से रखवाई थी। यह गरू अर्जुन देव जी की धर्म निरपेक्षता वाली सोच थी। साईं मियां मीर जी भी गुरू जी का पूरा सत्कार करते थे। जब गुरू अर्जुन देव जी दो साल लाहौर रहे तो साईं मीर जी हर दूसरे दिन गुरू जी से मिलने जाते थे। गुरू अर्जुन देव जी ने जब साईं मियां मीर जी को हरमंदिर साहिब की आधारशिला रखने के लिए बुलावा भेजा तो, साईं मियां मीर जी ने भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई और अपने सेवकों के साथ अमृतसर पहुंच गए। वह हर धर्म के लोगों में माननीय थे। उस समय बुद्धिजीवियों में उनकी गिनती होती थी। स्वर्ण मंदिर अमृतसर के सुंदर दृश्य उन्होनें 3 अक्टूबर 1588 को श्री हरमंदिर साहिब की नीवं रखी। उन्होंने चार ईंट चारों दिशाओं के मध्य रखीं और एक ईट इन चार ईंटों के मध्य रखी। फिर गुरू साहिब ने सिक्खों को हुक्म दिया कि कड़ाह प्रसाद की देग वितरित करो। तदुपरांत गुरू साहिब ने इंजीनियरों को बुलाया और स्वर्ण मंदिर का सारा नक्शा समझाया कि कैसे हरमंदिर साहिब सतह पर टिकना चाहिए, जैसे पानी पर कमल तैरता हो, हरि की पौड़ी, पूर्व की दिशा की ओर बनवाई गई। गोल्डन टेम्पल के चारों ओर परिक्रमा बनवाई गई। गुरू जी हरमंदिर साहिब का निर्माण अपनी निगरानी में करवाते थे। इस बात का पूरा ख्याल रखा करते कि कहीं भी घटिया साम्रगी तो इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। वह यह सारा काम इलायची बेर की छाया के नीचे बैठे देखते रहते थे। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण पूरा होने के बाद नित्य यहां दरबार सुशोभित किया जाने लगा, जिसमें इलाही बाणी का कीर्तन होने लगा। इस दरबार की स्थापना अपने आप में इलाही व आनंदमयी थी। सिक्खों की थी कि यह शहर की सबसे ऊंची इमारत हो, परंतु गुरु साहिब ने उनको उपदेश दिया की नम्रता में ही सब कुछ है। अतः दरबार साहिब की ऊंचाई भी कम ही रखी गई। यह अपने आप में अनोखा मंदिर था, जिसके द्वार चारों तरफ थे, और कोई किसी भी द्वार से आ सकता था। यह चार द्वार चार वर्णों का प्रतीक थे कि कोई भी जाति धर्म इस मंदिर में आ सकती है। हरमंदिर साहिब को किसने नुकसान पहुंचाया, स्वर्ण मंदिर अटैक श्री हरमंदिर साहिब जी गुरू अर्जुन देव जी ने निर्मित करवाया था। उसको समय समय पर मुगलों व अफगानों ने नुकसान पहुंचाया। अब्दाली ने तो हरमंदिर साहिब को ध्वस्त ही कर दिया और अमृत सरोवर को मिट्टी से भरवा दिया था। मुसलमान की यह सोच थी कि सिक्खों के इस महान तीर्थ को खत्म करने से सिक्ख खत्म हो जायेंगे। चूंकि वे सोचते थे, कि यह अमृत सरोवर सिक्खों के लिए आब-ए-हयात है, जिसमें स्नान करके और अमृतपान कर इनकी शक्ति दोगुना हो जाती है, परंतु वे सिक्खों की शक्ति व सब्र का अनुमान न लगा सके। हर बार सिक्खों ने श्री हरमंदिर साहिब का पुनर्निर्माण किया। श्री हरमंदिर साहिब को अफगानों ने 1757, 1762, और 1764 में तीन बार अपने हमलों में ध्वंस किया स्वर्ण मंदिर क्यों अनोखा और अदभुत है? गोल्डन टेम्पल की शान-ओ- शौकत का कोई मुकाबला नहीं। यह बहुत ही निराला व अद्भुत है। छतों व दीवारों पर हुआ चित्रकारी का काम व मीनाकारी का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं। संगमरमर में हुआ शीशे का काम, रंगदार पत्थरों का काम और वह भी छत पर किया काम, जिसमें पुष्प पत्रों एवं जानवरों को दिखाया गया हो, व्यक्ति की कारीगरी का एक नमूना है। श्री हरमंदिर साहिब पर इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी प्रभाव डालती है। पंजाब ने कई बाहरी हमले सहन किए है। जिस कारण सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक प्रभाव पड़ता रहा। जबकि दूसरी तरफ दक्षिण भारत की कला का विस्तार मंदिरों में नजर आता है। पंजाबी संस्कृति बहुत सारी संस्कृतियों का सुमेल है। बहुत सालों तक बहुत सारी प्रवृत्तियां चलती रही। अतः हरमंदिर साहिब की बनावट में कोई खास तरीके का असर नहीं दिखाई देता। हर चीज को सर्वोत्कृष्ट तरीक से अपनाया गया है। श्री हरमंदिर साहिब का गुंबद बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि गुंबद एक मजबूत छत बनाएगा जबकि सीधी छत को कोई न कोई सहारा देना पड़ता है। इसलिए हरमंदिर साहिब का गुंबद एक कमल के फूल की तरह है। यह बनावट इसलिए भी चुनी गईं कि पूजा स्थान पर कमल के फूल का होना शुभ माना जाता है। जैसे कमल का फूल पानी की सतह पर तैरता नजर आता है, और यह दर्शाता है कि जैसे कमल पानी से निर्लिप्त रहता है, वैसे ही मानव जीवन का मनोरथ भी संसार में रहते हुए संसार की वासनाओं विशेषकर लोभ, मोह से निर्लिप्त रहने का है। स्वर्ण मंदिर का पुनर्निर्माण, श्री हरमंदिर साहिब का पुनर्निर्माण गोल्डन टेम्पल को अफगानों ने 1757, 1762 और 1764 में तीन बार अपने हमलो में नुकसान पहुंचाया। आखिर 1765 में सिक्ख मिसलों ने इसको वर्तमान बनावट दी। गोल्डन टेम्पल के वर्तमान स्वरूप को बनाने में सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने बहुत बड़ा योगदान दिया। 1723 ईसवीं से सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने अपना बचपन माता सुंदरी जी की निगरानी में दिल्ली में व्यतीत किया, जो गुरू गोविंद सिंह के बाद वहां टिक गए थे। यहीं पर उन्होंने अपनी मौलिक शिक्षा ग्रहण की और फारसी व अरबी भाषा के शब्द सीखे और वे माता जी से कीर्तन करने का अभ्यास भी करते थे। जस्सा सिंह आहलूवालिया का दिल्ली रहना, परमात्मा द्वारा एक अवसर मिलना था। वह सिक्ख पंथ की महान हस्तियों से मिलते रहते। जब उनके मामा सरदार सिंह ने माता सुंदरी जी से सरदार जस्सा सिंह को पंजाब अपने साथ ले जाने की आज्ञा मांगी तो पहले माता जी ने इंकार कर दिया, परंतु बाद में आज्ञा दे दी। 1734 ईसवीं में मामा सरदार भाग सिंह की मृत्यु के उपरांत जस्सा सिंह आहलूवालिया को 13 वर्ष की उम्र में आहलूवालिया मिसल का सरदार बना दिया गया, क्योंकि जस्सा सिंह शूरवीर और निडर थे। उन्होंने दस खालसा के सरदार, सरदार कपूर सिंह फैजलपुरिया से अमृतपान किया। उनकी वीरता व ऊंचे आचरण के कारण उनको खालसा दल का कमांडर बना दिया गया। उन्होंने खालसा दल को एक लडाकू फौज की तरह तैयार कर दिया। 1753 ईसवीं में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत उनको खालसा पंथ का सरदार मनोनीत किया गया। जब सिक्खों ने उनके नेतृत्व में लाहौर पर विजय प्राप्त कर ली तो उनको सिक्खों के बादशाह एवं सुल्तान-उल-कौम नियुक्त कर दिया गया। अर्द्ध शताब्दी तक उन्होंने सिक्खों का नेतृत्व किया। उन्होंने सिक्खों को धार्मिक व धर्मनिरपेक्षता सिखाई। श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर सिक्खों का एक ऐसा धार्मिक केन्द्र था। जहां से खालसा को श्री हरमंदिर साहिब से एक अजीब लगाव था। सरदार जस्सा सिंह का एक लोकप्रिय नेता होने के कारण सरबत खालसा के आम समागम में अपना महत्वपूर्ण स्थान होता था। ऐसी मीटिगें हमेशा अकाल तख्त पर ही होती थी। अहमद शाह अब्दाली लाहौर से अमृतसर की तरफ आया और उसने श्री हरमंदिर साहिब पर हमला कर दिया। श्री हरमंदिर साहिब को विध्वंस कर, सरोवर को मिट्टी से भर दिया। वह सिक्खों के हौसले को पस्त कर देना चाहता था। वह सोचता था कि सिक्खों को इस अमृत सरोवर के जल से ही शक्ति मिलती है। अहमद शाह अब्दाली ने काबली मल्ल, जैन खान व सरदार यार को लाहौर, सरहिंद व जालंधर का गवर्नर नियुक्त किया और लाहौर से रवाना हो गया। अहमद शाह अब्दाली के जाने के बाद सिक्ख जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में इकट्ठा हुए। सर्वप्रथम उन्होंने कसूर पर हमला किया। वहां के पठानों को मौत के घाट उतारा और शहर को लूट लिया। पहली जीत के बाद जस्सा सिंह ने जालंधर के गवर्नर पर हमला कर उसको वहां से निकाल दिया और जालंधर व दुआबे को अपने अधीन कर लिया। फिर जस्सा सिंह के ही नेतृत्व में सिक्खों ने सरहिन्द के गवर्नर जैन खान पर हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया। सरहिंद की जीत के बाद सिक्खों को पर्याप्त धन मिल गया था। सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया के हिस्से में 9 लाख रूपये की रकम आई । परंतु यह रकम वे स्वयं नहीं रखना चाहते थे। इसलिए अमृतसर पहुंचकर उन्होंने अकाल तख्त पर सरबत खालसा की एक मीटिंग बुलाई। उन्होंने सिक्खों से कहा हरमंदिर साहिब का पुनर्निर्माण किया जाए। उन्होंने मीटिग के बाद परमात्मा के नाम से एक चादर बिछा दी और सर्वप्रथम अपना हिस्सा 9 लाख रुपये उस चादर पर दिया। इस तरह 20 लाख रूपये की रकम एकत्र हो गई। जस्सा सिंह ने विक्रमी 1821 की वैशाखी को श्री हरमंदिर साहिब नई इमारत की नीव रखीं । देशराज ने और धन एकत्र करने के लिए गुरू की मोहर भी दी। यह काम 1764 में आरंभ हुआ। उन्होंने यहां कुछ बुंगे व कटड़े भी निर्मित किए। कटड़ा आहलूवालिया आज भी यहा मशहूर है। गोल्डन टेम्पल के फोटो स्वर्ण मंदिर पर सोने का काम किसने करवाया था? गोल्डन टेम्पल की निर्माण कला अद्भुत व अलौकिक है। खालसा सरकार महाराज रणजीत सिंह ने हरिमंदिर साहिब पर सोने और परिक्रमा में संगमरमर की विशेष रूप से सेवा करवाई थी। हरिमंदिर साहिब पर सोने की सुनहरी पत्तों की चमक के कारण ही गोल्डन टेम्पल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1920 ईसवीं में शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गुरु पंथ की प्रतिनिधि संस्था के रूप में सेवा संभाली। तथा यात्रियों की सुविधा हेतु बहुत सी अन्य इमारतों का निर्माण करवाया। 1994 ईसवीं में सोने की चमक में अंतर आ जाने से सोने की नए सिरे से सेवा का महान कार्य, गुरू नानक निष्काम सेवक जत्था बरमिंघम ने सिक्ख संगत के सहयोग से आरम्भ किया, जो 1999 ईसवीं की बैसाखी को वाह्य रूप में सम्पूर्ण हुआ। स्वर्ण मंदिर आरती, स्वर्ण मंदिर दर्शन टाइम, हरमंदिर साहिब आरती, हरमंदिर साहिब आरती टाइम, हरमंदिर साहिब दर्शन श्री हरमंदिर साहिब की दर्शन ड्योढ़ी के किवाड़ गर्मियों में सुबह 2 बजे खुल जाते है, तथा रात्रि 11 बजे बंद हो जाते है। सर्दियों में सुबह 3 बजे खुल जाते है और रात 10 बजे बंद हो जाते है। रात्रि को श्री ग्रंथ साहिब की सवारी जाने के बाद एक घंटा सफाई तथा स्नान आदि की सेवा भक्त – जन सेवादारो के सहयोग से करते है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का तीन बार वाक लिया जाता है। प्रथम बार श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश होता है। दूसरी बार जब सुबह आसा की वार के भोग के बाद। तीसरी बार जब रात में सुख आसन करते समय। गुरू ग्रंथ साहिब के सम्मुख दिन में छः बार अरदास की जाती है। पहली श्री गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश करने के पश्चात अनंदु साहिब का पाठ करके। दूसरी आसा की वार के भोग के बाद। तीसरी दोपहर बारह बजे कंवल आरती पढ़कर। चौथी तीन बजे कंवल आरती पढ़कर। पांचवीं रहिरास साहिब के पाठ के बाद। छठी कीर्तन सोहिले के पाठ के बाद अरदास करके सुख आसन किया जाता है। श्री हरमंदिर साहिब के गेट खुलने से लेकर समाप्ति तक निरंतर कीर्तन होता है। सोदर रहिरास साहिब जी का पाठ हमेशा सूर्य अस्त होने के पश्चात किया जाता है। स्वर्ण मंदिर की रोचक जानकारी, हरमंदिर साहिब की रोचक जानकारी, गोल्डन टेम्पल की अद्भुत जानकारी जहाँ कभी रात नहीं होती अमृतसर में गोल्डन टेम्पल एक ऐसा अद्भुत, अजब और गजब दरबार है, जहां कभी रात नहीं होती। वर्ष में 365 दिन 24 घंटे लगातार कृत्रिम प्रकाश से जगमगाता रहता है। 24 घंटे खुले द्वार स्वर्ण मंदिर के चार प्रमुख द्वार है, जो दो दो दिशाओं के बीच स्थापित है। और 24 घंटे निरंतर खुले रहते है। किसी जाति, धर्म, गरीब, अमीर कोई भी क्यों न आये, उसके लिए कोई रोक टोक नहीं। इन खुले दरवाजे से कोई भी कभी भी हरमंदिर साहिब में आ सकता हैऔर जा सकता है। 24 घंटे जोड़ा घर की सेवा प्रतिदिन भारी संख्या में आने वाली संगत के लिए यहां जगह जगह पर कोनों में जोड़ा घर बनाये गये है। ये जोड़ा घर भी 24 घंटे लगातार खुले रहते है। अजब गजब बात यह है कि इस जोड़ा घरों में बडे़ बडे़ धनी और करोड़ पति घरानों के महिला और पुरूष जोड़ा घर में सेवा करते है। और अपने आप धन्य और भाग्यशाली मानते है। 24 घंटे लॉकर यानि अमानत घर की सेवा गोल्डन टेम्पल में दर्शन के लिए आयी संगत का छोटा मोटा सामान रखने के लिए यहां गठरी घर की व्यवस्था की गई है। संगत इन समान घरों में अपना सामान रखकर हरमंदिर साहिब का दर्शन करते है। जिनको काफी सुविधा होता है। गुरू साहिब का लंगर 24 घंटे गुरू का लंगर श्री हरमंदिर साहिब में 24 घंटे लंगर छका जाता है। गुरूओं की आज्ञानुसार पहले पंगत बाद में संगत का सिद्धांत यहां अपनाया जाता है। लंगर हाल के दरवाजे यहां सदैव खुले रहत है। लंगर हाल के सेवादार हमेशा मुस्तैद रहते है। पंगत बिछी रहती है। लंगर हाल में सिर ढ़ककर ही प्रवेश किया जाता है। पहले हाथ धुले फिर अपनी कटोरी, थाल चम्मच बर्तन वाले स्थान से स्वयं उठाकर पंगत में बैठ जाए, और एक मिनट के अंदर गुरू का प्रसाद आपकी थाली में। लंगर हाल के बाहर जैसे ही आप थाल धोने के लिए आगे बढ़ते है, आपके हाथ से कोई सेवादार बर्तन लेकर धोने लगता है। ये सेवादार वेतनभोगी नहीं बल्कि शहर और संगत के बडे़ बडे़ लोग होते है, जो नित्य कारसेवा करते करते है। श्री हरमिंदर साहिब के लंगर में लगभग 75 हजार से 1 लाख संगत रोजाना लंगर छकती है। यहां लगभग 2 लाख रोटियां तथा 1.5 टन दाल और लगभग 1200 किलो चावल रोजाना बनते है। जिसे बनाने में 500 किलो घी, 100 गैस के सिलेंडर, 500 किलो लकड़ी, लगती है। यह महान कार्य लगभग 500 सेवादार और संगत मिलकर करते है। 24 घंटे गुरूवाणी का पाठ श्री हरमंदिर साहिब एक ऐसा अद्भुत स्थान है, जहां 24 घंटे गुरूवाणी का मधुर संगीत अमृत सरोवर के जल में, कड़ाह प्रसाद में, लंगर के प्रसाद में, हरमंदिर साहिब के कण कण में गूंजता रहता है। इस पवित्र दरबार में आने वाले एक एक भक्त के तन और मन में वह संगीत गहराइयों तक उतर जाता है। आने वाला प्रत्येक व्यक्ति किसी भी जाति, किसी भी धर्म का क्यों न हो प्रफुल्लित और रोमांचित हो जाता है। वह अपने अंदर एक नई शक्ति का संचार महसूस करने लगता है। इस गुरूवाणी का प्रसार आज इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के माध्यम से पूरे संसार में हो रहा है। 24 घंटे संगत सेवा श्री हरमंदिर साहिब एक ऐसा पवित्र और अद्भुत स्थान है, जहाँ 24 घंटे सेवा कार्य कोई न कोई सेवादार करता रहता है। रात के दो बजे कोई अपनी गाड़ी से गर्म धूध की बाल्टियां लेकर उतरता है और संगत को दूध पिलाने लगता है। कोई चाय पिला रहा है। कोई शरबत, कोई शिकंजी पिला रहा है। सुबह 6 बजे कोई ब्रेड मक्खन खिला रहा है। सेवा का कोई न कोई कार्य यहां निरंतर चलता रहता है। यहां के सेवादार यहां आयी हुई संगत को इंसान के रूप में न देखकर भगवान के रूप में देखती है। जो भी खिला पिला रहे है भगवान को खिला रहे है। अद्भुत और रोमांचकारी भाव है इन सेवादारों का। गुरू का प्रसाद अमृतसर 24 घंटे प्रसाद वितरण स्वर्ण मंदिर के प्रसाद को यदि हम भगवान का मेवा कहें तो सर्वाधिक उपयुक्त होगा। श्री हरमंदिर साहिब में 24 घंटे इस मेवा का वितरण होता रहता हैं। कड़ाह प्रसाद जैसे ही हाथों में आता है। उसकी खुशबू से तन मन के सारे दुख दर्द दूर हो जाते है। तन मन और ह्रदय गुरू की रूहानियत से जगमगाने लगता है। कड़ाह प्रसाद गुरु दरबार को भोग लगाने के लिए देग या कड़ाही में विशेष रूप से बनाया जाता है। इस प्रसाद का विशेष महत्व है। हरमंदिर साहिब में प्रतिदिन यह प्रसाद देशी घी मे बनाया जाता हैं। जिसे एक कड़ाही को बनाने में 50 पीपे घी 15 किलो चीनी सूजी में मिलाकर बनाया जाता है। प्रसाद में देशी घी तैरता रहता है। देशी घी की खुशबू हाथों से 24 घंटे तक नहीं जाती। यह प्रसाद संगत को गोल्डन टेम्पल मंदिर की ओर से प्रदान किया जाता है। गोल्डन टेम्पल अमृत सरोवर स्नान 24 घंटे अमृत सरोवर में स्नान श्री हरमंदिर साहिब के अमृत सरोवर में 24 घंटे संगत द्वारा स्नान, ध्यान चलता रहता है। जो संगत जिस समय भी यहां पहुंचती है। अमृत सरोवर में स्नान करना जरूर पसंद करती है। 24 घंटे दरबार साहिब की परिक्रमा खूबसूरत संगमरमर से बना चौड़ा रास्ता, रोशनी से जगमगाता अमृत सरोवर । अमृत सरोवर के बीच में कमल के फूल की तरह खिला गोल्डन टेम्पल, इस गोल्डन टेम्पल के चारों ओर परिक्रमा लगाते स्त्री और पुरूष। इस स्थान पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति अमृत सरोवर की एक, पांच, ग्यारह परिक्रमा अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार अवश्य लगाते है। स्वर्ण मंदिर और अमृत सरोवर दोनों की एक साथ परिक्रमा ऐसा सुखद और आनंददायक स्थान दुनिया में और कोई नहीं है। सभी तीर्थ स्थानों में परिक्रमा का विशेष महत्व होता है। दरबार साहिब का वस्त्र विन्यास श्री हरमंदिर साहिब में दरबार साहिब की साज सज्जा पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंध कमेटी इस विषय में विशेष रूप से सजग रहती है। दरबार साहिब के वस्त्र, रूमाले, चंदोया आदि प्रतिदिन बदले जाते है। नित्य नये धारण कराये जाते है। एक दिन के वस्त्रों पर एक लाख सै सवा लाख का खर्च आता है। चंदोया और रूमाले मखमल की बनती है, जिस पर बेहतरीन कढ़ाई का काम कुशल कारीगरों द्वारा किया जाता है। दरबार साहिब को नित्य वस्त्र भेंट करने का कार्य पूरें संसार के भक्त करते है। इसके लिए पहले से शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी में आवेदन देना पड़ता है। कमेटी आवेदनों पर निर्णय लेकर तिथि और नाम तयकर भक्त को सूचना देती है। श्री दरबार साहिब दरबार साहिब की साज सज्जा दरबार साहिब में सबसे नीचे गलीचे बिछाये जाते है। उसके ऊपर नित्य धुली हुई सफेद चादरें बिछाई जाती है। बीच में जहां श्री गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश होता है, उसके नीचे अलग से दो गलीचे और चादरें बिछायी जाती है। उसके ऊपर अलग से सफेद चादर बिछाकर गुरू ग्रंथ साहिब को पीढ़ा साहिब पर विराजमान किया जाता है। गुरू ग्रंथ साहिब के आगे अलग अलग प्रकार के फूलों की सजावट की जाती है। कोनो में फूलों के फूलदान भी सजाये जाते है। जो सोने से बने होते है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब की सजावट शस्त्रों जैसे कृपाण, खंड़ा, तीर आदि से भी की जाती है। दरबार साहिब के अंदर सोने के पंखे है। दरबार साहिब में जो भी वस्तु प्रयोग की जाती है। वे सभी सोने की होती है। विशेष पर्वों पर दरबार साहिब की विशेष सज्जा की जाती है। हीरे मोती की लड़ियाँ एवं विभिन्न मखमली, सोने, चांदी के तारो से बने वस्त्रों से की जाती है। स्वर्ण मंदिर का मुख्य प्रवेशद्वार श्री हरमंदिर साहिब का मुख्य द्वार, सुशोभित भव्य, उन्नत, चमक दमक युक्त प्रभावशाली है। यह प्रवेशद्वार आने वाले प्रत्येक भक्त पर आध्यात्मिक प्रभाव छोड़ता है। यह द्वार धरती से ऊपर तक लगभग 60 फुट ऊंचा है। इस विशाल प्रवेशद्वार का निर्माण सिक्ख शैली, मुगल शैली एवं राजस्थानी शैली में हुआ है। प्रवेशद्वार के के चारों शिखर इनके बीच बुर्जियां और सबसे ऊंचा औल बड़ा शिखर 60 फुट ऊंचा है। शिखर जैसे कोई कमल खिला हुआ हो। शिखर के ऊपर गुम्ब विराजमान है। सबसे उपरी शिखर पर चारों दिशाओं में चार घडिय़ां है जो दूर से ही दिखाई देती है। प्रवेशद्वार के सामने विशाल खुला संगमरमर का दूधिया फर्श जिसके बीच मे फव्वारा, चारों ओर रंगीन लाईट सदैव आध्यात्मिक प्रकाश बिखेरती रहती है। किसी भी प्रवेशद्वार के दरवाजे नहीं है। यह इस बात का प्रतीक है कि कोई भी किसी भी जाति धर्म का व्यक्ति बिना भेदभाव के कभी भी यहां आकर अपना जीवन सुधार सकता है। और दर्शन भजन कर सकता है। श्री हरमंदिर साहिब में उत्सव अमृतसर की दीवाली विश्व प्रसिद्ध है। तथा इस दिन श्री दरबार साहिब में बहुत भारी जोड़ मेला लगता है। सिक्ख पंथ का केन्द्रीय स्थान होने के कारण, प्रत्येक सिक्ख यहां से गुरू ज्ञान की ज्योति का प्रकाश सदैव प्रज्वलित होता देखने का इच्छुक है। अमृतसर के दर्शन स्नान की इच्छा प्रत्येक सिक्ख दिल से करता है। वर्ष में सात प्रकाश पर्व, गुरू गद्दी दिवस, शहीदी दिवस, जन्म दिवस, होला मोहल्ला, बैशाखी मैला, तख्त साजना दिवस, बंदी छोड़ दिवस, दीपावली सहित कुल मिलाकर 18 पर्व यहां मनाये जाते है। जिसमें लाखों की संख्या श्रद्धालु भाग लेते है भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- पटना साहिब गुरूद्वारा का इतिहास - पटना साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी बिहार की राजधानी पटना शहर एक धार्मिक और ऐतिहासिक शहर है। यह शहर सिख और जैन धर्म के अनुयायियों के Read more हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा - Hemkund Sahib Gurudwara history in hindi समुद्र तल से लगभग 4329 मीटर की हाईट पर स्थित गुरूद्वारा श्री हेमकुंड साहिब (Hemkund 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