स्टोनहेंज का रहस्य हिंदी में – स्टोनहेंज का इतिहास व निर्माण किसने करवाया Naeem Ahmad, March 17, 2022March 27, 2024 ब्रिटेन की धरती पर खड़ा हुआ स्टोनहेंज का रहस्यमय स्मारक रहस्यों के घेरे में घिरा हुआ है। विज्ञान के सभी क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ-साथ आध्यात्मवादी, अतीर्द्रियता के स्वामी तथा सनकी अफवाहबाजों ने इस रहस्यमय स्मारक के भूतकाल के बारे मे जानने की भरपूर चेष्टा की है। क्या यह स्मारक सूर्य देव का मंदिर है या इसे एक शाही महल के रूप मे बनाया गया था? क्या यूनानियों द्वारा गणित की जानकारी किए जाने से भी पहले के इस स्मारक को एक विशालकाय आदिकालीन कम्प्यूटर के रूप में देखा जाना चाहिए? क्या कभी इन दैत्याकार पत्थरों के नीचे दबा रहस्य खुलेगा या यह स्मारक यू ही पर्यटकों को आश्चर्यचकित करता रहेगा?स्टोनहेंज का रहस्य व स्टोनहेंज का इतिहासदक्षिणी इंग्लैंड में सेलिसबरी के मैदानी इलाकों मे खड़े हुए धूसर बलुआ पत्थरो के एक स्मारक का नाम स्टोनहेंज (Stonehenge) है। 13 फुट ऊंचे ये पत्थर थोडी दूर से देखने पर उस विशालकाय मैदान के मुकाबले बहुत छोटे और अपने एकांत में डूबे हुए से दिखाई पड़ते है। पिछले 4 हजार वर्षो से इन्होंने हवा, धूप, वर्षा, पाले का सामना किया है लेकिन इसके बाद भी उन पर उन औजारों के निशान मौजूद है, जिनसे इन्हें गढ़ा गया होगा। स्टोनहेंज प्रागेतिहासिक काल का एक मात्र स्मारक है, जो कृत्रिम रूप से तथा एक निश्चित स्थापत्य के अनुसार बनाया गया प्रतीत होता है। इन पत्थरों के शीर्षो को आपस मे जोडने वाले सरदल (Lintels) पत्थर केवल चट्टान के टुकडे मात्र ही न होकर सावधानी से वक्राकार बनाई गई आवृत्तियां हैं ताकि व मिल कर एक गोल की परिधि जैसी लग सके।रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्यस्टोनहेंज का स्मारक किसने बनवाया और क्यो बनवाया-यह क्रम पिछली कई सदियों से मानव की बुद्धि को मथता आ रहा है। स्टोनहेंज को कैसे बनवाया गया और क्यों बनवाया गया।प्रश्न के इस भाग का उत्तर पुरातत्ववेत्ता कुछ-कुछ देने मे सफल हो सके हैं।आधुनिक पुरातत्व विज्ञान के विकास से पूर्व 17 वी शताब्दी मे यह कल्पना की गईं थी, ब्रिटेन और गोल (Goul) प्रदेश के सफेद कपड़े पहनने वाले डरूडस (Druids) पुजारियों न ही स्टोनहेंज का निर्माण कराया था। डरूडस पुजारियों के बारे मे हमे रोमन लेखकों की कविताओं से पता चलता है। लेकिन आधुनिक पुरातत्व के अनुसार डरूडस पुजारियों से स्टोनहेंज के पत्थर एक हजार साल पुराने हैं। 17वी शताब्दी के वास्तुकार (Architect) इनिगो जोंस (Inigo jons) ने स्टोनहेंज के निर्माण का श्रेय रोमन वास्तुकला को दिया है। आज से 100 साल पहले पुरातत्वशास्त्री इलियट स्मिथ (Elliot smith) का दावा था कि स्टोनहेंज का डिजाइन फ्रांसियो या मिस्रियों ने बनाया होगा। इन तर्को को सर्वाधिक बल तब मिला जब जाने-माने अंग्रेज विद्वान सर रिचड काल्ट हार (Richard Colt Hoare) ने स्टोनहेंज के समीप खुदाई करके एक लंबे तगड़े व्यक्ति की अस्थियां प्राप्त की। इसी के साथ कब्र से एक कुल्हाड़ी कई छुरियां एक गदा तथा साने व हड्डियों की बनी सामग्री भी प्राप्त हुई।स्टोनहेंज स्मारकसर रिचर्ड और उनके साथियों ने निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन ब्रिटेनवासियों ने अपना कला कौशल बाहर से सीखा होगा। कुछ अन्य विद्वानों की राय थी कि ताम युग (Bronze age) के योद्धाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण करके यही बसने का निर्णय लिया होगा तथा यहां के स्थानीय निवासियों को मजदूरों के रूप में लगा कर यह स्मारक खड़ा किया गया होगा। ताम युग के इन आक्रमणकारियों के स्रोत के बारें में विभिन्न अनुमान लगाए जाते हैं। कुछ का कहना है कि व यूनान की धरती से आए थे। उस कब्र मे मिली कीमती वस्तुएं मिस्र की तरफ भी इशारा करती हैं। स्टोनहेंज की वास्तुकला भूमध्य सागर में घूमने वाले महान ग्रीक पौराणिक योद्धा आडसियस (Odysseus) की ओर संकेत करती है। अपने शानदार मनहिर (Manhir) पत्थरों के स्मारक के लिए प्रसिद्ध ब्रिटनी (Brittany) क्षेत्र से भी वे यौद्धा आ सकते थे।अपोलो की मूर्ति का रहस्य क्या आप जानते हैं? वे आश्चर्यपुरातत्व विज्ञान के अनुसार स्टोनहेंज का काल ईसा से 2750 वर्ष पूर्व बताया गया है। अगर इसका श्रेय ब्रिटनी योद्धाओं का दे भी दिया जाए तो भी यह मानना पड़ेगा कि ईसा से 1900 शताब्दी पूर्व इन योद्धाओं ने इस क्षेत्र में 600 वर्ष तक राज्य किया होगा लेकिन और भी कई सभ्यताओं ने इस स्मारक के निर्माण मे हाथ बटाया होगा। स्टोनहेंज से 2 मील दूर पुरातत्वशास्त्रियों ने लकड़ी की दो गोलाकार इमारत ढूंढ़ निकाली है। इन्हे देख कर लगता हैं कि स्टोनहेंज का स्थापत्य पर इनका प्रभाव जरूर पडा होगा। ये लकड़ी की इमारत डुरिगटन (Durrington) दीवारों के स्मारक के पास हैं। इन दीवारों को देखकर लगता है कि यहां हजारों लोगों के जमा होने लायक भवन बनाए गए होंगे। जाहिर है कि एक युग में ये भवन सामाजिक तथा धार्मिक समारोहों के स्थल थे।स्टोनहेंज के निर्माण का इतिहास प्रागैतिहासिक काल के 1000 वर्षों के 3 विभिन्न चरणों में फैला हुआ है। पहला चरण ईसा से 2750 वर्ष पहले शुरू किया गया था। स्टोनहेंज में बन हुए अत्यधिक रहस्यमय औब्र छिद्र (Aubrey Holes) इसी युग में बनाए गए थे। अपने बीच में समान अंतर रखने वाले इन 56 गडढानुमा छिद्रों से स्टोनहेंज की बाहरी परिधि बनती है। इसी चरण मे स्टोनहेंज का प्रसिद्ध हील स्टोन (Heel stone) बनाया गया जो दरवाजे के ठीक बाहर स्थित है। दूसरा चरण ईसा से 2000 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ। बाहरी परिधि के भीतर 83 नील पत्थरों के दहरा वत्त बनाने क लिए हैम्पशायर एवन (Hampshire Avon) से 4-4 टन के भारी पत्थर मंगवाए गए। अस्थि-पजर के साथ पाई गई कुल्हाड़ी व पत्थर की अन्य सामग्री भी नील पत्थर की बनी हुई है। स्वाभाविक ही है कि उस युग में इस पत्थर को पवित्र समझा जाता होगा।चीन की दीवार कितनी चौड़ी है, चीन की दीवार का रहस्यस्टोनहेंज के निर्माण का तीसरा चरण 100 वर्ष बाद प्रारम्भ हुआ। 75 विशालकाय कठोर बलुआ पत्थरों को एववुरी (Avebure) से 20 मील दूर दक्षिण स्थित इलाके से रस्सियों तथा बेलनो की मदद से लाया गया। स्टोनहेंज पहुंच कर इन पत्थरों को शिल्पकारों ने मनचाहे रूप से कांटा-छांटा ओर इसके बाद उन्हे खडा करने तथा उनके शीर्षों पर सरदल रखने का कठिन और नाजुक काम प्रारम्भ हुआ, जो हर पत्थर के अपने निजी संतुलन पर आधारित था।ऐसा करन में काफी दिककत आई होगी क्योकि स्टोनहेंज का मैदान क्षेतिज न होकर उत्तर-दक्षिण की ओर 18 इंच का ढलान लिए हुए है।स्टोनहेंज के निर्माण की विधि और निर्माताओं के बारे मे ये जानकारियां मिल जाने के बाद भी यह पता नही चलता है कि उसके निर्माण का उदेश्य क्या था? स्टोनहेज के पास प्राचीन युग के और कोई अवशेष नही मिलते जिनसे प्रगट हो सके कि इस महान स्मारक को क्यों बनवाया गया था? किसी किस्म का प्राचीन कचरा इत्यादि न मिलने से इस संभावना पर बल पड़ता है कि स्टोनहेज का नित्यप्रति नहीं कभी-कभी ही प्रयोग में लाया जाता होगा। यह स्थान या ता महत्वपूर्ण बैठकों का स्थल होगा या फिर मदिरनुमा पूजा-स्थल होगा। पूरे ब्रिटेन के उत्तर में स्टोनहेज से मिलते-जुलते पत्थरों के छाटे-छोटे स्मारक भरे पडे है। इनके आस-पास उस युग के सरदारों व योद्धाओं को दफनाया गया था। स्टानहेज के आस-पास भी कब्रे खोजी जा चुकी है। इस तथ्य से स्टोनहेज को पवित्र स्थल के रूप में स्वीकारने पर ओर भी रोशनी पड़ती है।मिस्र के पिरामिड का रहस्य – मिस्र के पिरामिड के बारे में जानकारीआधुनिक काल में जिस तथ्य ने लोगो को सर्वाधिक रोमांचित किया है,वह है स्टोनहेंज की खगोल वैधशाला (Observatery) के रूप में कल्पना। पिछले कई वर्षो में अनेक बार यह सिद्ध करने की कोशिश की गई है कि यह एक इतनी जटिल खगोल वैधशाला है कि इस एक प्रागैतिहासिक कम्प्यूटर की संज्ञा भी दी जा सकती है। सन 1740 में ब्रिटिश विद्वान तथा ‘स्टानहज टेम्पल रस्टार्ड टु द ब्रिटिश डइड्स’ (Stonehenge a temple restored to the British Druids) के लेखक विलियम स्टकल (William Stukley ) का दावा है कि यह पूरा स्मारक ग्रीष्मकालीन सूर्योदय (Midsummer sunrise) वकी ओर उन्मुख है। सन 1840 में एडबर्ड डयूक (Edward Duke) ने अवधारणा प्रस्तुत की कि पूरे सलिसबरी मैदान में फैल हुए सभी स्मारक मिल कर सौर-प्रणाली का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनमें स्टोनहेज शनि की कक्षा बनाता है।सन् 1901-1963 में बोस्टन विश्वविद्यालय अमरिका के एक खगोलज्ञय जराल्ड एस हाक्ग्सि (Jerald S Hawkings) तथा सर नामन लाकयर (Normal lackyer) ने इसे एक कम्प्यूटर की मान्यता देने में काई हिचकिचाहट नही दिखाई। उनका कहना था कि हील स्टोन की स्थिति ग्रीष्मकालीन सक्रांति (Midsummer solstice) का प्रतीक है जब सूर्य दक्षिण की ओर अपनी यात्रा प्रारम्भ करने से पहले सर्वाधिक उत्तरो-मुख प्रतीत होता है। यदि इसी का उल्टा कर दिया जाए तो शरदकालीन संक्रांति (Mid winter solstice) का अध्ययन किया जा सकता है। जाहिर है कि इन दोनों प्रेक्षणों (Observation) से फसलों और त्याहारों के लिए एक साधारण कलेण्डर बनाया जा सकता था।Nazca Lines information in Hindi – नाजका लाइन्स कहा है और उनका रहस्यऐसा लगता ह कि स्टोनहेंज के निर्माताओं की दिलचस्पी चंद्रमा के प्रेक्षण में भी थी इसलिए उन्होंने चंद्रमा के उगने ओर डूबने के क्रम का प्रेक्षण भी इसी वेधशाला से करने की कोशिश की होगी। 56 आब्रे छिद्रों का ग्रहण के 56 वर्षीय चक्र के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन विज्ञान बताता है कि 56 का अंक ही ग्रहणो के प्रेक्षण के लिए आवश्यक नहीं है। इसके अलावा स्टोनहैंज पर ऐसा कोई चिह्न भी नहीं मिलता, जिससे पता चलता हो कि इन छिद्रों का उपयोग ग्रहण का अध्ययन करने में किया जाना होगा। स्टोनहेंज के निर्माण के तीनो चरणों का अध्ययन करने से पता लगता है कि पहले दो चरणों मे इसके निर्माताओं की कोशिश रही होगी कि व इसे एक व्यवस्थित खगोलशास्त्रीय वेधशाला के रूप मे बनाए ताकि सूर्य और चंद्रमा के चक्र का अध्ययन किया जा सके। लेकिन तीसरे चरण में स्टोनहेंज का उद्देश्य खगोलीय कम और प्रतीकात्मक अधिक रह गया होगा।बहरहाल, स्टोनहेंज का उद्देश्य अभी भी रहस्यमय बना हुआ है। उसके निर्माताओं की उच्च कोटि की वास्तुकला के बार में किसी को संदेह नही है। कुछ लोग तो यहां तक भी कहते है कि स्टोनहेंज क निर्माताओं ने किसी मानक इकाई का भी प्रयोग किया होगा। क्या आधुनिक विज्ञान इस रहस्य को सुलझा पाने में समर्थ हो पाएगा कि स्टोनहेंज बनाने का असली उद्देश्य क्या था?।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े[post_grid id=’8656′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... अद्भुत अनसुलझे रहस्य अनसुलझे रहस्य