सूर्य के रहस्य सूर्य की खोज कैसे हुई और किसने कि Naeem Ahmad, March 2, 2022March 1, 2023 दोस्तों आज के अपने इस लेख में हम सूर्य की खोज किसने कि तथा सूर्य के रहस्य को जानेंगे कहने को तो सूरज और कछ नहीं, सिर्फ एक तारा है। वह भी बडा नहीं, छोटा व औसत दर्जे का। रात को आकाश में दिखाई देने वाले हजारों तारे आकार में सूर्य से बड़े हैं। कई तो सैंकड़ों गुना बड़े हैं। इसी प्रकार सैंकड़ों तारों में सर्य॑ से हजारों गुनी अधिक रोशनी व गर्मी है। उनके मुकाबले में सूर्य केवल एक बौना ही नहीं, बौने से भी बौना तारा है। सूर्य का व्यास लगभग 1,392,000 किमी. है। उसका द्रव्यमान 2.19 × 10.27 टन (यानी 2.19 के बाद सत्ताइस शून्य) टन है अर्थात् सूर्य में पृथ्वी की अपेक्षा 333,400 गुना अधिक द्रव्यमान है। दस लाख से भी अधिक पृथ्वियां सूर्य के घेरे में ठूंस कर भरी जा सकती हैं। सूर्यतल का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी तल के गुरूत्वाकर्षण से 28 गुना है यानी 80 पौंड वाला मनुष्य यदि सूर्य की सतह पर खड़ा हो जाए, उसका वजन 5010 पौंड हो जाएगा। आज के ज्योतिषविदों का सूर्य की उत्पत्ति के बारे में लगभग एक ही मत है। उसका उद्गम लगभग 500 करोड वर्ष पहले हुआ, जो मंदाकिनी या आकाशगंगा (Milky way) जैसे नक्षत्रपुंज के गठन से कम से कम 700 करोड़ वर्ष पश्चात का समय था। सूर्य के रूप में जमने वाली गैस भी वही गैस थी, जो आज भी आकाशगंगा के तारो के बीच बादलो की शक्ल में मंडराती है। उस गैस का पदार्थ लगभग पूर्णाश में हाइड्रोजन ही था। शून्य में तैरती गैस के विशाल बादल में संयोग से कोई भंवर पड़ गयी होगी, जिसकी आकर्पण शक्ति से खिच कर असंख्य तिरते हुए गैसाणु तेजी से भवर के भीतर, जहां सर्वाधिक घनीभूत गैस पिड था। गिरते गए और आपस में संलग्न होते गए। उसके अत्यधिक तीव्र गुरुत्वाकर्पण के प्रभाव से वह संपूर्ण गैस का बादल एक विशाल घृणायमान गोला बन गया। असंख्य गैसाणुओं के खिचते और आपस में टकराते हुए आदिसूर्य गर्भ में गिरने के कारण गति और गर्मी में असीम तीव्रता आती गई और आदिसूर्य गर्भ में गैसाणुओं के खंडन-विखंडन की प्रक्रिया (Fusion reaction) का वेगपूर्ण क्रम चालू हो गया। इसी दौरान मुख्य गतिचक्र से हटकर कुछ दूर आ पड़े गैस कणो की संहति में कुछेक छोटे-छोटे भवर अलग से भी बनते गए। इन्हें ग्रहों का आदि रूप कहना चाहिए। सूरज ज्वलंत गैस का एक विशाल गोला है, जो अपने ही गुरुत्व से थमा हुआ है। उसके भीतर भी अत्यन्त गर्म गैसो का आयतन 5,408,000 करोड़ घन किमी. है। उसकी द्रव्य मात्रा में 70 प्रतिशत हाइड्रोजन है। सूर्य द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रमुख ईंधन यह हाइड्रोजन ही है। सूर्य के अंदर लगभग 70 करोड़ टन हाइड्रोजन प्रति सेकंड हीलियम में बदलती रहती है। इस प्रक्रिया में सूर्य की मात्रा का 40 लाख टन प्रति सेकंड ऊर्जा के रूप मे बदल जाता है। सूर्य गर्भ में हाइड्रोजन के अणु 140 लाख डिग्री सेंटीग्रेड के उच्च ताप पर संगलित होकर हीलियम बनते हैं। वह ऊर्जा भयंकर गामा किरणों के रूप में निकल कर 480,000 किमी ऊपर सूर्यतल की ओर बहती है। ये गामा किरणें बीच में अति घने रूप से ठुसे गैस अणुओं में लगातार भीषण विस्फोट करती हैं। इन संघर्षों केकारण गामा किरणे किंचित कोमल एक्स किरणों और अल्ट्रावायलेट धाराओ का रूप ले लेती हैं। सूर्य की खोज सूर्य की बनावट का रहस्य सूरज एक अशांत वस्तु है। उस के तल पर और अंतर में भी गैस के अति उच्च ताप पर उबलने से हलचल मची रहती है। दूरबीन से देखा गया है कि सूर्य की बनावट दानेदार है। सूर्य गर्भ की तापनाभिकीय ऊर्जा को सतह पर आने से पहले लगभग 128,000 किमी मोटे खोल के बीच से गुजरना होता है। गर्म गैस की धाराएं सूर्य की सतह पर आ जाती हैं, तो फूलते-फूटते दानो जैसी दिखाई देती हैं। ये दाने पृथ्वी से चावल के दाने जैसे दिखाई पड़ते हैं। वे वास्तव में 375 से 950 मील तक लंबे चौडे विभिन्न तापक्रम वाले बुलवुलेनुमा गैस पिड हैं, जो लगातार घुलते, बिगडते और फिर से बनते रहते हैं। ये जब सूर्य के वायुमंडल में उठ आते हैं, तो सूर्य की हवाओं द्वारा, जिनकी रफ्तार 16 सौ किमी. प्रति घंटा तक होती है, तोड-फोड़ दिए जाते हैं। सूर्य मे काले धब्बे भी हैं। ये केवल नाम से ही काले या अधेरे हैं। कुछ बड़े काले धब्बों को खाली आंखों से देखा जा सकता है। सूर्य में काले धब्बों की खोज शताब्दियों से सूर्य की देवता थे रूप में पूजा होती रही , इसलिए उसका भौतिक अध्यन न हो सका। ईसा से 5 सौ वर्ष पूर्व एक दार्शनिक एनेक्सागोस्स ने एड्गोस्थोटामी नामक नगर में गिरे एक विशाल उल्कापिंड के बारे में बताया था कि यह सूरज से टूट कर गिरा है। इस दार्शनिक ने उस समय यह निष्कर्ष निकाला था कि सूर्य पेलीपीस्नेसस नगर से भी बढ़ा लाल तृप्त लोहे का गोला है। दार्शनिक एनेक्सागोस्स के बाद गैलीलियो ने योहानस केपलर जैसे खगोलविद की सहायता से टेलिस्कोप द्वारा सूर्य के काले धब्बों को खोज लिया। यह गैलीलियो की ही प्रतिभा थी जिसने सूर्य की सौर परिघटना को ठीक से परखा। लगभग दो शताब्दियों के उपरांत एक जर्मन शौकिया खगोलविद सेमुअल हाइनरिष ने लगातार 33 वर्षों तक सूर्य का परिक्षण करके घोषणा की कि सूर्य के काले धब्बों (Sun spot) की औसत संख्या दस वर्ष की अवधि में आकार रूप बदलती रहती है। सूरज की विशेष प्रक्रिया सूर्य की एक विशेष प्रक्रिया उसमें भभूके (Flares) उठना है। ये भभूके सूर्य की सतह पर अचानक अत्यंत प्रचंड ताप पिंड के रूप में, जिनकी दीप्ति सूर्य प्रभा से दस गुना तेजी होती है, उठते हैं।इन भभूकों में छोटे से छोटा भभूका भी पृथ्वी के आधे क्षेत्रफल को निगल सकता है। बड़े भभूके तो 1 खरब 60 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र को घेर सकते हैं। इनका अस्तित्व भी आकार के अनुसार 15 मिनट से कई घंटों तक का होता है। ये भभूके एक तरह के वे अधिक गरम धब्बे हैं, जिनसे गरम गैस का स्तंभ-सा उठता है। इन भभकों में विस्फोट जैसी आकस्मिकता होती है, जिनका प्रभाव पृथ्वी पर सीधा पड़ता है। सूर्य में भभूकों के उठने के बाद मिनटों मे ही पृथ्वी तल को असामान्य अल्ट्रावायलेट विकिरण सहना पड़ता है, जिससे दूरगामी रेडियो लहरों में गडबड़ी तथा धीमापन आ जाता है। सूरज के भभूकों का एक और भी असर होता है। इनके द्वारा उछाले गए असंख्य प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन शून्य में लगभग 1600 किमी. प्रति सेकंड की गति से चलते हैं। वे यदि पृथ्वी की दिशा मे आ रहे हो, तो एक दिन में ही पहुंच जाते हैं। इन कणो में विद्युत होती है, जिसके कारण ये पृथ्वी की चुम्बकीय परिधि द्वारा विवर्तित होकर वानएलेन विकिरण पट्टीयों में जा पड़ते हैं। वहां से ये पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल के धुव्रीय क्षेत्र में फैल जाते हैं। तब वायुमंडल प्रकाशमान हो उठता है। उस चमक को उत्तरी गोलार्द्ध मे आरोरा बोरियलिस (Aurora Borealis) या ‘सुमेरु प्रभा’ कहते हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में आरोरा आस्ट्रेलिस (Aurora Australis) या ‘कुमेरु प्रभा’। यह दूसरी बात है कि कुछ बड़े भभूकों द्वारा ही ऐसा प्रभाव पैदा होता है, छोटे-मोटे भभूको से नहीं। कुछ ऐसी ही प्रक्रिया है-सौर-प्रज्वाल। सूर्य की सतह पर बडी भयंकर ज्वालाएं या लपटें उठती हैं। सूर्य की सतह पर गर्म गैस के असंख्य कण एक विशाल अग्निधारा के रूप में उछल जाते हैं और प्रचंड ज्वाला की जिह्वाए बन जाती हैं। सूर्य की सतह से उन की ऊंचाई डेढ़-दो लाख किमी. तक होती है। ऐसी किसी सोर-ज्वाल के सामने हमारी पृथ्वी एक गेंद जैसी लगेगी। इनमें कुछ ज्वालाएं महीनों तक जलती रहती हैं, जबकि कुछ आठ-दस दिनो मे बुझ जाती है। इनकी लंबाई-ऊंचाई से चार पांच गुनी बड़ी होती है, क्योंकि ये सौर ज्वालाएं अक्सर सीधी तनी हुई नही होती बल्कि झुकती, मुडती छल्ले बनाती हुई तथा फिर से सतह पर घुमडती, लौटती रहती हैं। सूर्य के रहस्य ये ज्वालाएं अपनी आकृति के अनुसार कई प्रकार की होती हैं। चाप ज्वाल य्घपि दूर पार्श्व से एक काले रेशे सी दिखाई देती है तथापि झुके व तने विशाल धनुष की आकृति जैसे बड़े भयंकर रूप में लपलपाती है। सर्वाधिक जाज्वल्यमान चाप ज्वाल 4 जून, सन् 1946 को दिखाई दी थी। सूर्योदय के थोड़ी देर बाद ही वह ज्वाला सूर्यतल से 4,00,000 किमी. की ऊंचाई तक उठ गई थी। ऊंचाई की ओर उस की गति 160 मील प्रति सेकंड थी और आधे ही घंटे में कोरोनाग्राफ (करीटलेखी) की सीमा पार कर गई थी। इस बात का ठीक पता नही लगा है कि किसी नियत क्षेत्र में ही गैसें क्यो जल उठती हैं। इसका एक कारण सोचा जा सकता है। जब गैसें अधिक ठंडी होती हैं (सूरज के अत्यधिक ताप की पृष्ठभुमि में), तो उनमें इलेक्टॉनों को सुलगाने योग्य पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती और तब वे रोशनी नही पैदा कर पातीं। इसके विपरीत जब गैसें अत्यंत गर्म होती हैं, तो इलेक्ट्रॉन परमाणुओ से एकदम मुक्त हो जाते हैं और तब भी उन से रोशनी नहीं निकलती। तब गैस जलने के लिए मध्यम स्तर का ताप अपेक्षित है। सूर्य के कोरोना (Corona) या किरीट के आते उच्च ताप से सूर्य तल के कम गर्म स्थानों पर गिरते समय ज्वालाओं से रौशनी निकलती है फिर प्रश्न उठता है कि ये गैसे सूर्य तल पर ही क्यो लौट जाती हैं। पृथ्वी तल पर वर्षो की पक्रिया की भांति ही शायद ये गर्म गैसे तल से लाखो मील दूर ऊपर जाकर फिर ज्वालाओं के रूप मे वापस बरस पड़ती हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण पृथ्वी के चारों ओर घमते हुए जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाता है कि सूरज थोडी देर के लिए दिखाई न दे, तो उसे सूर्य ग्रहण कहते हैं। सूर्य का पूर्ण ग्रहण बहुत से लोगो ने नही देखा होगा। पर्ण सूर्य ग्रहण के समय जब समग्र सूर्यबिंब काला गोला सा रह जाता है, तो उसके चारो ओर एक कान्तिमय विशाल घेरा दिखता है, जिसे कोरोना या किरीट कहते हैं। सूर्य का वह रूप बहत भव्य एवं दर्शनीय होता हैं। सूरज के पांच खंडइस प्रकार मोटे रूप से सूर्य की काया के निम्नलिखित पांच खंड हो सकते हैं। पहला सूर्य गर्भ है, जो सूर्य की संपूर्ण शक्ति और ऊर्जा का उद्गम स्थान है। उसमे निरंतर नाभिकीय प्रतिक्रिया घटित होती रहती है। यहां सूर्य गर्भ का तापक्रम इतना अधिक, यानी 150 लाख डिग्री केल्विन होता है, कि परमाणु विखंडित होनेके बजाए लगातार नए परमाणुविक नाभिक (Atomic nucleus) बनाते रहते हैं। सूर्य गर्भ में दो प्रकार की नाभिकीय प्रतिक्रियाएं चलती हैं : प्रोटॉन प्रतिक्रिया और कार्बनगर्दिश प्रतिक्रिया। यही ऊर्जा भयंकर गामा किरणों का श्रोत है। दूसरा वह विशाल क्षेत्र है, जहां अत्यंत घनी भूत गैस परमाणुओं को गर्भ से आई गामा किरणें भीषणता से उखाडती व फोड़ती रहती हैं। इन टकरावों से गामा किरणे मृदुतर एक्स किरणों तथा अल्ट्रावायलेट लहरों मे परिवर्तित हो जाती हैं। तीसरा फोटोस्फियर है, जो भीषण उथल-पुथल वाला चितकबरे रंग का दानेदार स्तर है। 128,000 किमी. की गहराई तक के इस निचले स्तर में नीचे से आने वाली ऊर्जा द्वारा गैसों के मंथन की भयंकर प्रक्रिया चलती रहती है। गैसें उबलती हैं, फूलती हैं, गरमी निकालती हुई ठंडी होती हैं। फिर वे गरम हो कर उठती हैं। इसी मंडल में,अत्यंत तप्त सफेद गर्म सूर्य के धब्बे दिखाई देते हैं। चौथां क्रोमोस्फियर हैं, जो एक प्रकार से भयावह आतिशबाजी का क्षेत्र है। 16,000 किमी. की गहराई तक के इस ऊपरी स्तर कानिर्माण भी अधिकांशत हाइड्रोजन से हुआ है जिसके गर्म हो कर ऊपर उछल जाने पर अग्नि के भभूकों अथवा सौर-प्रज्वालों जैसे चमत्कार दिखाई देते हैं। पांचवा कोरोना या किरीट है जो मोती सी सफेद घनी गैसों से बना हुआ सूर्यतल का बाहरी वायुमंडल है। सूर्य मंडल के किनारो पर दीप्ति माला की तरह इसे खाली आंखो से देखा जा सकता है। विशेषकर पूर्ण सूर्यग्रहण के समय। इसकी आभा का फैलाव प्रच्छन्न रूप से 576 लाख किमी की दूरी (बुध ग्रह) तक है। सूर्य की स्थिर प्रकृति सूरज एक स्थिर किस्म का तारा है जो अरबो वर्षों से गरमी और रोशनी देता आ रहा हैं। आने वाले अरबो वर्षों तक वह प्रकाश व ताप बिखेरता रहेगा। यह भी कहा जाता है कि समय बीतने के साथ सूर्य और गर्म होता जा रहा है। दूर भविष्य में सूर्य का ताप कभी इतना प्रखर होगा कि पृथ्वी पर से जीवन का विनाश व लोप हो जाएगा। वर्तमान समय में सूर्य की गैस जिस मात्रा मे जल रही है, उसी हिसाब से सूर्य अगले 5000 करोड वर्षों तक जलता रहेगा। साथ ही जलने के फलस्वरूप निरंतर जमा होने वाली भस्म के अत्यधिक भार से सूरज गर्भ में दूसरी नाभिकीय प्रक्रियाएं चालू हो जाएंगी और सूर्य का ईंधन और तेजी से खत्म होने लगेगा। उपर्युक्त समय के बाद सूर्य का गोला फूलने लगेगा और गर्म होता जाएगा। उसकी प्रच॑डता सौर-परिवार के हर कोने से जीवन का अंत कर देगी क्योंकि तब विनाशकारी गामा किरणें दूर ग्रहों तक विकीर्णित (Radiate) हो जाएगी। फिर सूर्य की नाभिकीय अग्नियां बुझने लगेगी। लाखों अरब वर्षो तक सुलगता सूरज नाम का लाल दानवीय तारा धीरे-धीरे ठडा होकर मर जाएगा। इसी भांति सभी तारों का अंत होने की संभावना है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit 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