You are currently viewing सूर्य के रहस्य सूर्य की खोज कैसे हुई और किसने कि
सूर्य की खोज

सूर्य के रहस्य सूर्य की खोज कैसे हुई और किसने कि

दोस्तों आज के अपने इस लेख में हम सूर्य की खोज किसने कि तथा सूर्य के रहस्य को जानेंगे कहने को तो सूरज और कछ नहीं, सिर्फ एक तारा है। वह भी बडा नहीं, छोटा व औसत दर्जे का। रात को आकाश में दिखाई देने वाले हजारों तारे आकार में सूर्य से बड़े हैं। कई तो सैंकड़ों गुना बड़े हैं। इसी प्रकार सैंकड़ों तारों में सर्य॑ से हजारों गुनी अधिक रोशनी व गर्मी है। उनके मुकाबले में सूर्य केवल एक बौना ही नहीं, बौने से भी बौना तारा है।

सूर्य का व्यास लगभग 1,392,000 किमी. है। उसका द्रव्यमान 2.19 × 10.27 टन (यानी 2.19 के बाद सत्ताइस शून्य) टन है अर्थात्‌ सूर्य में पृथ्वी की अपेक्षा 333,400 गुना अधिक द्रव्यमान है। दस लाख से भी अधिक पृथ्वियां सूर्य के घेरे में ठूंस कर भरी जा सकती हैं। सूर्यतल का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी तल के गुरूत्वाकर्षण से 28 गुना है यानी 80 पौंड वाला मनुष्य यदि सूर्य की सतह पर खड़ा हो जाए, उसका वजन 5010 पौंड हो जाएगा।

आज के ज्योतिषविदों का सूर्य की उत्पत्ति के बारे में लगभग एक ही मत है। उसका उद्गम लगभग 500 करोड वर्ष पहले हुआ, जो मंदाकिनी या आकाशगंगा (Milky way) जैसे नक्षत्रपुंज के गठन से कम से कम 700 करोड़ वर्ष पश्चात का समय था। सूर्य के रूप में जमने वाली गैस भी वही गैस थी, जो आज भी आकाशगंगा के तारो के बीच बादलो की शक्ल में मंडराती है। उस गैस का पदार्थ लगभग पूर्णाश में हाइड्रोजन ही था। शून्य में तैरती गैस के विशाल बादल में संयोग से कोई भंवर पड़ गयी होगी, जिसकी आकर्पण शक्ति से खिच कर असंख्य तिरते हुए गैसाणु तेजी से भवर के भीतर, जहां सर्वाधिक घनीभूत गैस पिड था। गिरते गए और आपस में संलग्न होते गए। उसके अत्यधिक तीव्र गुरुत्वाकर्पण के प्रभाव से वह संपूर्ण गैस का बादल एक विशाल घृणायमान गोला बन गया। असंख्य गैसाणुओं के खिचते और आपस में टकराते हुए आदिसूर्य गर्भ में गिरने के कारण गति और गर्मी में असीम तीव्रता आती गई और आदिसूर्य गर्भ में गैसाणुओं के खंडन-विखंडन की प्रक्रिया (Fusion reaction) का वेगपूर्ण क्रम चालू हो गया। इसी दौरान मुख्य गतिचक्र से हटकर कुछ दूर आ पड़े गैस कणो की संहति में कुछेक छोटे-छोटे भवर अलग से भी बनते गए। इन्हें ग्रहों का आदि रूप कहना चाहिए।

सूरज ज्वलंत गैस का एक विशाल गोला है, जो अपने ही गुरुत्व से थमा हुआ है। उसके भीतर भी अत्यन्त गर्म गैसो का आयतन 5,408,000 करोड़ घन किमी. है। उसकी द्रव्य मात्रा में 70 प्रतिशत हाइड्रोजन है। सूर्य द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रमुख ईंधन यह हाइड्रोजन ही है। सूर्य के अंदर लगभग 70 करोड़ टन हाइड्रोजन
प्रति सेकंड हीलियम में बदलती रहती है। इस प्रक्रिया में सूर्य की मात्रा का 40 लाख टन प्रति सेकंड ऊर्जा के रूप मे बदल जाता है।

सूर्य गर्भ में हाइड्रोजन के अणु 140 लाख डिग्री सेंटीग्रेड के उच्च ताप पर संगलित होकर हीलियम बनते हैं। वह ऊर्जा भयंकर गामा किरणों के रूप में निकल कर 480,000 किमी ऊपर सूर्यतल की ओर बहती है। ये गामा किरणें बीच में अति घने रूप से ठुसे गैस अणुओं में लगातार भीषण विस्फोट करती हैं। इन संघर्षों केकारण गामा किरणे किंचित कोमल एक्स किरणों और अल्ट्रावायलेट धाराओ का रूप ले लेती हैं।

सूर्य की खोज
सूर्य की खोज

सूर्य की बनावट का रहस्य

सूरज एक अशांत वस्तु है। उस के तल पर और अंतर में भी गैस के अति उच्च ताप पर उबलने से हलचल मची रहती है।दूरबीन से देखा गया है कि सूर्य की बनावट दानेदार है। सूर्य गर्भ की तापनाभिकीय ऊर्जा को सतह पर आने से पहले लगभग
128,000 किमी मोटे खोल के बीच से गुजरना होता है। गर्म गैस की धाराएं सूर्य की सतह पर आ जाती हैं, तो फूलते-फूटते दानो जैसी दिखाई देती हैं। ये दाने पृथ्वी से चावल के दाने जैसे दिखाई पड़ते हैं। वे वास्तव में 375 से 950 मील तक लंबे चौडे विभिन्‍न तापक्रम वाले बुलवुलेनुमा गैस पिड हैं, जो लगातार घुलते, बिगडते और फिर से बनते रहते हैं। ये जब सूर्य के वायुमंडल में उठ आते हैं, तो सूर्य की हवाओं द्वारा, जिनकी रफ्तार 16 सौ किमी. प्रति घंटा तक होती है, तोड-फोड़ दिए जाते हैं। सूर्य मे काले धब्बे भी हैं। ये केवल नाम से ही काले या अधेरे हैं। कुछ बड़े काले धब्बों को खाली आंखों से देखा जा सकता है।

सूर्य में काले धब्बों की खोज

शताब्दियों से सूर्य की देवता थे रूप में पूजा होती रही , इसलिए उसका भौतिक अध्यन न हो सका। ईसा से 5 सौ वर्ष पूर्व एक दार्शनिक एनेक्सागोस्स ने एड्गोस्थोटामी नामक नगर में गिरे एक विशाल उल्कापिंड के बारे में बताया था कि यह सूरज से टूट कर गिरा है। इस दार्शनिक ने उस समय यह निष्कर्ष निकाला था कि सूर्य पेलीपीस्नेसस नगर से भी बढ़ा लाल तृप्त लोहे का गोला है। दार्शनिक एनेक्सागोस्स के बाद गैलीलियो ने योहानस केपलर जैसे खगोलविद की सहायता से टेलिस्कोप द्वारा सूर्य के काले धब्बों को खोज लिया। यह गैलीलियो की ही प्रतिभा थी जिसने सूर्य की सौर परिघटना को ठीक से परखा। लगभग दो शताब्दियों के उपरांत एक जर्मन शौकिया खगोलविद सेमुअल हाइनरिष ने लगातार 33 वर्षों तक सूर्य का परिक्षण करके घोषणा की कि सूर्य के काले धब्बों (Sun spot) की औसत संख्या दस वर्ष की अवधि में आकार रूप बदलती रहती है।

सूरज की विशेष प्रक्रिया

सूर्य की एक विशेष प्रक्रिया उसमें भभूके (Flares) उठना है। ये भभूके सूर्य की सतह पर अचानक अत्यंत प्रचंड ताप पिंड के रूप में, जिनकी दीप्ति सूर्य प्रभा से दस गुना तेजी होती है, उठते हैं।इन भभूकों में छोटे से छोटा भभूका भी पृथ्वी के आधे क्षेत्रफल को निगल सकता है। बड़े भभूके तो 1 खरब 60 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र को घेर सकते हैं। इनका अस्तित्व भी आकार के अनुसार 15 मिनट से कई घंटों तक का होता है।

ये भभूके एक तरह के वे अधिक गरम धब्बे हैं, जिनसे गरम गैस का स्तंभ-सा उठता है। इन भभकों में विस्फोट जैसी आकस्मिकता होती है, जिनका प्रभाव पृथ्वी पर सीधा पड़ता है। सूर्य में भभूकों के उठने के बाद मिनटों मे ही पृथ्वी तल को
असामान्य अल्ट्रावायलेट विकिरण सहना पड़ता है, जिससे दूरगामी रेडियो लहरों में गडबड़ी तथा धीमापन आ जाता है। सूरज के भभूकों का एक और भी असर होता है। इनके द्वारा उछाले गए असंख्य प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन शून्य में लगभग 1600
किमी. प्रति सेकंड की गति से चलते हैं। वे यदि पृथ्वी की दिशा मे आ रहे हो, तो एक दिन में ही पहुंच जाते हैं। इन कणो में विद्युत होती है, जिसके कारण ये पृथ्वी की चुम्बकीय परिधि द्वारा विवर्तित होकर वानएलेन विकिरण पट्टीयों में जा पड़ते हैं। वहां से ये पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल के धुव्रीय क्षेत्र में फैल जाते हैं। तब वायुमंडल प्रकाशमान हो उठता है। उस चमक को उत्तरी गोलार्द्ध मे आरोरा बोरियलिस (Aurora Borealis) या ‘सुमेरु प्रभा’ कहते हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में आरोरा आस्ट्रेलिस (Aurora Australis) या ‘कुमेरु प्रभा’। यह दूसरी बात है कि कुछ बड़े भभूकों द्वारा ही ऐसा प्रभाव पैदा होता है, छोटे-मोटे भभूको से नहीं।

कुछ ऐसी ही प्रक्रिया है-सौर-प्रज्वाल। सूर्य की सतह पर बडी भयंकर ज्वालाएं या लपटें उठती हैं। सूर्य की सतह पर गर्म गैस के असंख्य कण एक विशाल अग्निधारा के रूप में उछल जाते हैं और प्रचंड ज्वाला की जिह्वाए बन जाती हैं। सूर्य की सतह से उन की ऊंचाई डेढ़-दो लाख किमी. तक होती है। ऐसी किसी सोर-ज्वाल के सामने हमारी पृथ्वी एक गेंद जैसी लगेगी। इनमें कुछ ज्वालाएं महीनों तक जलती रहती हैं, जबकि कुछ आठ-दस दिनो मे बुझ जाती है। इनकी लंबाई-ऊंचाई से चार पांच गुनी बड़ी होती है, क्योंकि ये सौर ज्वालाएं अक्सर सीधी तनी हुई नही होती बल्कि झुकती, मुडती छल्ले बनाती हुई तथा फिर से सतह
पर घुमडती, लौटती रहती हैं।

सूर्य के रहस्य
सूर्य के रहस्य

ये ज्वालाएं अपनी आकृति के अनुसार कई प्रकार की होती हैं। चाप ज्वाल य्घपि दूर पार्श्व से एक काले रेशे सी दिखाई देती है तथापि झुके व तने विशाल धनुष की आकृति जैसे बड़े भयंकर रूप में लपलपाती है। सर्वाधिक जाज्वल्यमान चाप ज्वाल 4 जून, सन्‌ 1946 को दिखाई दी थी। सूर्योदय के थोड़ी देर बाद ही वह ज्वाला सूर्यतल से 4,00,000 किमी. की ऊंचाई तक उठ गई थी। ऊंचाई की ओर उस की गति 160 मील प्रति सेकंड थी और आधे ही घंटे में कोरोनाग्राफ (करीटलेखी) की सीमा पार कर गई थी।

इस बात का ठीक पता नही लगा है कि किसी नियत क्षेत्र में ही गैसें क्यो जल उठती हैं। इसका एक कारण सोचा जा सकता है। जब गैसें अधिक ठंडी होती हैं (सूरज के अत्यधिक ताप की पृष्ठभुमि में), तो उनमें इलेक्टॉनों को सुलगाने योग्य पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती और तब वे रोशनी नही पैदा कर पातीं। इसके विपरीत जब गैसें अत्यंत गर्म होती हैं, तो इलेक्ट्रॉन परमाणुओ से एकदम मुक्त हो जाते हैं और तब भी उन से रोशनी नहीं निकलती। तब गैस जलने के लिए मध्यम स्तर का ताप अपेक्षित है। सूर्य के कोरोना (Corona) या किरीट के आते उच्च ताप से सूर्य तल के कम गर्म स्थानों पर गिरते समय ज्वालाओं से रौशनी निकलती है फिर प्रश्न उठता है कि ये गैसे सूर्य तल पर ही क्यो लौट जाती हैं। पृथ्वी तल पर वर्षो की पक्रिया की भांति ही शायद ये गर्म गैसे तल से लाखो मील दूर ऊपर जाकर फिर ज्वालाओं के रूप मे वापस बरस पड़ती हैं।

पूर्ण सूर्य ग्रहण

पृथ्वी के चारों ओर घमते हुए जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाता है कि सूरज थोडी देर के लिए दिखाई न दे, तो उसे सूर्य ग्रहण कहते हैं। सूर्य का पूर्ण ग्रहण बहुत से लोगो ने नही देखा होगा। पर्ण सूर्य ग्रहण के समय जब समग्र सूर्यबिंब काला गोला सा रह जाता है, तो उसके चारो ओर एक कान्तिमय
विशाल घेरा दिखता है, जिसे कोरोना या किरीट कहते हैं। सूर्य का वह रूप बहत भव्य एवं दर्शनीय होता हैं।

सूरज के पांच खंड

इस प्रकार मोटे रूप से सूर्य की काया के निम्नलिखित पांच खंड हो सकते हैं। पहला सूर्य गर्भ है, जो सूर्य की संपूर्ण शक्ति और ऊर्जा का उद्गम स्थान है। उसमे निरंतर नाभिकीय प्रतिक्रिया घटित होती रहती है। यहां सूर्य गर्भ का तापक्रम इतना अधिक, यानी 150 लाख डिग्री केल्विन होता है, कि परमाणु विखंडित होनेके बजाए लगातार नए परमाणुविक नाभिक (Atomic nucleus) बनाते रहते हैं।

सूर्य गर्भ में दो प्रकार की नाभिकीय प्रतिक्रियाएं चलती हैं : प्रोटॉन प्रतिक्रिया और कार्बनगर्दिश प्रतिक्रिया। यही ऊर्जा भयंकर गामा किरणों का श्रोत है। दूसरा वह विशाल क्षेत्र है, जहां अत्यंत घनी भूत गैस परमाणुओं को गर्भ से आई गामा किरणें भीषणता से उखाडती व फोड़ती रहती हैं। इन टकरावों से गामा किरणे मृदुतर एक्स किरणों तथा अल्ट्रावायलेट लहरों मे परिवर्तित हो जाती हैं। तीसरा फोटोस्फियर है, जो भीषण उथल-पुथल वाला चितकबरे रंग का दानेदार स्तर है। 128,000 किमी. की गहराई तक के इस निचले स्तर में नीचे से आने वाली ऊर्जा द्वारा गैसों के मंथन की भयंकर प्रक्रिया चलती रहती है। गैसें उबलती हैं, फूलती हैं, गरमी निकालती हुई ठंडी होती हैं। फिर वे गरम हो कर उठती हैं। इसी मंडल में,अत्यंत तप्त सफेद गर्म सूर्य के धब्बे दिखाई देते हैं। चौथां क्रोमोस्फियर हैं, जो एक प्रकार से भयावह आतिशबाजी का क्षेत्र है। 16,000 किमी. की गहराई तक के इस ऊपरी स्तर कानिर्माण भी अधिकांशत हाइड्रोजन से हुआ है जिसके गर्म हो कर ऊपर उछल जाने पर अग्नि के भभूकों अथवा सौर-प्रज्वालों जैसे चमत्कार दिखाई देते हैं। पांचवा कोरोना या किरीट है जो मोती सी सफेद घनी गैसों से बना हुआ सूर्यतल का बाहरी वायुमंडल है। सूर्य मंडल के किनारो पर दीप्ति माला की तरह इसे खाली आंखो से देखा जा सकता है। विशेषकर पूर्ण सूर्यग्रहण के समय। इसकी आभा का फैलाव प्रच्छन्न रूप से 576 लाख किमी की दूरी (बुध ग्रह) तक है।

सूर्य की स्थिर प्रकृति

सूरज एक स्थिर किस्म का तारा है जो अरबो वर्षों से गरमी और रोशनी देता आ रहा हैं। आने वाले अरबो वर्षों तक वह प्रकाश व ताप बिखेरता रहेगा। यह भी कहा जाता है कि समय बीतने के साथ सूर्य और गर्म होता जा रहा है। दूर भविष्य में सूर्य का ताप कभी इतना प्रखर होगा कि पृथ्वी पर से जीवन का विनाश व लोप हो जाएगा। वर्तमान समय में सूर्य की गैस जिस मात्रा मे जल रही है, उसी हिसाब से सूर्य अगले 5000 करोड वर्षों तक जलता रहेगा। साथ ही जलने के फलस्वरूप निरंतर जमा होने वाली भस्म के अत्यधिक भार से सूरज गर्भ में दूसरी नाभिकीय प्रक्रियाएं चालू हो जाएंगी और सूर्य का ईंधन और तेजी से खत्म होने लगेगा। उपर्युक्त समय के बाद सूर्य का गोला फूलने लगेगा और गर्म होता जाएगा। उसकी प्रच॑डता सौर-परिवार के हर कोने से जीवन का अंत कर देगी क्योंकि तब विनाशकारी गामा किरणें दूर ग्रहों तक विकीर्णित (Radiate) हो जाएगी। फिर सूर्य की नाभिकीय अग्नियां बुझने लगेगी। लाखों अरब वर्षो तक सुलगता सूरज नाम का लाल दानवीय तारा धीरे-धीरे ठडा होकर मर जाएगा। इसी भांति सभी तारों का अंत होने की संभावना है।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े

ए° सी० बिजली किफायत की दृष्टि से 2000 या अधिक वोल्ट की तैयार की जाती है। घर के साधारण कामों के Read more
डायनेमो सिद्धांत
डायनेमो क्या है, डायनेमो कैसे बने, तथा डायनेमो का आविष्कार किसने किया अपने इस लेख के अंदर हम इन प्रश्नों Read more
बैटरी
लैक्लांशी सेल या सखी बैटरी को प्राथमिक सेल ( प्राइमेरी सेल) कहते हैं। इनमें रासायनिक योग के कारण बिजली की Read more
रेफ्रिजरेटर
रेफ्रिजरेटर के आविष्कार से पहले प्राचीन काल में बर्फ से खाद्य-पदार्थों को सड़ने या खराब होने से बचाने का तरीका चीन Read more
बिजली लाइन
कृत्रिम तरीकों से बिजली पैदा करने ओर उसे अपने कार्यो मे प्रयोग करते हुए मानव को अभी 140 वर्ष के Read more
प्रेशर कुकर का आविष्कार सन 1672 में फ्रांस के डेनिस पपिन नामक युवक ने किया था। जब डेनिस पपिन इंग्लेंड आए Read more
इत्र
कृत्रिम सुगंध यानी इत्र का आविष्कार संभवतः सबसे पहले भारत में हुआ। प्राचीन भारत में इत्र द्रव्यो का निर्यात मिस्र, बेबीलोन, Read more
कांच की वस्तुएं
कांच का प्रयोग मनुष्य प्राचीन काल से ही करता आ रहा है। अतः यह कहना असंभव है, कि कांच का Read more
घड़ी
जहां तक समय बतान वाले उपरकण के आविष्कार का प्रश्न है, उसका आविष्कार किसी वैज्ञानिक ने नहीं किया। यूरोप की Read more
कैलेंडर
कैलेंडर का आविष्कार सबसे पहले प्राचीनबेबीलोन के निवासियों ने किया था। यह चंद्र कैलेंडर कहलाता था। कैलेंडर का विकास समय Read more
सीटी स्कैन
सीटी स्कैन का आविष्कार ब्रिटिश भौतिकशास्त्री डॉ गॉडफ्रे हान्सफील्ड और अमरीकी भौतिकविज्ञानी डॉ एलन कोमार्क ने सन 1972 मे किया। Read more
थर्मामीटर
थर्मामीटर का आविष्कार इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक गेलिलियो ने लगभग सन्‌ 1593 में किया था। गेलिलियो ने सबसे पहले वायु का Read more
पेनिसिलिन
पेनिसिलिन की खोज ब्रिटेन के सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सन् 1928 में की थी, लेकिन इसका आम उपयोग इसकी खोज Read more
स्टेथोस्कोप
वर्तमान समय में खान पान और प्राकृतिक के बदलते स्वरूप के कारण हर मनुष्य कभी न कभी बिमारी का शिकार Read more
क्लोरोफॉर्म
चिकित्सा विज्ञान में क्लोरोफॉर्म का आविष्कार बडा ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। क्लोरोफॉर्म को ऑपरेशन के समय रोगी को बेहोश करने Read more
मिसाइल एक ऐसा प्रक्षेपास्त्र है जिसे बिना किसी चालक के धरती के नियंत्रण-कक्ष से मनचाहे स्थान पर हमला करने के Read more
माइन
सुरंग विस्फोटक या लैंड माइन (Mine) का आविष्कार 1919 से 1939 के मध्य हुआ। इसका आविष्कार भी गुप्त रूप से Read more
मशीन गन
एक सफल मशीन गन का आविष्कार अमेरिका के हिरेम मैक्सिम ने सन 1882 में किया था जो लंदन में काम कर Read more
बम का आविष्कार
बम अनेक प्रकार के होते है, जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, परिस्थितियों और शक्ति के अनुसार अनेक वर्गो में बांटे जा सकते Read more
रॉकेट
रॉकेट अग्नि बाण के रूप में हजारों वर्षो से प्रचलित रहा है। भारत में प्राचीन काल से ही अग्नि बाण का Read more
पैराशूट
पैराशूट वायुसेना का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसकी मदद से वायुयान से कही भी सैनिक उतार जा सकते है। इसके Read more
जेट विमान
जेट विमान क्या होता है, जेट विमान युद्ध में वायु सेना द्वारा उपयोग किया जाने वाला वायुयान होता है। जेट Read more
हेलीकॉप्टर
हेलीकॉप्टर अर्थात्‌ सीधी उडान भरने वाले वायुयानों की कल्पना सबसे पहले सन् 1500 के लगभग लियोनार्दो दा विंची ने की थी। Read more
हवाई जहाज
हवाई जहाज के आविष्कार और उसके विकास में अनेक वैज्ञानिकों का हाथ रहा है, परंतु सफल वायुयान बनाने का श्रेय Read more
रेलगाड़ी
आज से लगभग तीन सौ वर्ष पहले फ्रांस के एक व्यक्ति सालमन डी कास ने जब भाप से चलने वाली Read more
भाप इंजन का विकास अनेक व्यक्तियों के सम्मिलित-परिश्रम का परिणाम है। परन्तु भाप इंजन के आविष्कार का श्रेय इंग्लैंड के Read more
डीजल इंजन
पेट्रोल इंजन की भांति ही डीजल इंजन का उपयोग भी आज संसार के प्रत्येक देश में हो रहा है। उपयोगिता की Read more
पेट्रोल इंजन
पेट्रोलियम की खोज के बाद भाप इंजन के स्थान पर पेट्रोल और डीजल के इंजनों का इस्तेमाल शुरू हो गया। Read more
भाप इंजन
भाप-इंजन का विकास अनेक व्यक्तियों के सम्मिलित-परिश्रम का परिणाम है। परन्तु भाप इंजन के आविष्कार का श्रेय इंग्लैंड के जेम्स Read more
साइकिल
सन 1813 में मानहाइम (जर्मनी) की सड़कों पर एक व्यक्ति दो पहियों वाले लकडी से बने एक विचित्र वाहन पर Read more
पुल
संभवतः संसार के सबसे पहले पुल का निर्माण प्रकृति ने स्वयं ही किया था। अचानक ही कोई पेड़ गिरकर किसी Read more
पहिए का आविष्कार
पहिए का आविष्कार कब किसने और कहा किया इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है। पहिए का उपयोग हजारों वर्षो से Read more
होवरक्राफ्ट
होवरक्राफ्ट ये नाम भारत के अधिकतर लोगों के लिए नया है, अधिकतर लोग होवरक्राफ्ट के बारे में नहीं जानते। होवरक्राफ्ट Read more
पनडुब्बी
समुंद्री यातायात की शुरुआत मनुष्य ने ईसा से हजारों साल पहले लकड़ी के लठ्ठों के रूप में की थी। लठ्ठों Read more
पानी के जहाज
पानी के जहाज का आविष्कार नाव को देखकर हुआ, बल्कि यह नाव का ही एक विशाल रूप है। नाव का Read more
कंप्यूटर
कंप्यूटर का आविष्कार का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। कंप्यूटर अनेक प्रकार के है और इनके Read more
रडार
रडार का आविष्कार स्कॉटलैंड के एक प्रतिभाशाली युवक रॉबर्ट वाटसन वाट ने किया था। यह युवक मौसम विज्ञान विभाग का Read more
टेलीफोन
टेलीफोन का आविष्कार स्कॉटलैंड के अलेक्जेण्डर ग्राहम बेल ने सन्‌ 1876 में किया था। अलेक्जेण्डर 1870 में अपना देश छोडकर अमेरिका Read more
सिनेमा
चलचित्र यानी सिनेमा के आविष्कार का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं जाता। इसके विकास मे कई आविष्कारकों का योगदान Read more
फोटोग्राफी
ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटोग्राफी का आविष्कार फ्रांस के लुई दाग्युर और रंगीन फोटोग्राफी का आविष्कार भी फ्रांस के ही एक Read more
टेलीविजन
टेलीविजन का आविष्कार किसी एक व्यक्ति द्वारा एक दिन में नहीं हुआ, बल्कि इसका विकास अनेक वैज्ञानिकों के वर्षो के Read more
ट्रांजिस्टर
ट्रांजिस्टर का आविष्कार सन्‌ 1948 में हुआ। इसके आविष्कार का श्रेय अमेरिका के तीन वैज्ञानिको, जॉन बारडीन, विलयम शौकले तथा वाल्टर Read more
रेडियो
रेडियो के आविष्कार मे इटली के गगलील्मा मार्कोनी, जर्मनी के हेनरिख हट्ज और अमेरिका के ली डे फोरेस्ट का विशेष हाथ रहा है। Read more
ग्रामोफोन
ग्रामोफोन किसे कहते है? ग्रामोफोन का नाम सुनते ही सबसे पहले हमारे दिमाग में यही सवाल आता है। आपने अस्सी Read more
टेलीग्राफ
टेलीग्राफ प्रणाली द्वारा संदेश भेजने की विधि का आविष्कार अमेरीका के एक वेज्ञानिक, चित्रकार सैम्युएल फिन्ले ब्रीस मोर्स ने सन्‌ Read more
छपाई मशीन
छपाई मशीन बनाने और छपाई की शुरूआत कहां से हुई:- कागज और छपाई-कला का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था। संसार Read more
लेजर किरण
मेसर और लेसर किरण की खोज अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी के डाक्टर चार्ल्स टाउन्स तथा बल प्रयोगशाला के डॉ आथर शैलाव ने Read more
माइक्रोस्कोप का आविष्कार
माइक्रोस्कोप का आविष्कार करने का सबसे पहले प्रयास विश्वविख्यात वैज्ञानिक गैलीलियो ने किया था। लेकिन वे सफल न हो सके। सफल Read more
एक्सरे का आविष्कार
एक्सरे मशीन द्वारा चंद मिंनटो मे ही शरीर की हड्डियो की टूट फूट या दूसरे किसी रोग का चित्रण हमारे Read more
टेलिस्कोप का आविष्कार
दूरदर्शी या दूरबीन या टेलिस्कोप का आविष्कार सन्‌ 1608 मे नीदरलैंड के हैंस लिपरशी नामक एक ऐनकसाज ने किया था। Read more
अंकगणित
जो अंकगणित प्रणाली आज संसार में प्रचलित है, उसे विकसित और पूर्ण होने मे शताब्दियां लगी है। यद्यपि इसका आविष्कार Read more
प्लास्टिक
प्लास्टिक का अर्थ है- सरलता से मोड़ा जा सकने बाला। सबसे पहले प्लास्टिक की खोज अमेरिका के एक वैज्ञानिक जान बैसली Read more
रबड़
रबड़ आधुनिक सभ्यता की बहुत बड़ी आवश्यकता है। यदि हम रबर को एकाएक हटा लें, तो आज की सभ्यता पंगु Read more
उल्कापिंड
हवार्ड वेधशाला (अमेरिका) के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री ह्विपल ने उल्कापिंड की खोज की तथा उन्होंने इसके प्रकुति-गुण, आकार, गति पर अनेक खोजें Read more
निऑन गैस
निऑन गैस के बढ़ते हुए उपयोग ने इसकी महत्ता को बढा दिया है। विज्ञापन हेतु भिन्न रंग के जो चमकदार Read more
ध्वनि तरंगें
हमारे आसपास हवा न हो, तो हम किसी भी प्रकार की आवाज नहीं सुन सकते, चाहे वस्तुओं में कितना ही Read more
धातुओं
वास्तव में वर्तमान सभ्यता की आधाराशिला उस समय रखी गई जब धातु के बने पात्र, हथियार तथा अन्य उपकरणों का Read more
रेडियो तरंगों की खोज
हम प्रतिदिन रेडियो सुनते है लेकिन हमने शायद ही कभी सोचा हो कि रेडियो सैकडों-हजारो मील दूर की आवाज तत्काल Read more
अवरक्त विकिरण
ब्रिटिश खगोलविद सर विलियम हर्शेल ने 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक प्रयोग किया, जिसे अवरक्त विकिरण (infra red radiation) की Read more
अंतरिक्ष किरणों की खोज
अंतरिक्ष किरणों की खोज की कहानी दिलचस्प है। सन्‌ 1900 के लगभग सी.टी,आर. विल्सन, एन्स्टर और गीटल नामक वैज्ञानिक गैस Read more
प्रकाश तरंगों
प्रकाश तरंगों की खोज--- प्रकाश की किरणें सुदूर तारों से विशाल आकाश को पार करती हुई हमारी पृथ्वी तक पहुंचती Read more
परमाणु किरणों
परमाणु केन्द्र से निकली किरणों की खोज- कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं कि यदि उन्हें साधारण प्रकाश या अन्य प्रकार Read more
एक्सरे
सन्‌ 1895 के एक सर्द दिन जर्मनी के वैज्ञानिक राण्ट्जन (Roentgen) फैथोड किरण विसर्जन नलिका (Cathode ray discharge tube) के साथ Read more
इलेक्ट्रॉन
इंग्लैंड के वैज्ञानिक जे जे थाम्सन ने सन्‌ 1897 में इलेक्ट्रॉन की खोज की। उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि Read more
धूमकेतु
अंतरिक्ष में इधर-उधर भटकते ये रहस्यमय धूमकेतु या पुच्छल तारे मनुष्य और वैज्ञानिकों के लिए हमेशा आशंका, उलझन तथा विस्मय Read more
पेड़ पौधों
इस समय हमारे भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बसु ने यह सिद्ध किया कि पेड़ पौधों में भी जीवन होता हैं, सारे Read more
मस्तिष्क
सन्‌ 1952-53 में अमेरिका के मांट्रियल न्यूरॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट में एक 43 वर्षीय महिला के मस्तिष्क का आपरेशन चल रहा था। उसके Read more
एंटीबायोटिक
आधुनिक चिकित्सा के बढ़ते कदमों में एंटीबायोटिक की खोज निस्संदेह एक लंबी छलांग है। सबसे पहली एंटीबायोटिक पेनिसिलीन थी, जिसकी अलेग्जेंडर Read more
तेल
धरती की लगभग आधा मील से चार मील की गहराई से जो गाढा कीचड़ मिला पदार्थ निकलता है, उसी को Read more
प्लूटो ग्रह
प्लूटो ग्रह की खोज किसने की और कैसे हुई यह जानकारी हम अपने इस अध्याय में जानेंगे। जैसा हमने पिछले Read more
नेपच्यून ग्रह
नेपच्यून ग्रह की खोज कैसे हुई यह हम इस अध्ययन में जानेंगे पिछले अध्याय में हम यूरेनस ग्रह के बारे Read more
यूरेनस ग्रह
बुध, शुक्र, बृहस्पति मंगल और शनि ग्रहों की खोज करने वाले कौन थे, यह अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया Read more
बुध ग्रह
बुध ग्रह के बारे में मनुष्य को अब तक बहुत कम जानकारी है। मेरीनर-10 ही बुध ग्रह की ओर जाने Read more
बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति ग्रहों में सबसे बड़ा और अनोखा ग्रह है। यह पृथ्वी से 1300 गुना बड़ा है। अपने लाल बृहदाकार धब्बे Read more
मंगल ग्रह
मंगल ग्रह के बारे में विगत चार शताब्दियों से खोज-बीन हो रही है। पिछले चार दशकों में तो अनंत अंतरिक्ष Read more
शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह तथा पृथ्वी सौर-मंडल में जुड़वां भाई कहे जाते हैं, क्योंकि इन दोनों का आकार तथा घनत्व करीब-करीब एक-सा Read more
चांद की खोज
जुलाई, सन्‌ 1969 को दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों नील आर्मस्ट्रांग और एडविन आल्डिन ने अपोलो-11 से निकलकर चांद पर मानव Read more
सौर वायुमंडल
सूर्य के भीतर ज्वालाओं की विकराल तरंगे उठती रहती हैं। सूर्य की किरणों की प्रखरता कभी-कभी विशेष रूप से बढ़ Read more
अंतरिक्ष की खोज
अंतरिक्ष यात्रा के बारे में आज से लगभग 1825 वर्ष पूर्व लिखी गई पुस्तक थी-'सच्चा इतिहास'। इसके रचियता थे यूनान Read more

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply