जालौन जिले केकालपी में मुहल्ला हरीगंज में ये सुभानगुंडा की हवेली स्थित है । कालपी किले के पश्चात् काली देवी का मन्दिर पडता है उससे आगे बढ़ने पर बहुत से खण्डहर दिखाई पडते है। वही उनमें से एक प्रसिद्ध भवन सुभानगुंडा की हवेली है। हवेली सुभानगुंडा के नाम से जाने वाले भवन का निर्माण शेख अहमद नागौरी द्वारा किया गया था। आज यह भवन एक मस्जिद के रूप में स्थित है। जो हजरत शेख अहमद नागौरी दरगाह और मस्जिद के नाम से जानी जाती हैं
सुभानगुंडा की हवेली का इतिहास
श्री रहीम बख्स सिद्दीकी के अनुसार कालपी की यमुना नदी के किनारे मुहल्ला हरीगंज (आभागंज ) में यह हवेली व लगंर खाना है जो कि अब अवशेष मात्र ही रह गयी है। किसी समय में यह एक किला था जो अब टूटकर टीले की शक्ल में हो गया है। तब यह भवन लगभग 7 बीघे में बना था। पत्थरों के चूने के ढेर तथा कहीं कहीं पर पक्के फर्श इस बात के साक्षी है कि यह भवन अत्यन्त प्राचीन है। वर्तमान में भी दो पक्के कुएं बने हुये है। तथा इन कुओं के अतिरिक्त एक तीन गुम्बदों वाली मसजिद शेष रह गयी है। इस मस्जिद के गुम्बद बहुत ऊँचे व सुन्दर है लेकिन इसकी मीनारें बहुत छोटी है। यह मस्जिद महमूद शाह लोधी के समय की है। जो लगभग 700 वर्ष पुरानी है। इस हवेली का निर्माण उस समय हुआ जब चौरासी गुम्बद बन रहा था। कहा जाता है कि महमूद शाह लोधी के समय में जो कारीगर चौरासी गुम्बद का निर्माण कर रहे थे उन्ही के द्वारा सुभानगुंडा की हवेली का भी निर्माण किया गया। कारीगर दिन में चौरासी गुम्बद का निर्माण करते थे तथा रात्रि में इस हवेली का निर्माण करते थे। रात्रि में कार्य करने कारण कारीगर दिन में ऊँघते थे इस कारण महमूद शाह लोधी ने कालपी शहर में मिट्टी के तेल की बिक्री पर पाबन्दी लगा दी। जिससे न मिट्टी का तेल होगा न लैम्प मशाल आदि जलेगें और फिर न ही हवेली के निर्माण का कार्य हो सकेगा। परन्तु शेख अहमद नागौरी साहब ने अपने वजू के पानी से चिराग जलवा कर हवेली के निर्माण का कार्य जारी रखा जिससे प्रभावित होकर महमूद शाह लोधी शेख अहमद नागौरी का शिष्य हो गया। श्री शेख अहमद नागौरी , शेख हमीमुद्दीन नागौरी के शिष्य थे और शेख हमीमुद्दीन नागौरी हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे जो कि अल्लाह के खलीफा थे।
ख्वाजा मुंशी इनायतुल्ला के अनुसार संवत 1822 में गोविन्दराव पण्डित के पुत्र बाला जी राव कालपी में रहा करते थे। उनके एक आभा साहब नाम का पुत्र था जिसके नाम पर आभागंज मुहल्ला आबाद हुआ। हवेली शेख अहमद नागौरी उसकी बनाई थी।
सुभानगुंडा की हवेलीशहर कालपी के पुराने नक्शे में प्लाट संख्या 49 पर यह हवेली
स्थित है। 80×200 फुट की जगह इस हवेली के नाम थी। वर्तमान में जो भवन सुभानगुंडा हवेली के नाम से जाना जाता है। वह 66×222 फुट के क्षेत्र में बना है। यह एक त्रिगुम्बदीय भवन
जिसका मध्य गुम्बद विशाल है एवं उसके उत्तरी तथा दक्षिणी गुम्बद अपेक्षाकृत छोटे व गोल है । गुम्बदों के ऊपरी सिरों पर कमल दल अंकित है तथा इस कमल दल के ऊपर कलश के अवशेष अब भी दृष्य है। सभी गुम्बद अष्टभुजी आधार पर आधारित है। यह सम्पूर्ण भवन पूर्वाभिमुख है। मध्य गुम्बद के नीचे एक वर्गाकार कक्ष है। तथा उत्तरी एवं दक्षिणी गुम्बदों के नीचे भी एक एक वर्गाकार कक्ष स्थित है। मध्य कक्ष के ऊपर बाहर की ओर चारो कोनों पर एक एक छोटी छोटी मीनारें स्थित है जो कि ठोस है। कक्ष तथा गुम्बद के अष्टभुजी आधार के संगम स्थल पर तोडे विध्यमान हैं जो कि छज्जा होने का प्रमाण है। मध्य कक्ष की पूर्वीभुजा पर एक आयताकार दरवाजा स्थित है जिसके उत्तरी तथा दक्षिणी सिरो पर एक आला स्थित है। इस पूर्ण अंकन को अपने में ह्रदयगंम करता मेहराब अंकित है। जिसके ऊपरी भाग पर दोनों ओर एक एक गोल पुष्पाकार अंकित है जिस पर 16 अरे अंकित है जो कि प्रत्येक प्रहर के अर्द्ध भाग को दर्शाता है। मध्य कक्ष के उत्तरी तथा दक्षिणी कक्ष का पूर्वी भाग भी मध्य कक्ष से मिलता है। बस अन्तर केवल इतना है कि ये दोनों कक्ष मध्य कक्ष की अपेक्षा छोटे है तथा इन कक्षों के दरवाजों की मेहराबदार अंकन के ऊपर एक अन्य मेहराब और अंकित है। इन दोनों मेहराबों के मध्य एक एक आला स्थित है।
सुभानगुंडा की हवेली की आन्तरिक स्थिति
अन्दर से तीनों वर्ग एक दूसरे के साथ जुडे है तथा वर्गों के सभी खम्बे मेहराबयुक्त है। इनके ऊपर अष्टकोणीय शिल्प बना है। यह अष्टकोणीय शिल्प आठ भुजाओं से युक्त है जिसकी प्रत्येक भुजा पर एक एक मेहराबदार आला अंकित है। यह आला 4 फुट लंबा 3 फुट चौड़ा है। मध्य वर्ग की प्रत्येक भुजा अन्दर से 12.5 फुट लम्बी है व उत्तरी तथा दक्षिणी वर्ग की प्रत्येक भुजा 12 फुट लम्बी है। दीवार की मोटाई 2 फुट है। दो वर्गों के मध्य स्थित स्तम्भ की मोटाई 5 फुट है। सुभानगुंडा की हवेली का भवन आज कल मसजिद के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इस भवन के तीनों वर्गाकारकक्ष बर्फी भराई से युक्त हैं जो कि चन्देल कालीन कालपी किले से मिलते जुलते हैं।
इस हवेली से 80 फुट की दूरी पर एक कुआँ स्थित है। कुआँ गोल है जो कि ऊपर कोनों की बर्फी भराई की ओर चौकोर है। इस चौकोर आकृति की प्रत्येक भुजा पर एक एक मेहराब अंकित हैं। मेहराब का अंकन इस बात को प्रमाणित करता है कि कुआँ भी इस हवेली के साथ ही निर्मित हुआ होगा। इस हवेली के नीचे पृष्ठ भाग पर सात अन्य कक्ष स्थित है। बीच का चौथा कक्ष मेहराबदार दरवाजे से युक्त है एवं इसमें उत्तरी ओर बैठने का स्थान भी बना हुआ है। इन सात कक्षों के नीचे भी एक तलघरी खण्ड होना बताया जाता है। यह सुभानगुंडा की हवेली मुस्लिम वक्फ में 59 जालौन के नाम से दर्ज है। यह सम्पूर्ण भवन पत्थर तथा चूने से निर्मित है। इस भवन में लकड़ी का कोई प्राचीन कार्य नहीं है। भवन की मीनारें छोटी व गुम्बद ऊँचें इस बात का प्रमाण है कि भवन मुगलकाल से पूर्व का है। इस भवन के तीनों कक्षों की अन्दर की जुड़ाई व भराई चन्देल कालीन कालपी स्थित किले के गुम्बदीय अवशेष के बिल्कुल समरूप है जो इस भवन को चन्देल कालीन ठहरा सकता है। उपर्युक्त संदर्भों के अन्तर्गत यह स्पष्ट विचार है कि यह भवन चन्देल कालीन दुर्ग का ही कोई हिस्सा उस समय रहा होगा।
सुभानगुंडा की हवेली का नाम कैसे पड़ा
सुमानगुंडा की हवेली नाम से जानी जाती है।जबकि इसका निर्माण शेख अहमद नागौरी द्वारा किया गया। एक प्रचलित जनश्रुति के अनुसार सुभान नामक एक युवक शेख अहमद नागौरी के यहाँ सेवक था। शेख अहमद नागौरी को एक रात्रि स्वप्न हुआ कि श्री की देवी लक्ष्मी उसके यहाँ आना चाहती हैं। साथ ही देवी लक्ष्मी ने यह भी कहा कि वह बहुत कसरत के साथ आवेगी तथा जब जावेगी तो आग लगाकर जावेगी। लक्ष्मी किस को बुरी लगती है सो शेख अहमद नागौरी के पास भी लक्ष्मी आ गई। शेख साहब ने इस हवेली का निर्माण कराया परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा कि पूरी हवेली में लकड़ी का प्रयोग न हो जिससे आग लगने का खतरा ही न रहे। परन्तु विधि की बात। एक दिन घुड़साल में घोड़ों की नाल और पत्थर के फर्श से चिंगारी निकली और वहाँ पड़ी सूखी घास में आग लग गयी और फिर वह आग इतनी बढ़ी कि पूरी हवेली को अपने आगोश में ले लिया। यह देखकर सुभान सेवक हवेली में मौजूद दौलत को घोड़ों पर लादकर कालपी की गलियों गलियों में दौलत लुटाता फिरा। तभी रात्रि में लक्ष्मी देवी ने सुभान सेवक से कहा कि तूने मुझे लुटवा दिया तू गुंडा है। सुभान सेवक ने दौलत को कालपी की गलियों गलियों में फेंका था उसने हवेली से दौलत निकालकर लुटाई थी अतः यह हवेली सुभानगुंडा की हवेली के नाम से विख्यात हो गई। इसी कथा के आधार पर कालपी के विषय में यह दोहा बड़ा प्रसिद्ध है –
‘देखी तेरी कालपी , बावन पुरा उजार।
गली गली गुंडा फिरे, घर घर बसे छिनार ॥
यहाँ पर गुण्डा शब्द सुभानगुंडा के लिए व छिनार शब्द दौलत के लिए प्रयोग किया गया है।
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