सीरी किला का इतिहास:- दिल्ली

सीरी किला दिल्ली

दिल्ली में हौज़ खास के मोड़ से कुछ आगे बढ़ने पर एक नई सड़क बाई ओर घूमती है। वहीं पर एक साइन बोर्ड सीरी किला जाने वाले मार्ग पर लगा है। लगभग आध मील चलने के पश्चात सीरी नगर की दीवारें मिलनी आरम्भ हो जाती हैं। कुतुब सड़क से ही सीरी फोर्ट की दीवारें दृष्टिगोचर होने लगती हैं।

सीरी का किला किसने बनवाया था और इतिहास

सीरी नगर की दीवारों की गोलाई लगभग डेढ़ मील है। दीवार टूटी- फूटी है पर कहीं कहीं पर पूर्ण रूप से बनी है। दीवारों के अन्दर आजकल खेतों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । सिरी किले को अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था अलाउद्दीन 1296 ई० में गद्दी पर आया उसके गद्दी आसीन होने के थोड़े समय पश्चात्‌ ही मुग़लों का आक्रमण दिल्ली पर हुआ ओर उन्होंने दिल्ली को खूब बर्बाद किया पर जब वह लोट गये तो अलाउद्दीन ने सिरी नगर बसाया और नगर की रक्षा के लिये दीवार खिचवाई। नगर में एक किला बनवाया, यही सीरी किला कहलाता है। सीरी किले के भीतर अलाउद्दीन ने एक महल निर्माण किया। महल में एक बहुत बड़ा कमरा एक हज़ार स्तम्भों का बनाया गया जो समस्त भारत वर्ष में प्रसिद्ध था। आज इस बड़े कमरे का ठीक स्थान पता नहीं चलता शायद नगर की खोदाई के पश्चात्‌ उसका पता लगेगा।

सीरी किला दिल्ली
सीरी किला दिल्ली

अलाउद्दीन एक बड़ा बहादुर तथा लड़ाकू राजा था। उसने राजपूतों को हराकर रणथम्भौर ओर चित्तौड़ पर अधिकार किया। दकन की विजय उसने मलिक काफूर की सहायता से की थी। उसने विजय स्मारक बनाने तथा एक बड़ी मस्जिद बनाने का भी प्रयत्न किया था जिनका हम अपने वर्णन पिछले लेखों में कर चुके है। उसके समय में दिल्‍ली समस्त भारत की राजधानी बन गया था।

सिरी के आगे चिराग दिल्‍ली के घेरे की दीवारें दिखाई पड़ती है।चिराग दिल्‍ली अठारहवीं सदी में बनाया गया था। यहां पर एक साधु की समाधि है। सिरी से कुतुब॒ सड़क पर लौट आने पर हम चोर मीनार देखेंगे। इसका चोर मीनार नाम इस कारण पड़ा कि चोरों को यहां फांसी दी जाती थी। इसी मीनार के समीप ही मुगलों की एक बस्ती थी जब मुग़लों का आक्रमण अलाउद्दीन के समय में दिल्ली पर हुआ तो इस बस्ती के मुगल लोग उनसे मिल जाने का प्रयत्न किया। अलाउद्दीन बड़ा ही सख्त तथा निर्दयी था उसने बस्ती के सभी मुग़लों को कत्ल कर दिया और उनके सिर मीनार पर लटकवा दिये जिससे लोग मुग़लों से मिलने का साहस न करें।

चोर मीनार के समीप ही एक ईदगाह की मस्जिद है। शिलालेख से पता चलता है कि यह ईदगाह 1404 ईस्वी में बनी थी। दिल्‍ली के समीप वाली ईदगाह से इसकी तुलना की जाए तो पता चलेगा कि इसके बनाने वाले लोग बड़े ग़रीब थे। यहीं समीप ही नीली मस्जिद है यह मस्जिद लोदी राजों के समय में बनी थी। यहां पर चारों ओर पत्थर तथा दीवारें दिखाई पड़ती हैं जिससे सिद्ध होता है कि किसी समय में यह एक बड़ा ही सुन्दर नगर रहा होगा और चारों ओर सरदारों तथा अमीरों के बाग और महल रहे होंगे।

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