मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का एक पहाड़ी किला है, जो एक वन क्षेत्र की पहाड़ियों में फैला हुआ है। यह जबलपुर शहर से लगभग 45 किमी दूर दमोह शहर के रास्ते में है। यह एक शानदार और ऐतिहासिक किला मध्य भारत के गौंड शासकों का निवास स्थान था, जो प्रत्येक वर्ष कुछ समय वहां बिताते थे। वर्तमान में सिंगौरगढ़ का किला जर्जर हालत में है। जिसका कारण किले का रखरखाव नहीं होना है। किले तक पहुंचने के लिए पैदल पगडंडी मार्ग है क्योंकि सिंगौरगढ़ किले तक पहुंचने के लिए कोई उचित सड़क नहीं है।
सिंगौरगढ़ किले का इतिहास – सिंगौरगढ़ का इतिहास
सिंगौरगढ़गौंड वंशी नरेशों का शक्तिशाली केन्द्र था।जब दिल्ली में तुर्कों और मुगलों का शासन सुदृढ़ हो रहा था, उस समय बुन्देलखण्ड के दक्षिण पूर्वी भाग में गौंड वंशी नरेशों का राज्य था। इस वंश के अनेक नरेश हुये। गढ़ा मंगला किले में गौंड वंशीय नरेशों की एक वंशावली उपलब्ध हुई। यह वंशावली यहाँ के मोती महल के अभिलेख में है। इस वंश का सबसे शक्तिशाली नरेश संग्रामशाह था। जो अत्यन्त क्रूर और दुष्ट स्वाभाव का था। उसने अपने पिता की भी हत्या कर थी, तथा इसने बाहुबल से 52 गढ़ो पर विजय प्राप्त की थी। वह इस वंश का शक्तिशाली शासक बन गया था। दमोह जिले मे स्थित सिंगौरगढ़ इसी के अधिकार में था। संग्राम शाह का देहान्त विक्रमी संवत् 1587 तदानुसार सन् 1598 में हुआ था।
पिता की मृत्यु के पश्चात संग्राम शाह का पुत्र दलपतिशाह राज्य का उत्तराधिकारी बना उसने अपना निवास स्थल जबलपुर में गुढ़ा दुर्ग बनाया। किन्तु कुछ समय बाद दलपतिशाह दमोह जिले के सिंगौरगढ़ में रहने लगा। उसने सिंगौरगढ़ का किला को मजबूत किया और उसका विस्तार किया।
सिंगौरगढ़ का किला
दलपतिशाह का विवाह कालिंजर की राजकुमारी राजाकीर्ति सिंह की पुत्री रानी दुर्गावती से हुआ था। विवाह के कुछ दिनो के पश्चात रानी दुर्गावती विधवा हो गयी इस समय उसका पुत्र वीर नरायण 3 वर्ष का था। मुगल सम्राट अकबर ने अपने सेनापति ख्वाजा अब्दुलमजी कुल्फ आसफ खाँ को गौंडवाने में आक्रमण करने के लिये भेजा रानी दुर्गावती का यह संग्राम सिंगौरगढ़ से चार मील दूर संग्रामपुर में होता रहा। इस युद्ध में पहले आसफ खाँ हारा किन्तु आसफ खाँ की सहायता के लिए मुगल सेना के आ जाने के कारण रानी दुर्गावती पराजित हुई और वीरगति को प्राप्त हुई। रानी दुर्गावती की मृत्यु के पश्चात यह दुर्ग मुगलो के आधीन हो गया और मुगलो ने इस दुर्ग को मनमानी ढ़ग से लूटा।
इस दुर्ग में निम्नलिखित दर्शनीय है-
- दुर्ग का परिकोटा
- दुर्ग का प्रवेश द्वार
- मुगलो और गौडो के युद्ध स्मारक
- संग्रामशाह और दलपतिशाह के आवासीय महल 5. जलाशय
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