सारनाथ का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ सारनाथ इन हिन्दी Naeem Ahmad, September 5, 2019March 1, 2023 उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) से उत्तर की ओर सारनाथ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। काशी से सारनाथ की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। सारनाथ का इतिहास और Sarnath का महत्व बौद्ध ग्रंथों के अनुसार यहां भगवान बुद्ध ने बौद्ध गया (बिहार) मे ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला अज्ञात कौन्डिन्य आदि पूर्व परिचित पांचों साथियों को दिया था। Contents1 सारनाथ का अर्थ (Meaning of Sarnath)1.1 सारनाथ का अर्थ (Meaning of Sarnath)1.1.1 हिस्ट्री ऑफ सारनाथ (Sarnath history in hindi)1.1.2 चौखंडी स्तूप2 3 उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें सारनाथ का अर्थ (Meaning of Sarnath) सारनाथ का ओल्ड नाम ( Sarnath का प्राचीन नाम) ऋषि पतन तथा मृगदाव था। ऋषि पतन का अर्थ फाह्यान (चीनी यात्री) ने ऋषि का पतन बतलाया है, जिसका आशय है कि वह स्थान जहाँ किसी बुद्ध ने गौतमबुद्ध की भावी संबोधि को जानकर निर्वाण प्राप्त किया था। दूसरे नाम मृगदाव के पडने का कारण निग्रोध-मृग जातक में इस प्रकार दिया गया है कि-…..किसी पूर्व जन्म में गौतमबुद्ध तथा उनके भाई देवदत्त sarnath के जंगलों में मृगो के कुल में जन्मे थे। और मृग समुदाय के राजा थे। उस समय काशी नरेश इस वन में मृगो का नियमित रूप से शिकार किया करते थे। राजा के इस नृशंस कार्य से द्रवित हो मृगो के राजा बोधिसत्व ने उनसे प्रार्थना की कि वे मृग हत्या बंद कर दे, और प्रतिदिन एक हिरण क्रम से उनके पास पहुंच जाया करेगा। राजा ने उनकी प्रार्थना मान ली और यह क्रम निर्बाध चलता रहा। संयोग से एक दिन देवदत्त के समूह की एक गर्भवती हिरणी की बारी आयी, उसने बोधिसत्व से अपने गर्भ की रक्षा करने की प्रार्थना की, मृगराज बोधिसत्व उसकी प्रार्थना से अत्यंत द्रवित हुए, और उसके स्थान पर स्वयं काशी नरेश के पास चले गये। और वास्तविक स्थिति बताकर अपने आप को वध के लिए प्रस्तुत किया।काशी नरेश उनकी इस दयालुता से इतने प्रभावित हुए उन्होंने यह कहकर कि:- मनुष्य के रूप में होते हुए भी वास्तव में “मैं मृग हूँ” और आप “मृग के रूप में होते हुए भी मनुष्य है” उन्होंने उसी समय से उस वन में मृग हत्या करना सदैव के लिए बंद कर दिया। और वन को मृगो के लिए उनकी इच्छा अनुसार विचरण के लिए छोड़ दिया। इसलिए इस स्थल का नाम “मृगदाव” अर्थात मृगो का स्थान पड़ा। जनरल कर्निघम के अनुसार सारनाथ के आधुनिक नाम “Sarnath” की उत्पत्ति “मृगो के नाथ” अर्थात गौतमबुद्ध शबद से हुई है। Sarnath के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य सारनाथ का अर्थ (Meaning of Sarnath) सारनाथ का ओल्ड नाम ( Sarnath का प्राचीन नाम) ऋषि पतन तथा मृगदाव था। ऋषि पतन का अर्थ फाह्यान (चीनी यात्री) ने ऋषि का पतन बतलाया है, जिसका आशय है कि वह स्थान जहाँ किसी बुद्ध ने गौतमबुद्ध की भावी संबोधि को जानकर निर्वाण प्राप्त किया था। दूसरे नाम मृगदाव के पडने का कारण निग्रोध-मृग जातक में इस प्रकार दिया गया है कि-…..किसी पूर्व जन्म में गौतमबुद्ध तथा उनके भाई देवदत्त sarnath के जंगलों में मृगो के कुल में जन्मे थे। और मृग समुदाय के राजा थे। उस समय काशी नरेश इस वन में मृगो का नियमित रूप से शिकार किया करते थे। राजा के इस नृशंस कार्य से द्रवित हो मृगो के राजा बोधिसत्व ने उनसे प्रार्थना की कि वे मृग हत्या बंद कर दे, और प्रतिदिन एक हिरण क्रम से उनके पास पहुंच जाया करेगा।राजा ने उनकी प्रार्थना मान ली और यह क्रम निर्बाध चलता रहा। संयोग से एक दिन देवदत्त के समूह की एक गर्भवती हिरणी की बारी आयी, उसने बोधिसत्व से अपने गर्भ की रक्षा करने की प्रार्थना की, मृगराज बोधिसत्व उसकी प्रार्थना से अत्यंत द्रवित हुए, और उसके स्थान पर स्वयं काशी नरेश के पास चले गये। और वास्तविक स्थिति बताकर अपने आप को वध के लिए प्रस्तुत किया।काशी नरेश उनकी इस दयालुता से इतने प्रभावित हुए उन्होंने यह कहकर कि:- मनुष्य के रूप में होते हुए भी वास्तव में “मैं मृग हूँ” और आप “मृग के रूप में होते हुए भी मनुष्य है” उन्होंने उसी समय से उस वन में मृग हत्या करना सदैव के लिए बंद कर दिया। और वन को मृगो के लिए उनकी इच्छा अनुसार विचरण के लिए छोड़ दिया। इसलिए इस स्थल का नाम “मृगदाव” अर्थात मृगो का स्थान पड़ा। जनरल कर्निघम के अनुसार सारनाथ के आधुनिक नाम “Sarnath” की उत्पत्ति “मृगो के नाथ” अर्थात गौतमबुद्ध शबद से हुई है। हिस्ट्री ऑफ सारनाथ (Sarnath history in hindi) Sarnath history की शुरुआत गौतमबुद्ध जी के यहां पर दिये गये अपने प्रथम उपदेश के समय से प्रारम्भ होती है। परंतु इस समय से लगभग 300 वर्ष बाद तक की history का न कोई पता है, और न ही उस समय के कोई स्मारक सारनाथ खुदाई स्थल पर ही मिले है। संम्भवतः इस काल में थोडे बहुत भिक्षु जो यहाँ रहते थे, वे पर्णकुटियों से ही काम चलाते थे। सारनाथ मे सबसे प्राचीन स्मारक जो अब तक की खुदाई में प्राप्त हुए है। वे मौर्यवंशी सम्राट अशोक के समय के है। जिनमें से चार प्रमुख है:– 1. सारनाथ का अशोक स्तंभ जो मुख्य सारनाथ मंदिर के पश्चिम की ओर अपने मूल स्थान पर आज भी स्थित है। 2. धर्मराजिका स्तूप सारनाथ, जो पिलर ऑफ अशोक के दक्षिण की ओर स्थित है। और अब नीवं ही भर बच रही है। 3. एक ही पत्थर में काट कर बनाई गई वेदिका जो मुख्य मंदिर के दक्षिणी भाग में रखी हुई है। 4. एक गोलकार मंदिर जिसकी अब भी केवल नीवं ही बाकी है। Sarnath के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य सम्राट अशोक के बाद उसके उत्तराधिकारी इतने शक्तिशाली न रहे। अतः बौद्ध धर्म धीरे धीरे लुप्त होने लगा था। इसी समय शुंगों का आधिपत्य हुआ जो वैदिक धर्म को मानने वाले थे। हालांकि शंगु राजाओं से संबंधित कोई स्मारक यहां से नहीं मिला है। परंतु श्री हार्गीब्स को सन् 1914-15 की खुदाई में इस युग की बहुत सी पुरातात्विक साम्रगियां प्राप्त हुई थी, जो उस काल के Sarnath की उन्नति की ओर संकेत करती है। ईसवीं सन् की प्रथम शताब्दी में Sarnath कुषाण नरेश कनिष्क के आधिपत्य मे आया। यह कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा था, और बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी था। विद्वानों का मत है कि कनिष्क के ही समय में सर्वप्रथम बुद्ध मुर्तियां बननी आरंभ हुई थी। बुद्ध चरित्र तथा सौन्दरानंद नामक काव्यों के रचियता अश्वघोष तथा महायान शाखा के प्रवर्तक वसुमित्र इसके समकालीन थे। अतः इनके युग में बौद्ध धर्म की उन्नति स्वभाविक थी।किन्तु Sarnath ki history में सब से गौरव पूर्ण युग गुप्तकाल में आया। भारतीय इतिहास के इस स्वर्णयुग में कला, शिल्प व्यवसाय, वाणिज्य, उद्योग, धर्म, साहित्य, विज्ञान आदि सभी दिशाओं में अत्यधिक उन्नति हुई, जिसकी पूरी छाप sarnath की कला पर पड़ी। इतना ही नहीं इस युग में Sarnath North India में एक प्रकार से कला का सर्वप्रधान केन्द्र था। परंतु सभ्यता के इस उत्कृष्ट युग में तोरमाण और मिहिरकुल के संचालन में हूणों ने इस देश पर आक्रमण किये और North India के शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य को छिन्न भिन्न कर डाला। बौद्ध धर्म के शत्रु होने के कारण Sarnath भी इनके आक्रमणों से न बच सका। इसका प्रमाण गुप्तकाल की उन मूर्तियों से मिलता है। जो खुदाई में बुरी तरह से ठूंसी तथा जली हुई अवस्था में प्राप्त हुई थी। सौभाग्य से आक्रमण की यह भयंकर घटा अधिक स्थायी न रही और 530 ईसा मे बालादित्य एवं यशोवर्मन जैसे प्रतापी नरेशों के नेतृत्व मे भारतीय राजाओं ने मिहिरकुल को परास्त कर Indian Border के बाहर भगा दिया।इसके कुछ ही काल बाद मौखरी और वर्धनों का राज हुआ और वे North India मे शक्तिशाली हुए। हालांकि इस काल का भी को प्रमाणिक लेख प्राप्त नहीं हो सका है। किंतु अन्य स्मारकों द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है, कि एक बार फिर से Sarnath ने अपनी गरिमा प्राप्त कर ली थी। इस बात की पुष्टि प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेनसांग के यात्रा लेखो से भी सिद्ध होती है। हवेनसांग ने अपने लेख में Sarnath को Kannoj के राजा के अधीन एवं बहुत सम्पन्न स्थिति में बताया है। यह राजा निश्चित ही महाराज हर्षवर्धन था।हर्षवर्धन के बाद लगभग एक शताब्दी तक एक बार फिर Sarnath ka itihas अन्धकार मे डूब जाता हैं। जिसका कारण यह माना जाता हैं कि यह युग राजनितिक असंतोष का था। 9वी शताब्दी के मध्य में कन्नौज के सिंहासन पर प्रतिहार वंश के प्रमुख नरेश आदिवराह, मिहिरभोज लगभग 50 वर्ष तक आसीन रहे। और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी जो महमूद गजनवी के आक्रमण के समय तक सत्तारूढ़ रहें। लेकिन इतने Long time तक शासन शक्ति होते हुए भी प्रतिहारों द्वारा स्थापित कोई स्मारक सारनाथ आर्किलॉजिकल साइट से अब तक प्राप्त नहीं हो सका है। हां इतना जरूर है पालवंशी नरेशों के समय की कई मूर्ति खुदाई में उपलब्ध हुई है। इनम सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण 1083 ईसवीं की एख बुद्ध मूर्ति की लेखनुमा चरण चौकी है। जिससे ज्ञात होता हैं कि महिपाल के शासनकाल 992-1040 ईसवीं में स्थिरपाल और बसंतपाल नाम के दो भाईयों ने धर्मराजिका स्तूप का जीर्णोद्धार कराया था और बुद्ध की यह मूर्ति बनवाई थी। इसी से यह सिद्ध होता है कि 1026 ईसवीं मे Sarnath पाल नरेशों की राज्य सीमा मे था।संम्भवतः मध्य प्रदेश पर सम्राज्य स्थापित करने के लिए महिपाल नरेश को गंगेरदेव कलचुरी 1030-1041 ईसवीं के साथ एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा था। जिसमें विजय गंगेरदेव के पक्ष मे रही, इसकी पुष्टि गंगेरदेव के पुत्र कर्णदेव 1041-1070 ईसवीं के समय के एक शिलालेख से होती है। जिसमें Sarnath को 11वी शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य का एक अंग कहा गया है। अधिकार परिवर्तन के इस काल में सारनाथ पर अंतिम शासन कन्नौज के गहड़वालों का रहा। खुदाई में मिले एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि गोविंद चंद 1114-1154 ईसवीं की रानी कुमार देवी ने सद्दर्मचक्रजिन विहार नामक एक विशाल संघाराम की रचना करवाई थी। जो South India के मंदिरों के अनुरूप थी। गोविंद चंद के पौत्र जयचंद्र, मुहम्मद बिन साम द्वारा 1193 ईसवीं में पराजित हुए थे, और उसी समय उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने काशी पर आक्रमण करके वहां के अनेक मंदिरों को नष्ट कर दिया था। संम्भवतः उसी ने सारनाथ के मंदिर और विहारों को भी नष्ट किया होगा। खुदाई मे प्राप्त खंडहरों की स्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि Sarnath के वैभव की की यह दुर्दशा ध्वंसकारी आक्रमणों के कारण ही हुई थी। जिसके कारण वहां का गौरव अंधकार में विलीन हो गया था। और किसी को पता नहीं था कि सारनाथ कहां स्थित है?। Sarnath के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य सारनाथ की खोज किसने की और सारनाथ के बारें में कैसे पता चला, अबाउट ऑफ सारनाथ सारनाथ का वर्तमान ऐतिहासिक परिचय केवल संयोग मात्र है। सन् 1794 ईसवीं में काशी नरेश चेत सिंह के दीवान जगत सिंह ने काशी में जगतगंज नामक मौहल्ला बनवाने के लिए मजदूरों को अशोक स्तूप को खोदकर ईंट पवं पत्थर लाने के लिए भेजा। उस समय खुदाई में प्राप्त अवशेषों ने पुरातात्विक विशेषज्ञों का ध्यान उस ओर आकर्षित किया और व्यस्थित रूप से खुदाई का कार्य सर्वप्रथम जनरल कर्निघम ने 1836 ईसवीं कराया। जनरल कर्निघम ने अपने व्यक्तिगत खर्च से धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप तथा एक मध्यकालीन विहार के कुछ भागों को खोदकर निकाला। क्योंकि इससे पहले किसी को पता नहीं था कि धमेक स्तूप कहा है या चौखंडी स्तूप कहा है? इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ मूर्तियां भी यहां से मिली, जो अब कोलकाता के संग्रहालय मे है। इसके बाद मेजर किटों के परिश्रम से एक तथा एक विहार और प्रकाश में आये। 1901 ईसवीं में पुरातत्व विभाग के स्थापित हो जाने पर Sarnath में ओर भी व्यापक ढंग से खुदाई हुई। जिसके फलस्वरूप सात विहारों तीन बडे स्तूपों एक मुख्य मंदिर और अशोक स्तंभ के अवशेष प्राप्त हुए। सारनाथ पर्यटन स्थल, सारनाथ आकर्षक स्थल, सारनाथ भारत आकर्षक स्थल, सारनाथ धाम की यात्रा, सारनाथ इन हिन्दी, सारनाथ टूरिस्ट प्लेस, सारनाथ में घुमने वाली जगहSarnath tourist place information in hindi, top attraction visit in sarnath varanasi, why is a sarnath famous tourist spot, top place visit in sarnath चौखंडी स्तूप Sarnath के मुख्य क्षेत्र से लगभग आधा मील पहले सड़क की बायीं ओर ईटों का एक विशाल ढूह देखने को मिलता है। जिसे चौखंडी के नाम से जाना जाता हैं। वास्तव में यह एक प्राचीन स्तूप का अवशेष है। इस चौखंडी स्तूप के बारें में कहा जाता है कि इसी स्थान भगवान बुद्ध की अपने प्रथम पांच शिष्यों से भेंट हुई थी। जब वे Sarnath में अपना प्रथम उपदेश सुनाने आये थे। उसी घटना की स्मृति में इस स्थान पर एक स्तूप बनवाया गया था। जिसके ध्वस्त अवशेष आज चौखंडी स्तूप के नाम से विश्वविख्यात है। सन् 1836 में जनरल कर्निघम ने इस स्तूप के मध्य में कुएँ जैसी एक सुरंग खोदी थी। परंतु उन्हें कोई भी मूल्यवान साम्रगी प्राप्त न हो सकी। परंतु 1905 ईसवीं में श्री ओरटेल के यहां खुदाई कराने पर इस स्तूप की अठकोनी चौकी एवं ऊंचे चबुतरे मिले थे। चौखंडी स्तूप के खंडहर पर जो अठपहलू शिखर है। उसे सन् 1588 मे सम्राट अकबर ने अपने पिता हुमायूं की सारनाथ यात्रा की स्मृति में बनवाया था। और जिसका उल्लेख उत्तरी द्वार पर लगे हुए प्रस्तर पर उत्तकीर्ण लेख में किया गया है।विहार संख्या 6मुख्य सडक़ से आधा मील उत्तर की दिशा की ओर चलने पर Sarnath का मुख्य स्थल मिलता है। यहां दाहिनी ओर सडक़ के धरातल से नीचे एक बौद्ध विहार के भग्नावशेष है। जिसे 1851-52 ईसवीं में श्री किटों ने सर्वप्रथम खोदकर निकाला था। इस विहार की ऊपरी बनावट मध्य काल की है। हांलाकि उसके नीचे गुप्त और कृपाण काल के विहारो के भी भग्नावशेष दबे है। इस बात की पुष्टि यहां से प्राप्त मिट्टी की मुहरों एवं ईटों से होती है। जो उस समय की है। इन विहारों के ठीक मध्य मे सुंदर और मीठे पानी का एक प्राचीन कुआँ है। जिससे ज्ञात होता है यहां से पीने के पानी की जरुरत पुरी होती थी। आगंन के चारों ओर स्तंभों पर आधारित लम्बा बरामदा था, जिसके पीछे भिक्षुओं के रहने की कोठरियां बनी है। इस विहार का प्रवेशद्वार पूरब दिशा की ओर था। खंडहरों की दीवारों की मोटाई से विहार का दो या तीन मंजिला होना सिद्ध होता हैं। Sarnath के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य विहार संख्या 7 विहार संख्या 6 के पश्चिम दिशा की ओर लगभग उसी प्रकार का एक दूसरा विहार भी मिलता है। यह लगभग 8 वी शताब्दी का होगा। परंतु उसके नीचे भी इससे पूर्व कालीन विहारो के खंडहर दबे पड़े है।धर्मराजिका स्तूपविहार संख्या 7 से थोडी दूर उत्तर की ओर चलकर धर्मराजिका स्तूप सारनाथ के खंडहर है। सन 1794 ईसवीं मे काशी नरेश के दीवान जगतसिंह द्वारा यह स्तूप गिरा दिया गया था। और उसके गर्भ में से प्राप्त एक सेलखड़ी की पेटी में रखे हुए गौतमबुद्ध के शरीर चिन्हों को गंगा मे बहा दिया गया था। सन 1835 मे जनरल कर्निघम को इन स्तूपों मे से प्रस्तर की एक और मंजुपा मिली जिसमें उपरोक्त सेलखड़ी वाली पेटिका किसी समय रखी हुई थी। बहुत कुछ नष्ट भ्रष्ट हो जाने पर 1907-8 ईसवीं मे की गई खुदाई से सर जॉन मार्शल ने इस स्तूप के क्रमिक निर्माणों का पूरा पूरा पता लगाया। खुदाई से ज्ञात हुआ है कि मूल धर्मराजिका स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने ही करवाया था। उसके बाद इसका सर्वप्रथम जीर्णोद्धार कृपाण काल में हुआ था। धर्मराजिका स्तूप की दूसरी मरम्मत हूणों के आक्रमण के बाद 6 शताब्दी में की गई थी। और इसी दौरान इसके चारों ओर 16 फुट चौड़ा एक प्रशिक्षण पथ भी बढ़ा दिया गया था। संम्भवतः 7 वी शताब्दी मे स्तूप को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए इस प्रशिक्षण पथ को ईटों से भर दिया गया और चारों दिशाओं में पत्थर की सात डंडों वाली सीढियां स्तूप तक पहुंचने के लिए लगवा दी गई थी। तीसरी बार धर्मराजिका स्तूप का जीर्णोद्धार बंगाल नरेश महीपाल ने महमूद गजनवी के आक्रमण के लगभग दस साल बाद 1026 ईसवीं मे करवाया। इस स्तूप का अंतिम पुनद्वार लगभग 1114 ईसवीं में धर्म चक्र जिन विहार के निर्माण के समय का ज्ञात होता है। तब से 1764 ईसवीं तक यह अपनी जीर्णशीर्ण अवस्था में चलता रहा जब तक कि जगतसिंह को ईटों के लालच ने न दबाया।मूलगंध कुटी विहारधर्मराजिका स्तूप के सामने उत्तर दिशा में Sarnath के मध्य मे लगभग 22 फुट ऊंचे मुख्य मंदिर के चिन्ह दिखाई पडते है। हवेनसांग ने इसका उल्लेख मूलगंध कुटी विहार के नाम से अपने यात्रा लेख में किया है। और इसकी ऊंचाई 200 फुट बताई है। कला की दृष्टि से यह मंदिर गुप्तकाल का मालूम होता है। परंतु इसके चारों ओर निर्मित मध्यकालीन फर्शों एवं अनियमित रूप से लगे हुए सादे एवं उत्कीर्ण प्रस्तरों को देख कर कुछ विद्वान इसे 8वी शताब्दी का बना मानते है। मंदिर के गर्भगृह में किसी समय स्वर्ण आभायुक्त भगवान बुद्ध की काय-परिमाण प्रतिमा स्थापित थी। शायद यह उस समय का गोल्डन मंदिर सारनाथ हो। मंदिर में आने के लिए तीन ओर साधारण तथा पूर्व की ओर सिंह द्वार बने थे। कालांतर में मंदिर में कमजोरी आने के कारण प्रदक्षिणा पथ को ईटों से भरकर छत तक मिला दिया गया और इस प्रकार प्रवेश के लिए केवल सिंह द्वार ही शेष रह गया। अन्य तीनों द्वारों के भीतर से बंद हो जाने से दीवार से घिरे स्थानों को छोटे छोटे मंदिरों का स्वरूप दे दिया गया और उनमें मूर्तियां स्थापित कर दी गई। मंदिर के सामने एक विशाल खुला हुआ प्रांगण था। जिसमें उपासना के समय समस्त भिक्षु समुदाय एकत्रित होता था। कालांतर में इस प्रागंण के श्रद्धालुओं में बहुत से छोटे छोटे मंदिरों एवं स्तूपों का अपनी इच्छानुसार निर्माण कर लिया।नौपदार वेदिकामुख्य मंदिर के दक्षिण भाग वाली कोठरी मे साढे नौ फुट लम्बी चौडी एक वेदिका रखी है। श्री आरटेल ने मुख्य मंदिर की खुदाई में निकाला था।वेदिका एक ही पत्थर से काटकर बनाई गई है। और उस पर मौर्यकालीन चमकदार पालीश है। अनुमान किया जाता है कि यह वेदिका आरम्भ में धर्मराजिका स्तूप पर हर्मिका के रूप में थी। किन्तु कालांतर में किसी दुर्घटना के कारण नीचे गिर गई थी। वेदिका पर कुषाण कालीन ब्रह्मी लिपि और पाली भाषा में दो लेख खुदे है। जिससे ज्ञात होता है कि ईसवीं सन् की तीसरी शताब्दी मे यह वेदिका सर्वास्तिवादी समुदाय के आचार्यों द्वारा भेंट की गई थी। यह वेदिका मौर्यकाल की शिल्पकला का बहुत उत्कृष्ट उदाहरण है।अशोक स्तंभमुख्य मंदिर से पश्चिम की ओर सम्राट अशोक के प्रसिद्ध स्तंभ का निचला भाग देखने को मिलता है। इस समय इसकी ऊचाई 7फुट 9 इंच है। हालांकि इसी के पास रखे शेष खंडों से इसकी न्यूनतम ऊचाई 55 फुट ज्ञात होती है। खुदाई करने से पता चला है कि इस स्तंभ की स्थापना एक भारी पत्थर की चौकी पर की गई थी। चुनार प्रस्तर का अत्यंत औपदार यह स्तंभ अपनी निराली पालिश के कारण कभी कभी ग्रेनाइट का होने का भ्रम पैदा कर देता है। स्तंभ के पिछले भाग में तत्कालीन पाली भाषा और ब्रह्मालिपि में अशोक का प्रसिद्ध लेख उत्तकीर्ण है। अशोक के लेख के अतिरिक्त इस स्तंभ पर दो और लेख उत्तकीर्ण है। इनमें से एक अश्वघोप नाम के किसी राजा के शासन काल का है, और दूसरा जो लिखावट में चौथी शताब्दी का जान पडता है, वात्सुपुत्रीक संम्प्रदाय की सम्मीतीय शाखा के आचार्यों द्वारा उत्तकीर्ण है। Sarnath के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य धर्मचक्र जिन विहारमुख्य मंदिर से उतर की ओर थोडा ऊपर चलकर एक विशाल बौद्ध विहार के अवशेष देखने को मिलते है। इस विहार को गढ़वाल नरेश गोविंद देव चंद की रानी कुमार देवी ने बनवाया था। कुमार देवी धर्म से बौद्ध थी और दक्षिण भारत की रहने वाली थी। अतः उन्होंने इस विहार की रचना दक्षिण शैली के अनुसार गोपुरम आदि से अलंकृत करके करवाई थी। विहार का मुख्य द्वार भी पूर्व की और था। इसके पश्चिम मे 100 गज लंम्बी एक सुरंग है। जिसके अंत मे एक छोटा सा मंदिर है। संम्भवतः यह मंदिर कुमार देवी का अपना नीजी मंदिर था। जिसमे वे पूजा करने के लिए गुप्त मार्ग से आया जाया करती थी। धर्म चक्र जिन विहार की खुदाई में एक शिलालेख प्राप्त हुआ था। जिससे इसके बनाने वाले का नाम और काल आदि का पूर्ण रूप से पता चलता है।संघाराम संख्या 2,3,4धर्मचक्र जिन विहार के क्षेत्र के नीचे तीन पूर्वकालीन अन्य विहारो के अवशेष दबे है। ये संघाराम कुषाण काल में निर्मित हुए थे। और इनका वर्तमान स्वरूप गुप्तकाल में दिया गया था। इससे सिद्ध होता है की ये संघाराम पहले पांचवीं शताब्दी में हुणों द्वारा नष्ट किये गए थे। और जीर्णोद्धार के बाद 11वी शताब्दी में दोबारा मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किये गए थे।धमेक स्तूपसंघाराम का क्षेत्र समाप्त होने पर थोडा आगे दक्षिण की ओर एक विशाल स्तूप है। जो धमेख स्तूप के नाम से विख्यात है। संम्भवतः धमेक शब्द की उतपत्ति धर्मचक्र से है। धमेक स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के समय मैं हुआ था। इसका प्रथम संवर्दन कुषाण काल मे किया गया था और इसको अपना वर्तमान रूप गुप्तकाल पांचवीं शताब्दी मे प्राप्त हुआ था। धमेख स्तूप की ऊंचाई 143 फुट तथा घेरा 93 फुट है। पूरा धमेक स्तूप ईंट व गारे से बना हुआ है। नीव से 37 फुट की ऊंचाई तक मोटे और भारी पत्थरों से जडा हुआ है। जो प्रत्येक तह पर लौह चापो से आबद्ध है। धरातल से लगभग 20 फुट की ऊचाई पर 8 फुट चौडी शिलापट्टो की एक पेटी है। जिस पर जिस पर नंद्यावर्त सदृश विविध आकृतियों की सजावट उत्तकीर्ण है। दक्षिण की ओर इन पुष्पांकित गोठो के बीच कमल पर आसीन एक स्थूल यक्ष की मूर्ति निर्मित है। और इसी के पास ऊपर की ओर एक कंचछप तथा हंसपुरम भी बने है। इसके अतिरिक्त स्तूप मे आठ ऊभार दार रूख भी है। जिनमे मूर्तियों के रखने के ताखे बने है। जिनमे से कुछ मे अब भी मूर्तियों की पीठिकाये रखी है।जैन मंदिरधमेक स्तूप के दक्षिण मे ऊची चार दीवारियो से घिरा एक जैन मंदिर है। जो जैनियों के 11 वे तीर्थंकर श्रेयांशनाथ जी के इसी स्थल पर संन्यास लेने एवं मृत्यु होने की पुण्य स्मृति में सन् 1824 ईसवीं में बनवाया गया था।सारनाथ महादेव का मंदिरयह मंदिर सारनाथ म्यूजियम से लगभग आधा मील पूर्व की ओर स्थित है। यह देखने मे किसी स्तूप के अवशेषों पर बना हुआ है। किवदंतियों के अनुसार इसकी स्थापना शंकराचार्य जी ने अपने दिग्विजय काल में की थी, जो भी हो पर इतना निश्चय है कि यह मंदिर प्राचीन है। जैसा कि इसके वास्तुकाल से विदित होता है। यहा प्रति वर्ष श्रावण के महिने मे मेला भी लगता है।सारनाथ संग्रहालयजैन मंदिर की सीढियों से नीचे सडक़ पर सामने सारनाथ का संग्रहालय भवन दिखाई पडता है। जिसका निर्माण 1910 मे सम्पन्न हुआ था। सारनाथ म्यूजियम चार कक्षों मे विभाजित है। जिसमें सारनाथ से खुदाई मे प्राप्त मूर्तियां आदि कालक्रम के अनुसार प्रदर्शित है। यह म्यूजियम सारनाथ के मुख्य स्थलों में से एक है। और इसमे देखने लायक अनेक वस्तुएं, प्रतिमाएं, शिलालेख, व अवशेष है।इसके अलावा भी सारनाथ में.घूमने वाले स्थानों वर्तमान में बने अनेक बौद्ध मठ बने है। जो विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करते है। जिनमें चीन, जापान आदि प्रमुख है। प्रिय पाठकों सारनाथ के इतिहास और सारनाथ के दर्शनीय स्थलों पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। प्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थल है जिसके बारे में आप पर्यटकों को बताना चाहते है तो आप अपना लेख कम से कम 300 शब्दों में हमारे Submit a post संस्करण में लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान सहित अपने इस प्लेटफार्म पर शामिल करेगें। उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें राधा कुंड यहाँ मिलती है संतान सुख प्राप्ति – radha kund mthura राधा कुंड :- उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर को कौन नहीं जानता में समझता हुं की इसका परिचय कराने की शाकुम्भरी देवी सहारनपुर – शाकुम्भरी देवी का इतिहास – शाकुम्भरी माता मंदिर प्रिय पाठको पिछली पोस्टो मे हमने भारत के अनेक धार्मिक स्थलो मंदिरो के बारे में विस्तार से जाना और उनकी लखनऊ के दर्शनीय स्थल – लखनऊ पर्यटन स्थल – लखनऊ टूरिस्ट प्लेस इन हिन्दी गोमती नदी के किनारे बसा तथा भारत के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ दुनिया भर में अपनी इलाहाबाद का इतिहास – गंगा यमुना सरस्वती संगम – इलाहाबाद का महा कुम्भ मेला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर है। यह प्राचीन शहर गंगा यमुना सरस्वती नदियो के संगम के लिए जाना जाता है। वाराणसी (काशी विश्वनाथ) की यात्रा – काशी का धार्मिक महत्व प्रिय पाठको अपनी उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान हमने अपनी पिछली पोस्ट में उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख व धार्मिक ताजमहल का इतिहास – आगरा का इतिहास – ताजमहल के 10 रहस्य प्रिय पाठको अपनी इस पोस्ट में हम भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के एक ऐसे शहर की यात्रा करेगें जिसको मेरठ के दर्शनीय स्थल – मेरठ में घुमने लायक जगह मेरठ उत्तर प्रदेश एक प्रमुख महानगर है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोरखपुर पर्यटन स्थल – गोरखपुर के टॉप 10 दर्शनीय स्थल उत्तर प्रदेश न केवल सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है बल्कि देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य भी है। भारत बरेली के दर्शनीय स्थल – बरेली के टॉप 5 पर्यटन स्थल बरेली उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला और शहर है। रूहेलखंड क्षेत्र में स्थित यह शहर उत्तर कानपुर के दर्शनीय स्थल – कानपुर के टॉप 10 पर्यटन स्थल कानपुर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और यह भारत के सबसे बड़े औद्योगिक शहरों में से झांसी टूरिस्ट प्लेस – टॉप 5 टूरिस्ट प्लेस इन झाँसी भारत का एक ऐतिहासिक शहर, झांसी भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों में से एक माना जाता है। यह अयोध्या का इतिहास – अयोध्या के दर्शनीय स्थल और महत्व अयोध्या भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। कुछ सालो से यह शहर भारत के सबसे चर्चित मथुरा दर्शनीय स्थल – मथुरा दर्शन की रोचक जानकारी मथुरा को मंदिरो की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक चित्रकूट धाम की महिमा मंदिर दर्शन और चित्रकूट दर्शनीय स्थल चित्रकूट धाम वह स्थान है। जहां वनवास के समय श्रीराजी ने निवास किया था। इसलिए चित्रकूट महिमा अपरंपार है। यह प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर किंगडम मुरादाबाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद महानगर जिसे पीतलनगरी के नाम से भी जाना जाता है। अपने प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर कुशीनगर के दर्शनीय स्थल – कुशीनगर के टॉप 7 पर्यटन स्थल कुशीनगर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर है। कुशीनगर को पौराणिक भगवान राजा राम के पुत्र कुशा ने बसाया पीलीभीत के दर्शनीय स्थल – पीलीभीत के टॉप 6 पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों में से एक पीलीभीत है। नेपाल की सीमाओं पर स्थित है। यह सीतापुर के दर्शनीय स्थल – सीतापुर के टॉप 5 पर्यटन स्थल व तीर्थ स्थल सीतापुर - सीता की भूमि और रहस्य, इतिहास, संस्कृति, धर्म, पौराणिक कथाओं,और सूफियों से पूर्ण, एक शहर है। हालांकि वास्तव अलीगढ़ के दर्शनीय स्थल – अलीगढ़ के टॉप 6 पर्यटन स्थल,ऐतिहासिक इमारतें अलीगढ़ शहर उत्तर प्रदेश में एक ऐतिहासिक शहर है। जो अपने प्रसिद्ध ताले उद्योग के लिए जाना जाता है। यह उन्नाव के दर्शनीय स्थल – उन्नाव के टॉप 5 पर्यटन स्थल उन्नाव मूल रूप से एक समय व्यापक वन क्षेत्र का एक हिस्सा था। अब लगभग दो लाख आबादी वाला एक बिजनौर पर्यटन स्थल – बिजनौर के टॉप 10 दर्शनीय स्थल बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी मुजफ्फरनगर पर्यटन स्थल – मुजफ्फरनगर के टॉप 6 दर्शनीय स्थल उत्तर प्रदेश भारत में बडी आबादी वाला और तीसरा सबसे बड़ा आकारवार राज्य है। सभी प्रकार के पर्यटक स्थलों, चाहे अमरोहा का इतिहास – अमरोहा पर्यटन स्थल, ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल अमरोहा जिला (जिसे ज्योतिबा फुले नगर कहा जाता है) राज्य सरकार द्वारा 15 अप्रैल 1997 को अमरोहा में अपने मुख्यालय इटावा का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ इटावा जिला आकर्षक स्थल प्रकृति के भरपूर धन के बीच वनस्पतियों और जीवों के दिलचस्प अस्तित्व की खोज का एक शानदार विकल्प इटावा शहर एटा का इतिहास – एटा उत्तर प्रदेश के पर्यटन, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थल एटा उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, एटा में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें मंदिर और फतेहपुर सीकरी का इतिहास, दरगाह, किला, बुलंद दरवाजा, पर्यटन स्थल विश्व धरोहर स्थलों में से एक, फतेहपुर सीकरी भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक है। बुलंदशहर का इतिहास – बुलंदशहर के पर्यटन, ऐतिहासिक धार्मिक स्थल नोएडा से 65 किमी की दूरी पर, दिल्ली से 85 किमी, गुरूग्राम से 110 किमी, मेरठ से 68 किमी और नोएडा का इतिहास – नोएडा मे घूमने लायक जगह, पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश का शैक्षिक और सॉफ्टवेयर हब, नोएडा अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है। यह राष्ट्रीय गाजियाबाद का इतिहास – गाजियाबाद में घूमने लायक पर्यटन, दर्शनीय व ऐतिहासिक भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, गाजियाबाद एक औद्योगिक शहर है जो सड़कों और रेलवे द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा बागपत का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बागपत पर्यटन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल बागपत, एनसीआर क्षेत्र का एक शहर है और भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में एक नगरपालिका बोर्ड शामली का इतिहास – शामली हिस्ट्री इन हिन्दी – शामली दर्शनीय स्थल शामली एक शहर है, और भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में जिला नव निर्मित जिला मुख्यालय है। सितंबर 2011 में शामली सहारनपुर का इतिहास – सहारनपुर घूमने की जगह, पर्यटन, धार्मिक, ऐतिहासिक सहारनपुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, जो वर्तमान में अपनी लकडी पर शानदार नक्काशी की रामपुर का इतिहास – नवाबों का शहर रामपुर के आकर्षक स्थल ऐतिहासिक और शैक्षिक मूल्य से समृद्ध शहर रामपुर, दुनिया भर के आगंतुकों के लिए एक आशाजनक गंतव्य साबित होता है। मुरादाबाद का इतिहास – मुरादाबाद के दर्शनीय व आकर्षक स्थल मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के पश्चिमी भाग की ओर स्थित एक शहर है। पीतल के बर्तनों के उद्योग संभल का इतिहास – सम्भल के पर्यटन, आकर्षक, दर्शनीय व ऐतिहासिक स्थल संभल जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। यह 28 सितंबर 2011 को राज्य के तीन नए बदायूं का इतिहास – बदायूंं आकर्षक, ऐतिहासिक, पर्यटन व धार्मिक स्थल बदायूंं भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और जिला है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में लखीमपुर खीरी का इतिहास – लखीमपुर खीरी जिला आकर्षक स्थल लखीमपुर खीरी, लखनऊ मंडल में उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह भारत में नेपाल के साथ सीमा पर स्थित शाहजहांपुर का इतिहास – शाहजहांपुर दर्शनीय, ऐतिहासिक, पर्यटन व धार्मिक स्थल भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, शाहजहांंपुर राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खान जैसे बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मस्थली रायबरेली का इतिहास – रायबरेली पर्यटन, आकर्षक, दर्शनीय व धार्मिक स्थल रायबरेली जिला उत्तर प्रदेश प्रांत के लखनऊ मंडल में स्थित है। यह उत्तरी अक्षांश में 25 ° 49 'से 26 वृन्दावन धाम – वृन्दावन के दर्शनीय स्थल, मंदिर व रहस्य दिल्ली से दक्षिण की ओर मथुरा रोड पर 134 किमी पर छटीकरा नाम का गांव है। छटीकरा मोड़ से बाई नंदगाँव मथुरा – नंदगांव की लट्ठमार होली व दर्शनीय स्थल नंदगाँव बरसाना के उत्तर में लगभग 8.5 किमी पर स्थित है। नंदगाँव मथुरा के उत्तर पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर बरसाना मथुरा – हिस्ट्री ऑफ बरसाना – बरसाना के दर्शनीय स्थल मथुरा से लगभग 50 किमी की दूरी पर, वृन्दावन से लगभग 43 किमी की दूरी पर, नंदगाँव से लगभग 9 सोनभद्र आकर्षक स्थल – हिस्ट्री ऑफ सोनभद्र – सोनभद्र ऐतिहासिक स्थल सोनभद्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। सोंनभद्र भारत का एकमात्र ऐसा जिला है, जो मिर्जापुर जिले का इतिहास – मिर्जापुर के टॉप 8 पर्यटन, ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल मिर्जापुर जिला उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। यह जिला उत्तर में संत आजमगढ़ हिस्ट्री इन हिन्दी – आजमगढ़ के टॉप दर्शनीय स्थल आजमगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है। यह आज़मगढ़ मंडल का मुख्यालय है, जिसमें बलिया, मऊ और आज़मगढ़ बलरामपुर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बलरामपुर – बलरामपुर पर्यटन स्थल बलरामपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बलरामपुर जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह राप्ती नदी ललितपुर का इतिहास – ललितपुर के टॉप 5 पर्यटन स्थल ललितपुर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में एक जिला मुख्यालय है। और यह उत्तर प्रदेश की झांसी डिवीजन के अंतर्गत बलिया का इतिहास – बलिया के टॉप 10 दर्शनीय स्थल बलिया शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक खूबसूरत शहर और जिला है। और यह बलिया जिले का श्रावस्ती का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती – श्रावस्ती दर्शनीय स्थल बौद्ध धर्म के आठ महातीर्थो में श्रावस्ती भी एक प्रसिद्ध तीर्थ है। जो बौद्ध साहित्य में सावत्थी के नाम से कौशांबी का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ कौशांबी बौद्ध तीर्थ स्थल कौशांबी की गणना प्राचीन भारत के वैभवशाली नगरों मे की जाती थी। महात्मा बुद्ध जी के समय वत्सराज उदयन की संकिसा का प्राचीन इतिहास – संकिसा बौद्ध तीर्थ स्थल बौद्ध अष्ट महास्थानों में संकिसा महायान शाखा के बौद्धों का प्रधान तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव – बड़ा गांव जैन मंदिर खेडका का इतिहास त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क शौरीपुर बटेश्वर श्री दिगंबर जैन मंदिर – शौरीपुर का इतिहास शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर की जानकारी इन हिन्दी आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म कम्पिल का इतिहास – कंपिल का मंदिर – कम्पिल फेयर इन उत्तर प्रदेश कम्पिला या कम्पिल उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है। यह उत्तर रेलवे की अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहास अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित है। आंवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सडक मार्ग द्वारा 18 देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी में देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण पश्चिम में 31 किलोमीटर लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेगबहादुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – लखनऊ का गुरुद्वारा इतिहास उत्तर प्रदेश की की राजधानी लखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ नाका गुरुद्वारा – गुरुद्वारा सिंह सभा नाका हिण्डोला लखनऊ हिस्ट्री इन हिन्दी नाका गुरुद्वारा, यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में स्थित है। नाका गुरुद्वारा साहिब के बारे में कहा जाता है गुरु का ताल आगरा -आगरा गुरुद्वारा गुरु का ताल हिस्ट्री इन हिन्दी आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग बनारस का इतिहास – वाराणसी गुरुद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील टीले वाली मस्जिद यह है लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिद लक्ष्मण टीले वाली मस्जिद लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है। बड़े इमामबाड़े के सामने मौजूद ऊंचा टीला लक्ष्मण परीखाना लखनऊ के रंगीन मिजाज नवाब की ऐशगाह लखनऊ का कैसरबाग अपनी तमाम खूबियों और बेमिसाल खूबसूरती के लिए बड़ा मशहूर रहा है। अब न तो वह खूबियां रहीं मच्छी भवन लखनऊ का अभेद्य किला और 1857 गदर का गवाह लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास फिरंगी महल लखनऊ – फिरंगी महल क्या है? गोल दरवाजे और अकबरी दरवाजे के लगभग मध्य में फिरंगी महल की मशहूर इमारतें थीं। इनका इतिहास तकरीबन चार सौ सतखंडा पैलेस लखनऊ के नवाब की अधूरी ख्वाहिश सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842 पिक्चर गैलरी लखनऊ का निर्माण किसने करवाया था? सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका छतर मंजिल क्या है – छतर मंजिल को किसने बनवाया? अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख मोती महल लखनऊ – नवाबों के शहर का एम्फीथिएटर मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच 'मोती महल' का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने खुर्शीद मंजिल लखनऊ का इतिहास या ला मार्टीनियर कालेज खुर्शीद मंजिल:- किसी शहर के ऐतिहासिक स्मारक उसके पिछले शासकों और उनके पसंदीदा स्थापत्य पैटर्न के बारे में बहुत कुछ बीबीयापुर कोठी कहा है, बीबीयापुर कोठी का निर्माण किसने करवाया बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस रेजीडेंसी इन लखनऊ रेजीडेंसी हिस्ट्री इन हिन्दी नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत बड़ा इमामबाड़ा कहां स्थित है – बड़ा इमामबाड़ा किसने बनवाया था? ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक किसी शहर के समृद्ध अतीत की कल्पना विकसित करते हैं। लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा उन शानदार स्मारकों शाह नज़फ इमामबाड़ा लखनऊ हिस्ट्री इन हिन्दी शाही नवाबों की भूमि लखनऊ अपने मनोरम अवधी व्यंजनों, तहज़ीब (परिष्कृत संस्कृति), जरदोज़ी (कढ़ाई), तारीख (प्राचीन प्राचीन अतीत), और चेहल-पहल छोटा इमामबाड़ा कहां है – छोटा इमामबाड़ा किसने बनवाया था? लखनऊ पिछले वर्षों में मान्यता से परे बदल गया है लेकिन जो नहीं बदला है वह शहर की समृद्ध स्थापत्य रामकृष्ण मठ लखनऊ – रामकृष्ण मठ की स्थापना कब हुई लखनऊ शहर के निरालानगर में राम कृष्ण मठ, श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। लखनऊ में चंद्रिका देवी मंदिर लखनऊ – चंद्रिका देवी मंदिर का इतिहास चंद्रिका देवी मंदिर-- लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है और यह शहर अपनी धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के रूमी दरवाजा का इतिहास – रूमी दरवाजा किसने बनवाया था? 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के बाद लखनऊ का दौरा करने वाले द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर श्री भूल भुलैया का रहस्य – भूल भुलैया का निर्माण किसने करवाया इस बात की प्रबल संभावना है कि जिसने एक बार भी लखनऊ की यात्रा नहीं की है, उसने शहर के मकबरा सआदत अली खां लखनऊ – नवाब सआदत अली खां की कब्र उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही मनोरम और प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक मांग वाला पर्यटन स्थल, गोमती नदी सफेद बारादरी लखनऊ शोक से खुशियों तक का सफर लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर लाल बारादरी लखनऊ – लाल बारादरी का इतिहास इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का जनेश्वर मिश्र पार्क लखनऊ – कुछ पल शुद्ध वातावरण में लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस लखनऊ चिड़ियाघर शहर के बीच प्राणी उद्यान एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य बिठूर आकर्षक स्थल जहां हुआ था लव और कुश का जन्म धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले शहर बिठूर की यात्रा के बिना आपकी लखनऊ की यात्रा पूरी नहीं होगी। बिठूर एक सुरम्य 1 2 Next » भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनबौद्ध तीर्थ