मालवा विजय के लिये मराठों को जो सब से पहला युद्ध करना पड़ा वह सारंगपुर का युद्ध था। यह युद्ध मालवा के तत्कालीन मुगल प्रतिनिधि राजा गिरधर के साथ हुआ था। यहाँ पर राजा गिरधर के विषय में दो शब्द लिख देना अनुचित न होगा। तत्कालीन मुगल सम्राट के दरबार में स्वपराक्रम से जिन थोड़े से हिन्दू मुसद्दियों ने प्रख्याति प्राप्त की थी उनमें से राजा गिरधर भी एक था। यहअलाहाबाद का निवासी था। इसने मुगल सम्राट की बड़ी बड़ी सेवाएँ की थीं। जब सम्राट ने यह देखा कि निज़ाम-उल मुल्क की लोभी दृष्टि मालवा पर गिरना चाहती है तब उन्होंने राजा गिरधर को मालवे का सूबेदार नियुक्त कर दिया।
सारंगपुर का युद्ध (1724) मराठों और मालवा की पहली लड़ाई
इस नियुक्ति में पहले पहल जयपुर के महाराज सवाई जयसिंहजी तथा जोधपुर कि महाराज अजीत सिंह जी का भी हाथ था। अव्र्हिन लिखता है कि “वास्तविक रूप से तो सम्राट ने मालवा और आगरा प्रान्त की व्यवस्था जयसिंह के ही सिपुर्द की थी पर आगरा प्रान्त जयपुर के पास होने से वहाँ की शासन-व्यवस्था तो स्वयं महाराज जयसिंह जी देखने लगे ओर मालवा की शासन- व्यवस्था के लिये उन्होंने राजा गिरधर को भिजवाया।
सारंगपुर का युद्धपरंतु राजा गिरधर जयसिंह जी की मंशा के खिलाफ आचरण करने लगा। जयसिंह जी को पहले पहल यह आशा थी कि गिरधर हिन्दू होने से हिन्दुओं पर अत्याचार न करेगा, पर उनकी यह आशा निराशा में परिणत हो गई। राजा गिरधर ने हिन्दुओं पर जुल्म करना शुरू किया। उसके जुल्मों से हिन्दू प्रजा और हिन्दू जागीरदार सब के सब तंग आ गये। यह बात हिन्दू-धर्म प्रेमी महाराजा जयसिंह जी को अच्छी न लगी। उन्होंने नन्दलाल मण्डलोई की मार्फ़त बातचीत कर मराठों को मालवा में निमन्त्रित किया।
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि महाराष्ट्र फौजों नेमल्हराराव होलकर मालवे पर कूच किया। सन् 1724 में राजा गिरधर और मराठों के बीच सारंगपुर मुकाम पर एक भीषण युद्ध हो गया। इसमें और चिमाजी आपा का प्रधान हाथ था। इसमें राजा गिरधर मारा गया, सारंगपुर का युद्ध में मराठों की विजय हुईं ओर मालवा-विजय का प्रथम दृश्य समाप्त होकर दूसरे दृश्य का आरम्भ हुआ।
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