You are currently viewing सवाई माधोसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय
सवाई माधोसिंह द्वितीय

सवाई माधोसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय

सवाई माधोसिंह द्वितीय जयपुर के राजा थे। सवाई माधोसिंह द्वितीय का जन्म 29 अगस्त सन् 1861 को हुआ था। इन्होंने 1880 से 1922 तक जयपुर राज्य पर शासन किया। इनके शासन काल में जयपुर राज्य ने बहुत उन्नति की। यह महाराज सवाई रामसिंह के दत्तक पुत्र थे।

सवाई माधोसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय

मृत्यु होने के कुछ ही पहले महाराज सवाई रामसिंह जी ने इसरदा के युवक ठाकुर साहब कायम सिंह जी को दत्तक ले लिया था। कायम सिंह जी अपना नाम माधोसिंह रखकर सवाई माधोसिंह द्वितीय के रूप में जयपुर की राज्य-गद्दी पर बिराजे। इस समय आपकी आयु 19 वर्ष की थी पर फिर भी इतनी बड़ी रियासत के राज्य -भार को संभालने लायक शिक्षा आपको न मिली थी। अतएव राज्य का भार कौन्सिल के सुपुर्द किया गया और महाराज को शिक्षा दी जाने लगी। दो ही वर्ष में आपने शासन ज्ञान सम्पादित कर लिया ओर राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। आपने सन्‌ 1881 की 23 वीं अगस्त को जयपुर में एक इकानॉमिक ओर इन्डस्ट्रियल म्युजियम ” नामक शिल्प की द्रव्य शाला स्थापित की। महाराजा और बहुत से प्रतिष्ठित आदमियों के सामने कर्नल वॉल्टर ने इसकी प्रतिष्ठा की। डॉक्टर हिंडली इसके अवेतनिक सम्पादक थे। महाराज माधोसिंह जी ने इस उपकारी कार्य में बहुत सा रुपया खर्च किया। इस म्युजियम की प्रतिष्ठा से जयपुर-राज्य की जनता का सविशेष उपकार हुआ है। सन्‌ 1883 के जनवरी मास में महाराजा ने एक शिल्प प्रदर्शनी की भी स्थापना की। जयपुर-राज्य के वाणिज्य के लिये वह प्रदर्शनी कितनी लाभप्रद हुई है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। श्रीमान महाराजा साहब का विद्या-प्रेम भी प्रशंसनीय था। आपने महाराजा कॉलेज को फर्स्ट ग्रेड कालेज में परिणत कर दिया। इस कालेज में संस्कृत की भी उच्च शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त राज्य के प्रत्येक हिस्से में प्राइमरी और सेकंडरी पाठशालाओं का जाल सा बिछा हुआ था। सब जगह शिक्षा मुफ्त में दी जाती थी।

सवाई माधोसिंह द्वितीय
सवाई माधोसिंह द्वितीय

स्त्री शिक्षा की ओर भी महाराज का समुचित ध्यान था। जयपुर
शहर में एक विशाल कन्या पाठशाला थी। सन्‌ 1911 में इस राज्य की प्रति दस लाख स्त्रियों में दो चार शिक्षित थीं। बीमारों के लिए राज्य में जगह जगह अस्पताल खुले हुए थे। खास जयपुर शहर में ‘मेयो हॉस्पिटल” नामक एक विशाल अस्पताल था। इस अस्पताल में मरीज़ों के लिये अच्छा प्रबन्ध था। औज़ार भी सब तरह के थे। महाराजा साहब ने पब्लिक वक्र्स डिपाटमेन्ट को भी अच्छा संगठित किया था। इस विभाग के लिये आपने 40000000 रुपये खर्च किये। आपने राज्य में जगह जगह बाँध बँधवा दिये थे। अकाल के समय में ये बाँध बढ़े ही उपयोगी सिद्ध होते थे। सन्‌ 1900 में सारे हिन्दुस्तान में भयंकर अकाल पड़ा था। जयपुर राज्य भी इससे छूटने नहीं पाया। पर श्रीमान्‌ महाराज साहब ने इस समय प्रजा के कष्ट निवारण का समुचित प्रबन्ध किया। इतना ही नहीं, वरन आपने एक ‘सर्वभारतीय दुर्भिक्षण फण्ड’ स्थापित किया। और 2500000 रुपये उसमें अपनी ओर से प्रदान किये थे। श्रीमान महाराजा साहब साम्राज्य सम्बन्धी मामलों में भी दिलचस्पी प्रकट करते थे। साम्राज्य की सहायता के हेतु आप एक इम्पीरियल सर्विस टान्सपोट कोर रखते थे। ब्रिटिश सरकार जब चाहे इस सेना का उपयोग ले सकती थी। इस सेना में 1200 खच्चर, 16 तांगे, 560 गाड़ियां और 795 आदमी हैं। यह कोर 500 बीमारों को बात की बात में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकती थी।

रियासत के भिन्न भिन्न व्यापारिक केन्द्रों का सम्बन्ध जोड़ने के लिये राज्य में से रेलवे लाइन निकाली गई है। राजपूताना मालवा रेलवे 2413 मील तक जयपुर रियासत में चलती है। सन्‌ 1907 में रियासत की ओर से सांगानेर से सवाई माधोपुर तक एक रेलवे लाइन बनवाई गई। इतना ही नहीं, वरन्‌ व्यापार के सुविधा के लिये जयपुर शेखावटी रेलवे के लिये भी मंजूरी दी गईं। और भी दूसरे कई स्थानों में रेल लाइनें बनाई जाने वाली थी। रियासत के जितने भी प्राचीन मकानात थे, श्रीमान्‌ महाराज साहब ने उन सब का जीर्णोद्धार करवा दिया है। महाराज सवाई जयसिंहजी द्वारा जयपुर, बनारस और दिल्ली प्रभृति स्थानों में बनाई गईं वेघ शालाओं का भी आपने जीणोद्धार करवाया। श्रीमान्‌ सम्राट ऐंडवर्ड ( सप्तम ) के राज्यारोहण के समय आप विलायत पधारे थे। इस समय समुद्र यात्रा के लिये आपने एक नवीन जहाज बनवाया था। उस जहाज में समस्त आवश्यक सामान यहां से रख लिये गये थे। यहां तक कि मिट्टी भी हिन्दुस्तान से ही ले ली गई थी। पीने के लिये गंगाजल के सैकड़ों डिब्बे जहाज में रख लिये गये थे। लंदन पहुँचने पर आपका यथोचित स्वागत हुआ। आप मोरे लॉज नामक स्थान में ठहराये गये। यहां आप तीन मास तक रहे। महाराज साहब यह देखकर बढ़े खुश हुए कि अंग्रज़ों का राज्यारोहण उत्सव हिन्दुओं से बहुत मिलता जुलता होता है। राज्यारोहण के समय यहां पर चार नाइट सम्राट के ऊपर एक कपड़ा तान हुए खड़े रहते हैं।

इंग्लैड से लौटकर आप 1902 और 1903 में होने वाले दिल्‍ली के
दरबारों में सम्मिलित हुए। दिल्‍ली से लौटते ही आप श्रीमान्‌ ड्यूक ऑफ कनाट के आगमन की तैयारी में लग गये। इस अवसर पर सम्राट की ओर से महाराजा साहब को विक्टोरिया-क्रास प्रदान किया गया। सन्‌ 1911 में भारत के वर्तमान सम्राट अपनी पत्नी सहित जयपुर पधारे। श्रीमान्‌ महाराजा साहब ने रेलवे प्लेटफार्म पर पहुँच कर यथोचित स्वागत किया। सम्राज्ञी के आगमन की खुशी में महाराजा साहब ने किसानों की तोजी के 5000000 रुपये माफ कर दिये।

सन्‌ 1913 से महाराजा साहब नरेन्द्र मंडल के सदस्य बने। इस
मंडल की बैठक में आए प्रति वर्ष पधारते थे और बड़ी दिलचस्पी के साथ साथ उसमे सहयोग देते रहते थे। युरोपियन महासमर के समय भी अन्य नरेशों की तरह आपने ब्रिटिश साम्राज्य की तन मन धन से सहायता की थी। दुःख है कि महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय का 1922 में देहान्त हो गया। श्रीमान महाराजा साहब बड़ी ही उदार प्रकृति के नरेश थे। यद्यपि आप कट्टर हिन्दू थे तथापि अपनी उदारतावश आपके अपने राज्य में कई जगह मसजिदें और गिर्जें बनवाये थे। महाराजा साहब की पूर्ण पदवियाँ इस प्रकांर थीं:–मेजर जनरल हिज हाइनेस सरमदी–राजाए– हिन्दुस्थान राज राजेन्द्र श्री महाराजाधिराज सर सवाई माधोसिंह जी बहादुर जी० सी० एस० आई०, जी० सी० ‘आई० ई०, जी० सी० वी० ओ०, जी० पी० ३०, एल० एल० डी० ( एडिन० )

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply