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सवाई माधोसिंह प्रथम

सवाई माधोसिंह का इतिहास और जीवन परिचय

सवाई माधोसिंह जीजयपुर के महाराज थे, इनको सवाई माधोसिंह प्रथम के नाम से जाना जाता है, क्योंकि आगे चलकर इसी नाम से एक और महाराज जयपुर की गद्दी पर बिराजे, उन्हें सवाई माधोसिंह द्वितीय के नाम से जाना जाता है। सवाई माधोसिंह प्रथम का जन्म दिसंबर 1728 को आमेर में हुआ था। इनके पितासवाई जयसिंह द्वितीय थे। इनकी माता चंद्रकुंवर थी।

सवाई माधोसिंह का इतिहास और जीवन परिचय

सवाई जयसिंह जी के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्रईश्वरी सिंह जी राज्य के अधिकारी हुए। 5 वर्ष तक ईश्वरी सिंह जी ने शान्ति के साथ राज्य-कार्य चलाया पर उसके बाद एक झगड़ा खड़ा हो गया। स्वर्गीय महाराजा जयसिंह जी ने मेवाड़ की राजकुमारी से इस शर्त पर विवाह किया था कि यदि उसके गर्भ से पुत्र उत्पन्न होगा तो वही आमेर राज्य का उत्तराधिकारी होगा। मेवाड़ राजकुमारी के गर्भ से माधोसिंह नामक एक पुत्र का जन्म हुआ था। ‘अतएव वह जयपुर की राजगद्दी पर अपना हक बतलाने लगा। इस कार्य में उनके मामा मेवाड़ के राणाजी ने उनका पक्ष समर्थन किया और इंश्वरी सिंह जी को लिख भेजा कि आप राज्य-गद्दी माधोसिंह को दे दें।

सवाई माधोसिंह प्रथम
सवाई माधोसिंह प्रथम

यह बात सुनते ही इश्वरी सिंह जी के सिर पर मानों वज्र टूट पड़ा वे कर्तव्य विमूढ़ हो गये। उन्हें मालूम नहीं होता था कि अब किसकी सहायता ली जाये। अन्त में उन्होंने ने महाराष्ट्र सेनापति आपाजी की सहायता से राणाजी के साथ युद्ध करना निश्चित किया। राणाजी की सहायता पर भी कोटा और बूँदी के नरेश आ गये। राजमहाल नामक स्थान पर युद्ध हुआ। मराठी सेना के सामने राणाजी को पराजित हो जाना पड़ा। माधोसिंह जी की आशा का आकाश अंधकार से ढंक गया।

इस विजय से गर्वित होकर ईश्वरीसिंह जी ने कोटा और बूँदी के
नरेशों पर चढ़ाइयाँ कर दीं और मराठों की सहायता के कारण उन्हें पराजित भी कर दिया। इस प्रकार अपने शत्रुओं को परास्त कर ईश्वरीसिंह जी निवित्रता से राज्य कार-भार चलने लगे। पर शीघ्र ही घनघोर बादलों ने आकर उनके सौभाग्य सूर्य को ढंक लिया। ईश्वरी सिंह जी के ही समान मेवाड़ के राणा जगत सिंह जी ने भी महाराष्ट्र नेता होलकर की सहायता लेकर युद्ध की घोषणा कर दी। होलकर के सामने विजय प्राप्त करना असंभव जान ईश्वरीसिंह जी ने विषपान करके प्राण त्याग दिये।

अब माधोसिंह जी जयपुर के राज्य सिंहासन पर आंरूढ़ हुए। होलकर ने आपका पक्ष समर्थन किया था अतएव उन्हें आपने इस सहायता के बदले रामपुरा, भानपुरा परगना दे दिया। माधोसिंह जी क्षत्रियोचित गुणों से विभूषित थे। साहस, वीरता, नीतिज्ञता, उच्च अभिलाषा और एकाग्रता आदि के बल से आपने शीघ्र ही सामन्त और प्रजा के चित्त को आकर्षित कर लिया था। इस समय जाट-जाति बड़े उत्कर्ष पर थी। एक समय जाट राजा जवाहिर सिंह अपनी सेना सहित जयपुर-राज्य में से होकर पुष्कर चला गया। उस समय यदि कोई राजा बिना दूसरे राजा की आज्ञा के उसके राज्य में से होकर निकल जाता तो यह उसकी हिमाकत समझी जाती थी।

अतएव महाराज माधोसिंह जी ने जवाहिरसिंह से कहलवा दिया कि वह भविष्य में ऐसा कभी न करे। पर जवाहिर सिंह ने इस बात पर बिलकुल ध्यान न देकर पुनः: वैसा ही किया। अब की बार माधोसिंह जी ने भी तैयारी कर रखी थी, अतएव युद्ध छिड़ गया। जाट राजा को परास्त होकर चला जाना पड़ा। इस युद्ध में जयपुर-राज्य के कई नामी, नामी सरदार काम आये। स्वयं माधोसिंह जी इतने घायल हो गये थे कि चौथे पाचवें ही दिन 1768 उनका स्वर्गवास हो गया।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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