सरदार चूड़ावत की वीरता और बलिदान की कहानी Naeem Ahmad, November 1, 2022April 9, 2024 मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के वीर सेनापति सरदार चूड़ावत की वीरता से कौन परिचित नहीं। उनका त्याग, बलिदान और वीरता भरी कहानी राजस्थान में विख्यात है। उन्होंने अपने जीवन में दूसरों की सेवा, सहायता व बलिदान को अपने सुखों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझा । वे हमेशा कांटों के मार्गे पर चलने को तत्पर रहते थे। दु:खों से आलिंगन करने में आनन्द समझते थे।महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहासइस समय दिल्ली का बादशाह आलमगीर औरंगजेब था।वह अपनी शक्ति के नशे में उचित या अनुचित कार्य का कभी चिन्तन नहीं करता था। परन्तु उसके घमण्ड को चूर राजपूत वीर ही अपनी तलवार के बल पर किया करते थे। जब बादशाह ने रूपनगर की राजकुमारी के सौन्दर्य के बारें में सुना तो उससे विवाह करने का निश्चय किया। इसके लिये उसने एक विशाल सेना लेकर रूपनगर की ओर चल दिया। सरदार चूड़ावत के वीरता और साहस की कहानीइधर रूपनगर में साधारण सोलंकी राजा राज करते थे। उनके पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वे बादशाह का मुकाबला कर पाते। राजा ने राज-दरबारियों से परामर्श किया। सभी के विचारानुसार मेवाड़ के महाराणा राजसिंह से सहायता प्राप्त करने का तथा उनसे ही अपनी राजकुमारी चंचल के विवाह के प्रस्ताव का सुझाव भी दिया। सोलंकी राजा ने इस विषय में अपनी पुत्री की भी स्वीकृति ले ली। राजकुमारी अपने प्राणों की बलि देना अच्छा समझती थी चूंकि वह मुगल बादशाह के स्पर्श को घोर पाप का प्रतीक व अपनी प्रतिष्ठा के विपरीत समझती थी। इसके साथ ही साथ राणाजी से विवाह करने में अपना गौरव भी समझती थी।सुन्दर राजकुमारी का जीवन बहुत पावन था। वह अपना नियमित धार्मिक जीवन व्यतीत करती थी। उसकी नियमित प्रार्थना व धार्मिक पुस्तकों के पठन ने प्रबल आत्मबल पैदा कर दिया था। उसने राणाजी की सेवा में एक विनम्र प्रार्थना-पत्र रक्षा व विवाह हेतु प्रेषित किया।महाराजा महेन्द्र सिंह और महाराजा राजेन्द्र सिंह पटियाला रियासतमेवाड़ के राणा केसरी अपने वीर दरबारियों के साथ बैठे हुए थे। उन्हें उसी समय रूपनगर के एक दूत ने आकर कुछ पत्र संभलाये । राणा ने उन पत्रों को पढ़ा तत्पश्चात राणाजी ने सरदार चूड़ावत के हाथों वे पत्र दिये और सबके सम्मुख पढ़ने का भी आदेश दिया। सरदार चूड़ावत ने पत्रों को पढ़ कर सुनाया। इन पत्रों को पढ़कर सरदार चूड़ावत बोले कि “महाराणा साहब इसमें विचार करना क्या है ? इन पत्रों को पढ़ कर आप किस चिंता में डूब गये ?’ एक राजपूत बाला आपको हृदयेश्वर बना चुकी है, क्या आप उनसे विवाह न करेंगे और उसे मलेच्छ के हाथों पकड़वा देगे ? क्या संसार में क्षत्रिय धर्म का विनाश होने वाला हैं? क्या शरणागत वीर राजपूत स्त्री को आत्माघात का अवसर देंगे.?. क्या मेवाड़ की पावन परम्परा को ठुकरा देंगें?” सरदार चूड़ावत तब महाराणा ने कहा–“वीर चूडावत ! तुम सत्य कह रहे हो,परन्तु इस कदम से बादशाह औरंगजेब से दुश्मनी हों जायेगी । हमें राज्य का विस्तार करना है..इसे… खोना नहीं । परन्तु जब सभी राज दरबारियों से इस विषय में परामर्श लिया गया तो सभी का उत्तर सरदार चूड़ावत के पक्ष में था।अन्त में राणा ने सेना का सशक्त संगठन किया। रूपनगर की “राजकुमारी से विवाह करने हेतु प्रस्थान कर दिया। इधर वीर सरदार चूड़ावत का विवाह अमी अभी हुआ था। उसके हाथों में मेंहदी की लालिमा हाथों की शोभा बढ़ा रही थी, उसे अब अपनी नवोढ़ा पत्नी की-गोरी गोरी कलाइयों के स्थान पर तलवार पकड़नी होगी, मुगलों से डंट कर लोहा लेना होगा। राजमहल के विलास और आनन्द को त्यागना होगा। वह अपने महलों में नवोढा पत्नी हांड़ा रानी के पास गया। इन्हीं विचारों के उतार चढ़ाव में उसका (चूड़ावत) मुख-मण्डल कुछ उदास-सा था। रानी मन के भावों को पहचान गई, उसने अपने पतिदेव से उदास होने का कारण पूछा। वीर सरदार चूड़ावत ने बताया कि कल ही उसे औरंगजेब की सेना से मुकाबला करना है और महाराणा रूपनगर की राजकुमारी की रक्षा के लिए उधर ही प्रस्थांन कर चुके हैं। युद्ध भीषण होगा। अब मिलना होगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। वीर पत्नी हाड़ा रानी ने बहुत ही विवेक से वीरता पूर्ण जवाब दिया, “प्राणनाथ, आपका ओर मेरा सम्बन्ध जन्म-जन्म का है। हम कभी अलग नहीं हो सकते। आप अपने कर्तव्य का पालन कर क्षत्रिय धर्म का गौरव बढ़ाइये। मैं आपके विजय की मंगल कामना करती हूं ।”महाराजा साहिब सिंह पटियाला जीवन परिचय और इतिहासवीर सरदार चूड़ावत अपने चुने हुए वीरों के साथ औरंगजेब का दर्ष दमन करने के लिए आगे बढ़े, परन्तु अपनी रानी की याद ने उन्हें फिर विह्लल कर दिया। उन्होंने अपने एक सरदार को रानी से अन्तिम निशानी लेने को कहा। रानी सब समझ गई और उसने अपना सिर काटकर सरदार के हाथों में रख दिया। चूड़ावत इस भेंट को पाकर उनन्मत हो उठा और औरंगजेब की सेना को गाजर मूली की तरह काटने लगा। यवनों के छक्के छूट गए। यवन सेना पराजित होने लगी ।उधर राणा राजसिंह रूपनगर की राजकुमारी को ब्याह लाये उधर विजय की बधाइयां बजने लगी। मुगल सेना पराजित होकर लौट पड़ी। इधर वधुओं ने मंगल कलश सजाए, आरतियां भी उतारी। चारों ओर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। विवाह और विजय का पावन संगम हुआ।सरदार चूड़ावत के हृदय में अपनी नवोढ़ा पत्नी का अनुपम बलिदान उसे आनन्दित एवं गौरवान्वित कर रहा था। अब यह रहस्य सबके सामने प्रकट हुआ तो सभी ने एक स्वर से सरदार चूड़ावत के त्याग की प्रशंसा की तथा धन्य हाड़ा रानी, धन्य हाड़ा रानी” से वातावरण गूंज उठा-मंगलमय हो गया राणा ने वीर सरदार चूड़ावत की पीठ थपथपाई और वीरता की बहुत प्रशंसा की। उन्हें बधाई दी कि सौभाग्य का विषय है कि तुम्हें देवीय वीर पत्नी मिली। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष जीवनी