संत भीखा दास जिनका घरेलू नाम भीखानंद था जाति के ब्राह्मण चौबे थे। जिला आजमगढ़ के खानपुर बोहना नाम के गांव में उन्होंने जन्म लिया उनके जन्म का सही वर्ष अज्ञात है, हां जब उन्होंने परलोक सिधार किया जब उनकी उम्र लगभग पचास वर्ष थी।
संत भीखा दास का जीवन परिचय हिंदी में
बाल अवस्था ही से उन को परमार्थ और साध संग का इतना उत्साह था कि बारह बरस की उमर में घर बार त्याग कर पूरे गुरू और सच्चे मत की खोज में काशी को गये पर वहां कुछ न पाकर लौटे रास्ते में पता लगा किगाजीपुर जिले के भुरकुंड़ा गांव में एक शब्द अभ्यासी महात्मा गुलाल साहब दर्शन के योग्य हैं। फिर तो यह वहां को दौड़े और उनसे उपदेश लिया। इस बात को संत भीखा दास ने अपने एक शब्द में लिखा है।
संत भीखा दास अनुमान बारह बरस तक तन मन धन से अपने गुरू संत गुलाल साहब की रात दिन सेवा और सतसंग करते रहे। इस के बाद जब गुलाल साहब परलोक सिधार गए तब इन को उन की गद्दी मिली और चौबीस पच्चीस बरस तक अपने सतसंग ओर उपदेश से जीवों को चेताते और परमार्थ का धन लुटाते रहे। भुरकुंडा में जब से बारह बरस की अवस्था में यह आये कहीं बाहर नहीं गये और वहीं अनुमान पचास बरस की उमर में शरीर त्याग किया। भुरकुंडा में संत भीखा दास की समाधि और इनके गुरू संत गुलाल साहब और दादा-गरु बुल्ला साहब की समाधि भी मौजूद है, जहां विजय-दशमी पर बड़ा भारी मेला लगता है।
संत भीखा दास के पंथ में बहुत से लोग हैं और अकेले भुरकुंडा गांव और बलिया जिले के बड़ागांव में और उन के आस पास उस मत के कई हजार अनुयायी रहते है। हम ने इन दोनों स्थानों ओर दूसरी जगहों और ग्रंथों से भीखा दास के जन्म लेने ओर गुप्त होने का समय जानना चाहा पर कहीं ठीक ठीक पता न लगा। परंतु एक हस्त-लिखित पुस्तक भुरकुंड़ा में मौजूद है जिसे लोग कहते हैं कि गुलाल साहब ने भीखा दास की मौजूदगी में लिखा और दोनों का छाप बहुतेरे पदों में मिलने से इस कथन का अमान होता है। इस ग्रंथ में लिखा है कि उसका बनाना विक्रमी सम्वत् 1788 में आरंभ हुआ और फागुन सुदी 5 बृहस्पतिवार सम्वत 1792 को समाप्त हुआ। इस हिसाब से संत भीखा दास के जन्म का साल अनुमान सम्वत् 1770 ओर गुप्त होने का 1820 ठहरता है।
संत भीखा दास जी की प्रतिमासंत भीखा दास की पूरी साध गति थी जैसा कि उस भेद से जो उन्होंने अपनी वाणी में दिया है प्रगट होता है। इनके कई एक ग्रंथ हैं जिन में से एक का नाम, राम-जहाज है। यह एक भारी पुस्तक है। संत भीखा दास साहब के सम्बन्ध में बहुत सी लीला ओर चमत्कार मशहूर हैं जिन सब के लिखने की यहां आवश्यकता नहीं है क्योंकि कितनी कथायें लोग महात्माओं के गुप्त होने पर गढ़ लेते हैं जिनसे पुरे महात्मा और भक्तजन की महिमा समझदारों की दृष्टि में रती भर नहीं बढ़ती बल्कि मामूली आदमी वाह वाह करते हैं। तो भी दो चार कथा दृष्टांत की तरह यहां लिखी जाती हैं।
संत भीखा दास के चमत्कार
एक बार कीनाराम औघड़ जिनको सिद्धि शक्ति प्राप्त थी इनसे मिलने गये और पीने को मदिरा मांगी। महात्मा भीखा दास ने जवाब दिया कि हमारे यहां मदिरा का कहां गुजर है इस पर कीनाराम ने ऐसा खेल दिखलाया कि संत भीखा दास के स्थान पर जहां जहां पानी था सब मदिरा हो गया। थोड़ी देर बाद भीखा साहब ने पानी पीने को अपने एक सेवक से पानी मांगा उसने डर कर उत्तर दिया कि सब पानी मदिरा हो गया है। भीखा साहब ने कहा लाओ वह सब जल है, जब लाया गया तब वह फिर से पानी हो गया।
एक दिन एक नागा साधू पहुंचे और खाने को मथुरा का पेड़ा और पीने को त्रिवेणी का जल मांगा। संत भीखा दास ने कहा कि यह तो नहीं है तब साधू ने अपनी सिद्धि शक्ति से बहुत सा पैदा कर दिया और सब को बांटा पर भीखा साहब के लिये न बचा। भीखा साहब ने कहा कि हम को भी दो पर सिद्धि ने लाख सिर मारा पेड़ा और जल उनके लिये न आ सका ओर उसका अंडकोष बेहद बढ़ गया। तब संत भीखा दास के चरणों पर ॒ गिरा और वह अंग ठीक हो गया जिस पर भीखा दास की आज्ञानुसार सिद्धि ने वस्त्र धारण किया।
एक दिन एक वैध आये। रात को उनके खाने को लाया गया तो कहा कि हम दिन हो को खाना खाते हैं इस पर भीखा साहब ने ऐसा चमत्कार किया कि थोड़ी देर को दिन का प्रकाश हो गया।
एक दिन एक मौनी बाबा सिंह पर सवार होकर उनसे मिलने आये। उस समय संत भीखा दास जी एक दीवार पर बैठे दातून कर रहे थे, जब बाबा जी के इस ठाठ से आने का हाल कहा गया तो बोले कि हमारे पास तो कोई सवारी नहीं है और साधू की अग॒वानी करना जरूरी है, चल दीवार तूही ले चल। इस पर वह दीवार चली। मौनी जी यह देख कर उनके चरणों पर गिरे। ऐसी कितनी कथायें कही जाती हैं पर वह सब संत भीखा दास सरीखे सतगुरू के लिये महा तुच्छ हैं।
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