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संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय

संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय हिंदी में

संत बुल्ला साहब, संत यारी साहब के गुरुमुख चेले और संत जगजीवन साहब व संत गुलाल साहब के गुरू थे। यह जाति के कुनबी थे और असल नाम इनका बुलाकीराम था। इन्होंने भुरकुंडा गांव जिलागाजीपुर में अपना सतसंग चालू किया जहां इनके बाद संत गुलाल साहब और संत भीखा दास जी भी सतसंग कराते रहे और अब तक वहां तीनों की समाधि भी मौजूद हैं। इनके जीवन का समय विक्रमी सम्वत 1750 से 1825 के बीच जान पड़ता है।

संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय

संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय
संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय

जैसा कि संत गुलाल साहब के जीवन परिचय में लिखा गया है संत बुल्ला साहब पहले संत गुलाल साहब के यहां नौकर थे और हल चलाने के काम पर तैनात थे। बुल्ला साहिब जब किसी काम को जाते तो भजन ध्यान में लग जाने से अक्सर देर कर देते थे। इनकी सुस्ती की शिकायत लोगों ने गुलाल साहब से की और गुलाल साहिब कई बार इन पर नाराज हुए। एक दिन की बात है कि बुल्ला साहिब हल चलाने को गये थे ओर वहां भगवंत के ध्यान और मानसी साध सेवा में लग गये। उसी समय गुलाल साहब मौके पर पहुँच गये और बैलों को हल के साथ फिरते ओर बुल्ला साहिब को खेत की मेंड़ पर आंख बंद किये हुए बैठा देखकर समझे कि वह ऊंघ रहे हैं ओर क्रोध में भरकर एक लात मारी। बुल्ला साहिब एक बारगी चौंक उठे ओर उनके हाथ से दही छलक पड़ा। यह कौतुक देखकर संत गुलाल साहिब हक्के बक्के हो गये क्योंकि पहले उन्होंने संत बुल्ला साहिब के हाथ में दही नहीं देखा था। पर बुल्ला साहिब बड़ी आधीनता से गुलाल साहिब से बोले कि मेरा अपराध क्षमा करो में साधुओं की सेवा में लग गया था ओर भोजन परोस चुका था केवल दही बाकी था उसे परोस ही रहा था जो आपके हिला देने से हाथ से गिर गया। यह चमत्कार अपने नौकर का देख कर गुलाल साहिब चरणों पर गिरे ओर उनको अपना गुरू धारण किया।

संत बुल्ला साहब सुरत शब्द अभ्यासी थे जिनकी ऊंची गति ओर भारी महिमा उनकी वाणी से प्रगट होती है। नीचे दी हुई वंशावली से उनके गुरु घराने का हाल जान पड़ता है।

संत वंशावली
संत वंशावली

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