संत दरिया साहब मारवाड़ वाले का जन्म मारवाड़ के जैतारण नामक गांव में भादों वदी अष्टमी संवत् 1733 विक्रमी के दिन एक मुसलमान कुल में जन्म हुआ और अगहन सुदी पूनो संवत् 1815 को 82 बरस से अधिक अवस्था में परलोक को सिधारे। उस समय महाराज बख्तसिंह जी मारवाड़ के राजा थे। संत दरिया साहब के बाप माँ जाति के धुनियां थे जैसा कि उन्होंने एक पद में कहा है।
जो धुनियां तौ भी में राम तुम्हारा।
अधम कमीन जाति मतिहीना,
तुम तो ही सिर ताज हमारा।
संत दरिया साहब मारवाड़ वाले का जीवन परिचय हिंदी में
संत दरिया साहब की सात ही बरस की उमर में उनके पिता का देहांत हुआ जिससे वह उसी देश के रेन नामक गांव, परगना मेढ़ता में अपने नाना के घर जाकर रहे। उनके नाना का नाम कमीच था। कहते हैं कि महाराज बख्तसिंह जी को एक असाध्य रोग था जिस का ईलाज करते करते वह हार गये। अंत में भाग्य से दरिया साहब के आश्रम पर रैन गांव में जा कर बड़ी दीनता से विनती की, जिस पर दरिया साहब ने दया करके अपने गुरुमुख शिष्य सुखरामदास जी के द्वारा उनको उपदेश दिया ओर आरोग्य हो गये। सुखरामदास जी जाति के सिकलीगर लोहार थे जिनका स्थान रैन में अब तक मौजूद है जहां र साल मेला होता है।
संत दरिया साहब मारवाड़ वाले की वाणीदरिया साहब के गुरु प्रेमजी थे जो बीकानेर के गांव खियानूसर में रहते थे।मारवाड़ ( राजपूताना ) में दरिया साहब के मत के हजारों अनुयाई हैं। दरिया पंथियों के विश्वास के अनुसार नीचे लिखा हुआ दोहा महात्मा संत दादू दयाल साहब ने दरिया साहब के जन्म लेने से एक सौ बरस पहले कहा था—
देह पड़ंतां दादू कहे, सौ बरसों इक संत।
रैन नगर में परगटै, तारै जीव अनंत॥
यह संत दरिया साहब मारवाड़ वाले उन दरिया साहब से बिल्कुल निराले हैं जो बिहार प्रांत में डुंमराव के पास के धरकंधा नामक गांव में इसी समय से विराजमान थे और जिन का स्वर्गवास होना 106 बरस की उमर में संवत 1837 में पाया जाता है। इस हिसाब से मारवाड़ वाले दरिया साहब बिहार वाले दरिया साहब के दो बरस पीछे पैदा हुए और 22 बरस पहले गुप्त हुए। इन दोनों महात्माओं की वाणी और ईष्ट के नाम में इतना भेद है कि दोनों कदापि एक नहीं ठहर सकते। पर यह अनूठी बात है कि दोनों महात्मा नीच जाति के मुसलमानी माता के पेट से जन्मे ( क्योंकि मारवाड़ वाले महात्मा की मां धुनियाइन थीं ओर बिहार वाले की दरजिन ) दोनों महात्मा का नाम एक ही था, दोनों शब्द-मार्मी थे और एक ही समय में ब्यासी बरस तक रहे, यद्यपि जुदा जुदा देशों में एक दूसरे से बहुत दूर पर रहे। बिहार के दरिया साहब के पंथ वाले दूसरे दरिया साहब के पंथ वालों से गिनती में अधिक हैं; उन की वाणीभी जो ऊंचे घाट की और अति मनोहर है हमको मिली है जो उनके जीवन चरित्र के साथ लिखी है।
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