परम भक्त सतगुरु संत दरिया साहब जिनकी महिमा जगत प्रसिद्ध है पीरनशाह के बेटे थे। पीरनशाह बड़े प्रतिष्ठितउज्जैन के क्षत्री थे जिनके पुरखा बक्सर के पास जगदीशपुर में राज करते थे। संत दरिया साहब का जन्म मुकाम धरकंधा जिला आरा बिहार में जो डुंमराव से सात कोस दक्षिण है और जहां उनका ननिहाल था हुआ था। संत दरिया साहब के जन्म का साल इनके किसी ग्रंथ में नहीं दिया है पर दरिया सागर के अन्त में लिखा है कि संत दरिया साहब विक्रमी संवत् 1837 भादों वदी चौथ को परमधाम को सिधारे और दरिया पंथियों में प्रसिद्ध है कि वह इस धरती पर 106 बरस तक रहे, इस हिसाब से दरिया साहब का जन्म संवत् 1731 शाके 1596 सन् ईसवी 1674 में होना पाया जाता है।
संत दरिया साहब बिहार वाले का जीवन परिचय हिंदी में
संत दरिया साहब, संत कबीर दास के दूसरे अवतार कहे जाते हैं। “ज्ञान दीपक” के अनुसार एक महीने की अवस्था में उनको भगवंत ने साधु रूप में उनकी माता की गोद में दर्शन दिया और “दरिया” नाम बख़्शा। नौ बरस की उम्र में कुल की रीति से संत दरिया साहब का विवाह हुआ परन्तु कहा जाता है कि उन्होंने अपनी स्त्री से कभी प्रसंग नहीं किया। पन्द्रहवें बरस में उनको वैराग्य हुआ और बीस बरस की उमर में भक्ति का पूरा प्रकाश हुआ और महिमा फैली। तीस बरस की अवस्था में संत दरिया साहब ने सतसंग कराना, जीवों को चेताना और अपने मत का उपदेश और मन्त्र देना शुरू किया जिसको उनके मत वाले “तख्त पर बैठना” कहते हैं। इनके मत में वेद और सुर्गुल ( अर्थात अवतार सरूपों की पूजा, मूर्ति पूजा, तीर्थ, व्रत, नेम आचार जाति भेद, इत्यादि ) का खंडन है और मांस, मदिरा और हर तरह का नशा मना किया है केवल निर्गुण ओर एक सत पुरुष का ईष्ट बताया है, यहां तक कि सोहं, ओं, इत्यादि सत्यलोक के नीचे के लोकों के धुन्यात्मक नामों का भी निषेध किया है, इसी कारण पंडितों को इनसे बड़ा विरोध पैदा हुआ ओर कोई युक्ति इनकी निन्दा फैलाने ओर दुख देने की उठा न रखी।
संत दरिया साहब बिहार वालेबाजे बाजे तरीके दरिया पंथियों में ऐसे जारी हैं जो मुसलमानी चाल से मिलते हैं जैसे मालिक से प्रार्थना की रीति खड़े होकर झुक कर आदाब बजा लाने की जिसे वह कोरनिश कहते हैं और फिर बैठ कर मत्था टेकने की जिसे वह सिरदा ( अर्थात सिजदा ) कहते हैं, मुसलमानों के नमाज के बाहरी तरीके से मिलते हैं। इसी तरह मट्टी का हुक्का जिसको “रखना” कहते है और भरुका पानी पीने का हर एक साथू अपने पास रखता है चाहे उनको जरूरत हो या न हो।
संत दरिया साहब उमर भर धरकंधा में रहे यद्यपि थोड़े दिनों के लिये काशी मगहर (जिला बस्ती ), बाईसी ( जिला गाजीपुर ) हरदी व लहठान ( जिला आरा ) को यात्रा और उपदेश देने के लिये गये थे। उनके 36 खास शिष्य थे, जिनमें दलदास जी प्रधान थे। धरकंधा में इस पंथ का तख्त है और उसकी शाखा चार गद्दियां तेलपा, दंसी, मिर्जापुर, ( जिला छपरा ) और मंजुषा चौकी ( जिला मुजफ्फरपुर ) में है।
संत दरिया साहब की रचनाएं
संत दरिया साहब ने बहुत से ग्रन्थ रचे जिनमें यह “दरिया सागर” और “ज्ञान दीपक” प्रधान हैं। दरिया सागर उनका पहला ग्रन्थ है जो छप चुका है। दूसरे ग्रन्थ यह है :– ज्ञान रत्न, ज्ञान मूल, ज्ञान स्वरोदय, निर्भय ज्ञान, अग्र ज्ञान, विवेक सागर, ब्रह्म ज्ञान, भक्तिहेत, अमरसार, प्रेम मूला, काल चरित्र, मूरत उखाड़, गर्भ चेतावन, दरिया नामा, गनेश गोष्ठी, रमेशर गोष्टी, बीजक और सतसइया। दो ग्रन्थ और रचे थे जो बे पता हैं। संत दरिया साहब के पंथ के साधू ओर गृहस्थ बिहार, तिरहुत, गोरखपुर, बलिया और कटक में बहुत हैं, यूं तो थोड़े बहुत हिन्दुस्तान भर में फैले हैं।
यह दरिया साहब बिहार वाले और संत दरिया मारवाड़ वाले, मारवाड़ के तरन तारन गांव के निवासी दरिया साहब एक नहीं हैं। दोनों महात्माओं के ईष्ट और वाणी में बड़ा भेद है जैसा कि दूसरे दरिया साहब की वाणी के देखने से (जिनके बारे में हम अगले लेख में लिखेंगे हैं) जान पड़ता है, दोनों की वाणियां ऊंचे घाट की है, पर अपने अपने ढंग में निराली हैं। सबसे अनूठी बात यह है कि दोनों महात्मा का नाम एक ही था, दोनों शब्द मार्गी थे ओर दोनों एक ही समय में बयासी बरस तक रहे यद्यपि जुदा जुदा प्रदेशों में एक दूसरे से बहुत दूर रहें।
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