महात्मा संत गरीबदास जी का जन्म मौजा छुड़ानी, तहसील झज्जर, ज़िला रोहतक हरियाणा में वैसाख सुदी पूनो संवत् 1774 वि० मुताबिक ईसवी सन् 1717 को हुआ था। वह जाति के जाट धनखड़े या दलाल गोत्र के थे और पेशा जमींदारी का करते थे। अपने घर मौजा छुड़ानी ही में सतसंग खड़ा करके जीवों को चेताते रहे ओर सारी उमर गृहस्थ में रह कर 61 वर्ष की उमर में भादों सुदी 2 विक्रमी संवत् 1835 मुताबिक ईसवीं सन् 1778 को इस संसार से चोला छोड़ा। इस हिसाब से जान पड़ता है कि संत गरीवदास जी और संत चरणदास जी एक ही समय में विराजमान थे, संत चरण दास जी के जन्म से चौदह बरस पीछे यह प्रकट हुए और उनके चोला छोड़ने से चार बरस पहिले गुप्त हुए।
संत गरीबदास जी का जीवन परिचय
संत गरीबदास जी के दो लड़कियां ओर चार लड़के थे कुछ लोगों का कथन है कि उनके बेटों ही में से एक गद्दी पर बैठा ओर कुछ का कहना है कि उनके गुरुमुख शिष्य सलोतजों ने गद्दी पाई। जो भी हो इस समय तो यही रिवाज हैं कि औलाद ही को महन्ती मिलती है और वह ग्रहस्थ ही में रहा करते हैं।
महात्मा गरीबदास जी पूरी साध गति को प्राप्त थे और उन्होंने संत कबीर दास को अपना गुरु धारण किया। संत कबीरदास अनुमान तीन सौ बरस इनके पहिले हुए थे लेकिन संत गरीबदास जी से उनका मेला होने की बाबत कितनों का तो विश्वास है कि सपने में दर्शन हुए ओर उपदेश मिला और कुछ लोग कहते हैं कि कबीर दास जी प्रगट हुए और एक छोटी सी भैंस को जो कभी गर्भ से नहीं होती थी दिखला कर कहा कि इसका दूध हमको पिलाओ। संत गरीबदास जी ने उत्तर दिया कि यह दूध नहीं देती। जिस पर संत कबीर दास जी बोले कि देखो तो सही जरूर देगी। महात्मा गरीबदास जी ने ज्यों ही भैंस के थन को हाथ लगाया उस छोटी सी भैंस के थन से दूध टपकने लगा। यह चमत्कार देखकर संत गरीबदास जी को संत कबीरदास जी के समरथ होने का विश्वास हुआ और उनके चरणों पर गिरे और उपदेश भी लिया।
पहली कथा ज्यादा समझ में आती है। बाईस बरस की उमर में संत गरीबदास जी ने एक ग्रंथ रचना शुरू किया जिसमें सत्तरह हजार चौपाई और साखी उनकी हैं और उसी के साथ संत कबीर दास की सात हजार शाखियां भी शामिल की है उन्हीं सत्तरह हजार कड़ियों में से इस पुस्तक के अंग और कड़ियां चुन कर लिखी गईं हैं।
संत गरीबदास जीसंत गरीबदास जी के पंथ के बहुत से अनुयायी है। और अब तक उनका वंश भी मौजूद हैं। मौजा छुड़ानी में फागुन सुदी दसमी को एक बड़ा मेला गरीब-दासियों का उन महात्मा जी का जारी किया हुआ अब तक होता आ रहा है। संत गरीबदास जी की बाबत बहुत से चमत्कार प्रसिद्ध हैं लेकिन वह सब लिखने के लिए स्थान नहीं हैं सिर्फ दो एक चुनकर लिखे जाते हैं—
संत गरीबदास जी के चमत्कार
एक साल सुखा पड़ा, सेवकों ने प्रार्थना की तो आपने दया से ऐसी मौज की कि खूब पानी बरसा, यह चर्चादिल्ली में बादशाह के कान तक पहुंची, बादशाह पर उसी समय में एक दुशमन ने चढ़ाई भी कर दी थी इसलिये बादशाह ने बड़े आदर ओर सत्कार से बहुत से हाथी और सवार भेज कर संत गरीबदास जी को बुलवाया। उन्होंने जुलूस को तो लौटा दिया और आप सादी चाल से एक घोड़ी पर चढ़ कर पांच सेवकों के साथ दिल्ली पहुंचे, और संत चरणदास जी के स्थान पर ठहर कर वहां से पैदल बादशाह सलामत के यहां गये। बादशाह ने दीनतापूर्वक दुश्मनों से बचने की विनती की, महात्मा जी बोले कि यदि तुम तीन बातें छोड़ दो तो दुश्मन लोग तुम्हारा बाल भी बांका न कर सकेंगे, एक तो गौवध, दूसरे अनाज पर कर, तीसरे बहुत सी बेगमों का रखना, इस पर बादशाह के दरबारियों ने बादशाह को भड़काया कि यह फकीर हिन्दू है और अपने मत के जाल में हुजूर को भी फसाना चाहता है। बादशाह सलामत ने उन नादानों की सलाह में आकर संत गरीबदास जी को मय उनके चरण सेवकों के कैदखाने में तीन तालों में बंद करवा दिया। पहरेदारों ने ताने से कहा कि देखें तो अगर सच्चे फकीर हो तो बन्दीखाने से निकल जाओ। तब कुछ देर बाद महात्मा जी ने ऐसा चमत्कार किया कि तीनों दरवाजे और ताले ख़ुल गये ओर वह अपने सेवकों के साथ निकल कर अपने अपने स्थान को वापस आये अगले दिन जब बादशाह सलामत को खबर लगी तो वह बहुत लज्जित हुए फिर दोबारा महात्मा जी को बुलवाया पर वह नहीं आये, फिर बादशाह ने पांच गांव की जागीर देनी चाही उसके लेने से भी संत गरीबदास जी ने इन्कार कर दिया।
दूसरे चमत्कार के अनुसार मौजा आसोध जिला रोहतक के एक साहूकार का इकलौता बेटा संतोष दास संत गरीबदास जी की अपार महिमा सुनकर उनका चेला हुआ और कुछ दिन बाद उसकी प्रार्थना पर उसे साधू बना लिया। यह सुन कर उसके बाप को बड़ा क्रोध आया और वह संत गरीबदास जी के निज स्थान पर जा करके बहुत भला बुरा कहकर बोला की तूने मेरे बेटे को साधू बना लिया है अब उसकी घरवाली तेरी बहिन का क्या हाल होगा? महात्मा जी ने उसके कटु वचन के उत्तर में अति कोमलता से कहा कि अगर तुम अपनी पतोह को मेरी बहन बनाते हो तो वह मेरी बहन ही होकर रहेगी। महात्मा जी के मुख से यह वचन निकलते ही उस औरत को मौजा आसोघ में बैराग आया और अपनी चूड़ी वगैरह फोड़ फाड़ कर साधुनी बन गई ओर महात्मा जी की सेवा तन, मन, धन से करने लगी।
ओर भी कई कथायें ऐसी ही संत गरीबदास की चमत्कारों की मशहूर हैं मगर मामूली सिद्धि शक्ति की हैं, जो संत गरीबदास जी जैसे साध गुरु की अपरम्पार महिमा को नहीं शोभा देती। महात्मा जी के पहिनने का जामा और बंधी हुई पगड़ी और धोती जूता ओर लोटा और कटोरी और पलंग अब तक मौजा छुड़ानी में संत गरीबदास जी की समाधि के स्थान पर मौजूद है, जहां लोग दर्शन को जाते हैं।
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