संतान सप्तमी व्रत कथा पूजा विधि इन हिन्दी – संतान सप्तमी व्रत मे क्या खाया जाता है Naeem Ahmad, September 19, 2021March 10, 2023 भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को संतान सप्तमी व्रत किया जाता है। इसे मुक्ता-भरण व्रत भी कहते है। यह व्रत सध्यान्ह तक होता है। मध्यान्ह को चौक पूरकर शिव-पार्वती की स्थापना करे और— हे देव! जन्म जन्मान्तर के पाप से मोक्ष पाने तथा खण्डित सन्तान, पुत्र, पौत्रादि की वृद्धि के हेतु में संतान सप्तमी व्रत कर के आप का पूजन करता हूँ। यह संकल्प करे। पूजन के लिये चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, नेवैद्य, पुंगीफल, नारियजल आदि सम्पूर्ण सामग्री प्रस्तुत रखे। नेवैद्य-भोग के लिये खीर-पूड़ी और खासकर गुड़ डाले हुए पुवे बनाकर तैयार रखे। रक्षा-बन्धन के लिये कलावा भी हो। कोई-कोई कलावे के स्थान में सोने-चाँदी की चूड़ियाँ रखते हैं या दूब का डोरा कल्पित कर लेती हैं।स्त्रियों को चाहिये कि वे यह संकप करें— हे देव! मे जो यह पूजा आपकी भेंट करती हूँ, उसे स्वीकार कीजिये। इसी प्रकार शिवजी के सामने रक्षा का डोरा या चूँड़ी रखकर और ऊपर कहे हुए क्रम से आवाहन से लेकर फूल फल समर्पण तक पूजा अर्पण कर के तब नीरांजन पुष्पांजलि और प्रदक्षिणा करे और नमस्कार तथा यह प्रार्थना करे— हे देव! मेरी दी हुईं पूजा को स्वीकार करते हुए मेरी बनी-बिगड़ी भूल-चूक माफ कीजिये। तदनान्तर डोरे को शिवजों को समर्पण करके निवेदन करे— हे प्रभु! इस पुत्र-पौत्र- सन्तान वर्द्धनकारी डारे को ग्रहण कीजिए। उस उस डोरे को प्रार्थना-पूर्वक शिवजी से वरदान के रूप में लेकर आप धारण करे। फिर कथा सुने।Contents1 संतान सप्तमी व्रत कैसे करते है – संतान सप्तमी व्रत क्यों किया जाता है1.1 संतान सप्तमी व्रत की कथा1.1.1 संतान सप्तमी व्रत विधि – संतान सप्तमी व्रत करने का तरीका1.2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:————संतान सप्तमी व्रत कैसे करते है – संतान सप्तमी व्रत क्यों किया जाता हैभगवान श्रीकृष्ण भगवान राजायुधिष्ठिर से संतान सप्तमी व्रत कथा का वर्णन करते हुए कहते है कि मेरे जन्म लेने से पहले एक बार मथुरा में लोमश ऋषि आये थे। मेरे पिता-माता वासुदेव-देवकी ने उनकी विधिवत पूजा की। तब ऋषिवर ने उनको अनेक कथा सुनाई। फिर वह बोले— हे देवकी! कंस ने तुम्हारे कई पुत्रों को जन्म देते ही मरवा डाला है, इस कारण तुम पुत्र शोक से दुःखी हो। इस दुःख से मुक्ति पाने के लिये तुम मुक्ता भरण व्रत (संतान सप्तमी व्रत) करो। जैसे राजा नहुष की रानी चन्द्रमुखी ने यह व्रत किया और उसके पुत्र नहीं मरे, वैसे ही यह व्रत पुत्र शोक से तुम्हें मुक्त करेगा। इस के प्रभाव से तुम पुत्र-सुख को प्राप्त होगी, इसमें संशय नहीं। तब देवकी ने पूछा— हे ब्राह्मण! जो राजा नहुष की रानी चन्द्रमुखी थी, वह कौन थी और उसने कौन सा व्रत किया। उस व्रत को कृपाकर विधिपूर्वक कहिये। तब लोमशजी ने यह कथा कही:—–संतान सप्तमी व्रत की कथाअयोध्या पुरी सें नहुष नाम का एक प्रतापी राजा हो गया है। उसकी अति सुन्दरी रानी का नाम रूपवती था। उसी नगर में विष्णुगुप्त नासक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी सर्वगुण- सम्पन्न स्त्री का नाम भद्रमुखी था। उक्त दोनों स्थियां में परस्पर बड़ी प्रीति थी। एक समय वे दोनों सरयूजी में स्नान करने गई। वहाँ उन्होने देखा कि ओर भी बहुत सी स्त्रियों ने स्नान किया और फिर वे मण्डल बाँधकर बैठ गईं। पुनः उन्होंने पार्वती-समेत शिव जी को लिखकर गन्ध, अक्षत, पुष्प, आदि से उनकी पूजा की। जब वे पूजन करके घर को चलने लगीं, तब इन दोनों ( रानी और ब्राह्मणी ) ने उन के पास जाकर पूछा— हे सखियो! यह तुम क्या कर रही हो। उन्होने उत्तर दिया—“हम गैारा-समेत शिव जी का पूजन कर रही थीं ओर उनका डोरा बाँधकर हमने अपनी आत्मा उन्हीं को अर्पण कर दी है। तात्पर्य यह कि हम लोगों ने यह संकल्प किया है कि जब तक जीयेंगी संतान सप्तमी व्रत करती रहेंगी। यह सुख-सन्तान बढ़ाने वाला सुक्ताभरण व्रत सप्तमी को होता है। हे सखियो! इस सुख-सैभाग्य-दाता व्रत को हम लोग करती हैं।स्त्रियों को बातें सुनकर रानी और उसकी सखी दोनों ने आजन्म संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प करके शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। परन्तु घर पहुँचकर उन्होंने अपने किये हुए संकल्प को भुला दिया। परिणाम यह हुआ कि जब वे मरीं तो रानी वानरी हुईं ओर ब्राह्मणी मुर्गी हुई। कुछ समय बाद पशु-शरीर त्यागकर वे पुनः मनुष्य-योनि मे जन्मीं। रानी चन्द्रमुखी तो मथुरा के राजा प्रथ्वीनाथ की प्यारी रानी हुई और ब्राह्मणी एक ब्राह्मण के घर मे जन्मी। इस जन्म मे रानी का नाम ईश्वरी हुआ ओर ब्राह्मणी भूषणा नाम से प्रसिद्ध हुई। भूषणा राज पुरोहित अग्रिमुख को व्याही गई। इस जन्म मे भी रानी ओर पुरोहितानी दोनों में परस्पर प्रीति और साख्य-भांव था। व्रत को भूल जाने के कारण यहाँ भी रानी अपुत्रा रही। मध्य समय में उसके एक बहरा और गूँगा पुत्र जन्मा, परन्तु वह भी नौ वर्ष का होकर मर गया। परन्तु व्रत को याद रखने और नियम पूर्वक व्रत करने के कारण भूषणा के गर्भ से सुन्दर ओर निरोग आठ पुत्र उत्पन्न हुए।संतान सप्तमी व्रत कथारानी को पुत्र शोक से दुःखी जानकर पुरोहितानी उससे मिलने गई। उसे देखते ही रानी को ईर्ष्या उत्पन्न हुई। तब उसने पुरोहितानी को विदा करके उसके पुत्रों को भोजन के लिये बुलाया और उनको भोजन मे विष खिलाया। परन्तु संतान सप्तमी व्रत के प्रभाव से वे विष से मरे नहीं। इससे रानी को बहुत क्रोध आया। तब उसने नौकरों को आज्ञा दी कि वे पुरोहितानी के पुत्रों को पूजा के बहाने यमुना किनारे ले जाकर गहरे जल में डूबा दे। रानी के दूतों ने वैसा ही किया। परन्तु व्रत के प्रभाव से यमुना जी उथली हो गई और ब्राह्मण-बालक बाल-बाल बच गये। तब तो रानी ने जल्लादों को आज्ञा दी कि वे ब्राह्मण बालकों को वध स्थान मे ले जाकर मार डालें। परन्तु जल्लाद के आघात करने पर भी ब्राह्मण बालकों को मार नही सके।यह समाचार सुनकर रानी को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब उसने पुरोहितानी को बुलाकर पूछा— ऐसा तू ने कौन-सा पुण्य किया है कि तेरे बालक मारने से भी नहीं मरते? इस प्रश्न के उत्तर में पुरोहितानी बोली— आपको तो पूर्व-जन्म की बात याद नही है, परन्तु मुझे जो मालूम है सो कहती हूँ, पहले जन्म मे तुम अयोध्या के राजा की रानी थी और में तुम्हारी सखी थी। हम दोनो ने सरयू किनारे शिव-पार्वती के पूजन का डोरा बाँधकर आजन्म सप्तमी का व्रत करने का संकल्प किया था। परन्तु फिर व्रत करना भूल गई। मुझे अन्तिम समय में व्रत का ध्यान आ गया, इस कारण में मरकर बहु सन्तान वाली कुम्कुटी हुई और तुम वानरी हुई। पक्षी योनि मे व्रत कर नहीं सकती थी, परन्तु व्रत का स्मरण मात्र रखने से मे इस जन्म में नीरोग ओर बहु सन्तान वाली हूँ। में अब भी व्रत करती हूँ । उसीके प्रभाव से मेरी सन्तांन स्वस्थ ओर दीर्घायु हैं। पुरोहितानी के कहने से रानी को भी अपने पूर्व-जन्म का हाल स्मरण आ गया और वह उसी समय से नियमपूर्वक संतान सप्तमी व्रत करने लगी। तब उसके कई पुत्र पौत्रादि हुए और अन्त मे उन दोनों ने शिव-लोक का वास पाया।संतान सप्तमी व्रत विधि – संतान सप्तमी व्रत करने का तरीकाऋषि लोमशजी बोले— हे देवकी! जिस प्रकार रानी भद्रमुखी ने फल पाया, उसी प्रकार तुम भी इस व्रत को करने से सन्तान सुख पाओगी, यह निश्चित है। तब देवकी ने पूछा— हे मुनिवर! इस सन्तान-दाता और मोक्ष-दाता संतान सप्तमी व्रत की विधि कृपा करके बतलाये। तब मुनिवर लोमशजी बोले— ( भादों ) शुक्ल सप्तमी को नदी या ताल में स्नान करके, मण्डल में शिव-पार्वती की प्रतिमा लिखकर उसका विधिवत् पूजन करो और शिवजी के नाम का डोरा बॉधकर यह संकल्प करों कि यह जीवन हमने भी शिवजी को समर्पण किया। फिर सदैव व्रत का स्मरण रखने के लिये शिवजी के डोरे को सोने या चाँदी का बनवाकर सदैव हाथ में पहिने रहो ओर हर सप्तमी को या महीने में एक बार शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अथवा साल में एक बार भादों मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को व्रत रखकर उसका पूजन करो।सौभाग्यवती स्त्रियों को वस्त्र और सौभाग्य-सूचक पदार्थ दान दिया करो। व्रत के दिन खुद भी पुवा भोजन करो और पुत्रों तथा सौसाग्यवती स्त्रियों को भोजन कराओ। प्रति वर्ष संतान सप्तमी व्रत को विधिपूर्वक करो, तो निश्चय है कि हे देवकी! तुमको उत्तम संतान प्राप्त होगी।श्रीकृष्ण जी बोले कि हे युधिष्ठिर! इस प्रकार सन्तान सप्तमी का व्रत करने से तब मैने देवकी के गर्भ से अवतार लिया। बस इसी से समझ लो कि जो कोई स्त्री पुरुष निःसन्तान और दुखी हो, वह नियमपूर्वक संतान सप्तमी का व्रत करे, तो निश्चय है कि श्री शिवजी की कृपा से वह सन्तान सुख पायेगा और आजन्म नीरोग और सुखी रहकर अन्त में शिव-लोक को जायेगा।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:———— ओणम पर्व की रोचक तथ्य और फेस्टिवल की जानकारी हिन्दी में विशु पर्व, केरल के प्रसिद्ध त्योहार की रोचक जानकारी हिन्दी में थेय्यम नृत्य फेस्टिवल की रोचक जानकारी हिन्दी में theyyam festival केरल नौका दौड़ महोत्सव - केरल बोट रेस फेस्टिवल की जानकारी हिन्दी में अट्टूकल पोंगल केरल में महिलाओं का प्रसिद्ध त्योहार तिरूवातिरा कली नृत्य फेस्टिवल केरल की जानकारी हिन्दी में मंडला पूजा उत्सव केरल फेस्टिवल की जानकारी हिन्दी में अष्टमी रोहिणी केरल का प्रमुख त्यौहार की जानकारी हिन्दी में लोहड़ी का इतिहास, लोहड़ी फेस्टिवल इनफार्मेशन इन हिन्दी दुर्गा पूजा पर निबंध - दुर्गा पूजा त्योहार के बारें में जानकारी हिन्दी में तेजाजी की कथा - प्रसिद्ध वीर तेजाजी परबतसर पशु मेला मुहर्रम क्या है और क्यो मनाते है - कर्बला की लड़ाई - मुहर्रम के ताजिया गणगौर व्रत कथा - गणगौर क्यों मनाई जाती है तथा गणगौर व्रत विधि बिहू किस राज्य का त्यौहार है - बिहू किस फसल के आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है हजरत निजामुद्दीन दरगाह - हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह का उर्स नौरोज़ त्यौहार का मेला - नवरोज त्योहार किस धर्म का है तथा मेला फूलवालों की सैर त्यौहार कब मनाया जाता है - फूलवालों की सैर का इतिहास हिन्दी में ईद मिलादुन्नबी कब मनाया जाता है - बारह वफात क्यों मनाते है और कैसे मनाते है ईद उल फितर क्यों मनाया जाता है - ईद किस महिने के अंत में मनाई जाती है बकरीद क्यों मनाया जाता है - ईदुलजुहा का इतिहास की जानकारी इन हिन्दी बैसाखी का पर्व किस दिन मनाया जाता है - बैसाखी का त्योहार क्यों मनाया जाता है अरुंधती व्रत रखने से पराये मर्द या परायी स्त्री पाप से मुक्ति रामनवमी का महत्व - श्रीराम का जन्मदिन चैत्र रामनवमी कैसे मनाते हैं हनुमान जयंती का महत्व - हनुमान जयंती का व्रत कैसे करते है और इतिहास आसमाई व्रत कथा - आसमाई की पूजा विधि वट सावित्री व्रत की कथा - वट सावित्री की पूजा कैसे करते है गंगा दशहरा का महत्व - क्यों मनाया जाता है गंगा दशहरा की कथा रक्षाबंधन क्यों मनाते है - रक्षाबंधन पूजा विधि और रक्षा-बंधन की कथा नाग पंचमी कब मनायी जाती है - नाग पंचमी की पूजा विधि व्रत और कथा कजरी की नवमी कब और कैसे मनाते है - कजरी पूर्णिमा का व्रत और कथा हरछठ का व्रत कैसे करते है - हरछठ में क्या खाया जाता है - हलषष्ठी व्रत कथा हिंदी गाज बीज माता की कथा - गाज बीज माता का व्रत कैसे करते है और पूजा विधि सिद्धिविनायक व्रत कथा - सिद्धिविनायक का व्रत कैसे करते है तथा व्रत का महत्व कपर्दि विनायक व्रत - कपर्दि विनायक व्रत कैसे करते है और व्रत कथा हरतालिका तीज व्रत कथा - हरतालिका तीज का व्रत कैसे करते है तथा व्रत क्यो करते है जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और महत्व - जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों रखा जाता है अहोई आठे व्रत कथा - अहोई अष्टमी का व्रत कैसे करते है बछ बारस पूजन कैसे करते है - बछ बारस व्रत कथा इन हिन्दी करमा पूजा कैसे की जाती है - करमा पर्व का इतिहास जइया पूजा आदिवासी जनजाति का प्रसिद्ध पर्व डोमकच नृत्य समारोह क्यों मनाया जाता है छेरता पर्व कौन मनाते हैं तथा छेरता नृत्य कैसे करते है दुर्वासा धाम मेला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश भैरव जी मेला महराजगंज आजमगढ़ उत्तर प्रदेश बाबा गोविंद साहब का मेला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश कामाख्या देवी मेला गहमर गाजीपुर उत्तर प्रदेश शेख शाह सम्मन का मजार व उर्स सैदपुर गाजीपुर उत्तर प्रदेश गोरखनाथ का मेला गोरखपुर उत्तर प्रदेश तरकुलहा का मेला - तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर सोहनाग परशुराम धाम मंदिर और सोहनाग का मेला 1 2 Next » भारत के प्रमुख त्यौहार त्यौहारहमारे प्रमुख व्रतहिन्दू धर्म के प्रमुख व्रत