संकिसा का प्राचीन इतिहास – संकिसा बौद्ध तीर्थ स्थल Naeem Ahmad, September 20, 2019February 19, 2023 बौद्ध अष्ट महास्थानों में संकिसा महायान शाखा के बौद्धों का प्रधान तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर अपनी स्वर्गीय माता महामाया को उपदेश देकर महात्मा बुद्ध पृथ्वी पर उतरे थे।सरभमिग जातक में यह कथा अत्यंत रोचक ढंग व विस्तारपूर्वक दी हुई है। महात्मा बुद्ध को जन्म देने के सातवें दिन ही महामाया का स्वर्गवास हो गया था। अतः वे अपने ज्ञानी पुत्र के उपदेश से वंचित रह गई थी। स्वर्ग में निवास करते हुए उन्हें अपने पुत्र से उपदेश सुनने की प्रबल इच्छा हुई। अतः महात्मा बुद्ध स्वयं एक दिन स्वर्ग गये और वहां तीन महीने तक अपनी जननी को उपदेश दिया। और उपदेश देकर जब महात्मा बुद्ध तीन महीने बाद स्वर्ग से धरती पर आए वह स्थान पवित्र संकिसा था। सरभमिग जातक के अनुसार यह संकिसा का यह स्थान श्रावस्ती से 90 मील की दूरी पर स्थित था। महात्मा बुद्ध को स्वर्ग से उतरते देखने के लिए महामोग्गलान जो उस समय श्रावस्ती में निवास कर रहे थे। अपने साथियों सहित इस दूरी को पलभर में तय कर संकिसा पहुचे थे। इसके अतिरिक्त अपनी ही भविष्यवाणी के अनुसार महात्मा बुद्ध अगले जीवन काल में सरीबद्ध के पुत्र रूप में मैत्रेय बुद्ध होकर इसी स्थान में जन्म ग्रहण करेंगे। इन सभी महत्वपूर्ण कारणों से इस स्थान को बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा अत्यंत आदर की दृष्टि से देखा जाता है, और पूज्य बौद्ध तीर्थ की भांति पूजा जाता है। अपने इस लेख में हम संकिसा का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ संकिसा, संकिसा का प्राचीन इतिहास, संकिसा के दर्शनीय स्थल आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे। Contents1 संकिसा कहां है, या संकिसा कहा स्थित है?1.1 संकिसा का प्राचीन इतिहास, संकिसा मंदिर का इतिहास History of sankisa farrukhabad uttar pardesh1.1.1 संकिसा का पता कैसे चला और संकिसा का पता किसने लगाया तथा संकिसा की खुदाई में प्राप्त वस्तुएं2 उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें :— संकिसा कहां है, या संकिसा कहा स्थित है? बौद्ध ग्रंथों में वर्णित या संकिसा का प्राचीन नाम संकास्स आज का आधुनिक Sankisa अथवा बसंतपुर नामक गांव है। जो उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की सदर तहसील में स्थित हैं। यह गांव 41 फुट ऊचें 150 फुट लम्बे और 1000 फुट चौडे टीले पर बसा हुआ है। वर्तमान में यह ओर भी चारो ओर को फैल गया है। शिकोहाबाद और फर्रूखाबाद लाइन पर स्थित पखना तथा मोटा स्टेशनों से यह स्थान लगभग 5 मील की दूरी पर स्थित है। गांव और स्टेशन के बीच से कालिंदी नाम की एक छोटी नदी बहती है। संकिसा पहुंचने के लिए अब तक कोई भी अच्छा मार्ग नही था। केवल कच्ची सडकों और पगडंडियों के द्वारा ही यात्री यहां तक पहुंच सकते थे। किन्तु अब राज्य सरकार की नई योजनाओं के कारण संकिसा की यात्रा आसान हो गई है। अब यह स्थान पक्की सडकों और यातायात सनसाधनों से जुड गया है। और यहां यात्रियों के ठहरने के लिए विश्राम गृहों की उचित व्यवस्था है। संकिसा के दर्शनीय स्थल संकिसा का प्राचीन इतिहास, संकिसा मंदिर का इतिहास History of sankisa farrukhabad uttar pardesh बसंतपुर गांव किसी समय एक सुंदर नगर था। जिसका वैभव इतिहास की गति के साथ धीरे धीरे लुप्त हो गया। सबसे पहले संकिसा का पता जनरल कर्निघम ने 1842 ईसवीं में लगाया था। उस समय उन्होंने यह सिद्ध किया था कि यह वही स्थान है, जिसकी चर्चा ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में कपिला के नाम से की थी। प्राचीन साहित्य मे संकिसा का नाम संकाश्या या संकास्स मिलता है। रामायण मे इस नगरी को इक्षुमति नदी के किनारे बसा हुआ बताया गया है। जो राजा जनक के भाई कुनध्वज की राजधानी थी। उस समय यह नगरी अत्यंत वैभवशाली थी, एवं चारों ओर एक परकोटे से घिरी थी। जनरल कर्निघम को संकिसा की खुदाई में साढे तीन मील के घेरे वाली जो दीवार मिली थी वही संम्भवतः रामायण में वर्णित परकोटा है। और वर्तमान कालिंदी नदी ही प्राचीन इक्षुमति नदी है इस स्थान का उल्लेख पाणिनी ने भी अपने अष्टाध्यायी ग्रंथ में किया है।जातक कथाओं एवं अन्य बौद्ध ग्रंथों में Sankisa का नाम महात्मा बुद्ध के यहाँ दिव्य कर्म सम्पन्न करने के कारण तथा मैत्रेय बुद्ध की भांति जन्म लेने के कारण पवित्र स्थान के रूप में लिखा गया है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार जिन सीढिय़ों से महात्मा बुद्ध, ब्रह्मा और इंद्र के साथ स्वर्ग से उतरे थे। वे भूमि में समा गई थी। केवल 6 सीढियां ही बची रह गई थी। कहा जाता हैं कि सम्राट अशोक ने भूमि खोदकर उन सीढिय़ों को निकालने का प्रयास किया था। किंतु अपने इस प्रयास में वह असफल रहा। परवर्ती काल में बौद्ध धर्म को श्रद्धा की दृष्टि से देखने वाले अनेक राजाओं ने इन लुप्त सीढियों के स्थान पर नये सोपानों को बनवाने की चेष्टा की। ये सोपान पत्थर ओर ईटों से बनाये गये थे। जिनमें बहुमूल्य अलंकरणों का भी प्रयोग किया गया था। इन सोपानों की ऊंचाई लगभग 70 फुट थी। सोपानों के ऊपर एक विहार भी बनवाया गया था। जिसमें महात्मा बुद्ध की मूर्ति ब्रह्मा और इंद्र की मूर्तियों के साथ स्थापित की गई थी। मूर्तियां ऐसी मुद्राओं में थी जिनमें ऐसा ज्ञात होता था कि ये लोग सोपानों से भूमि पर ऊतर रहे है। संकिसा मे देखने लायक स्थल चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग के कथनानुसार इन तीन सोपानों के ऊपर अशोक सम्राट ने एक मंदिर की रचना करवाई थी। जिसके मध्य भाग में महात्मा बुद्ध की 60 फुट ऊंची एक विशाल प्रतिमा स्थापित थी। सोपान के निकट ही उन्होंने एक 70 फुट ऊंचे शिला स्तंभ की रचना करवाई थी। इस स्तंभ के ऊपर सिंह की आकृति थी। इस सिंह के विषय में भी एक चमत्कार पूर्ण कथा कही जाती है। जिसका उल्लेख फाह्यान ने किया है। एक बार श्रमणों और ब्राह्मणों में इस विषय पर विवाद छिड़ा की वास्तव में यह स्थान बौद्धों के रहने योग्य है, अथवा ब्राह्मणों के। श्रमण यह सिद्ध कर रहे थे कि यह स्थान श्रमणों के योग्य है। तब ब्राह्मणों ने यह कहा कि अगर ऐसा है तो किसी चमत्कार से इसको प्रमाणित करो। उनके इतना कहते ही स्तंभ से प्रस्तर सिंह ने गर्जन किया। इस प्रकार यह विवाद शांत हुआ। इस कथा से यह आभास भी मिलता है कि Sankisa के विषय में यह विवाद प्राचीन काल में उठ खडा था कि यह स्थान ब्राह्मणों का है अथवा श्रमणों का है। इस स्थान की खुदाई में जो भी वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। उनमें अधिकांश बौद्ध धर्म से संबंधित नही है। इसलिए यह मानना सहज है कि बौद्ध धर्म अनुयायी इस स्थान पर अपना आधिपत्य बहुत दिनों तक नही रख सके और ब्राह्मणों ने भी इस पर अपना अधिकार बहुत प्राचीन काल में ही जमा लिया था। इसकी सूचना चीनी यात्रियों के विवरण से भी प्राप्त होती है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि विहार के आसपास अनेक सहस्त्र ब्राह्मण यहां पर निवास करते थे। Sankisa के गांव में आज भी इस प्रकार की किवदंती प्रचलित है कि लगभग दो हजार साल पहले यह स्थान जनशून्य कर दिया गया था। और लगभग हजार साल पहले किसी कायस्थ ने इसको ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। इसलिए अन्य बौद्ध तीर्थों के समान इस स्थान का भी कोई श्रृंखला बद्ध इतिहास प्राप्त नही होता। समय समय पर शासक लोग अपनी इच्छानुसार यहां विहार, स्तूप , मंदिर आदि बनवाते रहे। किंतु मध्य युग में आकर यह भी बंद हो गया। जिसके फलस्वरूप यह पवित्र स्थान विस्तृत होने लगा। और बौद्ध धर्म के ह्रास के साथ इसकी महत्ता लुप्त हो गई। बौद्ध धर्म विशेष रूप से भिक्षुओं से संचालित होता था उसका नेतृत्व गृहस्थ लोग नहीं कर सकते थे। इसलिए जब इस स्थान की धार्मिक इमारतें नष्ट हो गई और भिक्षु लोग नहीं रहे तो किसी ने उनका जीर्णोद्धार कराने की चेष्टा नहीं की। इमारते भग्न होकर पहले खंडहर हुई फिर समय बितने पर अपने ही मलवे में दबकर टीले के रूप में हो गई। फिर भी ऐतिहासिक लेखों, मुहरों, मूर्तियों और सिक्कों आदि के द्वारा इस स्थान के प्राचीन स्मारकों के विषय में जितना ज्ञात हुआ है। वह इसकी महत्ता को सिद्ध करने के लिए काफी है। संकिसा धाम दर्शन संकिसा का पता कैसे चला और संकिसा का पता किसने लगाया तथा संकिसा की खुदाई में प्राप्त वस्तुएं यह हम पहले ही बता चुके है कि वर्तमान संकिसा का पता सबसे पहले जनरल कर्निघम ने 1842 ईसवीं मे लगाया था। परंतु उस समय वे इस स्थान की खुदाई न करा सके। इस स्थान की विधिवत खुदाई का कार्य उन्होंने 1862 ईसवीं में आरम्भ किया। इस कार्य में उन्होंने अशोक द्वारा निर्मित स्तूपों एवं विहारों का तथा मुख्य नगर के अति प्राचीन परकोटे एवं प्रवेशद्वार का पता लगाया। उन्हें इस क्षेत्र में शृंग काल से लेकर नवीं शताब्दी तक के सिक्के भी प्राप्त हुए। जिससे यहां के इतिहास का पता चलता है। सिक्कों के अतिरिक्त उनको पत्थर की एक मुहर दो चित्रिक शिलापट्ट, एक मृण्मूर्ति, एक नक्काशीदार काला पत्थर और कुछ अलंकार प्राप्त हुए थे। पत्थर की मुहर पर त्रिरत्न और स्वातिक चिन्ह बने हुए है। और उस पर उत्तरसेनम अर्थात उत्तरसेन की मुहर लिखा हुआ है। यहां से प्राप्त शिलापट्टो पर भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित प्रमुख दृश्य उत्कीर्ण है। इनमें से एक मे महात्मा बुद्ध को स्वर्ग से उतरते हुए दिखाया गया है। यह शिलापट कुछ घिस भी गया है जिसके कारण लगभग आधा दृश्य मिट गया है। हालांकि जो शेष सही हिस्सा है उसमें ऊपर की ओर एक ऊची इमारत है। जिस पर पहुंचने के लिए नीचे से एक लम्बी सीढी लगी हुई है। सीढी के ठीक ऊपर एक गुम्बद बना है। जिससे होकर मुख्य इमारत में प्रवेश किया जा सकता है। इस चित्र मे यह इमारत तीन खंडों मे अंकित की गई थी। और इसका ऊपरी भाग अब खंडित हो गया है। इमारत के मध्य भाग में उपदेश देने की मुद्रा मे महात्मा बुद्ध बैठे हैं। उनके दायी ओर एक आकृति है जो भक्ति भाव से आसीन है। दृश्य के वाम भाग में एक वृक्ष है। जिस पर एक बडा सा मोर बैठा हुआ है। सीढियों के मूल भाग में एक नारी की आकृति है जो अपने बायें हाथ को ऊपर की ओर उठाये है। और दायें हाथ में एक भिक्षा पात्र लिए हुए हैं।यह उत्पलवर्णा नाम की भिक्षुणी है। जो भगवान का सत्कार करने आयी थी। मूर्ति के खंडित होने पर भी यह निश्चित रूप से भगवान बुद्ध के स्वर्ग से उतरने का ही दृश्य है। जो Sankisa में ही हुआ था।अन्य वस्तुओं में एक गोल पत्थर है। जिस पर कुछ आकृतियां और अलंकरण उत्कीर्ण किये गए है। यह पत्थर सुंदर और बहुमूल्य है। इसके चारो ओर बहारी हाशिये पर घनी नक्काशी की गई है। अंदर के वृत्त को 12 भागों मे विभाजित किया गया है। जिसमें से तीन के अंदर खडे हुए पुरुषों की आकृतियां अन्य तीन में वृक्ष तथा शेष छः में बौद्ध धर्म के प्रतीक अंकित है। ठीक इसी प्रकार का एक शिलाखंड श्री कर्निघम को तक्षशिला में भी प्राप्त हुआ था। अभी तक इन फलकों पर बने चित्रों का वास्तविक अर्थ ज्ञात नहीं हो सका है। इस स्थान से प्राप्त दम्पत्ति की मृणमूर्तिया असाधारण रूप से सुंदर और कला पूर्ण है। उसके कटी प्रदेश मे मोतियों की माला है। जो उसके सौंदर्य को दौगुना करती है। उसके दायें हाथ सनाल कमल है। एवं बायां हाथ कटि प्रदेश पर स्थित हैं। ये मूर्तियां ईसवीं पूर्व पहली सदी की है। इसके अतिरिक्त काले पत्थर के एक टुकडे पर महात्मा बुद्ध के निर्वाण का दृश्य अंकित किया गया है। वे दायीं करवट लेटे है। और उनका दायां हाथ सिर के नीचे है। उनके चारों ओर भिक्षु खडे है। शिलापट के दूसरी ओर एक बडे हाथी का अगला पैर बना हुआ है। अपने मूल रूप में हाथी की यह आकृति छः इंच ऊंची रही होगी। हाथी के इस पैर के सामने एक पुरूष है जो धोती पहने हुए है। और जिसके हाथ में ढाल और खडग है। उसके सिर पर कोई वस्त्र नहीं है। श्री कर्निघम के अनुसार यह दृश्य महात्मा बुद्ध के अस्थयशेषो को हाथी के मस्तक पर रख कर ले चलने वाले जलूस का एक अंश मात्र है। इन वस्तुओं के अतिरिक्त कर्निघम को सुनारों के काम में आने वाले कुछ पत्थर के बने हुए अत्यंत प्राचीन सांचे भी यहाँ से प्राप्त हुए है। इन सांचों मे से एक पर कुछ लिखावट प्रतीत होती है। जो अस्पष्ट है। सांचों की शैली से ज्ञात होता है कि विदेशों से कुछ स्वर्णकार आकर इस स्थान पर बसे थे। श्री कर्निघम के बाद Sankisa के अवशेषों की खुदाई श्री ग्राउज ने आरम्भ की जिसका कोई विवरण प्राप्त नही है। इसके बाद सन् 1914 ईसवीं में श्री हीरानंद शास्त्री ने इस स्थान पर खोज का काम आरंभ किया उनके प्रयास से अनेक इमारतें, सिक्के, मिट्टी की मुहरें आदि प्राप्त हुई। जिनसे संकिसा के इतिहास पर विशेष प्रकाश पड़ा। प्राप्त सिक्कों में से कुछ सिक्के ईसा से पूर्व दूसरी शताब्दी के है। जिन पर शिव तथा नंदी की आकृतियां अंकित है। इस खुदाई में श्री हीराचंद शास्त्री को लगभग 115 मिट्टी की मुहरें प्राप्त हुई। जिनमें से एक मुहर बौद्ध धर्म से संबंधित है। यह मुहर 40 फुट नीचे खुदाई करने पर मिली थी, जहाँ पर राख और कोयलों के ढेर में वह पडी हुई थी। इससे यह प्रमाणित होता है कि किसी समय Sankisa के विहारों को जलाया गया था। प्राप्त मुहरे विविध काल की है। और बौद्ध, शैव, तथा वैष्णव धर्म से संबंध रखती है। इनमे कुछ पर भद्राक्ष, कुछ पर रम्याक्ष और कुछ पर श्वेत भद्र लेख अंकित है। भद्राक्ष और रम्याक्ष से अंकित मुहरों पर शैव प्रतीक यथा शिव, नंदी, त्रिशूल अंकित है। एवं श्वेत भद्र की मुहरों पर गुरूड और सर्प की आकृतियां है। इस प्रमाण के आधार पर यह स्पष्ट है कि Sankisa का पुण्य तीर्थ केवल बौद्धों के लिए ही आदरणीय नहीं था बल्कि शैवों और वैष्णवों का भी एक मुख्य स्थान था।डाक्टर शास्त्री ने जिस स्थान पर मुख्य रूप से खुदाई कराई वह विसारी देवी के मंदिर और ढूह के बीच का भाग था। जहाँ किसी विहार के कई कमरो की रूपरेखा स्पष्ट की जा सकी थी। यहां से प्राप्त ईटों से यह ज्ञात होता है कि यह विहार मौर्यकाल का है। इस इमारत के उत्तर कोने पर और बीच में दो सीढियां भी मिली है। यदि दुसरे कोने पर भी सीढियां मिल जाएं तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह वही इमारत है जिसका वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था। विसारी देवी के आधुनिक मंदिर के ढूह के नीचे जो इमारत दबी पड़ी है। वह भी विहार सी लगती है। इसकी खुदाई करने पर कोने से इमारतों के कुछ भाग मिले है। जो एक के ऊपर एक बने है। इन इमारतों में धातुओं की अनेक वस्तुएं और मनके मिले है। इसके अतिरिक्त किसी प्राचीन गोल इमारत के खंडहर के ऊपर एक वर्गाकार इमारत के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिसका पूरा वर्ग 120 फुट लम्बा चौडा है। सम्भवतः यह इमारत कुषाण काल में बनी थी जैसा कि इसमे उपयुक्त ईटों से ज्ञात होता है। Sankisa darshaniy sthal Sankisa गाँव के दक्षिण पश्चिम कोने पर खुदाई करने से एक और मौर्यकालीन इमारत के अवशेष प्राप्त हुए थे। इस इमारत के कमरों मे से कुछ बर्तन और बहुत सी दवातें प्राप्त हुई थी। जिनसे ऐसा अनुमान होता है कि इस स्थान पर कोई पाठशाला या छात्रावास था।उपरोक्त इमारतों के आधार पर प्राचीन संकिसा के वैभव की कल्पना सहज ही की जा सकती है। जब वह अनेक स्तूपों, विहारों और मंदिरों से सुशोभित था। पाठशालाएं और विद्वानों के निवास स्थान के अतिरिक्त दूर दूर से आने वाले यात्रियों के ठहरने के लिए भी समुचित प्रबंध यहा था। मौर्य काल से लेकर गुप्त काल तक यह स्थान निश्चित रूप से उन्नत अवस्था में था। बाद में हुणों के आक्रमण के कारण बौद्ध धर्म का पतन होता गया तयों तयों संकिसा का भी पतन होता गया। यहा तक कि मुस्लिम काल में आक्रमणकारियों की बर्बरता से जो कुछ बचा था वह भी सदा के लिए नष्ट हो गया।Sankisa के पूर्व की ओर लगभग छः मील की दूरी पर एक और टीला मिला है। जिसकी खुदाई करने पर एक विशाल विहार के अवशेष, मुद्राएं, मूर्तियां और अन्य साम्रगी प्राप्त हुई। प्राचीन काल में यह विशाल विहार संकिसा महातीर्थ का अवश्य ही एक महत्वपूर्ण अंग रहा होगा। इसके उत्तर पूर्व कोने पर महात्मा बुद्ध की एक विशाल मूर्ति पाई गई थी। साथ ही मिट्टी की बनी अनेक मुहरें भी मिली थी। जिनमें महात्मा बुद्ध द्वारा प्रचारित बौद्ध धर्म का मूल मंत्र “ये धर्मा हेतू” लिखा हुआ है। यही से एक शिलापट भी प्राप्त हुआ था। जिस पर बोधिसत्व की दो प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। यह विहार पखना विहार के नाम से प्रसिद्ध था। इस स्थान के उत्तर में लगभग चार फर्लांग की दूरी पर एक बहुत बडा ताल है। जिसे लोग महीताल कहते है। इसके पश्चिमी तट पर कुछ मंदिरों के भग्नावशेष मिले है। जिनमें से ब्राह्मण धर्म संबंधी अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियां प्राप्त हुई है। ह्वेनसांग ने Sankisa के पास जिस विशाल विहार को देखा था। यह संभवतः वही विहार है।Sankisa और पखना विहारों की खुदाई अभी पूरी नहीं हुई है। अधिकांश भाग ढूहों और खेतो के नीचे अज्ञात पड़ा है। फिर भी जितनी सामग्री अभी तक यहां से प्राप्त हुई है। उससे Sankisa के वैभव का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता हैं। संकिसा के दर्शनीय स्थलों में उपरोक्त भग्नावशेषों को छोडकर कुछ ही ही देखने योग्य स्थल है। जो यहाँ के गौरवपूर्ण समय पर प्रकाश डालते है। ऐसे ही संकिसा के पर्यटन स्थलों का विवरण नीचे दिया गया है। संकिसा पर्यटन स्थल, संकिसा के पुरातत्व स्थल, संकिसा टेम्पल फर्रुखाबाद, संकिसा के ऐतिहासिक स्थल व धरोहरें, विसारी देवी का मंदिरSankisa के क्षेत्र में प्रवेश करते ही टीले पर दक्षिण मे ईटों का एक ऊंचा ढूह है। जिस पर विसारी देवी का आधुनिक मंदिर बना है। इस देवी की पूजा ग्रामवासी शक्ति के रूप में करते है।अशोक स्तंभ का शीर्ष भागविसारी देवी मंदिर वाले टीले के उत्तर में 600 फुट की दूरी पर एक प्राचीन स्तंभ का शीर्ष भाग पाया गया था। इस पर हाथी की मूर्ति बनी है। जिसकी सूंड और पूंछ अब टूट गई है। भूरे रंग के पत्थर की बनी यह मूर्ति अपने चमकदार पालिश तथा उत्कृष्ट रचना के कारण अवश्य ही किसी अशोक स्तंभ को सुशोभित करती होगी जो यहां स्थापित किया गया था। चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग दोनों ने ही Sankisa में अशोक स्तंभ होने का उल्लेख किया है। किन्तु उसके शीर्ष भाग पर हाथी की जगह सिंह लिखा है। जो शायद भ्रमवश होगा। यह शीर्ष भाग अब एक लोहे के बाडे में सुरक्षित है। Sankisa main dekhne layak jagah स्वर्ग से उतरने का स्थान, प्रमुख विहार एवं स्तूपविसारी देवी मंदिर के दक्षिण मे लगभग 200 फुट की दूरी पर एक टीला है। जो संभवतः किसी स्तूप का खंडहर मालूम पडता है। इसी प्रकार मंदिर के पूर्व मे लगभग 600 फुट की दूरी पर भी नीवी का कोट नाम का एक विशाल टीला है। जो परिमाप में 600-500 फुट का है। और जो वास्तव मे कभी एक विशाल विहार रहा होगा। इस विशाल ढूह के दक्षिण पूर्व और उत्तर के कोनों में भी स्तूपों के कई खंडहर है। और इसी प्रकार का एक ढूह थोडा दूर चलकर उत्तर दिशा में भी मिलता है। इन सब ढूहों को मिलाकर पूरा क्षेत्र लगभग 3000 फुट लम्बा और 2000 फुट चौडा है और 2 मील के घेरे में फैला हुआ है। संभवतः यह समस्त क्षेत्र मुख्य नगर का मध्य भाग रहा होगा। नगर के चारों ओर मिट्टी की दीवार थी जिसका अधिकांश भाग आज भी देखा जा सकता है।कही कही पर नगर मे प्रवेश करने के द्वारों के चिन्ह भी मिलते है। इस क्षेत्र मे अनगिनत छोटे बडे स्तूप है। जिनमें सात स्तूप महत्व के है। पहला जहाँ महात्मा बुद्ध स्वर्ग से भूमि पर उतरे थे, दूसरा जहाँ पूर्व समय मे चार बोधिसत्वों ने बैठकर योग साधना की थी, तीसरा जहाँ महात्मा बुद्ध ने स्नान किया था, चौथा एवं पांचवा जहां इन्द्र और ब्रह्मा महात्मा बुद्ध के साथ स्वर्ग से उतरे थे, छठा जहाँ भिक्षुणी उत्पलवर्णा ने सर्वप्रथम स्वर्ग से उतरते हुए महात्मा बुद्ध का सत्कार किया था, एवं सातवां जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपने केश एवं नख कटवाये थे।नाग का तालाबयह तालाब विशाल स्तूप के दक्षिण पश्चिम में स्थित हैं। जिसमे फाह्यान के अनुसार एक स्वेत फन वाला नाग रहता था। यह नाग अपनी आलौकिक शक्ति के कारण भूमि को उर्वरता प्रदान करता था तथा Sankisa के निवासियों की रक्षा करता था। इस तालाब के भग्नावशेष कान्देय ताल के नाम से पुकारे जाते है। और यहां प्रति वर्ष वैशाख माह में मेला लगता है।महादेव का मंदिरविसारी देवी मंदिर के उत्तर पूर्व में आधे मील की दूरी पर एक ढूह है। जिस पर महादेव जी का नया मंदिर बना हुआ है। मंदिर की इमारत मे कुछ प्राचीन स्तंभों का प्रयोग किया गया है। जो मथूरा के लाल रेतीले पत्थर के बने हुए हैं। यहां खुदाई करने पर मध्यकालीन पौराणिक धर्म की वस्तुएं भी प्राप्त हुई थी प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। प्रिय पाठकों यदि आपके पास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक, पर्यटन, महत्व का स्थान है जिसके बारें मे आप पर्यटकों को बताना चाहते है तो आप हमारे submit a post संस्करण मे जाकर अपना लेख कम से कम 300 शब्दों मे लिख सकते है। हम आपकी पहचान के साथ आपके द्वारा लिखे गए लेग को अपने इस प्लेटफॉर्म पर शामिल करेगें उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें :— राधा कुंड यहाँ मिलती है संतान सुख प्राप्ति – radha kund mthura राधा कुंड :- उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर को कौन नहीं जानता में समझता हुं की इसका परिचय कराने की शाकुम्भरी देवी सहारनपुर – शाकुम्भरी देवी का इतिहास – शाकुम्भरी माता मंदिर प्रिय पाठको पिछली पोस्टो मे हमने भारत के अनेक धार्मिक स्थलो मंदिरो के बारे में विस्तार से जाना और उनकी लखनऊ के दर्शनीय स्थल – लखनऊ पर्यटन स्थल – लखनऊ टूरिस्ट प्लेस इन हिन्दी गोमती नदी के किनारे बसा तथा भारत के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ दुनिया भर में अपनी इलाहाबाद का इतिहास – गंगा यमुना सरस्वती संगम – इलाहाबाद का महा कुम्भ मेला इलाहाबाद 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बड़े औद्योगिक शहरों में से झांसी टूरिस्ट प्लेस – टॉप 5 टूरिस्ट प्लेस इन झाँसी भारत का एक ऐतिहासिक शहर, झांसी भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों में से एक माना जाता है। यह अयोध्या का इतिहास – अयोध्या के दर्शनीय स्थल और महत्व अयोध्या भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। कुछ सालो से यह शहर भारत के सबसे चर्चित मथुरा दर्शनीय स्थल – मथुरा दर्शन की रोचक जानकारी मथुरा को मंदिरो की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक चित्रकूट धाम की महिमा मंदिर दर्शन और चित्रकूट दर्शनीय स्थल चित्रकूट धाम वह स्थान है। जहां वनवास के समय श्रीराजी ने निवास किया था। इसलिए चित्रकूट महिमा अपरंपार है। यह प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर किंगडम मुरादाबाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद महानगर जिसे पीतलनगरी के नाम से भी जाना जाता है। अपने प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर कुशीनगर के दर्शनीय स्थल – कुशीनगर के टॉप 7 पर्यटन स्थल कुशीनगर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर है। कुशीनगर को पौराणिक भगवान राजा राम के पुत्र कुशा ने बसाया पीलीभीत के दर्शनीय स्थल – पीलीभीत के टॉप 6 पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों में से एक पीलीभीत है। नेपाल की सीमाओं पर स्थित है। यह सीतापुर के दर्शनीय स्थल – सीतापुर के टॉप 5 पर्यटन स्थल व तीर्थ स्थल सीतापुर - सीता की भूमि और रहस्य, इतिहास, संस्कृति, धर्म, पौराणिक कथाओं,और सूफियों से पूर्ण, एक शहर है। हालांकि वास्तव अलीगढ़ के दर्शनीय स्थल – अलीगढ़ के टॉप 6 पर्यटन स्थल,ऐतिहासिक इमारतें अलीगढ़ शहर उत्तर प्रदेश में एक ऐतिहासिक शहर है। जो अपने प्रसिद्ध ताले उद्योग के लिए जाना जाता है। यह उन्नाव के दर्शनीय स्थल – उन्नाव के टॉप 5 पर्यटन स्थल उन्नाव मूल रूप से एक समय व्यापक वन क्षेत्र का एक हिस्सा था। अब लगभग दो लाख आबादी वाला एक बिजनौर पर्यटन स्थल – बिजनौर के टॉप 10 दर्शनीय स्थल बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी मुजफ्फरनगर पर्यटन स्थल – मुजफ्फरनगर के टॉप 6 दर्शनीय स्थल उत्तर प्रदेश भारत में बडी आबादी वाला और तीसरा सबसे बड़ा आकारवार राज्य है। सभी प्रकार के पर्यटक स्थलों, चाहे अमरोहा का इतिहास – अमरोहा पर्यटन स्थल, ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल अमरोहा जिला (जिसे ज्योतिबा फुले नगर कहा जाता है) राज्य सरकार द्वारा 15 अप्रैल 1997 को अमरोहा में अपने मुख्यालय इटावा का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ इटावा जिला आकर्षक स्थल प्रकृति के भरपूर धन के बीच वनस्पतियों और जीवों के दिलचस्प अस्तित्व की खोज का एक शानदार विकल्प इटावा शहर एटा का इतिहास – एटा उत्तर प्रदेश के पर्यटन, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थल एटा उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, एटा में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें मंदिर और फतेहपुर सीकरी का इतिहास, दरगाह, किला, बुलंद दरवाजा, पर्यटन स्थल विश्व धरोहर स्थलों में से एक, फतेहपुर सीकरी भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक है। बुलंदशहर का इतिहास – बुलंदशहर के पर्यटन, ऐतिहासिक धार्मिक स्थल नोएडा से 65 किमी की दूरी पर, दिल्ली से 85 किमी, गुरूग्राम से 110 किमी, मेरठ से 68 किमी और नोएडा का इतिहास – नोएडा मे घूमने लायक जगह, पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश का शैक्षिक और सॉफ्टवेयर हब, नोएडा अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है। यह राष्ट्रीय गाजियाबाद का इतिहास – गाजियाबाद में घूमने लायक पर्यटन, दर्शनीय व ऐतिहासिक भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, गाजियाबाद एक औद्योगिक शहर है जो सड़कों और रेलवे द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा बागपत का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बागपत पर्यटन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल बागपत, एनसीआर क्षेत्र का एक शहर है और भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में एक नगरपालिका बोर्ड शामली का इतिहास – शामली हिस्ट्री इन हिन्दी – शामली दर्शनीय स्थल शामली एक शहर है, और भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में जिला नव निर्मित जिला मुख्यालय है। सितंबर 2011 में शामली सहारनपुर का इतिहास – सहारनपुर घूमने की जगह, पर्यटन, धार्मिक, ऐतिहासिक सहारनपुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, जो वर्तमान में अपनी लकडी पर शानदार नक्काशी की रामपुर का इतिहास – नवाबों का शहर रामपुर के आकर्षक स्थल ऐतिहासिक और शैक्षिक मूल्य से समृद्ध शहर रामपुर, दुनिया भर के आगंतुकों के लिए एक आशाजनक गंतव्य साबित होता है। मुरादाबाद का इतिहास – मुरादाबाद के दर्शनीय व आकर्षक स्थल मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के पश्चिमी भाग की ओर स्थित एक शहर है। पीतल के बर्तनों के उद्योग संभल का इतिहास – सम्भल के पर्यटन, आकर्षक, दर्शनीय व ऐतिहासिक स्थल संभल जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। यह 28 सितंबर 2011 को राज्य के तीन नए बदायूं का इतिहास – बदायूंं आकर्षक, ऐतिहासिक, पर्यटन व धार्मिक स्थल बदायूंं भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और जिला है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में लखीमपुर खीरी का इतिहास – लखीमपुर खीरी जिला आकर्षक स्थल लखीमपुर खीरी, लखनऊ मंडल में उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह भारत में नेपाल के साथ सीमा पर स्थित शाहजहांपुर का इतिहास – शाहजहांपुर दर्शनीय, ऐतिहासिक, पर्यटन व धार्मिक स्थल भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, शाहजहांंपुर राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खान जैसे बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मस्थली रायबरेली का इतिहास – रायबरेली पर्यटन, आकर्षक, दर्शनीय व धार्मिक स्थल रायबरेली जिला उत्तर प्रदेश प्रांत के लखनऊ मंडल में स्थित है। यह उत्तरी अक्षांश में 25 ° 49 'से 26 वृन्दावन धाम – वृन्दावन के दर्शनीय स्थल, मंदिर व रहस्य दिल्ली से दक्षिण की ओर मथुरा रोड पर 134 किमी पर छटीकरा नाम का गांव है। छटीकरा मोड़ से बाई नंदगाँव मथुरा – नंदगांव की लट्ठमार होली व दर्शनीय स्थल नंदगाँव बरसाना के उत्तर में लगभग 8.5 किमी पर स्थित है। नंदगाँव मथुरा के उत्तर पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर बरसाना मथुरा – हिस्ट्री ऑफ बरसाना – बरसाना के दर्शनीय स्थल मथुरा से लगभग 50 किमी की दूरी पर, वृन्दावन से लगभग 43 किमी की दूरी पर, नंदगाँव से लगभग 9 सोनभद्र आकर्षक स्थल – हिस्ट्री ऑफ सोनभद्र – सोनभद्र ऐतिहासिक स्थल सोनभद्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। सोंनभद्र भारत का एकमात्र ऐसा जिला है, जो मिर्जापुर जिले का इतिहास – मिर्जापुर के टॉप 8 पर्यटन, ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल मिर्जापुर जिला उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। यह जिला उत्तर में संत आजमगढ़ हिस्ट्री इन हिन्दी – आजमगढ़ के टॉप दर्शनीय स्थल आजमगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है। यह आज़मगढ़ मंडल का मुख्यालय है, जिसमें बलिया, मऊ और आज़मगढ़ बलरामपुर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बलरामपुर – बलरामपुर पर्यटन स्थल बलरामपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बलरामपुर जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह राप्ती नदी ललितपुर का इतिहास – ललितपुर के टॉप 5 पर्यटन स्थल ललितपुर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में एक जिला मुख्यालय है। और यह उत्तर प्रदेश की झांसी डिवीजन के अंतर्गत बलिया का इतिहास – बलिया के टॉप 10 दर्शनीय स्थल बलिया शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक खूबसूरत शहर और जिला है। और यह बलिया जिले का सारनाथ का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ सारनाथ इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) से उत्तर की ओर सारनाथ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। काशी से सारनाथ की दूरी श्रावस्ती का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती – श्रावस्ती दर्शनीय स्थल बौद्ध धर्म के आठ महातीर्थो में श्रावस्ती भी एक प्रसिद्ध तीर्थ है। जो बौद्ध साहित्य में सावत्थी के नाम से कौशांबी का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ कौशांबी बौद्ध तीर्थ स्थल कौशांबी की गणना प्राचीन भारत के वैभवशाली नगरों मे की जाती थी। महात्मा बुद्ध जी के समय वत्सराज उदयन की त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव – बड़ा गांव जैन मंदिर खेडका का इतिहास त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क शौरीपुर बटेश्वर श्री दिगंबर जैन मंदिर – शौरीपुर का इतिहास शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर की जानकारी इन हिन्दी आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म कम्पिल का इतिहास – कंपिल का मंदिर – कम्पिल फेयर इन उत्तर प्रदेश कम्पिला या कम्पिल उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है। यह उत्तर रेलवे की अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहास अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित है। आंवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सडक मार्ग द्वारा 18 देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी में देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण पश्चिम में 31 किलोमीटर लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेगबहादुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – लखनऊ का गुरुद्वारा इतिहास उत्तर प्रदेश की की राजधानी लखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ नाका गुरुद्वारा – गुरुद्वारा सिंह सभा नाका हिण्डोला लखनऊ हिस्ट्री इन हिन्दी नाका गुरुद्वारा, यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में स्थित है। नाका गुरुद्वारा साहिब के बारे में कहा जाता है गुरु का ताल आगरा -आगरा गुरुद्वारा गुरु का ताल हिस्ट्री इन हिन्दी आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग बनारस का इतिहास – वाराणसी गुरुद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील टीले वाली मस्जिद यह है लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिद लक्ष्मण टीले वाली मस्जिद लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है। बड़े इमामबाड़े के सामने मौजूद ऊंचा टीला लक्ष्मण परीखाना लखनऊ के रंगीन मिजाज नवाब की ऐशगाह लखनऊ का कैसरबाग अपनी तमाम खूबियों और बेमिसाल खूबसूरती के लिए बड़ा मशहूर रहा है। अब न तो वह खूबियां रहीं मच्छी भवन लखनऊ का अभेद्य किला और 1857 गदर का गवाह लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास फिरंगी महल लखनऊ – फिरंगी महल क्या है? गोल दरवाजे और अकबरी दरवाजे के लगभग मध्य में फिरंगी महल की मशहूर इमारतें थीं। इनका इतिहास तकरीबन चार सौ सतखंडा पैलेस लखनऊ के नवाब की अधूरी ख्वाहिश सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842 पिक्चर गैलरी लखनऊ का निर्माण किसने करवाया था? सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका छतर मंजिल क्या है – छतर मंजिल को किसने बनवाया? अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख मोती महल लखनऊ – नवाबों के शहर का एम्फीथिएटर मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच 'मोती महल' का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने खुर्शीद मंजिल लखनऊ का इतिहास या ला मार्टीनियर कालेज खुर्शीद मंजिल:- किसी शहर के ऐतिहासिक स्मारक उसके पिछले शासकों और उनके पसंदीदा स्थापत्य पैटर्न के बारे में बहुत कुछ बीबीयापुर कोठी कहा है, बीबीयापुर कोठी का निर्माण किसने करवाया बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस रेजीडेंसी इन लखनऊ रेजीडेंसी हिस्ट्री इन हिन्दी नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत बड़ा इमामबाड़ा कहां स्थित है – बड़ा इमामबाड़ा किसने बनवाया था? ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक किसी शहर के समृद्ध अतीत की कल्पना विकसित करते हैं। लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा उन शानदार स्मारकों शाह नज़फ इमामबाड़ा लखनऊ हिस्ट्री इन हिन्दी शाही नवाबों की भूमि लखनऊ अपने मनोरम अवधी व्यंजनों, तहज़ीब (परिष्कृत संस्कृति), जरदोज़ी (कढ़ाई), तारीख (प्राचीन प्राचीन अतीत), और चेहल-पहल छोटा इमामबाड़ा कहां है – छोटा इमामबाड़ा किसने बनवाया था? लखनऊ पिछले वर्षों में मान्यता से परे बदल गया है लेकिन जो नहीं बदला है वह शहर की समृद्ध स्थापत्य रामकृष्ण मठ लखनऊ – रामकृष्ण मठ की स्थापना कब हुई लखनऊ शहर के निरालानगर में राम कृष्ण मठ, श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। लखनऊ में चंद्रिका देवी मंदिर लखनऊ – चंद्रिका देवी मंदिर का इतिहास चंद्रिका देवी मंदिर-- लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है और यह शहर अपनी धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के रूमी दरवाजा का इतिहास – रूमी दरवाजा किसने बनवाया था? 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के बाद लखनऊ का दौरा करने वाले द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर श्री भूल भुलैया का रहस्य – भूल भुलैया का निर्माण किसने करवाया इस बात की प्रबल संभावना है कि जिसने एक बार भी लखनऊ की यात्रा नहीं की है, उसने शहर के मकबरा सआदत अली खां लखनऊ – नवाब सआदत अली खां की कब्र उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही मनोरम और प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक मांग वाला पर्यटन स्थल, गोमती नदी सफेद बारादरी लखनऊ शोक से खुशियों तक का सफर लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर लाल बारादरी लखनऊ – लाल बारादरी का इतिहास इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का जनेश्वर मिश्र पार्क लखनऊ – कुछ पल शुद्ध वातावरण में लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस लखनऊ चिड़ियाघर शहर के बीच प्राणी उद्यान एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य बिठूर आकर्षक स्थल जहां हुआ था लव और कुश का जन्म धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले शहर बिठूर की यात्रा के बिना आपकी लखनऊ की यात्रा पूरी नहीं होगी। बिठूर एक सुरम्य 1 2 Next » भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश तीर्थ स्थलउत्तर प्रदेश पर्यटनतीर्थतीर्थ स्थलबौद्ध तीर्थ
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अंधविश्वासऔर पाखंड वादीने ये पोस्ट लिखी है सारी बकवास स्वर्ग नरक हिन्दू धर्म में होता है ना किबौद्ध धर्म में