श्री हंस जी महाराज का जन्म 8 नवंबर, 1900 को पौढ़ी गढ़वाल जिले के तलाई परगने के गाढ़-की-सीढ़ियां गांव में हुआ था। उनके पिता रणजीत सिंह ने उनका नाम हंसा राम सिंह रखा। वे एक संपन्न किसान थे। हंसा राम सिंह की मां कालिन्दी देवी एक दयालु और धर्मशील महिला थीं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती की उपासिका थीं। हंसा रामसिंह नाम में ‘हंसा’ शब्द देवी सरस्वती के वाहन हंस से तनिक संबंध न था। रामसिंह के चेहरे पर सदा हंसी खेलती रहती थी, अतः उनके नाम रामसिंह में ‘हंसा’ शब्द जोड़ दिया गया था। धीरे-धीरे हंसा से वे हंस हो गये और बाद में इस शब्द की परिभाषा संस्कृत भाषा के हंस शब्द के अनुसार आत्मा के रूप में की जाने लगी।
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श्री हंस जी महाराज की जीवनी
श्री हंस जी महाराज छोटी अवस्था में ही स्वामी स्वरूपानंद महाराज के संपर्क में आ गये थे, जो बाद में उनके गुरु बने। उनकी प्रेरणा से ही हंस महाराज ने अज्ञानियों को आध्यात्मिक ज्ञान देने का बीड़ा उठाया। शुरू में वे पंजाब और सिंध प्रांतों में प्रचार करते रहे। सन् 1935 से वे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी प्रचार करने लगे। वे ध्यान तथा धर्मशास्त्रों की शिक्षाओं का प्रचार करते थे। वे चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी और प्रभावशाली वक्ता थे। वे अपने शिष्यों को ईश्वर के नाम की दीक्षा देते और उनके भीतर दैवी चेतना जागृत करते थे। वे नाम-जप पर बहुत बल देते थे। वे ईश्वर को दिव्य-ज्योति अथवा सत्य की ज्योति के रूप में परिभाषित करते थे। सन् 1936 में उन्होंने साहित्य-प्रकाशन का काम हाथ में लिया। उनका पहला ग्रंथ योग प्रकाश था। सन् 1943 में उनके आश्रम के लिए एक भूखंड खरीदा गया और सन् 1950 में उस पर निर्माण शुरू हुआ। आश्रम का नाम प्रेम नगर रखा गया।
श्री हंस जी महाराज का विवाह और संतान
श्री हंस जी महाराज का विवाह सन् 1947 में, अर्थात् 47 वर्ष की आयु में श्री गोपाल सिंह की 15 वर्षीया पुत्री राजेश्वरी देवी के साथ हुआ। राजेश्वरी देवी विवाह के समय हंस महाराज से 32 वर्ष छोटी थीं। इस-दंपत्ति ने तीन बालकों को जन्म दिया-सतपाल रावत, प्रेमपाल रावत और महीपाल रावत। तीनों बेटों की शिक्षा-दीक्षा दून-स्कूल और कैम्ब्रियन हॉल जैसे कान्वेंट स्कूलों में हुई।

सन 1966 में श्री हंस जी महाराज के देहांत के बाद सबसे पहले उनके दूसरे बेटे प्रेमपाल रावत को हंस महाराज के रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए बाल भगवान के नाम से लाया गया। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि बाल भगवान अपनी अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा और विदेशी शिष्य मंडली के प्रभाव में आकर हंस महाराज के मार्ग से विचलित हो गये हैं, अत: हंस महाराज की विधवा श्रीमती राजेश्वरी देवी ने अपने बेटे प्रेमपाल रावत का बहिष्कार कर दिया और उसके स्थान पर बड़े बेटे सतपाल रावत को प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार सतपाल रावत अब सतपाल महाराज हो गये और अपने पिता के भक्तमंडली का मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनकी गतिविधियां बहुमुखी हैं। सन 1989 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा,जिसमें वे पराजित हुए। भारत और विदेशों में उनके असंख्य अनुयायी हैं। वे मानव-धर्म का प्रचारकरते हैं।
प्रेमपाल रावत, जो बाल भगवान के नाम से प्रख्यात हुए थे, अपने पैंरों पर खड़े हैं। भारत और विदेशों में उनके अनुयायियों की संख्या भी कम नहीं है। भारत और अमरीका दोनों उनके कर्म क्षेत्र हैं। दिल्ली के महरौली क्षेत्र में उन्होंने संत योग आश्रम की स्थापना की है। यह आश्रम हजारों एकड़ उपजाऊ भूखंड पर फैला है उनके शिष्य अब उन्हें गुरु महाराज जी कहते हैं। अमरीका में उन्होंने डिवाइन लाइट मिशन की स्थापना की है तथा वे गुरु के पद पर प्रतिष्ठित हैं। वे ध्यान पर जोर देते हैं और अपने शिष्यों को ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव कराने का दावा करते हैं। वे नैतिकता का ढोल नहीं पीटते। वे अपने शिष्यों को सीधे ज्ञान प्रदान करते हैं। वे उन्हें उनकी उन आंतरिक तरंगों की चेतना प्रदान कर देते हैं, जो उनको आत्म-साक्षात्कार करा देती हैं। उनके दायरे में गुरू महाराज की सेवा पर बल दिया जाता है।
गुरु महाराज जी के शिष्य दावा करते हैं कि गुरु महाराज जी की कृपा से ईश्वर के सम्मुख की गयी उनकी प्रार्थना संवाद का रूप लेने लगी है। वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और प्रार्थना के उत्तर में इश्वर की वाणी भी सुन सकते हैं। वे गुरु महाराज जी को पूर्ण-गुरु मानते हैं। गुरु महाराज जी अपने पिता श्री हंस जी महाराज और अपने बड़े भाई सतपाल महाराज की भांति विवाहित हैं। डिवाइन लाइट मिशन काअमेरिकी राष्ट्रीय मुख्यालय कोलोरेडो राज्य के डेनवर नगर में है। मिशन की स्थापना सन् 1972 में हुई थी। डेनवर में मिशन की ओर से श्री हंस एजूकेशनल, श्री हंस पब्लिकेशन, डिवाइन ट्रैवल सर्विसेज, वीमैन्स स्प्रिचुअल लाइट ऑर्गेनाइजेशन और श्री हंस प्रोडक्शंस की स्थापना की गयी है। मिशन मासिक पत्रिका एंड इट इज डिवाइन’ तथा ‘डिवाइन टाइम्स’ पाक्षिक का प्रकाशन करता है। मिशन गैस-स्टेशन, रेस्तरां, स्टोर्स आदि व्यापारी संस्थान भी चलाता है। श्री हंस प्रोडक्शंस में फिल्में बनायी जाती हैं। इस प्रसंग में सबसे अधिक मजेदार बात यह है कि गुरु महाराज की गतिविधि पर लाखों डॉलर खर्च होते हैं और जब यह पूछा जाता है कि यह दौलत कहा से आती है तो एक ही जवाब मिलता है- गुरु महाराज की कृपा से।
गुरु महाराज के भक्त उन्हें साकार-ईश्वर मानते हैं। गुरु महाराज कहते हैं, ”मुझे अपना प्रेम दो और मैं तुम्हें शांति दूंगा। ….अपने जीवन की बागडोर मेरे हाथों में थमा दो, मैं तुम्हें मोक्ष प्रदान
कर दूंगा। मैं इस जगत में शांति का स्रोत हूं। बाल भगवान उर्फ गुरु महाराज जी उर्फ प्रेमपाल रावत ने अपने पिता श्री हंस जी
महाराज के आध्यात्मिक मिशन को एक गुरु-संस्कृति का रूप दे डाला है, जिसका श्री हंस जी महाराज ने जीवनभर जमकर विरोध किया था।