श्रावस्ती का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती – श्रावस्ती दर्शनीय स्थल

श्रावस्ती आकर्षक स्थलों के सुंदर दृश्य

बौद्ध धर्म के आठ महातीर्थो में श्रावस्ती भी एक प्रसिद्ध तीर्थ है। जो बौद्ध साहित्य में सावत्थी के नाम से विख्यात है। यह नगरी बहुत समय तक शक्तिशाली कौशल देश की राजधानी थी। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहाँ 24 बार वर्षा वास कर के जनता को सद्धर्म उपदेश दिया था। मज्झिम निकाय के 150 सूत्रों में से 65 तथा विनयपटक के 350 शिक्षा पदों में से 294 यही दिये गये थे। श्रावस्ती का महत्व इसलिए और भी अधिक है। कि यही राजा प्रसेनजित के दरबार में अधरस्थित होकर भगवान बुद्ध ने अपने अलौकिक चमत्कार का प्रदर्शन भी किया था। परंतु समय के प्रभाव से श्रावस्ती का प्राचीन गौरव आज भग्नावशेषों के रूप में वनस्पतियों से आवृत हो अतीत की कहानी बनकर रह गया है। आज के अपने इस लेख में हम श्रावस्ती का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती, श्रावस्ती आकर्षक स्थल, श्रावस्ती का प्राचीन इतिहास, श्रावस्ती के दर्शनीय स्थल आदि के बारे में विस्तार से जानेगें।

श्रावस्ती कहाँ है और कैसे पहुंचे ( where is Shravasti & How to reach Shravasti)

Shravasti का आधुनिक क्षेत्र सहेट – महेट के नाम से उत्तर प्रदेश राप्ती नदी के तट पर स्थित हैं। इनमें से सहेट गोंडा तथा महेट बहराइच जिले में स्थित हैं। जहाँ यात्री तीन विभिन्न मार्गों द्वारा पहुंच सकते है। पहला मार्ग उत्तर-पूर्वी रेलवे की लखनऊ-गोरखपुर लाइन पर स्थित गोंडा स्टेशन से है। जो गोंडा से लगभग 57 किमी की दूरी पर स्थित है। दूसरा मार्ग उसी रेलवे की गोंडा-गोरखपुर लूप लाइन पर स्थित बलरामपुर स्टेशन से है। जो बलरामपुर से 17 किमी की दूरी पर स्थित है। तीसरा मार्ग गोंडा-नानपारा लाइन पर स्थित बहराइच स्टेशन से होकर है। जो बहराइच से लगभग 48 किमी की दूरी पर स्थित हैं। इन तीनों स्टेशनों से यात्री बस, टैक्सी आदि द्वारा आसानी से श्रावस्ती पहुंच सकते है।

श्रावस्ती का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती ( Shravasti history in hindi )

श्रावस्ती का इतिहास बहुत प्राचीन है। Shravasti का उल्लेख पाणिनि की अष्टाध्यायी, रामायण, महाभारत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, ललित विस्तरण आदि ग्रंथों में मिलता है। हरिवंश पुराण के अनुसार सूर्यवंशी राजा युवनाश्व के पुत्र श्रावस्त ने इसको बसाया था। किंतु रामायण में भगवान श्री रामचंद्र के पुत्र लव द्वारा श्रावस्ती को बसाये जाने की चर्चा की गई हैं। Shravasti के सूर्यवंशी राजाओं की यह परम्परा भगवान बुद्ध के समकालीन राजा प्रसेनजित के समय तक चलती रही। यद्यपि इस वंश के बाद भी यह नगरी बहुत दिनों तक कौशल देश की राजधानी रही।

श्रावस्ती आकर्षक स्थलों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती आकर्षक स्थलों के सुंदर दृश्य

Shravasti का क्रमबद्ध इतिहास भगवान बुद्ध के समय से मिलता है। उस समय यहाँ का राजा प्रसेनजित था। प्रसेनजित यद्यपि शाक्यों पर शासन करता था। लेकिन हीन वंशज होने के कारण किसी शाक्य वंशी राजकुमारी से विवाह कर अपनी वंश परम्परा अधिक उन्नत करना चाहता था। परंतु शाक्य उसे अपनी कन्या देने में अपमान समझते थे। अतः उन्होंने एक दासी कन्या को शाक्य कन्या बताकर भेज दिया था। इसी कन्या से प्रसेनजित के उत्तराधिकारी कुमार वीरूद्धक का जन्म हुआ। वीरूद्धक को जब इस रहस्य का पता चला तो उसने शाक्यों को नष्ट करने के लिए उन पर आक्रमण किया और अपने रंगनिवास के लिए चुनी गई 500 शाक्य कन्याओं का वध कर डाला। भगवान बुद्ध ने वीरूद्धक की इस नृशंसता को देखकर भविष्यवाणी की कि वह सात दिन के भीतर ही अग्नि में भस्म हो जायेगा। चीनी यात्री हवेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में उस तालाब का उल्लेख किया है। जिसमें वीरूद्धक अग्नि की लपटों से बचने के लिए कूदा था।



सूर्यवंशी शासकों के बाद श्रावस्ती का इतिहास हमें फिर से मौर्यकाल से मिलता है। दिव्यावदान के अनुसार सम्राट अशोक ने Shravasti की भी यात्रा की थी। और सारीपुत्र मोदगलायन, महाकश्यप और आनंद की स्मृति में यहां बनाये गये चारों स्तूपों की पूजा की थी। यहाँ से प्राप्त एक तामपत्र द्वारा तत्कालीन शासन की ओर से Shravasti के महामात्रों को एक आदेश भी दिया गया था। यद्यपि आज्ञा के प्रचार का नाम अज्ञात है। तथापि दानपत्र की लिपि एवं उसमें प्रयुक्त महामात्र शब्द से इसका मौर्यकालीन होना स्पष्ट है। ईसा पूर्व पहली और दूसरी शताब्दी की बनी भरहुत एव बोधगया की वेदिकाओं पर भी श्रावस्ती का जेतवन विपयक दृश्य उत्तकीर्ण है। जिसमें उस काल में इस स्थान की महत्ता ज्ञात होती है। किंतु Shravasti की उन्नति कृपाण काल में हुई। भिक्षुबल द्वारा स्थापित बुद्ध मूर्ति के अभिलेख से यह पता लगता है कि कृपाण काल में यह प्रदेश कनिष्ठ महान के अधिकार में था। उस समय जैतवन विहार का पूरा क्षेत्र सर्वास्तिवादी भिक्षुओं के प्रभाव में था।


यद्यपि श्रावस्ती का महत्व किसी न किसी प्रकार 12वी शताब्दी तक बना था तथापि गुप्तकाल में नष्ट होने लगा था। इसका स्पष्ट आभास हमें प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान के यात्रा वृतांत से मिलता है। उसने जब इस क्षेत्र की यात्रा कीथी। तो यह नगर एक प्रकार से निर्जन हो चुका था। और केवल 200 परिवार मात्र की बस्ती यहां रह गई थी। प्राचीन विहार, मंदिर, स्तम्भ आदि सब नष्ट होने लगे थे। और उनके स्थान पर नये विहारों एवं मंदिरों के निर्माण का प्रयास किया जा रहा था। फिर भी उसने अनेक स्मारकों का सजीव एवं विशद वर्णन दिया है। जो पतनोन्मुख काल में भी Shravasti के गौरव का परीचायक है। किन्तु लगभग दौ सौ वर्ष बाद ही चीनी यात्री हवेनसांग के समय में यह नगर प्रायः जनशून्य और नष्ट हो गया था। उसने लिखा हैकि नगर की केवल चारदीवारी ही शेष रह गई थी। और अधिकांश इमारतों पर वनस्पतियां उग चुकी थी। राजा प्रसेनजित के महल की केवल नीवं ही शेष बची थी। कुछ मंदिर अवश्य उस समय बच रहे थे, जिनमें थोडे बहुत साधु निवास करते थे। निश्चित ही Shravasti की यह दशा हूणों के आक्रमण के कारण हुई होगी।



राजा हर्ष के मधुवन दान पत्र से ज्ञात होता है कि Shravasti उसके राज्य का प्रदेश था। हर्ष के बाद भी कुछ दिनों तक Shravasti कन्नौज के राजाओं के शासन मे रही। इस बात की पुष्टि राजा गोविंद चंद्र के दान पत्र के लेख से भी होती है। जिसमें न केवल Shravati के राजनैतिक इतिहास पर ही प्रकाश पडता है, बल्कि आधुनिक सहेट-महेट का प्राचीन Shravasti होना भी सिद्ध होता हैं। इस प्रकार Shravasti कृपाण काल के वैभव को फिर न पा सकी, तथापि 12वी शताब्दी तक यह किसी न किसी रूप में बौद्ध धर्म का क्षेत्र बनी रही, इसके बाद यवनों के आक्रमण से हिन्दू राज्यों एवं सांस्कृतिक महत्वपूर्ण स्थलों के साथ साथ Shravasti भी अन्धकार की गहराईयो में विलीन हो गयी।

श्रावस्ती पर्यटन स्थलों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती पर्यटन स्थलों के सुंदर दृश्य

श्रावस्ती की खोज किसने की और कैसे हुई

आधुनिक काल में Shravasti के प्राचीन वैभव को प्रकाश में लाने का सर्व प्रथम प्रयास भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष जनरल कर्निघम ने किया था। उन्होंने सन् 1862 ईसवीं में श्रावस्ती के खंडहरों की खुदाई शुरू की थी, लगभग एक साल के कार्य में उन्होंने जेतवन का थोडा भाग साफ कराया, उसमें उनको एक 7 फुट 4 इंच ऊंची एक बुद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख से इसका श्रावस्ती विहार स्थापित होना ज्ञात होता है। यह वही मूर्ति थी जिसको भिक्षु बल ने स्थापित करवाया था। इस मूर्ति के लेख के आधार पर ही इतिहासकारों ने सहेट के क्षेत्र को जैतवन और महेट के क्षेत्र को Shravasti माना है। सन् 1876 ईसवीं में जनरल कर्निघम ने इन स्थानों की खुदाई पुनः करवाई और लगभग 16 प्राचीन इमारतों की नींव प्रकाश में लाये। इस बार की खुदाई में उनको यहां से सिक्के और मृण मूर्तियां भी प्राप्त हुई थी। उनके मतनुसार जिस स्थान पर बोधिसत्व की विशाल मूर्ति प्राप्त हुई थी वहां कोसम्ब कुटी नामक विहार था। उसी के उत्तर में गंधकुटी अथवा मुख्य मंदिर था। जिस समय श्री कर्निघम सहेट में भग्नावशेषों की खुदाई कर रहे थे। उन्होंने महेट के पश्चिम में स्थित जैन मंदिर सोमनाथ के खंडहरों में कुछ मूर्तियां प्राप्त की। उसके पश्चात इन्होंने पुनः खुदाई का कार्य किया और सन् 1885 में सहेट महेट के क्षेत्र में कुछ और स्मारक प्रकाश में लाये।


डॉक्टर होये द्वारा सबसे महत्वपूर्ण खोज में प्राप्त सन् 1119 में लिखा गया एक शिलालेख था। उसके बाद सन् 1908 में डाक्टर बोगले ने श्री दयाराम साहिनी के साथ लगभग तीन मास तक इस क्षेत्र के भग्नावशेषों की खुदाई करायी और बहुत सी महत्वपूर्ण वस्तुओं को प्रकाश में लाये। उन्होंने पक्की कुटी, कच्ची कुटी, एक स्तूप, जैन धर्म संबंधी सोमनाथ के मंदिर आदि का पता लगाया। कच्ची कुटी मे विशेष रूप से मिट्टी की मूर्तियां, खिलौने आदि मिले, जिनका कलात्मक और ऐतिहासिक महत्व है। सोमनाथ मंदिर से भी अनेक जैन मूर्तियां प्राप्त हुई। सहेट के क्षेत्र मेभी अनेक विहारो, स्तूपों और बोधिसत्व मूर्तियां, सिक्के, मृण मूर्तियां और मुहरें निकाली गई। इन वस्तुओं में सबसे महत्वपूर्ण एक अभिलिखित ताम्र पत्र था, जो कन्नौज के राजा गोविन्द चंद्र का दान पत्र है। इसी लेख के आधार पर विद्वानों ने सहेट को जैतवन का क्षेत्र और महेट को Shravasti का क्षेत्र प्रमाणित माना है।

श्रावस्ती ऐतिहासिक स्थलों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती ऐतिहासिक स्थलों के सुंदर दृश्य

सन् 1910-11 ईसवीं में विख्यात पुरातत्व विशेषज्ञ सर जॉन मार्सल की अध्यक्षता में श्री दयाराम साहनी ने पुनः इस क्षेत्र की खुदाई की और बहुत सी वस्तुएं पायी। इनमें बुद्ध मूर्ति की एक अभिलिखित चरण चौकी है, जिस पर जैतवन का उल्लेख है। |Shravasti और जैतवन मे जो मूर्तियां प्राप्त हुई है। उनमें से अधिकांश बौद्ध धर्म से संबंधित है। जैन और ब्राह्मण धर्म से संबंधित कम है। बौद्ध धर्म से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण चार मूर्तियां है। जिनकी स्थापना कृपाण काल मे हुई थी। यह मूर्तियां चित्तीदार लाल पत्थर की बनी हुई है। और मथुरा कला की द्योतिकाएं है। वास्तव में इतिहास के इस युग में मथुरा शिल्प कला का प्रमुख केन्द्र था। जहाँ से छोटी बडी मूर्तियां बनकर सारनाथ, कौशांबी, Shravasti, कुशीनगर, साची, राजगृह, तक्षशिला आदि स्थानों तक जाती थी। इन मूर्तियों मे कला की दृष्टि से सबसे सुंदर भगवान बुद्ध की एक छोटी मूर्ति है। जिसमें वे अभयमुद्रा मे सिहांसन पर बैठे है। मूर्ति की बनावट आश्चर्य जनक रूप से उन मूर्तियों से मिलती है। जो आज मथुरा संग्रहालय मे रखी हुई है। यह मूर्ति उत्तर कृपाण काल की है। और किसी चतुर कलाकार के कौशल को प्रदर्शित करती है।



लेकिन अभी तक Shravasti और जैतवन के अवशेषों में जितनी भी वस्तुएं प्राप्त की गई है। उनमें गुप्तकाल की उन्नत कला का प्रतिनिधित्व करने वाली कोई पाषाण मूर्ति नही मिली है। जिससे उस काल में इस क्षेत्र की उपेक्षा स्पष्ट है। चित्तीदार लाल पत्थर की बनी हुई कुबेर की मूर्ति में गुप्तकाल की समुन्नत कला की परम्परा का आभास मिलता तो है। लेकिन साथ ही साथ मध्यकालीन कला की विशेषताओं की छाया भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इसी समय की अर्धपर्यक मुद्रा में आबलोकितेश्वर की भी एक मूर्ति है। जिस पर सारनाथ और मगध की उत्तर गुप्तकाल की शैली की पूर्ण छाप है। इन मूर्तियों के अतिरिक्त श्रावस्ती से प्राप्त शेष मूर्तियां निश्चित रूप से मध्यकालीन अर्थात नवी, दसवीं शताब्दी की है। कच्ची कुटी में जो जैन धर्म की मूर्तियां प्राप्त हुई है। उनकी शैली उपयुक्त मूर्तियों से भिन्न है, और उन पर मध्य भारत अथवा राजस्थान की शैली का प्रभाव स्पष्ट है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है। जैतवन मे बौद्ध विहार आदि का निर्माण सबसे पहले अनाथपिंडक अथवा सुदत्त नाम के श्रेष्ठी ने किया था। यह विहार Shravasti का सर्वश्रेष्ठ विहार था। उसके पश्चात पूर्वाराम विहार का निर्माण विशाखा द्वारा जैतवन से उत्तर पूर्व में कुछ दूरी पर कराया था। जैतवन और श्रावस्ती की ऐतिहासिक इमारतों का धार्मिक महत्व एव वैभव बौद्ध ग्रंथों मे स्थान स्थान पर वर्णित है। किंतु समय परिवर्तन के कारण आज यहाँ इन इमारतों के भग्नावशेषों को छोड़ कुछ नही दिखाई पडता। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण इमारतों का वर्णन नीचे करेगें।

श्रावस्ती सहेट महेट के भग्नावशेषों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती सहेट महेट के भग्नावशेषों के सुंदर दृश्य

अब तक के अपने लेख मे हमनें श्रावस्ती का इतिहास, सहेट महेट का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ श्रावस्ती, श्रावस्ती क्यों प्रसिद्ध है, श्रावस्ती का अर्थ, श्रावस्ती धाम के बारे में जाना और उसके महत्व को समझा। अपने आगे के लेख में हम श्रावस्ती पर्यटन स्थल, सहेट महेट के मंदिर तथा श्रावस्ती बौद्ध धर्म स्थलों के बारें में विस्तार से जानेंगे।


श्रावस्ती दर्शनीय स्थल, Shravasti tourist place in hindi

जेतवन विहार


श्रावस्ती के आकर्षण स्थलों मे सबसे प्रमुख स्थल है। Shravasti ki yatra पर पहुंचने पर यात्री सबसे पहले जेतवन विहार के दर्शन के लिए लालायित रहते है।परंतु परंतु उसके चिन्ह विशेष न पाकर निराश हो जाते है। Shravasti का धनी व्यापारी अनाथपिंडक एक बार अपने बहनोई के यहां राजगृह गया था। उस समय राजगृह के उस सेठ ने भगवान बुद्ध को शिष्यों सहित अपने यहां निमंत्रित किया था। अनाथपिंडक भगवान बुद्ध से वही मिला और अत्यंत प्रभावित हुआ। और उनका अन्नया भक्त बन गया। इतना ही नहीं उसने उसी समय संघ सहित महात्मा बुद्ध को Shravasti आने का निमंत्रण भी दिया। Shravasti लौटने पर अनाथपिंडक ने भगवान बुद्ध के ठहरने के लिए स्थान की की खोज आरम्भ की और नगर से ठीक बाहर जेतकुमार के प्रसिद्ध उद्यान जेतवन को इस कार्य के लिए उपयुक्त समझा। और जेतकुमार से उद्यान बेचने का प्रस्ताव किया। जेतकुमार उद्यान को बेचने के मन मे नहीं था लेकिन फिर भी राजकुमार ने उत्तर दिया कि यदि उस क्षेत्र पर कोर से कोर मिलाकर स्वर्ण मुद्राएं बिछा दी जाये तो ही वह बिक सकेगा। अनाथपिंडक ने कहा तब तो यह उद्यान मैने ले लिया। यह बिका या नहीं इसका निर्णय कानून के मंत्री देगें। कानून के अधिकारियों ने कहा कि उद्यान बिक गया। क्योंकि उसका दाम बताया गया था। तब अनाथपिंडक ने कोर से कोर मिलाकर उस भूमि पर स्वर्ण मुद्राएं बिछा दी। एक बार मे लाया घया सोना एक द्वार के कोठे के बराबर थोडी सी जगह के लिए पर्याप्त नहीं हुआ।

श्रावस्ती सहेट महेट के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती सहेट महेट के सुंदर दृश्य

अतः अनाथपिंडक ने और सोना लाने की आज्ञा दी। तब राजकुमार ने कहा बस इस जगह पर स्वर्ण मुद्राएं मत बिछाओ। यह जगह मुझे दे दो। यह मेरा दान होगा। अनाथपिंडक ने वह जगह जेतकुमार को दे दी जहाँ उसने एक कोठा बनवाया। अनाथपिंडक के जेतवन खरीदने की कथा इतनी प्रचलित थी की भरहुत के तक्षकों ने इस दृश्य को वहां के वेष्टनि पर भी अंकित किया है। कथा के अनुसार अनाथपिंडक ने 18 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं को बिछाने के बाद 18 करोड़ और सर्वण मुद्राओं को विभिन्न इमारतों को बनवाने में खर्च किया, और विहारों, परिवेशों, कोटठको, उपन्धान शालाओ, उद्यानों, कुटियों तालाबों, पुष्करिणी, स्नागृहों तथा.मंडपों आदि. सभी सुविधाओं से लेस विहार का निर्माण कराया। उसके बाद जब महात्मा बुद्ध भ्रमण करते हुए वहां पधारे तो अनाथपिंडक ने जेतवन और उसकी समस्त इमारतों को महात्मा बुद्ध तथा उनके शिष्य संघ को दान कर दिया।


जातक निदान कथा के अनुसार सेठ अनाथपिंडक ने जेतवन के क्षेत्र के मध्य भाग में बुद्ध के रहने के लिए गंधकुटी का निर्माण करवाया था और उसके चारों ओर 80 प्रमुख बौद्ध शिष्यों के रहने के लिए निवास स्थान बनाये थे। ये निवास विविध रूपों के थे, साथ ही साथ उसने उन स्थानों को भी बनवाया था। जहाँ पर बुद्ध जी विश्राम करते थे। घूमा करते थे, एवं रात में शयन करते थे। बुद्ध घोप की रचना सुमंगल- विलासिनी से यह पता लगता है कि जेतवन में करेरी कुटी, कोसम्ब कुटी, गंधकुटी और सललगृह नाम के चार प्रमुख स्थान थे। इनमें से सललगृह की रचना राजा प्रसेनजित ने की थी, और बाकी तीनो कुटी का निर्माण अनाथपिंडक ने करवाया था।

पूर्वाराम


श्रावस्ती दर्शन क्षेत्र में पूर्वाराम विहार के खंडहर भी दर्शनीय है। जेतवन विहार के निर्माण के बाद इसके कुछ दूर पूर्व में पूर्वाराम नामक विहार था। जिसका निर्माण विशाखा नाम की एक उपासिका ने कराया था। वह Shravasti के पूर्व वर्धन नामक धनी व्यापारी की स्त्री तथा मिगार की पुत्रवधू थी। उसके पास मेलपलन्दना नामक एक अमूल्य आभूषण था। एक बार संयोग से भगवान बुद्ध का उपदेश सुनते समय उसका हार वहीं गिर गया जो उसे घर लौटने पर ज्ञात हुआ। तुरंत ही उसकी खोज शुरू हुई और भाग्य से वह विहार के उपदेश स्थल पर ही मिल गया। किंतु वह धर्म स्थान से प्राप्त होने के कारण उसे धारण करने को तैयार न हुई, और उसने संकल्प किया कि वह उसे बेचकर उसके मूल्य से वहां एक विहार का निर्माण करायेगी। अमूल्य होने के कारण Shravasti मे उसे खरीदने की किसी में शक्ति न थी। अतः उसने स्वयं ही 9 करोड की धनराशि में उसे खुद ही खरीद लिया और उसी धन से पूर्वाराम विहार का निर्माण कराया। भगवान बुद्ध ने Shravasti के अपने निवास काल में कुछ समय इस विहार में भी बिताया था।

श्रावस्ती सहेट महेट के खंडहरों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती सहेट महेट के खंडहरों के सुंदर दृश्य

आनंद बोधि वृक्ष


जेतवन विहार के ठीक सामने इस विशाल वृक्ष के दर्शन होते है। कहा जाता है कि यह वृक्ष महात्मा बुद्ध के समय का है। हालांकि इसका ठोस प्रमाण नहीं है। आनंद बोधि वृक्ष के विषय में.पजिवलिय नामक सिहली ग्रंथ में इस प्रकार कथा मिलती है कि जेतवन महाविहार की अनेक सुविधाओं की अपेक्षा भी महात्मा बुद्ध यहां केवल वर्षा ऋतु में ही ठहरते थे, शेष समय वे भ्रमण करके उपदेश देते फिरते थे। इससे भक्तजनों को उनके सम्पर्क में अधिक रहने का सौभाग्य न प्राप्त हो पाता था। अतः सबने महात्मा बुद्ध से प्रार्थना की कि वे अपना कोई स्थायी चिन्ह उनके लिए दे जिसकी उपासना ऊनकी अनुपस्थिति में भी की जा सके। महात्मा बुद्ध जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपने प्रधान शिष्य आनंद को बोधि वृक्ष की शाखा Shravasti में लगाने की आज्ञा दी। अनुमति प्राप्त होने पर देवशक्ति से सम्पन्न महा मोदगलायन वायु मार्ग से जाकर उक्त वृक्ष की शाखा लाये। सबकी इच्छा थी कि राजा प्रसेनजित ही उस शाखा का रोपण करें, परंतु उन्होंने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि राजा की शक्ति की स्थिरता निश्चित नहीं। अतः किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा उसका रोपण होना चाहिए जो चिरकाल तक उसकी रक्षा कर सके, तब यह कार्य अनाथपिंडक द्वारा सम्पन्न हुआ। महात्मा बुद्ध ने ईसके नीचे पूरी एक रात्रि ध्यानावस्था में व्यतीत कर इस वृक्ष की महत्ता एवं पवित्रता को और बढ़ा दिया था। तब से लेकर आज तक भक्तजन उस वृक्ष को भगवान बुद्ध. का रूप मानकर पूजते है।

राजकाराम


इसका विवरण संयुक्त निकाय की अटठ कथा मे मिलता है। राजा प्रसेनजित द्वारा बनाये जाने के कारण इसका नाम राजा का राम था। एक बार महात्मा बुद्ध Shravasti के राजकाराम मे निवास कर रहे थे। उस समय एक हजार भिक्षुणियों का संघ महात्मा बुद्ध के पास आया था। जातकट्ट कथा मे इसे पिटिठ विहार भी कहा गया है। जिसका अर्थ जेतवन के पिछे वाला विहार है।

श्रावस्ती दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य

गंधकुटी

श्रावस्ती टेम्पल या श्रावस्ती बुद्धा टेम्पल में यह स्थान श्रावस्ती धाम का मुख्य स्थान है। जेतवन के पूर्व में महात्मा बुद्ध के निवास के लिए कोठरी का निर्माण किया गया था। इसे गंधकुटी कहते है। श्रृद्धालुजन अब इस पर पुष्प आदि सुगंधित द्रव्य चढाते है। इस कुटी का द्वार पूर्व की ओर था तथा इसके आगे एक चबुतरा बना था जिस पर भोजनोपरांत खडे होकर महात्मा बुद्ध भिक्षु संघ को उपदेश दिया करते थे।



गंधकुटी परिवेष


गंधकुटी के समीप ही गंधकुटी परिवेण था जिसमें एक स्थान पर बुद्धासन रहता था, और यही बैठकर भिक्षु संघ महात्मा बुद्ध की वंदना करते थे।



द्वार कोट्ठक

इस कोट्ठक का निर्माण गंधकुटी के सामने किया गया था। जेतवन को खरीदते समय आनाथपिडक के प्रथम बार बिछाई गई स्वर्ण मुद्राओं से खाली रह गया उद्यान का वह क्षेत्र है। जिसे राजकुमार ने सेठ आनाथपिडक से मांग लिया था। और यहां इस कोटठक का निर्माण कराया था।


जेतवन पुष्करणी


द्वार कोटठक के पास ही इस पुष्करणी का निर्माण किया गया था। जातकटठक कथा के अनुसार इसकी कथा इस प्रकार है कि – एक बार कौशल देश में वर्षा न होने के कारण अकाल सा पड गया। सर सीरतांए सभी सूख गयी पशु पक्षी तक व्याकुल हो गये। महात्मा बुद्ध से ऊनकी दशा देखी न गई और उन्होंने पानी बरसाने का संकल्प किया। अतः भोजन के बाद विहार की ओर जाते समय वे पुष्करणी की सीढियों पर खडे हो गये, और अपने प्रमुख शिष्य से स्नान के लिए वस्त्र मांगा। वस्त्र आ जाने पर उसका एक छोर धारण कर तथा दूसरा सिर पर रखकर खडे हो गये। इसी समय पूर्व दिशा से बादल उमड आये और सम्पूर्ण देश में पर्याप्त वर्षा हुई। उक्त जल मे स्नान कर महात्मा बुद्ध ने लाल वस्त्र धारण किया। इसी पुष्करणी के समीप ही महात्मा बुद्ध का परम शत्रु देवदत्त जीवित ही भूमि मे धंस गया था। चीनी यात्रियों फाह्यान तथा हवेनसांग दोनों के ही अनुसार देवदत्त जेतवन में महात्मा बुद्ध को विश देने के इरादे से आया था। परंतु मार्ग मे ही उसकी यह दशा हुई।

श्रावस्ती सहेट महेट के भग्नावशेषों के सुंदर दृश्य
श्रावस्ती सहेट महेट के भग्नावशेषों के सुंदर दृश्य

जेतवन पुष्करणी


द्वार कोटठक के पास ही इस पुष्करणी का निर्माण किया गया था। जातकटठक कथा के अनुसार इसकी कथा इस प्रकार है कि – एक बार कौशल देश में वर्षा न होने के कारण अकाल सा पड गया। सर सीरतांए सभी सूख गयी पशु पक्षी तक व्याकुल हो गये। महात्मा बुद्ध से ऊनकी दशा देखी न गई और उन्होंने पानी बरसाने का संकल्प किया। अतः भोजन के बाद विहार की ओर जाते समय वे पुष्करणी की सीढियों पर खडे हो गये, और अपने प्रमुख शिष्य से स्नान के लिए वस्त्र मांगा। वस्त्र आ जाने पर उसका एक छोर धारण कर तथा दूसरा सिर पर रखकर खडे हो गये। इसी समय पूर्व दिशा से बादल उमड आये और सम्पूर्ण देश में पर्याप्त वर्षा हुई। उक्त जल मे स्नान कर महात्मा बुद्ध ने लाल वस्त्र धारण किया। इसी पुष्करणी के समीप ही महात्मा बुद्ध का परम शत्रु देवदत्त जीवित ही भूमि मे धंस गया था। चीनी यात्रियों फाह्यान तथा हवेनसांग दोनों के ही अनुसार देवदत्त जेतवन में महात्मा बुद्ध को विश देने के इरादे से आया था। परंतु मार्ग मे ही उसकी यह दशा हुई।


उपस्थान शाला

खुद्दक निकाय के अनुसार संध्या समय इसी स्थल पर महात्मा बुद्ध एकत्रित शिष्यों को उपदेश देते थे।


स्नान कोटठक

इसका उललेख आंगुत्तर निकाय के अटठकथा में किया गया है। तीसरे पहर उपदेश आदि देने के पश्चात जब महात्मा बुद्ध स्नान करना चाहते थे तो अपने आसन से उठकर इसी स्थान पर स्नान करते थै। गंधकुटी के पास वाला कूप भी इसी के निकट था।


जंताघर

धम्मपद के काव्य से यह ज्ञात होता है। कि जंताघर स्नान करने का स्थान था, जो संघाराम के निकट बनाया गया था। इसमें पानी गरम करने के लिए आग भी जलायी जाती थी। इसलिए इसको अग्निशाला भी कहते है।



आसनशाला

इसमें पानी भरने वाले लोग रहते थे।


जंताघर शाला

इस स्थान पर प्रव्रज्या दी जाती थी।


सुन्दरी परिव्राजिका

जेतवन के सम्बंध में एक सुंदरी की हत्या की भी कथा मिलती है। इस कथा को महात्मा बुद्ध के शत्रुओं ने उनकों बदनाम करने के लिए गढ़ा था। कहा जाता है कि बुद्ध जी के शत्रु रोज सुंदरी को महात्मा बुद्ध के पास भेजते थे। एक दिन उन लोगों ने उसकी हत्या कर डाली और महात्मा बुद्ध को लांछित करना चाहा। महाराजा प्रसेनजित को जब इस षड्यंत्र का पता लगा तो उन्होंने उन लोगों को मनुष्य दंड दिया।


परिखा

उपयुक्त कथा से यह ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र के चारों ओर एक परिखा (खाई) भी थी। क्योंकि महात्मा बुद्ध के शत्रुओं ने ईसी परिखा में सुंदरी के शव को छिपा रखा था।


तीर्थकाराम

इस बात का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है कि Shravasti का क्षेत्र केवल बौद्धों के लिए ही नहीं वरन जैनों के लिए भी पवित्र था। जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभनाथ का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। बौद्ध साहित्य में यहां के दिग्म्बर जैनों का उल्लेख अनेक स्थानों पर आया है।


आंधवन

Shravasti से लगभग दो मील की दूरी पर एक और प्रसिद्ध स्थान था। जिसे आंधवन कहते थे। चीनी यात्री फाहियान के अनुसार इस स्थान पर 500 अंध भिक्षु निवास करते थे। एक दिन महात्मा बुद्ध जी ने उनके कल्याण के लिए धर्म उपदेश दिया, उसे सुनते ही उनको दृष्टि प्राप्त हो गई।


कच्ची कुटी या अंगुलीमाल गुफा

श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र के महेट में बौद्ध कालीन दुर्दात डाकू अंगुलिमाल की गुफा स्थित है। बौद्ध साहित्य के अनुसार तथागत महात्मा बुद्ध के सानिध्य में आकर खूंखार डाकू अंगुलिमाल क्रूरता छोड़ अहिंसा का पुजारी बन गया था। इसलिए बौद्ध अनुयायियों में इस स्तूप का विशेष महत्व है। सैकड़ों वर्ष पुरानी यह बौद्ध धरोहर कच्ची कुटी के नाम से जानी जाती है। जिसकी देखरेख पुरातत्व विभाग करता है




उपयुक्त प्राचीन स्थानों के अतिरिक्त Shravasti में वर्तमान में बनाये गए नए मंदिर, व मठ भी है। जिनमें एक बर्मी मंदिर तथि धर्मशाला तथा एक चीनी मंदिर, और थाई मंदिर भी है। जो हाल ही की बौद्ध धर्म के प्रति बढ़ती हुई अभिरुचि का परिणाम है।

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राधा कुंड :- उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर को कौन नहीं जानता में समझता हुं की इसका परिचय कराने की
प्रिय पाठको पिछली पोस्टो मे हमने भारत के अनेक धार्मिक स्थलो मंदिरो के बारे में विस्तार से जाना और उनकी
गोमती नदी के किनारे बसा तथा भारत के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ दुनिया भर में अपनी
इलाहाबादउत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर है। यह प्राचीन शहर गंगा यमुना सरस्वती नदियो के संगम के लिए जाना जाता है।
प्रिय पाठको अपनी उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान हमने अपनी पिछली पोस्ट में उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख व धार्मिक
प्रिय पाठको अपनी इस पोस्ट में हम भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के एक ऐसे शहर की यात्रा करेगें जिसको
मेरठ उत्तर प्रदेश एक प्रमुख महानगर है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित
उत्तर प्रदेश न केवल सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है बल्कि देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य भी है। भारत
बरेली उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला और शहर है। रूहेलखंड क्षेत्र में स्थित यह शहर उत्तर
कानपुर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और यह भारत के सबसे बड़े औद्योगिक शहरों में से
भारत का एक ऐतिहासिक शहर, झांसी भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों में से एक माना जाता है। यह
अयोध्या भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। कुछ सालो से यह शहर भारत के सबसे चर्चित
मथुरा को मंदिरो की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक
चित्रकूट धाम वह स्थान है। जहां वनवास के समय श्रीराजी ने निवास किया था। इसलिए चित्रकूट महिमा अपरंपार है। यह
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद महानगर जिसे पीतलनगरी के नाम से भी जाना जाता है। अपने प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर
कुशीनगर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर है। कुशीनगर को पौराणिक भगवान राजा राम के पुत्र कुशा ने बसाया
उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों में से एक पीलीभीत है। नेपाल की सीमाओं पर स्थित है। यह
सीतापुर – सीता की भूमि और रहस्य, इतिहास, संस्कृति, धर्म, पौराणिक कथाओं,और सूफियों से पूर्ण, एक शहर है। हालांकि वास्तव
अलीगढ़ शहर उत्तर प्रदेश में एक ऐतिहासिक शहर है। जो अपने प्रसिद्ध ताले उद्योग के लिए जाना जाता है। यह
उन्नाव मूल रूप से एक समय व्यापक वन क्षेत्र का एक हिस्सा था। अब लगभग दो लाख आबादी वाला एक
बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी
उत्तर प्रदेश भारत में बडी आबादी वाला और तीसरा सबसे बड़ा आकारवार राज्य है। सभी प्रकार के पर्यटक स्थलों, चाहे
अमरोहा जिला (जिसे ज्योतिबा फुले नगर कहा जाता है) राज्य सरकार द्वारा 15 अप्रैल 1997 को अमरोहा में अपने मुख्यालय
प्रकृति के भरपूर धन के बीच वनस्पतियों और जीवों के दिलचस्प अस्तित्व की खोज का एक शानदार विकल्प इटावा शहर
एटा उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, एटा में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें मंदिर और
विश्व धरोहर स्थलों में से एक, फतेहपुर सीकरी भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक है।
नोएडा से 65 किमी की दूरी पर, दिल्ली से 85 किमी, गुरूग्राम से 110 किमी, मेरठ से 68 किमी और
उत्तर प्रदेश का शैक्षिक और सॉफ्टवेयर हब, नोएडा अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है। यह राष्ट्रीय
भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, गाजियाबाद एक औद्योगिक शहर है जो सड़कों और रेलवे द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा
बागपत, एनसीआर क्षेत्र का एक शहर है और भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में एक नगरपालिका बोर्ड
शामली एक शहर है, और भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में जिला नव निर्मित जिला मुख्यालय है। सितंबर 2011 में शामली
सहारनपुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, जो वर्तमान में अपनी लकडी पर शानदार नक्काशी की
ऐतिहासिक और शैक्षिक मूल्य से समृद्ध शहर रामपुर, दुनिया भर के आगंतुकों के लिए एक आशाजनक गंतव्य साबित होता है।
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के पश्चिमी भाग की ओर स्थित एक शहर है। पीतल के बर्तनों के उद्योग
संभल जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। यह 28 सितंबर 2011 को राज्य के तीन नए
बदायूंं भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और जिला है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में
लखीमपुर खीरी, लखनऊ मंडल में उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह भारत में नेपाल के साथ सीमा पर स्थित
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, शाहजहांंपुर राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खान जैसे बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मस्थली
रायबरेली जिला उत्तर प्रदेश प्रांत के लखनऊ मंडल में स्थित है। यह उत्तरी अक्षांश में 25 ° 49 ‘से 26
दिल्ली से दक्षिण की ओर मथुरा रोड पर 134 किमी पर छटीकरा नाम का गांव है। छटीकरा मोड़ से बाई
नंदगाँव बरसाना के उत्तर में लगभग 8.5 किमी पर स्थित है। नंदगाँव मथुरा के उत्तर पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर
मथुरा से लगभग 50 किमी की दूरी पर, वृन्दावन से लगभग 43 किमी की दूरी पर, नंदगाँव से लगभग 9
सोनभद्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। सोंनभद्र भारत का एकमात्र ऐसा जिला है, जो
मिर्जापुर जिला उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। यह जिला उत्तर में संत
आजमगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है। यह आज़मगढ़ मंडल का मुख्यालय है, जिसमें बलिया, मऊ और आज़मगढ़
बलरामपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बलरामपुर जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह राप्ती नदी
ललितपुर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में एक जिला मुख्यालय है। और यह उत्तर प्रदेश की झांसी डिवीजन के अंतर्गत
बलिया शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक खूबसूरत शहर और जिला है। और यह बलिया जिले का
उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) से उत्तर की ओर सारनाथ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। काशी से सारनाथ की दूरी
कौशांबी की गणना प्राचीन भारत के वैभवशाली नगरों मे की जाती थी। महात्मा बुद्ध जी के समय वत्सराज उदयन की
बौद्ध अष्ट महास्थानों में संकिसा महायान शाखा के बौद्धों का प्रधान तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल
त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क
शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान
आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म
कम्पिला या कम्पिल उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है। यह उत्तर रेलवे की
अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित है। आंवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सडक मार्ग द्वारा 18
देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण पश्चिम में 31 किलोमीटर
उत्तर प्रदेश की की राजधानी लखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ
नाका गुरुद्वारा, यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में स्थित है। नाका गुरुद्वारा साहिब के बारे में कहा जाता है
आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन
गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में
रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा
उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात
रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग
भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान
कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा
महोबा का किलामहोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी
सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग परउरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में
जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर
बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुरझांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर
चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील
उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या
उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर
कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई
कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक
तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी – सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील
लक्ष्मण टीले वाली मस्जिद लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है। बड़े इमामबाड़े के सामने मौजूद ऊंचा टीला लक्ष्मण
लखनऊ का कैसरबाग अपनी तमाम खूबियों और बेमिसाल खूबसूरती के लिए बड़ा मशहूर रहा है। अब न तो वह खूबियां रहीं
लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास
गोल दरवाजे और अकबरी दरवाजे के लगभग मध्य में फिरंगी महल की मशहूर इमारतें थीं। इनका इतिहास तकरीबन चार सौ
सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842
सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका
अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख
मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच ‘मोती महल’ का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने
खुर्शीद मंजिल:- किसी शहर के ऐतिहासिक स्मारक उसके पिछले शासकों और उनके पसंदीदा स्थापत्य पैटर्न के बारे में बहुत कुछ
बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस
नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत
ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक किसी शहर के समृद्ध अतीत की कल्पना विकसित करते हैं। लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा उन शानदार स्मारकों
शाही नवाबों की भूमि लखनऊ अपने मनोरम अवधी व्यंजनों, तहज़ीब (परिष्कृत संस्कृति), जरदोज़ी (कढ़ाई), तारीख (प्राचीन प्राचीन अतीत), और चेहल-पहल
लखनऊ पिछले वर्षों में मान्यता से परे बदल गया है लेकिन जो नहीं बदला है वह शहर की समृद्ध स्थापत्य
लखनऊ शहर के निरालानगर में राम कृष्ण मठ, श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। लखनऊ में
चंद्रिका देवी मंदिर– लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है और यह शहर अपनी धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के
1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के बाद लखनऊ का दौरा करने वाले द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर श्री
इस बात की प्रबल संभावना है कि जिसने एक बार भी लखनऊ की यात्रा नहीं की है, उसने शहर के
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही मनोरम और प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक मांग वाला पर्यटन स्थल, गोमती नदी
लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर
इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का
लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस
एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले शहर बिठूर की यात्रा के बिना आपकी लखनऊ की यात्रा पूरी नहीं होगी। बिठूर एक सुरम्य

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