शीशगंज साहिब का इतिहास – शीशगंज गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी Naeem Ahmad, May 19, 2019March 11, 2023 गुरुद्वारा शीशगंज साहिब एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण गुरुद्वारा है जो सिक्खों के नौवें गुरु तेग बहादुर को समर्पित है। जिन्होंने ने पहले गुरु नानक जी की भावना को जारी रखा। यह वह स्थान जहाँ गुरु तेगबहादुर जी को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा फांसी देकर शहीद किया गया था। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक की घनी आबादी में स्थित है। और बाद में सिक्खों द्वारा यहां एक गुरुद्वारे का निर्माण किया गया। और यहां सभी सिख गुरुद्वारो की तरह, यह सभी धर्मों और जातियों के लोगों के लिए खुला है। यहाँ एक क्लोक रूम भी है जहाँ आप सुरक्षित रूप से अपना सामान रख सकते हैं। आपको गुरुद्वारा में नंगे पैर प्रवेश करना है। प्रवेश करने से पहले अपने हाथ, पैर धोएं, अपने सिर को कपड़े से ढकें (वे भी गुरुद्वारा द्वार द्वारा प्रदान किए जाते हैं) और फिर आप मुख्य हॉल में प्रवेश कर सकते हैं। सुबह से देर रात तक कीर्तन (संगीत प्रार्थना) जारी रहता है। कुल मिलाकर यह एक शांत, अध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थान है। आगे के अपने इस लेख में हम गुरूद्वारा शीशगंज साहिब का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ शीशगंज साहिब, शीशगंज गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी, मे जानेगें।शीशगंज गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिंदी – शीशगंज गुरूद्वारे का इतिहासयह गुरुद्वारा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से आधा किमी दूर चांदनी चौक में स्थापित है। गुरूद्वारा साहिब मुख्य मार्ग पर स्थापित है। गुरूद्वारा शीशगंज साहिब की स्थापना सन् 1783 में सरदार बघेल सिंह द्वारा की गई थी।कहा जाता हैं कि जब सिक्खों के नौवें गुरु, गुरु तेगबहादुर जी अपने साथी भाई मतीदास, भाई दयाल दास, भाई सतीदास, भाई गुरूदित्ता के साथ आनन्दपुर साहिब से दिल्ली की ओर आ रहे थे, तो औरंगजेब ने आदेश दिया कि गुरु जी को गिरफ्तार कर उनके सामने लाया जाये। इसके पहले ही सतगुरु तेगबहादुर जी आगरा में गिरफ्तार हो चुके थे। औरंगजेब ने 1200 घुड़सवारों की एक टुकड़ी आगरा भेजी गुरू जी को लाने के लिए। औरंगजेब का आदेश था कि सतगुरु को पूर्ण आदर सम्मान दिया जाये। सदगुरू तेगबहादुर जी अपने पांच सिक्खों के साथ अपने घोडों पर चढ़कर दिल्ली आये।प्रातःकाल औरंगजेब के सामने सदगुरू तेगबहादुर जी को पेश किया गया। औरंगजेब ने उनसे कहा कि — मैं चाहता हूँ कि संसार में केवल एक धर्म इस्लाम रहे, हिन्दू धर्म को मैं जड़ से मिटा देना चाहता हूँ। अतः आप इस्लाम धर्म स्वीकार करें, इसके बदले में मैं आपको अनेकों उपहार और सुविधाएं दूंगा।शीशगंज साहिब गुरूद्वारे के सुंदर दृश्यसदगुरू तेगबहादुर जी ने जवाब दिया— कि संसार में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख अनेकों धर्म है, प्रत्येक मनुष्य ईश्वर की इच्छा से अपना जीवन व्यतीत करता है। अतः मुझे आपका प्रस्ताव मंजूर नहीं है।औरंगजेब ने उनको जेल में डाल दिया। औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी को बहुत लोभ और लालच दिया, परंतु गुरू तेगबहादुर जी किसी भी लोभ और लालच के आगे नहीं झुके। तब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को टार्चर करना शुरू कर दिया। उन्हें लोहे के पिंजरे में बंद कर दिया गया परंतु गुरू तेगबहादुर जी रंचमात्र भी नहीं झुके। गुरूदेव की इस बात से क्रोधित औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी को चांदनी चौक पर फांसी देने का हुक्म जारी कर दिया। इससे पहले दिल्ली के अनेक मौलवियों ने गुरु तेगबहादुर से मिलकर उनसे दरख्वास्त की कि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले। अपने प्राणों की आहुति न दे। परंतु गुरू तेगबहादुर जी ने जवाब दिया कि अपने धर्म की रक्षा के लिए मुझे मौत स्वर्ग से भी ज्यादा प्रिय हैं।आज जिस स्थान पर गुरूद्वारा शीशगंज साहिब स्थापित है। फांसी के लिए उस स्थान को चुना गया था। सदगुरू तेगबहादुर जी को एक पेड़ से बांध दिया गया, सदगुरू गुरूवाणी का जाप करते रहे, सदगुरू का मंत्रजाप समाप्त होने पर काजी के आदेश पर जल्लाद जलालुद्दीन ने तलवार से गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटकर उन्हें शहीद कर दिया। सदगुरू का शीश उनके धड़ से अलग होकर गिरा पड़ा, उसी समय एक तूफान का झोंका आया। भाई जैता सिंह ने गुरु के शीश को उठा लिया और आनन्दपुर साहिब चले गये। सदगुरू तेगबहादुर जी के शीश का अंतिम संस्कार आनन्दपुर साहिब में किया गया और धड़ का संस्कार गुरूद्वारा रकाबगंज साहिब दिल्ली वाले स्थान पर किया गया।गुरूद्वारा शीशगंज साहिब का स्थापत्यगुरूद्वारा शीशगंज साहिब का मुख्य दरबार हाल जिसमें श्री गुरू ग्रंथ साहिब स्थापित है, यह हाल लगभग 150 फुट लम्बा और 40 फुट चौड़ा है। 10 सीढियांचढ़ने के बाद लगभग 7 फुट ऊंची जगती पर दरबार हाल विराजित है। हाल के अंदर लगभग 20×10 वर्ग फुट में पालकी साहिब है। प्रातःकाल से ही यहां गुरूवाणी का प्रवाह निरन्तर होता रहता है। यहा 4×3 फुट लम्बी चौडी और लगभग 4 फुट ऊंची स्वर्ण सम्भे युक्त स्वर्ण पालकी पर श्री गुरू ग्रंथ साहिब शुशोभित है। ग्रंथी साहिब द्वारा निरंतर चवर डुलाया जाता हैं। सम्मपूर्ण दरबार हाल को सुंदर स्वेत संगमरमर के पत्थरों से सजाया गया है। दरबार हाल के द्वारों और पालकी साहिब की सज्जा नित्य सुंदर पुष्पों से की जाती है। गुरूद्वारे का स्वर्ण मंडित गुम्बद जो दूर से ही दिखाई देता है।गुरूद्वारा शीशगंज साहिब परिसर में जोड़ा घर, किताब घर, तथा लंगर हॉल भी स्थापित है। जहां छोटे बडे़ सभी लोग कार सेवा करते है। लंगर में प्रतिदिन हजारों भक्तगण निशुल्क लंगर छकते है। तथा यहां निशुल्क सुजी के हलवे का प्रसाद भक्तों में वितरण किया जाता है। गुरूद्वारा शीशगंज साहिब का क्षेत्रफल लगभग 4 एकड़ का है। गुरूद्वारे का मुख्य भवन लगभग 80 फुट ऊंचा है। जिसका शिखर चार छतरियों के साथ स्वर्ण मंडित है।।भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’6818′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in 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