श्रीमान्तुकोजीराव होलकर द्वितीय के बाद उनके पुत्र महाराजा शिवाजीराव होलकर सन् 1886 की 3 जुलाई को इंदौर राज-सिंहासन पर बिराजे। इस समय आपकी अवस्था 33 वर्ष की थी। श्रीमान बड़े विद्याप्रेमी थे और अंग्रेजी भाषा पर अपका बड़ा अप्रतिहत अधिकार था। सिंहासनारूढ़ होने के थोड़े समय बाद श्रीमान् ने प्रख्यात् मुसद्दी दीवान बहादुर आर० रघुनाथराव सी० एस० आई०, सी० आई० ई० को मद्रास से बुला कर प्रधान मंत्री के उच्च पद पर नियुक्त किया। सन् 1887 में महाराजा शिवाजीराव होलकर अपने योग्य प्रधान मंत्री को शासन भार सौंप कर इंग्लैंड की यात्रा के लिये पधारे। वहां आप श्रीमती सम्राज्ञी के ज्युबिली महोत्सव में शामिल हुए। आपने इंग्लेंड में अच्छा प्रभाव उत्पन्न किया। कई सम्माननीय व्यक्तियों के साथ आपकी मैत्री हो गई। इसी समय श्रीमती सम्राज्ञी विक्टोरिया ने आपको जी० सी० एस० आई० की उपाधि से विभूषित किया।
महाराजा शिवाजीराव होलकर का परिचय
इंग्लेंड का सफर कर श्रीमान ने स्विट्जरलैंड, फ्रांस आदि कई यूरोपीय देशों की यात्रा की। आपने यूरोप के सामाजिक जीवन का खूब अध्ययन किया। इसके बाद आप भारत पधारे और यहां भी आपने यात्रा का सिलसिला शुरू रखा। आपने भारत के अनेक राजा महाराजाओं से मित्रता का सम्बन्ध स्थापित किया। शिवाजीराव होलकर ने अनेक लोकोपकारी कार्य किये। सन् 1887 में सम्राज्ञी विक्टोरिया के ज्युबिली दिवस को चिरस्मरणीय रखने के लिये आपने एक नया अस्पताल खोला। सन् 1889 में आपने तुकोजीराव अस्पताल का उद्घाटन किया। इंदौर का यह अस्पताल दूर दूर तक मशहूर है और हजारों रोगी इसके द्वारा आरोग्य लाभ करते है।
सन् 1889 में श्रीमान् ने इंदौर में टेक्निकल इंस्टीट्यूट नाम की संस्था खोली। सन् 1891 में आपने उच्च शिक्षा के लिये एक कॉलेज खोला जो होल्कर कॉलेज के नाम से मशहूर है। यहां बी० ए० तक की शिक्षा दी जाती है। प्रयाग विश्वविद्यालय के अन्तर्गत कॉलेजों में इसकी विशेष ख्याति है। श्रीमान् महाराजा शिवाजीराव होलकर उच्च श्रेणी के शिक्षित थे। अंग्रेजी पर तो आपका इतना अव्याहत अधिकार था कि उसे आप मातृभाषा की तरह बोलते थे। भारत वर्ष की कई भाषाओं का आपका ज्ञान था। आपका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था। आपके मुख मंडल पर बड़ी ही तेजदिखलाई पड़ता था। आप बडी उदार प्रकृति के थे। पूने के फग्यूसन कॉलेज आदि संस्थाओं को आपने मुक्तहस्त से दान दिया था। आपको मकान बनवाने का बड़ा शौक था। इंदौर का शिवविलास महल, सुखविलास महल तथा बढ़वाह का दरियाव महल आप ही के बनवाये हुए हैं।
श्रीमान के राज्यकाल में भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड लेन्सडाउन और लॉर्ड एलगिन इंदौर पधारे। श्रीमान् ने बड़े उत्साह से उनका स्वागत किया था। ग्वालियर के महाराजा भी श्रीमान से मिलने के लिये इंदौर पधारे थे। श्रीमान ने बड़ी ही उमंग के साथ आपका आतिथ्य सत्कार किया था। सन् 1899-1900 में भारत वर्ष में बड़ा भीषण अकाल पड़ा था। यह अकाल करोड़ों गरीब भारतवासियों को चट कर गया। इस भीषण अकाल के समय शिवाजीराव होलकर ने अपनी प्रिय प्रजा के लिये जगह जगह
गरीब खाने खोल दिये। इन गरीबखानों में हजारों भूखों को अन्न मित्रता था। इस कार्य में इंदौर राज्य के लाखों रुपये खर्च हुए थे।
सन् 1903 में अस्वास्थ्य के कारण श्रीमान् ने राज-कार्य से अवसर ग्रहण किया ओर अपने पुत्र महाराजा तुकोजीराव बहादुर (तृतीय) को राज्य-सिंहासन पर आसीन किया। इस समय बालक महाराजा की उम्र 13 साल की थी। महाराजा की नाबालिग अवस्था में राज्य कार्य संचालन के लिये शर्तों के साथ रिजेन्सी कौंसिल नियुक्त की गई। इस कोंसिल का अध्यक्ष रेसिडेन्ट था। इंदौर राज्य के अत्यन्त अनुभवी दीवान राय बहादुर नानकचन्द जी उनके प्रधान सहायक थे। उक्त राय बहादुर महोदय की असाधारण शासन क्षमता और अपूर्व राजनीतिज्ञता तथा समय सूचकता में कोई सन्देह नहीं कर सकता । सभी लोग उनके इन गुणों के कायल थे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि रिजेन्सी कौंसिल ने अपने कन्धे पर रखे हुए जिम्मेदारी के कार्य को बड़ी ही योग्यता के साथ संचालित किया। उसने राज्य कार्य में अनेक सुधार कर डाले। उसने ज्यूडिशियल, पुलिस, रेव्हेन्यू, जंगलात, शिक्षा, मेडिकल, जेल, पब्लिक वर्क्स, म्युनिसिपलिटी, सायर, एक्साइज आदि विभागों में सुधार कर उन्हें पुनर्गठित किया। स्थानीय प्रजा के योग्य मनुष्य राज्य कार्य के भिन्न भिन्न विभागों की शिक्षा प्राप्त करने के लिये बाहर भेजे गये। कइयों को पोस्ट ग्रेजुएट स्कॉलरशिप भी दी गई। अस्पताल और न्यायालय तथा अन्य कचहरियों के लिये इंदौर शहर और कस्बों में नये मकान बनवाये गये। इन कार्यों में रियासत के 5313503 रुपये खच हुए । 281
मील लम्बाई की पक्की सड़कें बनवाई गई जिनमें 4524853 रुपये खर्च हुए। पुरानी इमारतों की मरम्मत करवाने मे 4281042 रुपये लगे। तालाव और कुओं के बनवाने में रियासत ने 4251042 रुपये खर्च किये।
इंदौर शहर में पानी के सुविधा के लिये जो महान योजना की गई थी, उसमें 20 लाख रुपये व्यय हुए। एक बिजली का कारखाना भी खोला गया। इंदौर में एक नमूनेदार टाउनहाल बनवाया गया। इसका उदघाटनोत्सव तत्कालीन प्रिन्स ऑफ वेल्स ने किया। हाईकोर्ट के लिये नई इमारत बनाई गई। सारे शहर में टेलीफोन लगा दिये गये। नागदा-मथुरा रेलवे नामक एक नई लाइन खुली जिसके लिये रियासत की ओर से मुफ्त में जमीन दी गई। राज्य के योग्य और अनुभवी अफसरों द्वारा पैमाइश की गई। इस प्रकार अनेक महत्वपूर्ण कार्य कौंसिल ऑफ रिजेन्सी के जमाने में किये गये।
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