शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगम

बेगम शम्सुन्निसा

बेगम शम्सुन्निसा लखनऊ केनवाब आसफुद्दौला की बेगम थी।
सास की नवाबी में मिल्कियत और मालिकाने की खशबू थी तो बहू की नवाबी में मासूमियत और अनजानेपन का रंग भी कुछ कम न था। नवाब आसफुद्दौला की पहली शादीदिल्ली के दीवान खानदान के इमामुद्दीन ख़ाँ उर्फ़ इस्तियाज़ उद्दौला की बेटी शम्सुन्निसा से हुई थी।

शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगम

सन्‌ 1769 में फ़ैजाबाद में हुई इस शादी में सिर्फ़ 24 लाख रुपये खर्च हुए थे और वो भी उस ज़माने में जब रुपये का तीस सेर गेहूँ मिलता था। इस ब्याह में शिरकत करने के लिए दिल्‍ली के
बादशाह शाह आलम और शोलापुरी बेगम भी आई थीं।

बेगम शम्सुन्निसा
बेगम शम्सुन्निसा

शम्सुन्निसा लखनऊ के दौलतखाना शीशमहल में सात परदों में रहने वाली बेगम थीं। नवाब से उनकी अधिक बनी नहीं, इसलिए वो महल के दायरे में इस कदर बंध कर रह गईं कि उन्हें बाहरी दुनिया की कोई खबर ही न थी। वह इतनी भोली और नादन थी कि उनके जैसा नादान महल बेगम पूरे अवध में मिलना मुश्किल होगा। उनको ये तक न मालूम था कि गेहूँ दरख्त पर उगता है या खानों से बरामद होता है। मियाँ दाराब अली खाँ ख़्वाजासरा, जो लखनऊ के एक मुहल्ले सराय माली खाँ में रहता था, बेगम के महल का ड्योढ़ीदार था।

सन्‌ 1784 में नवाब आसफुद्दौला के वक्‍त में जब मशहूर अकाल पड़ा था तो कितने ही किसान और मज़दूर भूखों मरने लगे थे। ऐसे में गरीब जनता शीश महल के दौलतख़ाने के बाहर इकट्ठी होकर अपने सखीदाता नवाब के नाम की दुहाई देने लगी। रियाया के अनुरोध पर बेगम शम्सुन्निसा को भी राजवधू होने के नाते महल सराए सुल्तानी के बारजे पर चिलमन तक आना पड़ा। उन्हें मालूम हो चुका था कि जनता को इस वक़्त खाने-पीने की सख्त मुसीबत उठानी पड़ रही है। आपने महल के नीचे खड़ी भीड़ का सलाम क़बूल फ़रमाया और फिर बड़े प्यार से पूछा, “क्या तुम लोग खाने को कुछ भी नहीं पाते हो ?” आलम ने जवाब दिया, “मालकिन, कुछ भी नहीं ।” ऊपर से फिर सवाल पूछा गया, “अरे क्या, कुछ भी नहीं यानी क्‍या हलवा-पूरी भी नहीं खा सकते ?

इतना सुनते ही भीड़ दुहाई दे-देकर रोने लगी और नवाब आसफुद्दौला ने बेगम को वहां से फ़ौरन रफ़ा-दफ़ा करवा दिया। उसके बाद बड़े इमामबाड़े का नक्शा बनाया जाने लगा और इस तरह 22000 लोगों की रोज़ी-रोटी का एक अजीब इन्तजाम हुआ। विधवा होने के बाद अवध के प्रथम बादशाह गजीउद्दीन हैदर के अह॒द में बेगम शम्सुन्निसा प्रताप गंज की अपनी ही जागीर में रहती थीं। इलाहाबाद में उनका इन्तकाल हुआ और फिर उनकी लाश को लखनऊ लाकर दफनाया गया।

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