जम्मू कश्मीर राज्य के कटरा गाँव से 12 किलोमीटर की दूरी पर माता वैष्णो देवी का प्रसिद्ध व भव्य मंदिर है। यह प्रसिद्ध मंदिर उत्तर भारत के सबसे पवित्र व पूजनीय स्थलों में से एक है। यह मंदिर त्रिकुटा हिल्स में पहाड़ी पर लगभग 5200 फीट की ऊचाई पर स्थित है। हसीन वादियों में गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। कहते है कि पहाड़ों वाली माता भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली उनके दुखों को हरने वाली उनकी दिक्कतों को खत्म करने वाली शेरा वाली माता आदिशक्ति वैष्णो देवी माता के एक बुलावे पर भक्त माता के माता के दर्शन के लिए दौडे चले आते है। चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है गीत गाते तथा माता के जयकारे लगाते हुए भक्तों की टोलिया माता के दर्शन के लिए कठिन परिश्रम करते हुए माता रानी के दरबार पहुँचते है। आज हम आपको इस पवित्र पावन माँ वैष्णो देवी यात्रा की जानकारी इस पोस्ट में साझा करेंगे।
माँ वैष्णो देवी की कथाएँ
माँ वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित है। इनमे से दो सबसे अधिक प्रचलित कथाओं का वर्णन हम यहाँ करेंगे। क्योंकि जहाँ भी हम यात्रा पर जाते है तो वहाँ के इतिहास और महत्व की जानकारी के बिना यात्रा अधूरी रहती है। प्रथम प्रचलित कथा के अनुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान में कटरा कस्बे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हंसाली गाँव में माँ वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि: संतान होने से दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या के वेश में उन्हीं के बीच आ बैठी। पूजन के बाद सभी कन्याएँ तो चली गई पर माँ वैष्णो वहीं रही और श्रीधर से बोली सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आसपास के गावों मे भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। वहाँ से लौटकर आते समय गुरू गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गाँववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है। जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है। इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गाँवासी आकर भोजन के लिए एकत्रित हुए तब कन्या रूपी माँ वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई तब उसने कहा में तो खीर पूड़ी की जगह मांस भक्षण और मदिरापान करूंगा। तब कन्या रूपी माँ ने समझाया कि यह ब्राह्मण के यहाँ का भोजन है। इसमें मांसाहार नहीं किया जाता किन्तु भैरवनाथ जानबूझकर अपनी बात पर अडा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडना चाहा तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ ने वायु रूप धारण कर त्रिकुट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनका पिछा करते हुए उनके पिछे-पिछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। मान्यता के अनुसार उस वक्त भी हनुमान जी माँ की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे। हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चला कर एक जलधारा निकाला और उस जल में अपने केश धोएँ। आज यह पवित्र धारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है। इसके पवित्र जल का पान करने या स्नान करने से श्रृद्धालुओ की सारी थकावट और तकलीफ़ दूर हो जाती है। इस दौरान माँ ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की भैरवनाथ भी उनका पिछा करते हुए वहाँ तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है। वह आदिशक्ति जगदम्बा है। इसलिए उस महा शक्ति का पिछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर मार्ग बना कर बाहर निकल गई। यह गुफा आज भी अर्धक्वारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्धक्वारी से पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है। जहाँ माता ने चलते चलते रूककर मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने के लिए कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब माता की रक्षा के लिए हनुमान जी ने गुफा के बाहर भैरव से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी जब वीर हनुमान निढ़ाल होने लगे तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरव का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकुट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के रूप में जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर माँ काली दाएँ माँ सरस्वती मध्य और माँ लक्ष्मी बाएँ पिंडी के रूप में गुफा में विराजित है। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। इन तीन भव्य पिण्डीयो के साथ कुछ श्रृद्धालु भक्तों एवं जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व नरेशो द्वारा स्थापित मूर्तिया एवं यंत्र इत्यादि है। कहा जाता है की अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की याचना की माता वैष्णो देवी जानती थी कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्षं प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पूनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूर्ण नही माने जायेगेँ जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नही करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन के बाद 8 किमी की खड़ी चढ़ाई चढकर भैरवनाथ मंदिर दर्शन करने जाते है। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यान मगन हो गई। इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते पर आगे बढें जो उन्होंने सपने में देखा था। अंततः वह गुफा के द्वार पर पहुँच गये। उन्होंने कई विधियो से पिण्डों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली देवी उनकी भक्ती से प्रसन्न हुई और उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी माँ की पूजा करते आ रहे है।
वैष्णो देवी धाम के सुंदर दृश्यपटनी टॉप के दर्शनीय स्थल
दूसरी हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जगत में धर्म हानि होने और अधर्म की शक्तियो के बढने पर आदिशक्ति महासरस्वती महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपने सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी तट पर रामश्रेवर में पंडित रत्नाकर की पूत्री के रूप में अवतरित हुई। कई सालों से संतानवहीन रत्नाकर ने बच्ची को त्रिकुला नाम दिया। परन्तु भगवान विष्णु के अंश रूप में प्रकट होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। लगभग 9 वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ कि भगवान विष्णु ने भी इस भू लोक में भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया है। तब वह भगवान राम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी। जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्रवर पहुँचें तब ध्यान मगन कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रूपमें स्वीकार करने को कहा। तब भगवान श्री राम ने उस कन्या से कहा कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है। किन्तु कलियुग में कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें पत्नी रूप में स्वीकार करूँगा। उस समय तक तुम हिमालय पर्वत स्थित त्रिकुटा पर्वत की श्रेणी मे जाकर तप करो। और भक्तों के कष्टों और दुखोंका निवारण कर जगत कल्याण करती रहो। जब श्रीराम ने रावण के विरुद्ध विजय प्राप्त किया तब माँ ने नवरात्र मनाने का निश्चय किया। इसिलिये उक्त संदर्भ मे लोग नवरात्र के नौ दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते है। भगवान श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा माँ वैष्णो देवी की स्तुति गाईं जायेगी। तथा सदा के लिए अमर हो जायेगी। इसी लिए संसार के कोने कोने से उनके भक्त माता के दर्शन के लिए वैष्णो देवी यात्रा पर आते है।
जम्मू से लगभग 50 किमी की दूरी पर स्थित कटरा कस्बे से माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत होती है । कटरा समुद्र तल से लगभग 2500 फुट की ऊचाई हर बसा है। जहाँ तक आप आधुनिकतम परिवहन के साधनो से पहुँच सकते है ( हेलीकॉप्टर को छोड़कर) कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा )है। अधिकांश यात्री कटरा में विश्राम करके यात्रा की शुरुआत करते है । माँ के दर्शन के लिए दिन रात यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि: शुल्क यात्रा टिकट मिलता है। यह टिकट लेने के बाद ही आप कटरा से माता रानी के दरबार तक की यात्रा कर सकते हैं। आपकी सुविधा के लिए बता दूँ कि वैष्णो देवी यात्रा टिकट लेने के छ: घंटों के भीतर ही आपको बाणगंगा चैक प्वाइंट पर इंट्री करानी पडती है। और वहाँ समान चैैकिंग के बाद ही आप चढ़ाई शुरू कर सकते है। यदि आप वैष्णो देवी यात्रा टिकट लेने के छ: घंटों के भीतर चैकिंग प्वाइंट पर एंट्री नहीं कराते तो आपका टिकट रद्व हो जाता है। इसलिए यात्रा शुरू करने से कुछ समय पहले ही टिकट लेना सुविधा जनक होता है। पैदल कठिन चढाई को आसान बनाने हेतु पालकी घोड़े या पिठ्ठू किराये पर लिये जा सकते है। भवन तक की चढ़ाई का पिठ्ठू घोड़े या पालकी का एक व्यक्ति का किराया 250-1000 तक होता है ओवरवैट या बच्चे साथ बैठने पर अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है। बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराये पर स्थानिय लोगों को बुक कर सकते है। जो निरधारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठपर बैठा कर चढ़ाई करते है। चढ़ाई के दौरान पैदल मार्ग पर चाय नाश्ते के होटल भी है जहाँ आप चाय नाश्ता व कुछ समय आराम कर फिर से नये जोश के साथ चढ़ाई कर सकते है। आजकल अर्धक्वारी से भवन तक की चढाई के लिए बैट्री कार शुरू की गई है। जिसमें चार सेे पांच यात्री एक साथ बैठ सकते है। कम समय में माता के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलीकॉप्टर सुविधा का भी लाभ उठा सकते है। यहाँ आप निरधारित शुुुल्क देकर कटरा से साझीछत ( भैरव नाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक यात्रा कर सकते है। भैरवनाथ मंदिर भवन से लगभग तीन किमी की दूरी पर है।
वैष्णो देवी यात्रा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- (वैष्णो देवी यात्रा पर)सांस फुलने तथा बल्ड प्रेशर के मरीज पैदल यात्रा से बचें
- चढ़ाई के दौरान ऊचाई के कारण जी मचलाना उल्टी आदि की शिकायत हो सकती है। संबंधित दवाईया साथ रखें।
- चढ़ाई के दौरान कम और हल्का समान साथ लेकर चढ़ाई करे
- अपने सामान को लॉकर रूम में रखे यह आपको कई जगह मिल जायेगे
- पानी की बोतल व चटाई अपने साथ रखें
- गुट बना कर चढ़ाई करे अकेले चढ़ाई ना करें
- चढ़ाई के दौरान छड़ी बेहद मददगार साबित हो सकती है।
- माँ वैष्णो देवी यात्रा के लिए वैसे तो सालभर कभी भी आ सकते है। परन्तु गर्मी का मौसम यहाँ यात्रा के लिए सही माना जाता है। बरसात में यहाा चटटान खिसकने का खतरा रहता है तथा सर्दीयों में भवन का तापमान माइनस रहता है।
- माँ वैष्णो देवी यात्रा की चढ़ाई करते समय माता का जयकारा अपकी यात्रा को आसान व कषटो को दूर कर सकता है इसलिए जयकारा लगाते हुए चढ़ाई करे।
वैष्णो देेेेवी यात्रा कैसे पहुँचें
माँ वैष्णो देवी यात्रा का पहला पडाव जम्मू होता है। जो हवाई सड़क व रेल मार्ग द्वारा भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। नवरात्र के दौरान यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि होने के कारण रेलवे द्वारा स्पेशल ट्रेने भी चलाई जाती है। दिल्ली से जम्मू तक फोर लेेन हइवे है। जिस पर आप कार द्वारा कम समय मे अच्छा सफर कर सकते है।
हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—