वेदव्यास क्षेत्र – वेदव्यास का जीवन परिचय Naeem Ahmad, August 30, 2022February 24, 2024 जालौन जनपद के कालपी परगना में स्थित है यह वेदव्यास क्षेत्र यह कालपी में यमुना नदी दक्षिणी किनारे पर स्थित है। वेदव्यास ऋषि का सम्बन्ध इस क्षेत्र से होना प्रमाणित करता है कि आर्य सभ्यता के प्रारंभ काल से ही यह स्थान आर्यों के रहने का एक स्थान था कालपी नगर के पश्चिम उत्तर में वेदव्यास क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र महर्षि वेदव्यास का जन्म स्थान माना जाता है।कुम्भज ऋषि कौन थे – कुम्भज ऋषि आश्रम जालौनमहर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली होने के कारण ही यह क्षेत्र वेदव्यास क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इसी क्षेत्र में वेदव्यास जी द्वारा पुराणों की रचना की गई थी। इसी कारण श्रीनारायण चतुर्वेदी का कथन है किपाथतीं जहाँ हों देवि गोबर के कन्डे आज। व्यास ने वहाँ ही तो पुराणों को बनाया था।।वेदव्यास क्षेत्र का इतिहासजालौन जिले में यमुना नदी के तट पर बसी कालपी नगरी में एक स्थान व्यास क्षेत्र है जहाँ पर बैठकर महर्षि वेदव्यास ने अपने अमर ग्रन्थों की रचना की थी। कालपी में यमुना नदी में जोंधर नाम की नदी जिस स्थान पर मिलती है, वह स्थान व्यास क्षेत्र कहलाता है। इस व्यास क्षेत्र से लेकर दक्षिण पूर्व गुलौली ग्राम तक किसी समय कालपी की बस्ती बसी हुई थी। कालपी में पहले 52 मुहल्ले थे जिनमें से एक मुहल्ला व्यास क्षेत्र भी था। कालपी एक ऐतिहाससिक प्राचीन नगर है जहाँ वेदव्यास जैसे महापुरूष ने जन्म लिया था तथा वेद पुराण दर्शन आदि की रचना कीं थी।पराशर ऋषि का आश्रम व मंदिर – पराशर ऋषि का जीवन परिचयभगवान व्यास की जन्मभूमि कालपी में आकार मैं भाव विहवल हो गया। भगवान वेदव्यास आर्यत्व की मूर्ति थे। आर्यत्व के एक आदि संस्थापक के पौत्र माटी मात्र के दौहिज, वे भारतीय जातियों के मिश्रण के प्रतीक थे। छिन्न भिन्न हुए वेदों को उन्होंने एकत्र किया, संस्कृति के अव्यक्त मूल्यों को व्यक्त किया और अपनी संस्कृति को सातत्य दिया। पांडव कौरवों के वे पितामह थे।महाभारत युद्ध का काल जिसमें ही भारतीय जीवन पललवित हुआ उस समय वे पूज्य और प्रेरक थे। भगवान श्रीकृष्ण की महत्ता उन्होंने देखी। उनका प्रचंड व्यक्तित्व शब्दों द्वारा मूर्तिमान किया। उनके संदेश को शब्द देह देकर मानव उद्धार के लिए अमर कर दिया। जो सनातन थे उनको अपनी शब्द संजीवनी के द्वारा फिर से सनातनत्य दिया।महर्षि वेदव्यास जीभारत का सामुदायिक मानस व्यास जी ने बुना है। तीन हजार वर्ष पूर्व उनकी साहित्य शक्ति से रचे हुए जीवन और आदर्श ने ताने बाने दिये हैं। भगवान वेदव्यास ही भारत के गढ़ने वाले उसके अधिध्यता और प्रणेता है। भगवान व्यास जगत के आब हो गये है। उन्होंने अनुभव किया सिखलाया कि मनुष्य मात्र में देवी अंश है। भगवान श्री वेदव्यास जी के जन्म स्थान की रज अपने सिर पर चढ़ाकर मैं कृतार्थ होता हूं। यह अधिकार प्राप्त होने पर मेरे सौभाग्य की सीमा नहीं है और फिर मैं अपनी अंजलि देता हूं। अचतुर्वदनो ब्रहमा द्विबाहु परोहरि :।अभाल लोचन : शर्म्भुभगवान् बादरायण :. ॥व्यासाय विष्णु रूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।नमो वै ब्रहमहदये वसिष्याय नमोनमः ॥ यह अत्यन्त प्राचीन जनश्रुति है कि महर्षि वेदव्यास का सम्बन्ध कालपी से था। वर्तमान कालपी नगर के समीप ही यमुना तट पर स्थित वेदव्यास क्षेत्र अब भी इसकी स्मृति को जाग्रत किये हुए है । कालपी के उत्तर पश्चिम में मदारपुर (प्राचीन मत्स्य, गंधापुर ) व्यास क्षेत्र है। यहाँ यमुना में जोंधर नामक एक नाला मिलता है , इस नाले का पुराना नाम व्यास गंगा बताया जाता है। बरसात के दिनों में इसका वेग और विस्तार काफी बढ़ जाता है। इसके कारण व्यास क्षेत्र की ऊँची भूमि का एक बड़ा भाग कट कर कर गिर गया है। व्यास क्षेत्र पर पहले व्यासजी का एक मंदिर बताया जाता था जों कुछ वर्ष पूर्व गिरकर नष्ट हो गया है। इस मंदिर के कुछ अवशेष अब भी व्यास टीले पर देखे जा सकते हैं।संत हरिदास का जीवन परिचय – निरंजनीव्यास जी पुराणों तथा महाभारत के रचियता के रूप में ख्याति प्राप्त है। वेदव्यास के पिता का नाम पाराशर व माता का नाम सत्यवती था। कालपी से कुछ दूर पर परासन का गाँव अब भी व्यास पिता की स्मृति जाग्रत किये हैंसंत तुलसीदास का जीवन परिचय, वाणी और कहानीवैदिक ग्रन्थों व महाभारत के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म यमुना के संगम तट पर हुआ था। बसंत पंचमी को यमुना नदी व व्यास नदी के संगम स्थान पर प्रतिवर्ष मेले का आयोजन श्रद्धालुओं के महान आकर्षण का केन्द्र हैं। पुराणों के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि कालपी का अस्तित्व अति प्राचीन है। महर्षि वेदव्यास की जन्मभूमि कालपी अपना एक गौरवपूर्ण इतिहास रखती है।संत सदना जी का परिचयवेदों के रचयिता वेदव्यास जी का जन्म कालपी में हुआ था आज भी बड़े स्थान के पास व्यास टीला बना हुआ है। यहीं पर यमुना में समर्पण करने वाली एक नदी भी दिखाई देती है जिसे व्यास नदी कहते हैं। कालपी में जोंधर नाला के पास व्यास टीला है। कालपी के लोगों की मान्यता है कि व्यास टीला भगवान व्यास का आश्रम स्थान है। यहाँ के लोगों की यह भी मान्यता है कि प्रलयकाल के समय इसी जोंधर नाले के पास से एक मोटी जलधारा निकलेगी जोकि समूचे विश्व को जल मग्न कर देगी। महर्षि वेद व्यास की जन्मस्थली हमीरपुर है।संत रैदास जी का जीवन परिचय, जन्म, मृत्यु, गुरू आदि जानकारीउपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए यह कहा जा सकता है कि भगवान वेदव्यास की जन्मस्थली यह व्यास क्षेत्र है जहाँ पर उन्होंने पुराणों की रचना की है। कवि कथन हैब्रहम वशिष्ठ पितामह ने रघुराम से है थनुधारी बनाये । देवी अरून्धती के संग, तारक पुन्ज के मन्जु निकुन्ज में छाये ॥ वेत्रवती तट पितृ – पराशर ने स्मृति – ज्ञान के गान बहाये । जन्म भू कालपी कालिन्दी कूल पै , व्यासजी पंचम वेद लै आये ॥ कवि द्वारा प्रस्तुत तथ्यानुसार भगवान वेदव्यास का जन्म भी कालपी में हुआ था तथा चारों वेदों के अलावा पाँचवे वेद की मान्यता प्राप्त ‘महाभारत” का सृजन भी कालिन्दी (यमुना) के तट पर ही हुआ। हमीरपुर पहले कालपी के मुहाल में ही सम्मिलित था और कालपी हमीरपुर के मध्य यमुना नदी के आधार पर मात्र 30 मील का ही अन्तर है। अतः भगवान वेदव्यास का जन्म कालपी में ही मानना तर्कसंगत होगा।वेदव्यास का जीवन परिचयभगवान वेदव्यास महर्षि पाराशर व योजनगंधा के पुत्र थे। उनके जन्म के विषय में यह उल्लेख मिलता है कि एक बार धीवर कन्या मत्स्यगंधा जिसे सत्यवती कहते थे को देखकर पाराशर मुनि आसक्त हो गये। दिन में बिहार करना निषिद्ध होने के कारण उन्होंने कुहटा खड़ा कर दिया और मत्स्यगन्धा के शरीर से मत्स्य की दुर्गन्ध को दूर करके सुगन्धित कर दिया जिससे मत्स्यगन्धा योजनगन्धा, कहलाने लगी। व्यासजी, इसी योजनगन्धा सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पुत्र हैं। नदी के बीच एक टापू पर जन्म होने के कारण इन्हें “द्वैपायन” तथा काला रंग (वर्ण) होने के कारण “कृष्ण ” कहते हैं। स्वय भगवान विष्णु पराशर ऋषि के पुत्र रूप में द्वैपायन नाम से उत्पन्न हुए अतः “यस्य द्वैपायनः पुद्रः स्वयं विष्णु रजायत ।संत भीखा दास का जीवन परिचय हिंदी मेंवेदव्यास जी के जन्म के समय एवं स्थिति का यह भी विवरण मिलता है कि ऋषि पाराशर ने कोहरे के मध्य सत्यवती की अनुकूलता पाकर यमुना में स्नान किया एवं वहां से तुरन्त पधार गये सत्यवती भी अपने पिता के घर लौट गयी। उसी क्षण उसे गर्भ रह गया। समयानुसार सत्यवती ने यमुना के द्वीप में ही पुत्र उत्पन्न किया।संत बुल्ला साहब का जीवन परिचय हिंदी मेंएक अन्य कथानुसार मत्स्यगन्धा ने ऋषि पाराशर से सुगन्ध का वर पाकर हर्षोल्लास से भरकर ऋषि पराशर का संयोग प्राप्त किया और तत्काल ही एक पुत्र को जन्म दिया। यमुना के द्वीप में अत्यन्त शक्तिशाली पाराशर नन्दन व्यास प्रकट हुए। वे बाल्यावस्था में ही यमुना के द्वीप में छोड़ दिये गये थे इसलिए ‘द्वैपायन’ नाम से प्रसिद्ध हुए। अतः इति सत्यवती हृष्टा लब्धवा वरमनुत्तमम् पराशरेण संयुक्ता सद्यो गर्भ सुषाव सा जज्ने च यमुना द्वीपे पराशर्यः स वीर्यवान ॥ स॒मातरमनुज्ञाप्प तपस्येय मनो दथे । स्पृतोड हं दर्शयिष्यामि कृत्योष्षिति च सोउब्रबीत् ॥ एवं द्वैपायनों जज्ञे सत्यवत्यां पराशरातू । न्यस्तो द्वीप स यद् बालस्तस्माद् दैपायन स्मृत ततः सत्यवती हृष्ण जग़ाम स्व॑ निवेशनम । महर्षि वेद व्यास का जन्म यमुना के संगम तट पर हुआ था। महर्षि वेदव्यास जी का जन्म यमुना जोंधर नदी व्यास गंगा व यमुना नदी के संगम पर हुआ था अतःव्यास जन्म सरित्कृष्ण बल्लभासंड्र में तुय।। दीपाच्ज्यालयेत भक्तया बहमलतोक भवषुयाता।। कालपी में अष्टांगयोग, सांख्य तथा पुरश्चरणादि की सिद्धि क्षणमात्र में हो जाती है। यहीं पर वासवी (सत्यवती) ने पाराशर से ब्रहमसूत्र के रचने वाले तथा भारतादि पुराणों के बनाने वाले वेदव्यास जी को पुत्र रूप से पाया था। जो कि निम्नानुसार है – अष्टाडस्य च साख्यस्य पुरश्चर्यादे सत्कृते:। क्षणेनेकेन संसिद्धिः कालप्यां जायते ध्रुवम ॥ ब्रहमसूत्रप्रणतार कर्तारम् भारतादिकान । वेदव्यासं सुतं लेभे बासत्यत्न पराशरात् |शिवपुराण में भी वेदव्यास के जन्म के विषय का कथानक वर्णित है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new 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