वेंगी भारत केआंध्र प्रदेश राज्य में कृष्णा नदी और गोदावरी नदी मध्य एल्लौर के साथ मील की दूरी पर स्थित है। वेंगी एक डेल्टा क्षेत्र है। वेंगी का इतिहास देखने से पता चलता है कि चौथी पाँचवी शताब्दी में यहाँ शालंकायन वंश के राजाओं का शासन था। इस वंश के प्रसिद्ध शासक हस्तिवर्मा ने इसे अपनी राजधानी बनाया। उसने समुद्रगुप्त से एक युद्ध में हार के बाद उसका आधिपत्य स्वीकार किया था।
वेंगी के चालुक्य वंश और इतिहास
इस वंश के राजा लगभग 430 ई० तक राज्य करते रहे। इसके बाद यहाँ विष्णुकुंडी वंश के राजाओं ने शासन किया। वे श्री पर्वत स्वामी को अपना देव मानते थे। माधववर्मा प्रथम (440-60) इस वंश का पहला शासक था। उसके बाद विक्रमेंद्रवर्मा प्रथम (460-80), इंद्रभट्टारक (480-515), विक्रमेंद्रवर्मा द्वितीय (515-35), गोविंदवर्मा (535-56), माधववर्मा द्वितीय (556-616) तथा मनचल भट्टारक ने शासन किया था।
माधववर्मा प्रथम ने 11 अश्वमेध और अनगिनत अग्निष्टोम यज्ञ किए। उसने वाकातक राजकुमारी से विवाह किया। इंद्रभट्टारक ने कई युद्ध जीते। उसने गंग राजा इंद्रवर्मन से अनेक इलाके छीनकर अपने राज्य का विस्तार किया। गोविंदवर्मा ने विक्रमाश्रय विरुद धारण किया। उसका पुत्र माधववर्मा द्वितीय इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। उसने “जनाश्रय’ विरुद धारण किया और हरण्यगर्भ यज्ञ किया। उसके काल में गंगों से संघर्ष होता रहा। उसने उनके क्षेत्र को जीतने के लिए गोदावरी नदी भी पार की। बादामी के चालुक्य राजा पुलकेसिन द्वितीय (610-42) ने गोदावरी जिले में पिष्टपुर (आधुनिक पिट्ठापुरम्) के राजा को हराकर उसके स्थान पर 631 में अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को वहाँ का राज्यपाल बनाया।
वेंगी के चालुक्य वंश और इतिहासविष्णुवर्धन के अधीन विशाखापटनम् से एल्लौर तक का क्षेत्र था। थोड़े दिनों बाद वह स्वतंत्र हो गया। उसने वेंगी को अपनी राजधानी बनाया और यहाँ पूर्वी चालुक्य वंश के शासन की नींव डाली, और वे वेंगी के चालुक्य कहलाएं। उसके बाद जयसिंह प्रथम (641-73), इंद्रभट्टारक (673), विष्णु-वर्धन द्वितीय (673-82), गंगी युवराज(682-706), जयसिंह द्वितीय (706-18), विषणुवर्धन तृत्तीय (718-55), विजयादित्य प्रथम (755-72) और विष्णुवर्धन चतुर्थ (772-808) का वर्णन मिलता है। राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम (758-73) के लड़के गोविंद ने वेंगी के चालुक्य राजा विष्णुवर्धन चतुर्थ को हराकर हैदराबाद राज्य के सारे प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
विष्णुवर्धन चतुर्थ ने राष्ट्रकूट राजा गोविंद द्वितीय की उसके भाई ध्रुव के विरुद्ध सहायता की थी। ध्रुव (780-93) ने बाद में विष्णुवर्धन चतुर्थ को हरा दिया। विष्णुवर्धन चतुर्थ के बाद उसका पुत्र विजयादित्य द्वितीय राजा बना, परंतु उसके भाई भीम सालुक्की ने राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय की सहायता से उसका राज्य छीन लिया। 817 में विजयादित्य ने गोविंद और भीम को हराकर अपना राज्य वापस प्राप्त कर लिया। उसने 808 से 847 तक राज्य किया। उसके काल में राष्ट्रकूट राजाओं से संघर्ष चलते रहे। अंत में राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने 830 में विजयादित्य को हराकर वेंगी पर अधिकार कर लिया।
वेंगी का अगला चालुक्य राजा काली विष्णुवर्धन पंचम(847-48) हुआ। बाद में विज्यादित्य तृतीय (848-892) ने राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय और कलचूरी राजाशंकरगण को बुरी तरह हरा दिया और अपने आपको चालुक्य आधिपत्य से मुक्त कर लिया। वेंगी के अगले शासक भीम प्रथम (892-922) के समय में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय ने उसके एक भाग को लूट लिया और भीम को वेंगी का सामंत नियुक्त किया। बाद में भीम ने विद्रोह करके वेंगी का शासन पुनः प्राप्त कर लिया।
चालुक्य भीम प्रथम के बाद विजयादित्य चतुर्थ (921), अम्मा प्रथम (921-27) विजयादित्य पंचम् (927) तैल प्रथम (927), विक्रमादित्य द्वितीय (927-28), भीम द्वितीय (928), युद्धमल्ल द्वितीय (928-35), चालुक्य भीम द्वितीय (935-47), अम्मा द्वितीय (947-70), तैल द्वितीय तथा दाणार्नव (970-73) ने वेंगी का शासन संभाला। परंतु चालुक्य भीम प्रथम के बाद भी इस चालुक्य वंश के शासकों का राष्ट्रकूट राजाओं से युद्ध चलता रहा, जिससे उनकी शक्ति क्षीण हो गई। 973 ई० में यहाँ राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने अधिकार कर लिया। 999 ई० में इस वंश का एक उत्तराधिकारी शक्तिवर्मा वेंगी पर चोल राजा राजराजा की सहायता से ही अधिकार कर सका था।
इसके बाद चालुक्य राजा चोल राजाओं की कठपुतली बनकर रह गए और उनकी स्वतंत्र सत्ता समाप्त हो गई। विमलादित्य (1011- 18), राजराजा नरेंद्र (1019-41) भी इस वंश के उत्तरवर्ती शासक हुए। बाद में कल्याणी के चालुक्य राजा सामेश्वर प्रथम (1042-68) ने वेंगी के राजा से अपना आधिपत्य स्वीकार कराया। विजयादित्य सप्तम् वेंगी के चालुक्य वंश का अंतिम राजा था।
वेंगी के चालुक्य शासक विष्णुवर्धन प्रथम के सौतेले भाई
विजयादित्य ने 1060 में उससे वेंगी की गद्दी छीन ली थी। बाद में कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमादित्य ने परमार राजा जयसिंह की सहायता से विजयादित्य को हरा दिया, परंतु विजयादित्य चोल राजा वीर राजेंद्र की सहायता से पुनः शासना- रूढ़ हो गया। वीर राजेंद्र की मृत्यु के बाद राजेंद्र चोल ने वेंगी पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार वेंगी का चालुक्य राज्य चोल राज्य में मिल गया। विजयादित्य ने गंग राजा के यहाँ शरण ली। राजेंद्र चोल ने अपने पुत्र विक्रम चोल को वेंगी में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। विक्रम चोल ने वेंगी पर अधिकार कर लिया और वहाँ से स्वतंत्र रूप से शासन किया।
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