वीर दुर्गादास राठौड़ का परिचय और वीरता की कहानी Naeem Ahmad, October 26, 2022February 22, 2023 वीर दुर्गादास राठौड़ कोई बादशाह या महाराजा पद पर आसीन नहीं थे। वे तो मारवाड़ के एक साधारण जागीरदार थे। वे अपनी वीरता, त्याग और कुशलता के बल पर इतिहास में प्रसिद्ध हो गये तथा यवन शासकों पर अमिट छाप छोड़ दी। उन दिनों महाराज यशवन्त सिंह मारवाड़ के शासक थे। वीर दुर्गादास इन्हीं महाराजा के कुशल सेनापति थे। महाराज की सेवा में रहकर इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किए जो इतिहास में प्रसिद्ध हैं। इस समय दिल्ली के बादशाह औरंगजेब था। वो महाराजा यशवन्त सिंह और उनके पुत्र को मरवाना चाहते था। उन्होंने कूटनीति से काम लिया और महाराज को काबुल पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया इधर राज दरबार में उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को धोखे से मान-सम्मान की आड़ में विष भरी खिलअत पहनाई। इस जहरीले वस्त्र से पृथ्वी सिंह मारे गये। इन समाचारों ने महाराज यशवन्त सिंह को शोक विह्वल कर दिया और पुत्र शोक में मारे गये। वीर दुर्गादास का परिचय और वीरता की कहानी राजकुमार और महाराज की मृत्यु से वीर दुर्गादास तथा अन्य राठौड़ साथी अत्यन्त दुःखी हुए। सभी लोग बहुत उदास थे। मारवाड़ की आंखों में आंसू थे। इधर महारानी भी गर्भवती थी, अतः सती होने में बाधा थी। इस समाचार से वीर सरदारों में आशा का संचार हुआ। डूबते को तिनके का सहारा मिला। रानी ने पुत्र प्रसव किया। उसका नाम अजीत सिंह रखा गय। घोर अन्धकार में प्रकाश की रेखायें दिखने लगीं। रानी इस समय लाहौर में थी। राठौर सामन्त, महारानी और उनके नवजात शिशु के साथ दिल्ली पहुंचे। इन मुसीबत के दिनों में औरंगजेब से अच्छे व्यवहार की आशा थी परन्तु रंगढंग कुछ उल्टे ही निकले। वीर दुर्गादास ने बादशाह से निवेदन किया,-“जहांपनाहु, महारानी जी मारवाड़ लौट जाना चाहती हैं, आपकी आज्ञा हो तो पहुंचा दिया जाये।” औरंगजेब ने कहा, “दुर्गादास, मैं राजकुमार अजीतसिंह को अपने पास रखना चाहता हूं, मुझे उससे बहुत प्रेम है। तुम मेरे सुपुर्दे कर दो। मारवाड़ का शासक तो अब कोई है नहीं। मैं वहां का राज्य आप लोगों को सौंप दूंगा।” राठौर वीर दुर्गादास बादशाह की चाल समझ गये, परन्तु वो सच्चे स्वामी भक्त यह सब कब मानने वाले थे। सबने मिलकर सारी परिस्थिति पर विचार किया तथा अन्त में म॒कुन्दरास सेपेरे के रूप में राजकुमार अजीत सिंह को सुरक्षित रूप में दिल्ली से लेकर चल दिए। वीर दुर्गादास राठौड़ वीर दुर्गादास ने अपने वीर साथियों को एकत्रित किया और उनसे कहा, “आप सब लोग बादशाह औरंगजेब को कूटनीति से पूरी तरह परिचित हैं, उसके इरादे बिल्कुल नापाक हैं। ऐसी स्थिति में हमारा क्या कर्तव्य है, सोचने का विषय है। हमें मारवाड़ के शान की रक्षा करनी है, उसके प्रलोभनों में फंसकर अपने कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होना है। यह हमारी कठिन परीक्षा का समय है। मैं प्रतिज्ञा पूृर्वक अपना सर्वस्व जन्मभूमि और स्वामी की रक्षा के लिए अर्पित करता हूं । मुझे पूरा विश्वास है कि आप सब लोग मेरा जी-जान से साथ देंगे। महाराज की जय-जयकार और मारवाड़ की जय से सारा वातावरण गूंज उठा। सैनिकों ने अपने उत्साह का प्रदर्शन किया। सभी ने तन, मन और धन से मारवाड़ की पावन भूमि की सेवा करने को प्रतिज्ञा की। राजस्थान मे पुरुषों की भांति स्त्रियां भी मातृभूमि की विपत्ति अवस्था में सदैव सेवा करने में आगे रही हैं। वीर दुर्गादास ने उनको भी आमन्नित किया और उत्साहवर्धक संदेश भी दिया- माताओं और बहिनों, आज हमारी कठिन परीक्षा का समय आ गया है। आपको भी इसके लिये तैयार रहना है। यद्यपि आपकी रक्षा का भार, हमारे पर है लेकिन इस कठिन परिस्थिति में अगर हम आपकी रक्षा न कर सके तो राठौड़ वंश के गौरव की रक्षा का भार आपके ऊपर ही आयेगा। मुझे विश्वास है कि आप राठौड़ वंश के पवित्र वंश पर कलंक न लगने देंगीं।” वीर स्त्रियों ने दृढ़ता के साथ उत्तर दिया,- ‘सेनापति जी आप निश्चिन्त होकर मारवाड़ की रक्षा में, सैन्य संगठन में लगे रहिये। हमारी तरफ से विश्वास दिलाती हैं कि हम कभी अपने कर्तव्य-पथ से विचलित न होंगे। उधर बादशाह औरंगजेब वीर दुर्गादास और उनके साथियों पर ऋद्ध हो रहा था क्योंकि उन्होंने बादशाह की बात न मानी। इसलिए उसने एक बड़ी सेना मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। मुगल सेना ने मारवाड़ की भूमि में प्रवेश किया और वीर राठौड़ों पर आक्रमण करने की तैयारियां करने लगी। इधर वीर दुर्गादास को यवन सेना के पास आने का संदेश मिलते ही भूखे बाघ की भांति दुश्मन की सेना पर टूट पड़े। तलवारें बिजली की भांति चमक उठीं। वीर राजपुतों ने यवनो को गाजर-मूली की तरह काटना शुरू किया। कई यवन वीरों को धराशायी कर दिया। मुगल सेना में हल चल मच गई मुट्ठी भर राजपूतों ने भयंकर युद्ध किया। वे तूफान के भांति यवन सेना को चीर कर आगे बढ़ रहे थे । देखते ही, देखते उन्होंने कई मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और सेना को चीर कर पार हो गये। राजपूतों की छोटी सी सेना ने अपार मुगल सेना के दाँत खट्टे किये। इस युद्ध में मुगलों को काफी क्षति हुई। राठौड़ों के भी कुछ वीर काम आये। औरंगजेब को जब यह समाचार मालूम हुआ तो क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने विशाल सेना का संगठन किया और र खुद सेना लेकर मारवाड़ पहुंचा। बादशाह की इस अपार सेना का मुकाबला राजपूत वीर नहीं कर सके। मुगलों का मारवाड़ पर अधिकार हो गया। उसने जनता को लूटा, मन्दिरों को तोड़ा तथा जगह-जगह आग लगा दी। लोगों पर मनमाना अत्याचार किया गया। हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया। इस तरह चारों तरफ नादिरशाही का नंगा नाच शुरू कर दिया। उधर वीर दुर्गादास मेवाड़ के महाराणा की सेवा में पहुंचे और स्थिति से परिचित करवाया। राजकुमार अजीत सिंह को भी महाराणा के सुपुर्दं कर दिया। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह बहुत वीर और पराक्रमी महाराणा थे। वीर दुर्गादास अपने मुठठी भर साथियों के साथ यवन सेना से जूझ सकते थे परन्तु योंही मरना भी तो ठीक नहीं। अजीतसिंह को गद्दी पर बैठाने का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाता। अत: विवेक से काम लिया, वीर दुर्गादास ने। राजदरबार में महाराणा ने वीर दुर्गादास से मारवाड़ को स्पष्ट स्थिति का परिचय मांगा। उन्होंने कहा, “महाराणा जी मारवाड़ की स्थिति इस समय बहुत ही दयनीय हैं। चारो ओर विपत्ति के बादल मंडरा रहे हैं। लोगों में हाहाकार मचा हुआ है। बादशाह ने विशाल सेना के साथ मारवाड़ भूमि पर भीषण आक्रमण किया है जिसका मुकाबला करना भी कठिन है।गांव जलाये जा रहे हैं, प्रजा के साथ अनेक अत्याचार किये जा रहे हैं। कुमार अजात सिंह जी को अरावली की गुफाओं में छिपा कर अब बड़ी कठिनाई से यहां ला पाये हैं। मैं चाहता हूं कि राठौड़ों का संगठन करू, और शत्रुओं का मुकाबल करते हुए प्राणों की बाजी लगा दू’। लेकिन राठौड़ों में आज उत्साह की कमी है। वे अस्त-व्यस्त हैं तथा घबराये हुए हैं। आप स्वतन्त्रता के रक्षक व उसके महान पुजारी हैं। मुझे आशा है आप इस पवित्र कार्य में मेरी सहायता करेगे। महाराणा वीर दुर्गादास के हृदय की व्यथा को समझ गये और बोले-“राठोड़ वीर, तुम्हारा देश-प्रेम अनूठा है, प्रशंसनीय है। तुम्हारे जैसे देश भक्तों का देखकर जन्मभूमि भी आज फूली नहीं समा रही है। में तुम्हारी सहायता अवश्य करूगा।” महाराणा के आश्वासन भरे वचनों से वीर दुर्गादास बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मेवाड़ और मारवाड़ के राजपूृतों का सैन्य संगठन भी प्रारम्भ किया। उधर बादशाह औरंगजेव को जब राजकुमार के मेवाड़ पहुंचने के संदेश मिले तो महाराणा को पत्र लिखा कि वे राजकुमार को उन्हें सौंप दे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो औरंगजेब से मुकाबला करना पड़ेगा। महाराणा बादशाह की धमकी में नहीं आये और स्पष्ट रूप से लिख दिया कि वे राजकुमार को किसी भी कीमत पर नहीं दे सकते। औरंगजेब की विशाल सेना ने मेवाड़ की ओर कूच किया। इधर वीर दुर्गादास के नेतृत्व में राठौड़ राजपूतों और सिशोदिया राजपूतों का सम्मिलित संगठन हुआ। सभी सामन्तगण एकत्रित हुयें। राजकुमार भीमसिंह और वीर दुर्गादास ने सैनिकों को एकत्रित किया। वीर दुर्गादास ने सैनिकों से कहा “मेवाड़ी सिंहों और राठौड़ वीरों !आपको मालूम ही है कि यवन सेना हमारी स्वतन्त्रता का अपहरण करने बड़ी तैयारी के साथ आई है। मुगल बादशाह हमारी स्वतन्त्रता छीनना चाहता है, हम बहादुरों को गुलाम बनाना चाहता है। वह हमको, हमारे धर्म और संस्कृत से अलग करना चाहता है। साथियों ! शरीर में खून की एक बूंद रहने तक हम यवनों का डटकर मुकाबला करेंगे। यद्ध भूमि में यमराज की भांति उनके जानी दुश्मन बन जायेंगे। हम जीते जी परतंत्र नहीं हो सकते। मुझे विश्वास है कि आप लोग स्वामी भक्ति तथा देश भक्ति का परिचय देंगे तथा यवनों को नाकों चने चबा देंगे।” जय मारवाड़ और जय मेवाड़. के साथ विसर्जन हुआ। राठौड़ वीर दुर्गादास के इन शब्दों से सेना में उत्साह और जोश की लहर फेल गई। देवारी के घाट के पास शाही सेना से भीषण युद्ध हुआ। वीर राजपूतों ने विवेक से काम लिया और उदयपुर को वीरान बनाकर पर्वतों में आ गये। यहीं पर युद्ध की तैयारियां की गई। मुगल सेना को पहाड़ी युद्ध का बिल्कुल अनुभव नहीं था। अतः .जब भी वे इधर उधर बढ़ी तो उनको मुंह की खानी पड़ी। मुगल सेना की बड़ी बुरी हालत हो रही थी। वीर दुर्गादास और कुमार भीमसिंह की युद्ध कुशलता के सामने मुगल सेना ने घुटने टेक दिये चित्तौड़, बदनोर झौर देसूरी के युद्ध में राजपूत वीरों ने जबरदस्त रण कौशल दिखाया। इन तीनों युद्धों की पराजय से औरंगजेब की हिम्मत टूटने लगी और वह सन्धि का प्रयत्न करने लगा। दुर्गादास वीर तो थे ही, राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने मराठा, सिक्ख और राजपूत-तीनों जाति के बहादुरों का एकीकरण का प्रयास किया। अगर ऐसा हो जाता तो, इतिहास का रूप ही दूसरा होता। वीर दुर्गादास की कीर्ति चारों ओर फैल गई। बड़े बड़े-राजा महाराजा और सामन्त उनकी देशभक्ति, वीरता और स्वामी भक्ति से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने लगे थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के महान पुरूष राजस्थान के वीर सपूतराजस्थान के शासक