राठौड़ सेनापति वीर जुझारसिंह प्रख्यातवीर दुर्गादास राठौड़ के योग्य पुत्र थे। पिता के स्थान की पूर्ति उचित ढंग से तथा वीरोचित कार्यो से की। आप भी अपने पिता की भांति दृढ़प्रतिज्ञ, स्वामी भक्त और परम देशभक्त थे। वीर पिता के सभी गुण इनमें विद्यमान थे।
इधरदिल्ली मुगल बादशाह ने मारवाड़ को पद दलित करने के लिए एक भीषण व विशाल सेना भेजी। मुगल मारवाड़ का उल्लास नहीं
देखना चाहते थे। उन्होंने मारवाड़ को लूटना शुरू किया। अन्न की
की राशियाँ देखते देखते लूट ली गई। गांव जला डाले गये। मार्ग
में चलने फिरने वाले स्त्री, पुरुष और बालक को अकारण काट
दिया गया। एक बार फिर मारवाड़ पर आतंक और भय छा गया।
मारवाड़ में आई हुई बहार को यवनों ने जलकर जला दिया।
वीर जुझारसिंह की वीरता और साहस की कहानी
वीर जुझारसिंह कुशल सैन्य संचालक थे। मुगलों से मुकाबला करने के लिए सेना का संगठन किया गया। जोधपुर के दक्षिण ओर के विस्तृत सैन्य मैदान में कई राठौड़ वीर घोड़े पर सवार, मूंछें मरोड़े, रण बांकुरे सिर पर टेढ़ा साफा बांधे हुये तथा हाथों में नंगी तलवार लिये, पंक्ति बद्ध क्रोध से लाल-लाल आखें किये खड़े हुए थे। ये स्वतन्त्रता के सच्चे सिपाही अपने अपमान का बदला लेने के लिए तथा वृद्ध, अबला, और बालक की रक्षार्थ उत्साह पूर्वक यवनों को दो-दो हाथ दिखाने को तैयार थे। प्रत्येक के नेत्रों से क्रेधाग्नि भड़क रही थी। मातृभूमि के लिये मर मिटने के इरादे थे। ये सब अपने सेना नायक के आदेश की प्रतीक्षा में थे। इन रण बांकुरे नौजवानों का सेना-नायक एक नवयुवक वीर जुझारसिंह राठौड़ था। उसकी आयु तेईस-चौबीस वर्ष के करीब थी। वह घोड़े पर सवार बिजली की भाति सैन्य निरीक्षण कर रहा था। उसका सुन्दर गौर वर्ण, गठीला शरीर और उस पर स्वर्ण॒ कवच व्यक्तित्व को अधिक आकर्षक कर रहा था।
इधर सामने ही मुगल सेना थी जिनको मारवाड़ के वीरों से, उनकी भूमि से, उनकी खुशियों से ईर्ष्या थी, जलन थी। उनकी सेना में तोपे भी थी जो, पुतंगीज गोलंदाजों के हाथ में थी। कई हाथी पहाड़ों के भांति अडिग खड़े थे। घुड़ सवार और पैदल सेना भी आज पावन राजपूती सेना से मरकर पाक होना चाहती थी।
नव युवक राठौड सेनापति वीर जुझारसिंह सेना का निरीक्षण करने के बाद ऊंचे स्थान पर खड़ा हो गया और कहने लगा, वीर राठौरों! बहादुरों ! हमारी खुशियों को न चाहने वाले मुगलों ने हम पर अकारण ही हमला किया है। वे अपनी शक्ति में अंधे हो रहे हैं।
उन्होंने हमारी जनता पर मनमाना अत्याचार किया है, लूटा है तथा
आग लगाई है । उनका यह अमानवीय व्यवहार दण्ड का अधिकारी है। हमें उनका उचित प्रत्युत्तर देना है ताकि वे अपनी सीमा में ही रह सकें, उसका उल्लंघन न करने पायें। साथियों ! तलवार हमारे हाथ में है ऐसा न हो कि एक भी बलि का बकरा बचकर चला जाये। वीरों, वे बहुत हैं और हम बहुत कम हैं परन्तु हम सिंह हैं। वो हैं सियार समूह। में प्रतिज्ञा करता हू कि आज शत्रु सेना के प्रधान सेनापति उनके झंडे सहित कुचलूंगा। कौन मेरे साथ आगे बढ़ता है। वह वीर अपनी तलवार खींचकर आगे आये।

सहस्त्रों तलवारें आकाश में बिजली की भांति चमक उठीं, भिनभिना उठी। युवक सेनापति ने युद्ध का बिगुल बजाया। क्षण भर में दोनों सेनायें भीड गईं । तोपें आगे उगलने लगीं। तलवारें खन खनाने लगीं। घाव खा-खाकर कई योद्धा चीत्कार के साथ धरती पर गिरने लगे।
वीर जुझारसिंह ने शत्रु सेना के व्यूह का भेदन किया और भीषण मारकाट मचाता हुआ अपने वीर साथियों के साथ आगे बढ़ने
लगा। मुगल सैनिक वीर जुझार सिंह को देखते ही घबराने लगे। वीर युवक अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये मुगलों के बहुमूल्य झंडे के पास और उनके प्रधान सेनापति मुजफ्फरबेग के सामने आ पहुंचा। उसने दुश्मन को ललकारा तथा एक ही वार में महावत को मार गिराया तथा दूसरी उछाल में झंडा उसके हाथ में था। वह कीमती रेशम का था, उस पर-मोतियों की झालर लटक रही थी।वह विजय के उल्लास में खिलखिलाकर हंस पड़ा।
मजफ्फरबेग क्रोध से थर-थर कांप रहा था। उसने अपनी सेना को ललकार कर कहा देखो बहादुरों दुश्मन हाथ से नहीं चला जावे।
पकड़ो, इसके टुकड़ टुकड़े कर दो”। वीर युवक दुश्मनों से घिर
गया था। चारों ओर शत्रु ही शत्रु थे। वह अपने कुछ ही साथियों
के साथ यम की भांति यद्ध कर रहा था। प्रत्येक राठौर दो-दो तलवरों से एक साथ युद्ध कर रहा था। एक बार अवसर पाकर वीर युवक ने मुजफ्फरबेग पर भाले का भीषण व अचूक वार किया। बेग न संभल सका और क्षणा भर में ही हाथी पर से झूमता हुआ गिर पड़ा। दोनों शत्रु गुथ गये। युवक के शरीर पर अनेक घाव थे, काफी खून बह रहा था।
सेनापति के गिरते ही मुगल-सेना के पैर उखड़ गये। इस सुअवसर पर राजपूत वीरों ने यवनों को गाजर मूली की तरह काटना प्रारम्भ किया। तलवारों की भनभनाहट से, घोड़ों की हिनहिनाहट से तोपों के गर्जन से व मरने वालों को चीत्कार से सारा वातावरण गूंज उठा। वीर जुझारसिंह भूमि पर लेटे-लेटे हो अपने वीर योद्धाओं को जोरों से प्रोत्साहित कर रहे थे तथा चिल्ला कर कह रहे थे,“मारवाड़ की जय ! रण बांका राठौरों की जय”। राजपूतों में पूरा जोश था, यवनों को यमलोकपुरी पहुचाँने की उमंग थी।
राव भगवानदास व अन्य वीर सामन्त वहां आ पहुंचे । राव साहब ने वीर युवक के रक्त से लथपथ शरीर को दोनों हाथों से सहलाया और कहा – वीर, तुम्हारी मां धन्य है, मारवाड़ को तुम्हारे पर गर्व है, उसकी लाज तुमने रखी। परन्तु इस अल्प आयु में तुम वीरगति प्राप्त हुए। अभी तो विवाह की मेंहदी भी हाथ से नहीं छुड़ी है।
वीर जुझारसिंह ने गंभीरता के साथ कहा–“राव साहब’ मुजफ्फर
बेग की ओर इशारा करते हुए। इस गीदड को बांध लो। इसे और
इस भंडे को भी महाराज के चरणों में अर्पित कर देना और निवेदन करना कि यह सब मरे हुए आदमी ने जीता है।” मुखमंडल पर भीनी मुस्कुराहट फैल गई–“जय मारवाड़” के साथ वीर मां की गोद में सो गया। भीषण युद्ध जारी था। राजपूतों का पलड़ा भारी था।
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