“आज की सबसे बड़ी खबर चुड़ैलों के एक बड़े भारी गिरोह के बारे में है, और शक किया जा रहा है समुद्र में भारी तुफान लाने में भी इन्हीं का हाथ था। सन् 1634 में इस खबर की अहमियत थी भी, क्योंकि लोगों का अब भी चुड़ैलों में विश्वास था। राजवैद्य डॉक्टर विलियम हार्वे को हुक्म हुआ कि वह जाकर इन चुड़ेलों की पड़ताल करें, और सचमुच इस परीक्षा का श्रेय हार्वे को ही जाना भी चाहिए क्योंकि उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही इन चुड़ेलों को तब छोड़ दिया गया था। किन्तु डॉक्टर हार्वे की ख्याति विज्ञान के दिग्गजों में इस कारण से नहीं किया जाता कि उसने चुड़ेलों के सम्बन्ध में अपने युग के इस असत्य विश्वास का उन्मूलन किया, अपितु इसलिए कि शरीर में रक्त-संचार का वह प्रथम अन्वेषक है। हार्वे का 78 पृष्ठ का एक निबंध 1628 में प्रकाशित हुआ। शीर्षक था पशुओं में हृदय तथा रक्त की गतिविधि के सम्बन्ध में तात्विक विश्लेषण। इसके द्वारा वह विज्ञान के क्षेत्र के एक बड़े बद्धमूल अन्धविश्वास को उखाड़ फेंकने में सफल रहा था। इसके बाद से प्राणियों के शारीरिक कार्यों के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान बहुत ही अधिक स्थिरता के साथ निरन्तर आगे ही आगे बढ़ता आया है। अपने इस लेख में हम इसी प्रख्यात शोधकर्ता का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—-
विलियम हार्वे ने किस चीज की खोज की थी? विलियम हार्वे कौन थे? रक्त परिसंचरण तंत्र की खोज कब हुई? क्या विलियम हार्वे ने इंसानों को विच्छेदित किया था? विलियम हार्वे ने दवा के लिए क्या किया? विलियम हार्वे की पुस्तक किस बारे में है? विलियम हार्वे क्यों महत्वपूर्ण है? विलियम हार्वे का प्रारंभिक जीवन कैसा था? विलियम हार्वे के बारे में रोचक तथ्य?
विलियम हार्वे का जीवन परिचय
विलियम हार्वे का जन्मइंग्लैंड के फोकस्टोन शहर में 1578 ई० की पहली अप्रैल को हुआ था। विलियम हार्वे के पिता का नाम था टामस हार्वे, जो अपने समय का एक समृद्ध व्यापारी था तथा अपने कस्बे का ऐल्डरमेन, और फिर मेयर भी रह चुका था। विलियम के परिवार में सब मिलाकर दस बच्चे थे, तीन लड़कियां, और सात लड़के। परिवार में समृद्धि थी, स्वस्थता थी, और खुशहाली थी।
सन् 1588 मे 10 साल की उम्र मे विलियम हार्वे कैन्टरबेरी के किग्ज़ स्कूल मे दाखिल हुआ। यह वही साल था जब स्पेनिश आर्माडा को ब्रिटेन की समुद्री ताकत ने तहस नहस कर दिया था। जब विलियम 15 साल का हुआ तो उसेकैम्ब्रिज के कैन्स कालेज में प्रवेश मिल गया। खुशकिस्मती से दो बडे अपराधियों के शव कालेज को शल्य परीक्षा तथा अनुसन्धान के लिए मिल गए और स्वभावत हार्वे की चिकित्सा-शास्त्र में रुचि जाग उठी।
कैम्ब्रिज से वह पेदुआ की प्रसिद्ध सस्था मे गया, जिसेगैलीलियो और विसेलियस के सम्पर्क ने चिकित्सा शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान के क्षेत्र मे विश्व प्रसिद्ध कर दिया था। दुर्भाग्य से विसेलियस का प्रभाव अब नष्ट प्राय हो चुका था। शरीर संस्थान के सम्बन्ध में उसके अन्वेषणों की उपेक्षा करके गैलेन के वही सदियों पुराने विचार इन दिनो वहां पढाएं जा रहे थे। हार्वे पेदुआ में विद्यार्थी बनकर प्रविष्ट हुआ। स्वभावत हार्वे इस सबसे असन्तुष्ट था, किन्तु उसने अपने सन्देहो को व्यक्तिगत रूप में तब तक कही प्रकट नही किया जब तक कि उसे मैडिकल डिग्री मिल नही गई। इधर, वह प्रैक्टिस के लिए लन्दन लौट आया और उधर उसी समय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कालेज आफ फिजीशलन्ज में उसे आगे पढ़ने की अनुमति भी मिल गई।
विलियम हार्वेतीन साल बाद उसे कालेज का फेलो बना दिया गया और सेंट बार्थालोमिओ के अस्पताल में चिकित्सक के तौर पर उसकी नियुक्ति हो गई। उसके व्याख्यान होते “चिकित्सा के मूल तत्त्वो’ पर। हार्वे मे योग्यता थी, आत्म-विश्वास था। यद्यपि वह कद से छोटा था, और चमडी उसकी कुछ-कुछ काली थी। शीघ्र ही चिकित्सा के मुर्धन्य आचार्यो में उसकी गिनती होने लगी।
इसके साथ ही वह सम्राट चार्ल्स प्रथम का राज-चिकित्सक भी था। पर उसकी यह नौकरी बडे संकटों और तूफानों से भरी थी, क्योकि चार्ल्स तब पार्लियामेंट के साथ ओर जॉलिवर क्रामवेल के साथ एक ऐसे संघर्ष मे व्यस्त था जिसमे कि उसकी हार निश्चित थी। सौभाग्य से 1642 में ही वह ऑक्सफ़ोर्ड में वैज्ञानिक अन्वेषणों को अपना जीवन अर्पित कर चुका था। इसलिए 1649 मे जब चार्ल्स का सर उड़ा दिया गया, सम्राट से उसका किसी प्रकार का सम्बन्ध न रह गया था।
विलियम हार्वे की खोज
क्या चीज़ है जो हार्वे कर गया है, जिसकी वजह से चिकित्सा के इतिहास में उसको यह मान दिया जाता है ? और, वह किस तरह यह सब कर सका ?
उसकी प्रवृत्ति जीवित पशुओं पर शल्य-क्रिया करने की थी। वह पशुओं के वक्ष स्थल खोलकर उसकी स्पन्दन-क्रिया का प्रत्यक्ष अध्ययन किया करता। उसने देखा कि हृदय गति करता है और अगले ही क्षण गतिविहीन हो जाता है, और कि यह गति और यह अग॒ति, दोनो उसी क्रम मे निरन्तर आवृत्ति करती चलती हैं। उसने जीवित प्राणी के हृदय को हाथ में थामा और अनुभव किया कि हृदय एक क्षण कठोर हो जाता है और दूसरे ही क्षण कोमलता ग्रहण कर लेता है। और यह भी कि हृदय की यह प्रक्रिया प्राय उस प्रकार से ही होती है जैसे बाजू की पेशी तनते हुए हम रोज अनुभव करते हैं। जब हृदय मे यह कठोरता जाती है तो वह आकृति में छोटा हो जाता है, और शिथिलता की दशा में उसकी आकृति कुछ बढ़ जाती है। दोनों अवस्थाओं में उसका रंग एक-सा नहीं रहता, जब वह सख्त और सिकुड़ा हुआ होता है, तब निस्बतन कुछ ज्यादा पीला होता है। अनेक प्राणियों में अनेकानेक परीक्षण करके विलियम हार्वे इस परिणाम पर पहुंचा कि हमारा हृदय एक खोखली पेशी की शक्ल का है, और पेशी में जब सक्रियता आती है, कुछ बल आता है तब उसके अन्दर का यह रिक्त स्थान सिकुड़ना शुरू कर देता है और खून को बाहर फेंकना शुरू कर देता है और, इसी कारण उसमें कुछ पीलापन आ जाता है। यही पेशी जब शिथिल होती है, उसमें वह तनाव नहीं होता उसकी आंतरिक रिक्तता में बाहर से खून भर आता है ओर इसी कारण उसमें कुछ लाली भी आ जाती है। यह हमारा दिल इस प्रकार से एक पम्प ही है।
इस मूल स्थापना को प्रतिष्ठित करके हार्वे ने अब शरीर में रक्त संचार की प्रक्रिया का अध्ययन शुरू कर दिया। उसने देखा कि रक्त की धमनियां स्पन्दित हो उठती हैं उस क्षण जब कि हृदय सिकुड़ रहा होता है। यदि एक सुई चुभों दी जाए तो उनसे खून का एक फव्वारा-सा छूटने और बन्द होने लगेगा। यही नहीं इन धमनियों को शरीर के विभिन्न स्थानों पर अवरुद्ध करते हुए, वह इस परिणाम पर पहुंचा कि स्पन्दन की यह प्रक्रिया उनकी कोई अपनी प्रक्रिया नहीं है, अपितु सर्वथा हृदय की गति पर ही निर्भर करती है।
अब उसकी रुचि इस प्रश्न के समाधान में जाग उठी कि रक्त का कितना परिमाण इन धमनियों के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। यह अनुमान करके कि प्रत्येक स्पत्दन में हृदय से दो औंस रक्त का गमनागमन होता है, और एक मिनट में वह 72 स्पन्दन करता
है, बड़ी जल्दी ही उसने यह गणना कर ली कि हृदय एक मिनट में एक गैलन से ज्यादा या शायद विश्वास न आ सके एक दिन में 1500 गैलन से ज़्यादा खून जिस्म में पम्प करता है। हार्वे के मन में स्वभावत: यह कौतुहल उठा कि यह हो कैसे सकता है। और
अपने प्रश्न का आप उत्तर देते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ऐसा तभी सम्भव है जब कि रक्त का प्रवाह हृदय से ही आरम्भ हो और, सारे शरीर से घूमघाम कर फिर से हृदय में ही वापस लौट आए, अर्थात रक्त संचार का मार्ग एक परिक्रमा का मार्ग ही होना चाहिए।
विलियम हार्वे ने शरीर रचना की पुनः परीक्षा की और कुछ परीक्षण और भी किए। शिराओं और धमनियों का नीली और लाल नसों का बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया और पाया कि उनमें खून के बहने की दिशा हमेशा एक ही रहती है। दोनों में ही एक तरह का कुछ वाल्वों की सी शक्ल का, एकदिक् द्वार परदा सा लगा होता है जो धमनियों में तो रक्त को हृदय से बाहर ही प्रवाहित होने देता है, और शिराओं में हृदय की ओर ही। इन एकमुखी द्वारों की उपयोगिता भी उसने पशुओं के हृदयों पर परीक्षण करके प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दी। एक शिरा को खोलकर उसमें उसने लम्बी पतली सी एक सलाख डाल दी। यह सलाख बड़े आराम के साथ दिल की ओर तो चलती गई किन्तु विपरीत दिशा में उसकी यह गति एकदम अवरुद्ध हो गई, क्योंकि बीच में वाल्वों ने जैसे अपने दरवाजे बन्द कर लिए थे।
फिर परीक्षण किए गए और फिर परीक्षण किए गए कि कहीं कुछ गलती रह गई हो, और तब कहीं जाकर रक्त के संचार का सही चित्र उपस्थित हो सका कि हृदय से निकलकर धमनियों के मार्ग से प्रवत्त होता हुआ और शिराओं के मार्ग से प्रत्यावृत्त हुआ, खून फिर से दिल में ही वापस आ जाता है।
आजकल हम रोज़ सुनते हैं कि कितने आश्चर्य जनक आपरेशन ये शल्य-चिकित्सक आए दिन और किस आसानी के साथ कर लेते हैं। दिल को कोई चोट पहुंची हो तो उसका भी इलाज हो सकता है। वाल्व, शिराएं और धमनियां अगर जवाब देने लग जाएं तो उनके स्थान पर प्लास्टिक की कृत्रिम नलियां और दूसरे वाल्व लगाए जा सकते हैं और जब आपरेशन हो रहा होता है, उस वक्त खून की हरकत जिस्म में बाकायदा होती रहे उसके लिए आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में एक कृत्रिम पम्प भी है। यह सब सुनकर हम दंग रह जाते हैं। किन्तु हमारे इस जमाने में भी कोई कितना ही अधिक पढ़ा-लिखा सर्जन क्यों न हो, वह बिलकुल नाकारा ही साबित होता, अगर विलयम हार्वे के वे महान परीक्षण चिकित्सा के क्षेत्र में पहले हो न चुके होते।
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