“आज तक हमारा काम परदेशी नीवं के भवन को गिराना रहा है, परंतु अब हमें अपना भवन बनाना है, जिसकी ईटें हम और आप है। हम जितने सशक्त होगें उतना ही दृढ़ यह हमारा भवन होगा, पर यदि हम दुर्बल रहे तो वह हवा के झोंके से गिर जायेगा। हमें बड़े राष्ट्रो का सामना करना है। समय बढ़ रहा है और हम पिछड़ रहे है। हमें अपनी शक्ति तथा दुर्बलता की जांच करनी चाहिए कि हम किस प्रकार आगें बढ़े। हमारी स्वतंत्रता उस स्वतंत्रता का अंग है जिसके लिए दुनिया के सब व्यक्ति तड़प रहे है। हम अपने द्वारा विश्व को लाभ पहुंचा सकते है। हमारी क्रांति विश्व में फैली है, दुनिया कि आंखें हम पर लगी है” ये शब्द है एशिया की सर्वप्रथम महिला राजदूत तथा भारत की प्रथम महिला राजदूत श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित के जो अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में पुरुषों से भी आगे बढ़ गई। किसे आशा थी कि सदियों से कठिन जातपात की सीमित प्राचीन प्राचीरों में घिरी रहने वाली, पर्दे की कठिन कारा में श्वास लेने वाली भारतीय नारियां भी पुरूषों के साथ कार्य कर सकेगी, उनके कंधे से कंधा मिलाकर विश्व की समस्याओं का समाधान कर सकेगी। किंतु राष्ट्रीय जागृति ने इसे संभव कर दिया है। भारत के राष्ट्रीय क्षितिज पर नवजागृत स्वतंत्रता संग्राम की अरूणिमा बिखरी हुई है। राष्ट्र के अन्तर में स्पन्दित होने वाली नई चेतना ने सोती नारियों को जगा दिया है। वे न केवल राष्ट्रीय क्रियाकलाप में पुरुषों का हाथ बटा रही है, प्रत्युत अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी पुरुषों का सहयोग दे रही है। भारतीय स्त्रियों की राष्ट्रीय चेतना का सबसे बड़ा प्रमाण है श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित जो अपने सहोदर भ्राता पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी अत्यंत धैर्य एवं उत्साह से अपनी शक्ति की पूंजी करती रही। आज के अपने इस लेख में हम विजयलक्ष्मी पंडित की जीवनी के बारें में विस्तार से जानेगें। हमारा यह लेख छात्रों के लिए विजयलक्ष्मी पंडित निबंध लिखने के लिए भी सहायक है।
स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का जीवन परिचय
श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त सन् 1900 में इलाहाबाद के प्रसिद्ध शाही महल आनंद भवन में हुआ था। इनका बचपन जिस वैभव में बीता उसके लिए बड़ी बड़ी राजकुमारियों को भी तरसना पड़ता है। विजयलक्ष्मी पंडित के पिता पंडित मोतीलाल नेहरू और माता श्री स्वरूप रानी के संरक्षण में इनका लालन पालन एवं शिक्षण कार्य हुआ। मिस हूयर नाम की अंग्रेज महिला इन्हें पढ़ाने के लिए नियुक्त की गई। पंडित मोतीलाल नेहरू अपनी लाडली बेटी के स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखते थे। अतः घुडसवारी इन्हें अपना नित्य कर्म बना लेना पड़ा।
घर की बदलती हुई परिस्थितियों के साथ साथ इनके सुकोमल माथे पर कांग्रेस की छाप पड़ रही थी। देश की राजनीति में अनेक घटनाएं हुई और उनकी ओर इनका झुकाव बढ़ता गया। यद्यपि बम्बई आदि के कांग्रेस अधिवेशन में अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ ये भाग ले चुकी थी, तथापि अभी तक कांग्रेस में सक्रिय भाग इन्होंने नहीं लिया था। इस अवकाश में इनमें संयम, नियमन और सहिष्णुता का उचित मात्रा में विकास हुआ, भावी जीवन संग्राम की तैयारी का अच्छा सुअवसर मिला।
सन 1920 के लगभग श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का विवाह सुप्रसिद्ध न्याय शास्त्री श्री रणजीत सीताराम पंडित से हुआ। विवाह होने के पश्चात दोनों पति पत्नी अन्य युवक युवतियों की भांति विवाह की रासलीला में ही केवल निमग्न नहीं हुए, वरन् दोनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान दिया। श्रीमती पंडित एक वीर राष्ट्र सेनानी की भागिनी थी। उन्होंने अपने पिता एवं भाई को जेल जाते देखा था। अतः तपोमय जीवन यज्ञ में स्वार्थों की आहूति देकर देश के सुख दुख में हाथ बटाना ही इनका कर्तव्य हो गया।
सन् 1930 के असहयोग आंदोलन में वे अपनी छोटी बहन श्रीमती कृष्णा हठी सिंह के साथ जेल गई और वहां एक वर्ष बिताया। सन् 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह मे भी ये जेल गई और चार महिने नैनी जेल रही। जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का जोरदार आंदोलन आरंभ हुआ तो इन्हें भी बंदी बना लिया गया और ये नौ महिने तक जेल में रही, किन्तु स्वास्थ्य खराब होने के कारण इन्हें बीच में ही रिहा कर दिया गया। जेल से छुटते ही इन्होंने अकाल पीडितों की सेवा का कार्यभार लिया। श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित के पति श्री रणजीत सीताराम पंडित में अस्वस्थ होने के कारण असमय ही मृत्यु लोक को सधार गये।
वैधव्य के क्रूर प्रहार ने भी इन्हें विचलित नहीं किया, सभी यातनाओं, तूफानों, कांटों और झंझावातों में ये अडिग रही, शीघ्र ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने का सुअवसर भी इन्हें मिला। सन् 1944 के नवंबर मास में होनेवाली सेनफ्रांसिस्को कांफ्रेंस के अवसर पर अनेक अंग्रेज कूटनीतिज्ञों के कारण अमेरिकनों के दिलों में भारतीयों के प्रति दुर्भावना उत्पन्न हो गई थी। अंग्रेजों की राजनीतिक चाल ने भारत को विश्व की नजरों में गिरा दिया था। उस अंधकार पूर्ण समय में विधुत रेखा सी अपनी बुद्धि प्रखरता से विदेशियों को चकाचौंध करती हुई ये अमेरिका पहुंची और अपने चमत्कार पूर्ण भाषणों द्वारा सभी को चकित कर दिया। इन्होंने कांफ्रेंस के मिथ्या भ्रम का निराकरण किया और एक स्मृति पत्र भेंट किया, जिसमें इन्होंने लिखा था कि मेरी आवाज मेरे देश की आवाज़ है।जिस आवाज पर आज अंग्रेजों ने फौलादी आज्ञाएं लगा दी है। मै न केवल अपने देश की आवाज़ में बोल रही हूं बल्कि अपने पड़ौसी फौजी शासन से पददतीत बर्मा, हिन्द चीन और एशिया के पिछड़े हुए राष्ट्रो की ओर से भी बोल रही हूं। इन महत्वपूर्ण शब्दों ने सारे विश्व को हिला दिया। उस समय अनेक बड़ें बड़ें राजनीतिज्ञों से मिलने का सुअवसर इन्हें प्राप्त हुआ, और ये अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अत्यंत प्रख्यात हो गई।

किन्तु अभी इनके जीवन को तो और भी यशस्वी होना था सन् 1946 में जब भारत ने न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ में दक्षिण अफ्रीका में गोरा द्वारा वहां के भारतीयों पर किए जाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध प्रश्न उठाया तो ये भारतीय शिष्ट मंडल की नेत्री बन कर गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ में केवल श्रीमती पंडित ही स्त्री प्रतिनिधि थी, इनकी विलक्षण प्रतिभा और प्रख्यात राजनीति ने न केवल भारत को ही वरन् समस्त यूरोप को चकित कर दिया। इन्होंने दक्षिण अफ्रीका की यूनियन सरकार द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों का भांडाफोड़ किया और दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन प्रधानमंत्री जनरल स्मट्स ने अपनी सरकार की नीति, दक्षिण अफ्रीका में क्रिश्चियन सभ्यता की रक्षा करने की बताई तो इन्होंने प्रश्न किया कि यदि आज स्वयं क्राइस्ट जीवित होते तो क्या उन्हें 1913 के देशांतर वास कानून (Immigration Act) के अंतर्गत देशांरवासी करार करके राज्य में घुसने दिया जाता? जनरल स्मट्स बहुत देर तक एशिया निवासियों की त्रुटियों पर बोलते रहे और उन्होंने सबसे बड़ा अपराध उसमें बहुपत्नी प्रथा होने का बताया। किन्तु श्रीमती पंडित ने तुरंत ही सिंह गर्जना की, मुझे यह विदित नहीं था कि ऐसी प्रथा के अंतर्गत एवं क्रियात्मक रूप से केवल एशिया वासियों तक मित है। इस तीक्ष्ण व्यंग और कटु प्रहार ने सारी सभा का सिर निचा कर दिया।
दूसरे दिन अमेरिका के एक पत्र ने श्रीमती पंडित के चित्र को मुख पृष्ठ पर छापते हुए इनकी प्रशंसा में लिखा था कि 1946 की इस विलक्षण नारी ने सारे विश्व विश्व में क्रांति मचा दी है। और दक्षिण अफ्रीका में गोरों द्वारा भारतीय पर किए गये, अत्याचारों के विरुद्ध किया हुआ इनका आंदोलन सफल हुआ है।
ये मंत्रीपद को भी दो बार सुशोभित कर चुकी है। ये जिस दक्षता एवं सुचारुता से कार्यभार संभालती थी, उसे देखकर आश्चर्य होता था। 15 अगस्त सन् 1947 में राष्ट्रीय सरकार बनते ही श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित भारत की प्रथम महिला राजदूत रूस में नियुक्त की गई। ये ही सर्वप्रथम भारतीय महिला थी जिसे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इन्होंने18 महिने तक जिस चतुरता, बुद्धिमानी और कार्य कुशलता का परिचय दिया वह प्रशंसनीय है।
ये यूएन असेंबली में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की नेत्री होकर अमेरिका गई थी। हैदराबाद के आत्म समर्पण पर जो विदेशों में मिथ्या भ्रम फैल गया था, उसका बहुत कुछ निराकरण इनके द्वारा वहां हुआ। इस उम्र में भी ये जिस साहस एवं कार्य क्षमता का परिचय देती थी, उसे देखकर आश्चर्य होता था। श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित के सब मिलाकर तीन संतानें थी विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी का नाम चंद्रलेखा पंडित और रेखा पंडित था जो अत्यंत सुयोग्य एवं प्रतिभाशाली है। श्रीमती पंडित अत्यंत मिलनसार और कोमल स्वभाव की महिला थी। श्रीमती पंडित देश विदेश के अनेक महिला संगठनों से भी जुडी हुई थी। एक दिसंबर सन् 1990 को 90 वर्ष की आयु में विजयलक्ष्मी पंडित देहांत हो गया। प्रतयेक अमरीकन को भारत की आत्म दृढता और शांति का संदेश देने वाली श्रीमती पंडित का साहस, कार्य दक्षता, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को भारतवासी आज भी याद करते है
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2 responses to “विजयलक्ष्मी पंडित निबंध – स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित की जीवनी”
Nice helpful information
SIR AAPKA POST BHUT ACHCHA LAGTA HAI VERY NICE SIR