वारंगल का इतिहास और वारंगल के पर्यटन स्थल

वारंगल के दर्शनीय स्थल

वारंगल (warangal)तेलंगाना राज्य का एक प्रमुख शहर है, वारंगल एक जिला मुख्यालय और ऐतिहासिक शहर है। यह शहर यहां स्थित ऐतिहासिक वारंगल का किला के लिए भी जाना जाता है, बड़ी संख्या में इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटक इसकी ओर आकर्षित होते हैं, अपने इस लेख में हम इस ऐतिहासिक शहर वारंगल का इतिहास और वारंगल के पर्यटन स्थलों के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे।

वारंगल का इतिहास

मध्य काल में वारंगल एक हिंदू शहर हुआ करता था तथा इसका बहमनी राज्य और दिल्‍ली सल्तनत से झगड़ा होता रहता था। यहाँ काकतीय वंश का शासन हुआ करता था। इस वंश का पहला राजा बेत प्रथम था। उसने कल्याणी के चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम (1042-68) के आधिपत्य में अपने राज्य की नींव डाली। सोमेश्वर प्रथम ने उसके उत्तरा- धिकारी प्रोल प्रथम और बेत द्वितीय को कुछ जिले और दे दिए, परंतु उनका उत्तराधिकारी चालुक्य राजा विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126) के काल में 1115 ई० में स्वतंत्र हो गया। उसने तेलंगाना और आंध्र के प्रदेश जीत लिए। उसने चालुक्य राजा तैलप तृतीय को बंदी बना लिया। उसके पुत्र प्रताप रूद्रदेव प्रथम (1168-99) ने भी 1168 ई० में तैलप तृतीय को परास्त किया और 1185 के आते-आते कुर्नूल जिले को अपने राज्य में मिला लिया। उसका उत्तराधिकारी गणपति 1199 में राजा बना।

वारंगल के दर्शनीय स्थल
वारंगल के दर्शनीय स्थल

उसने आंध्र प्रदेश, नेल्लोर, काँची और कंडप्पा जिलों पर अधिकार कर लिया, परंतु पांड्य राजा जटावर्मा सुंदर ने 1250 ईस्वी में उससे काँची और नेल्लोर जिले छीन लिए। इसके बाद गणपति ने वारंगल को अपनी राजधानी बनाया। उसके बाद उसकी पुत्री रुद्रांबा 1265 ई० में रानी बनी। मार्कों पोलों ने उसके शासन की प्रशंसा की है, परंतु कडप्पा और कूर्नूल का सामंत अंबदेव उसके शासन के दौरान स्वतंत्र हो गया। उसके पश्चात्‌ उसका धेवता प्रताप रूद्रदेव द्वितीय राजा बना। उसने अंबदेव को हराकर उससे कड॒प्पा और कर्नूल जिले फिर छीन लिए। सन्‌ 1309 ई० में मलिक काफूर ने प्रताप रूद्रदेव को पराजित करके उससे 400 हाथी, 7000 घोड़े, प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा तथा भारी मात्रा में नकदी और जेवर प्राप्त करने के अतिरिक्त उसे वार्षिक कर देने को विवश कर दिया। इन्हें वह 1000 ऊँटों पर लादकर दिल्‍ली ले गया।

मुस्लिम इतिहासकारों ने प्रताप रूद्रदेव को लहरदेव नाम दिया है। बाद में प्रताप रूद्रदेव स्वतंत्र हो गया। तब ग्यासुद्दीन तुगलक के पुत्र जूना खाँ ने 1321 और 1323 में वारंगल पर दो बार आक्रमण किया। पहले आक्रमण में वह प्रताप रूद्रदेव द्वितीय से हार गया, परंतु दूसरे आक्रमण में जीत गया और उसने वारंगल को अपने अधीन कर लिया। 1424 में बीदर के बहमनी शासक शहाबुद्दीन अहमद शाह के सेनापति खान-ए-आजम ने वारंगल के राजा को मारकर इस पर अपना कब्जा कर लिया।

वारंगल के पर्यटन स्थल

प्रताप रुद्रदेव ने वारंगल में चालुक्य शैली में एक मंदिर बनवाया था, जो शिव, विष्णु और सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर में एक हजार नक्काशीदार खंभे हैं। इनके अतिरिक्त वारंगल में म्यूजिकल गार्डन, भद्रकाली मंदिर, पदमाक्षी मंदिर और धानपुर मंदिर भी दर्शनीय हैं। काकतीय शासकों ने ही यहाँ से 74 किमी दूर 1213 ई० में रामप्पा मंदिर बनवाया था। गणपति और उसकी पुत्री रुद्रांबा ने यहाँ का किला बनवाया। वारंगल से 50 किमी दूर पाखल वन्य जीव अभयारण्य भी दर्शनीय स्थल हैं।

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