You are currently viewing वाटरलू का युद्ध कब हुआ था – वाटरलू युद्ध का कारण एवं परिणाम
वाटरलू का युद्ध

वाटरलू का युद्ध कब हुआ था – वाटरलू युद्ध का कारण एवं परिणाम

वाटरलू का युद्ध 1815 में लड़ा गया था। यह युद्ध बेल्जियम में लडा़ गया था। नेपोलियन का ये अन्तिम युद्ध था एक तरफ फ्रांस था तो दूसरी तरफ ब्रिटेन, रूस, प्रशिया, आस्ट्रिया, हंगरी की सेना थी। यह घमासान युद्ध कई दिनों तक चला था। बड़ी संख्या में दोनों ओर की सैनिक मारें गये थे, अपने इस लेख में हम विश्व इतिहास के इसी प्रसिद्ध वाटरलू युद्ध का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—-

वाटरलू युद्ध कब हुआ था? वाटरलू का युद्ध क्यों हुआ था, वाटरलू का युद्ध किस किस के बीच हुआ? नेपोलियन की हार कब हुई? वाटरलू की लड़ाई में किसकी पराजय हुई? 18 सौ 15 ईस्वी में किस युद्ध में फ्रांस की हार हुई? किस देशों के समूह ने मिलकर नेपोलियन को 1815 में हराया था? 1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोप में मुख्यत: किस प्रकार की सरकार का चलन था? वाटरलू के युद्ध का वर्णन? वाटरलू का युद्ध कब लड़ा गया? वाटरलू युद्ध in hindi? अंग्रेजों ने वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन को कैसे पराजित किया था? नेपोलियन का पतन कैसे हुआ

वाटरलू का युद्ध का कारण

विश्व इतिहास में नेपोलियन प्रथम (1769-821) के उत्थान और पतन की कहानी बडी नाटकीय है। नेपोलियन बोनापार्ट (Nepolian Bonaparte) नामक इस साधारण सैनिक के फ्रांस का सम्राट (1804-1814) बनने तक की कहानी जितनी रोमाचक है, उतनी ही साहसपूर्ण भी। अपने उत्कर्ष काल मे वह पूरे यूरोप के लिए आतंक और भय बन गया था। उसका सपना था कि यूरोप के सभी देशों को जीत कर फ्रांस की छत्रछाया में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जाये। ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया को छोड़कर लगभग पूरा यूरोप फ्रांस के आधिपत्य में आ भी गया था।

नेपोलियन एक बहादुर योद्धा और कुशल सेनानायक अवश्य था किन्तु उसके आक्रमणों तथा जीतो से यूरोप के अन्य देशों को अपनी स्वतन्त्रता छिनती दिखाई दी। वे धीरे-धीरे अपने आपसी मतभेद भुलाकर नेपोलियन के विरुद्ध एकजुट होने लगे। ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, प्रशिया, रूस, स्पेन और पुर्तगाल सहित उस समय के सभी प्रमुख यूरोपीय देश नेपोलियन की पराजय के लिए प्रयत्नशील हो गये। 1812 में रूस पर आक्रमण करके नेपोलियन को काफी क्षति पहुंची थी और बहुत बड़ी संख्या मे उसके सैनिकों के मारे जाने के कारण उसकी सेना दुर्बल भी हो गयी थी। प्राय द्वीपीय युद्धो (Peninsular Wars 1808-1814) मे भी उसकी
शक्ति क्षीण हुई थी। नेपोलियन के विरुद्ध एकजुट हुए देशों की सेनाओ ने लाइपजिग (Leipzig) में फ्रांसीसी सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। 1814 मे हुए इस युद्ध के बाद नेपोलियन को फ्रासीसी सम्राट के पद का त्याग करना पडा। उसे एल्बा (Elba) द्वीप पर जा कर एकाकी जीवन बिताने के लिए निर्वासित कर दिया गया।

अप्रैल, 1814 मे ही प्रथम पेरिस समझौता हुआ। समझौते पर मित्र देशो के प्रतिनिधियों तथा फ्रांस की ओर से बूरबन (Bourbons) नामक पुराने शाही खानदान के उत्तराधिकारी लुई अठारहवें (Louis 18) ने हस्ताक्षर किये। फ्रांस की गद्दी पर लुई अठारहवें को बिठाया गया। उधर, नेपीलियन लगभग दस महीने तक निर्वासित जीवन बिताने के बाद एल्बा द्वीप से भाग निकला और फ्रांस चला आया। उसने दुबारा गद्दी हथिया ली और सेना गठित की। उसका इरादा सेना गठित करके मित्र देशों की संयुक्त सेनाओ पर आक्रमण करने का था। अपना इरादा पूरा करने के लिए वह जून, 1815 में सेना लेकर बेल्जियम के रास्ते चल पडा। ब्रूसेल्स के निकट वाटरलू मे ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, प्रशिया और रूस की संयुक्त सेनाओं से उसका मुकाबला हुआ।

वाटरलू का युद्ध
वाटरलू का युद्ध

वाटरलू का युद्ध का प्रारम्भ

18 जून, 1815 को वाटरलू्‌ के प्रसिद्ध मैदान मे यह निर्णायक युद्ध शुरू हुआ। नेपोलियन ने प्रारम्भ में बडी फूर्ती तथा बुद्धिमानी से काम लिया। ब्रिटिश और प्रशियन सेनाएं इधर-उधर बिखरी पड़ी थी। उसे ज्ञात हुआ कि युद्ध के लिए वे सवेरे तक तैयार नहीं हों सकती, इसलिए उसने अपनी सेना को जनरल ने (General Ney) और जनरल ग्रोशी (General Grouchy) के नेतृत्व मे दो भागों में बांट दिया। स्वयं एक सेना लेकर इस आशा से तैयार हो गया कि आवश्यकता पडने पर जहां से भी सहायता मांगी जायेगी, भेज दी जायेगी।

किन्तु प्रशियन जनरल ब्लूचर (Blucher) की तेजी के कारण उसकी यह विचार सफल न हो सका। एकाएक प्रशियन सेना नेपोलियन से लिज (Liege) मेंभिड पड़ी। नेपोलियन अकेला लड़ा था। जनरल ने (General Ney) का एक सैनिक भी वहा न पहच सका था क्योकि उसके सैनिक काटरकब्रास (Quatre Bras) मे ब्रिटिश जनरल वेलिंगटन (General Wellington) से लड रहे थे। जनरल अरलन 20 हजार सैनिक लिये काटरब्रास जा रहा था कि उसे तुरन्त लिज पहुंचने का आदेश मिला। अजीब स्थिति में फंसा वह दोनों मैदानों के बीच युद्ध किये बिना दौड़ता रहा। यही भूल नेपोलियन को महंगी पडी।

इस समय तक नेपोलियन को प्रशियन सेना के विरुद्ध विजय प्राप्त हुई थी। उसने समझा कि प्रशियन नष्ट हो गये है, इसलिए उसकी गति भी मद हो गयी। उस दिन उसने विश्राम करने का भी निश्चय किया। दोपहर मे जनरल ग्रोशी को प्रशियन सेना के पीछे जाने की आज्ञा देकर वह स्वय जनरल ने (General Ney) की सहायता के लिए पहुंच गया। यदि कही नेपोलियन चार घटे पहले रवाना हो जाता तो ड्यूक ऑफ वेलिंगटन पर आक्रमण करना सहज था क्‍योंकि उस दिन वह माटजीन की पहाडी पर पडाव डाले पडा था। नेपोलियन के पास शत्रु से अधिक सेना थी किन्तु दूसरे दिन भी 12 बजे तक नेपोलियन ने आक्रमण नहीं किया।

वाटरलू के रणक्षेत्र मे तीन दिन तक घमासान युद्ध होता रहा। यह कहना कठिन था कि किस पक्ष की विजय होगी। शाम को चार बजे ब्लूचर के नेतृत्व मे कुछ प्रशियन वेलिंगटन की सहायता को आ गये। दिन के अंतिम घंटों मे फ्रांसीसी सेना का पीछे हटना भगदड मे परिवर्तित हो गया। युद्ध की दिशा ही बदल गयी और नेपोलियन को इतनी भयंकर पराजय का सामना करना पडा कि वाटरलू उसके प्रसिद्ध युद्धो का अंतिम चरण साबित हुआ।

नेपोलियन पेरिस भाग खड़ा हुआ। वह अब भी सेना का गठन कर युद्ध करना चाहता था किन्तु ब्रिटिश गुप्तचरों ने उसे कैद कर लिया। मित्र देशों के कई सेनाधिकारी उसे तोप से उड़ा देना चाहते थे किन्तु वेलिंगटन जैसे वीर सेनापतियों के विरोध स्वरूप उसे दक्षिण अटलांटिक सागर के सेंट हेलेना द्वीप (Island Of St.Helena) पर अकेला छोड़ दिया गया। अपनी पराजय से क्षुब्ध तथा पेट की एक भयंकर बीमारी के कारण 5 मई, 1821 को नेपोलियन की मृत्यु हो गयी।

वाटरलू युद्ध का परिणाम

वाटरलू के इस युद्ध मे नेपोलियन के पतन के पश्चात्‌ यूरोप के इतिहास मे दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों का जन्म हुआ। एक तो प्रतिक्रियावादी, जिसके समर्थक स्वाधीनता, समानता और बंधुत्व की जगह निरंकुश शासन के हामी थे। दूसरे, सुधारवादी प्रवृत्ति के समर्थक थे, जो सामंतवाद के विरोधी और प्रजातांत्रिक प्रणाली के पक्षधर थे।

फ्रांस, इंग्लैड तथा बेल्जियम मे सुधारवादी प्रवृत्तियां स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती थीं। फिर भी पहले तीस वर्षों तक यूरोप में प्रतिक्रियावाद का बोलबाला रहा। नये-नये देशों का उनकी इच्छा के विरुद्ध आपस मे विलय कर दिया गया। बेल्जियम को उसकी इच्छा के विरुद्ध हॉलैंड से बाध दिया गया किन्तु सामान्य जन तुरन्त ही इस प्रवृत्ति से ऊब गये। फलतः यूरोप के विभिन्‍न देशो में क्रांतिया हुई। इन्हीं हलचलों को देखकर फ्रांस मे दो बार राजतन्त्र को पलट दिया गया और 1848 की क्रांति से वहा प्रजातन्त्र स्थापित हुआ। ब्रिटेन में चार्टिस्ट आंदोलन हुआ। प्रतिक्रियावाद का विधाता मेटरनिक स्वयं एक क्रांतिकारी झोके से सत्ताविहीन हुआ और उसे ब्रिटेन में शरण लेनी पडी। युद्ध की विभीषिकाओं में जलता यूरोप शांत हो गया। यूरोपीय देशो ने वियना के सम्मेलन मे नवजात यूरोप की व्यवस्था पर विचार-विमर्श किया। फलत: आगामी अनेक वर्षो तक यूरोप युद्ध विहीन रहा।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply