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लोहांगी पहाड़ी विदिशा

लोहांगी पहाड़ी विदिशा – लोहांगी पीर विदिशा

मध्य प्रदेश के विदिशा में रेलवे स्टेशन के निकट 200 फीट ऊँची एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसे लोहांगी पहाड़ी या लोहांगी पीर कहते है, इस पहाड़ी जिसका ऊपरी आधा भाग सीधी कतार है किन्तु उसके ऊपर समतल है। यही कारण है कि यहां लगभग 100 मीटर के व्यास के भीतर मंदिर, मस्जिद आदि स्मारक है। इनके अतिरिक्त शुगकालीन स्तम्भ शीर्ष भी किसी अन्य स्थान से लाकर यहां रख दिया गया है।

लोहांगी पहाड़ी विदिशा – लोहांगी पीर विदिशा

एक कथानक के अनुसार राजा रुकमनगढ़़ के प्रसिद्ध श्वेत अश्व का जिसके काले कान थे, लोहांगी पहाड़ पर ही अस्तबल था। घण्टाकृति स्तम्भ शीर्ष को, जिसे पानी की कुण्डी कहते हैं, श्वेत अश्व के पानी पीने का द्रोण समझा जाता है। इस पहाड़ी का वर्तमान नाम लगभग 600 वर्ष पूर्व लोहांगी पीर के नाम के कारण प्रचलित हुआ है। लोहांगी पीर, शेख जलाल चिश्ती की उपाधि थी। आषाढ़ की पूर्णिमा को यहां एक मेला लगता है, जो सम्भवतः बुद्ध पूर्णिमा से सम्बन्धित हो सकता है।

लोहांगी पहाड़ी पर जाने के लिये अनेक सीढ़ियां बनी हुई हैं, जिनका जीर्णोद्वार विदिशा नगरपालिका की ओर से किया जा रहा है। पहाड़ी के शिखर पर प्रवेश द्वार की कुछ सीढ़ियां पार करने के पश्चात बाई ओर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संरक्षण पट्ट लगा है। वहीं एक चौरस स्थान पर एक स्तम्भ शीर्ष कुछ वर्ष पूर्व निर्मित चबूतरे पर रखा है। इसकी ऊंचाई 3 फुट तथा व्यास 3 फुट 8.1/4 इंच है। इस पर शुंगकालीन शैली में उत्कीर्ण हंस आकृतियां विशेष उल्लेखनीय हैं।

लोहांगी पहाड़ी विदिशा
लोहांगी पहाड़ी विदिशा

लुहांगी पहाड़ी के पश्चिमी भाग में एक मस्जिद है, जिसमें मालवा के महमूद प्रथम खिलजी तथा अकबर के क्रमणः 864 तथा 987 हिजरी के अभिलेख है। इस मस्जिद के सामने एक मंदिर है, जो पहाड़ी की वर्तमान सतह से नीचे है। इसके सभा मण्डप में विभिन्न
स्तम्भ है, जिनमे से कुछ आधुनिक हैं। आजकल यहां पुलिस विभाग की ओर से पूजा की व्यवस्था की जा रही है।

वर्तमान विदिशा शहर (प्राचीन भेलसा) के चारों ओर पत्थर की दीवारों का परकोटा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसमे प्रयुक्त पत्थर प्राचीन स्मारकों के अंश हैं, जो परकोटा निर्माण के समय एकत्र किये गये होंगे, इस परकोटे में तीन द्वार है। पश्चिमी तथा दक्षिणी द्वार बेस व रायसेन द्वार कहलाते हैं । परकोटे का अधिकांश भाग धीरे धीरे विनष्ट होता जा रहा है।

विदिशा नगर के एक कोने में पुलिस स्टेशन से दो किलो मीटर की दूरी पर एक स्मारक है जों विजय मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण विजयरानी ने करवाया था। एक स्तम्भ पर पाये गये अभिलेख से ज्ञात होता है कि आरम्भिक मंदिर चर्चिका देवी का था। औरंगज़ेब के राज्यकाल में इस मंदिर का विध्वंस किया गया था तथा उसके ऊपर एक मस्जिद खड़ी कर दी गई थी, जिसमें विजय मंदिर के ही अधिकांश पत्थर प्रयोग में लाये गये।

औरंगज़ेब ते इस नगर का नाम आलमगीरपुर तथा इस मस्जिद
का आलमगीरी मस्जिद रखा था। इसकी लम्बाई 78 फीट तथा चौड़ाई 26 फुट है। प्राचीन मंदिर की नींव पर निर्मित होने के कारण इसमें प्रवेश करने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। प्रवेश द्वार एक छोटे से आयताकार कमरे में खुलता हैं जहां से एक भीतरी द्वार आंगन में जाने के लिये हैं। आँगन के पीछे के भाग मे चार पंक्तियों के स्तम्भों का एक प्रार्थना मण्डप है, जिसमें 13 द्वार हैं।

सन्‌ 196-65 में इस स्मारक के दहिनी तथा बांई ओर एकत्रित मलवा हटाया गया था, जिसके फलस्वरूप मस्जिद के दाहिनी ओर विजय मंदिर का मुख्य द्वार अनावृत किया गया था। इस द्वार के निकट मलवे से अनेक मूर्तियां प्राप्त की गई। पिछले कुछ वर्ष पहले यहां एक गणेश मूर्ति भी मिली थी, जिस पर दसवीं- ग्यारहवीं शताब्दी का एक लेख भी है। इस स्मारक के निकट एक बावली है, जो स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, किन्तु अब विनष्ट होती जा रही है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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