न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ के भवन में एक छोटा-सा गोला, एक लम्बी लोहे की छड़ से लटकता हुआ, पेंडुलम की तरह इधर से उधर डोलता रहता है, लेकिन ज्यों-ज्यों घंटे गुजरते हैं, लगता है, उसकी भी दिशा बदल रही है। सोने का यह नन्हा सा गोला, मन्द गति से झूलता हुआ और देखने में बड़ा ही सादा-सा, इस वृत्ति का सबूत है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। इसका नाम भी इसे ईजाद करने वाले के नाम पर ही रखा गया है– फौकॉल्ट पेंडुलम। फौकॉल्ट पेंडुलम का आविष्कार लियोन फौकॉल्ट ने किया था। लियोन फौकॉल्ट पूरा नाम ‘जीन बर्नार्ड लियोन फौकॉल्ट (Jean Bernard Léon Foucault) है। जो एक प्रसिद्ध खोजकर्ता थे।
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लियोन फौकॉल्ट का जीवन परिचय
जिन बर्नार्ड लियोन फौकॉल्ट का जन्म 1819 में,पेरिस में हुआ था। शुरू की शिक्षा-दीक्षा उसकी घर ही में हुई, माता-पिता समृद्ध थे, बालक के लिए ट्यूटर लगा दिए गए। छोटी उम्र में जिन की हर हरकत से साबित होता था कि उसमें हर तरह की चीज़ें जोड़ तोड़कर बनाने की प्रतिभा कुछ अधिक है। कितनी ही चीज़ें उसने उन दिनों बनाई। एक किश्ती, एक मेकैनिकल टेलिग्राफ सिस्टम, और एक सफल स्टीम इंजन भी।
पेरिस में यूनिवर्सिटी में दाखिल होकर लियोन फौकॉल्ट ने चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन शुरू किया, लेकिन खून को देखते ही उसकी तबियत खराब होने लगती। उसने डाक्टर बनने का इरादा छोड़ दिया। मेडिकल स्कूल में उसे माइक्रोस्कोप के लिए स्लाइड तैयार करने की एक टेक्निकल नौकरी मिल गई। फोटोग्राफी में दया प्रक्रिया काम करती है, इसकी विकास-कथा को, अर्थात लुई जैक्वीज देगुऐर्रे के अनुसन्धान की कहानी को, 1839 में पढ़ने के बाद फौकॉल्ट की अभिरुचि प्रकाश तथा नेत्र-विज्ञान में जाग उठी। और तभी उसे अनुभव हुआ कि जोड़ तोड़ की इस मैकेनिकल दक्षता में कुछ नहीं धरा। गणित और विज्ञान के मूल सिद्धांतों के ज्ञान की आवश्यकता उससे कहीं अधिक है।

लियोन फौकॉल्ट की खोज
लियोन फौकॉल्ट ने प्रकाश की गति को मापने के लिए कुछ चमत्कारी उपाय भी निकाले, किन्तु एक तो फासला छोटा, और उस ज़माने के उपकरणों में भी अपेक्षित पूर्णता थी नही इसलिए उसके निष्कर्षों में वह पूर्णता अथवा शुद्धि नही आ सकी। किन्तु यह नहीं कि उसके परीक्षणों से कुछ भी लाभ न हुआ हो। फौकॉल्ट ने अलबत्ता, यह सिद्ध कर दिखाया कि प्रकाश की गति पानी में वायु की अपेक्षा कुछ मन्द पड जाती है। इससे प्रकाश के विषय में एक नया सिद्धान्त आविष्कृत करने में सहायता मिली कि प्रकाश तरंग-प्रकृति है, और कि वैज्ञानिको की यह पुरानी स्थापना कि प्रकाश ज्योति कणों की एक अविच्छिन्न धारा है, गलत है। कुछ बाद मे एलबर्ट ए० मिचेलसन, एक अमेरीकन वैज्ञानिक ने फौकॉल्ट के ही घूमते दर्पण की विधि के द्वारा प्रकाश की गति को बहुत ही सही-सही रूप में निकाला भी था।
लियोन फोकॉल्ट की प्रतिभा बहुत ही उर्वर थी, उसकी रुचि प्रकाश के अध्ययन तक ही सीमित न थी। प्रतिभा भी थी, कौतूहल भी कम नही था इसलिए वह इलेक्ट्रिसिटी और मेकेनिक्स के क्षेत्र में प्रविष्ट हो गया। इन्ही दिनों बिजली के आर्क लेम्प, अर्थात कार्बन की दो छड़ों के बीच एक वृहद विद्युत स्फुर्लिग का आवागमन प्रयोग मे आना शुरू हो चुका था। धीमे धीमे कार्बन की इन छड़ों के बीच में अन्तर बढता ही जाता है ज्यों-ज्यों उनका कार्बन जलता जाता है, और अन्त में इतना बढ जाता है कि अब रोशनी पैदा नहीं हो पाती, बुझ जाती है। फौकॉल्ट ने एक उपाय निकाला जिससे जलने से कार्बन की
छड़ों में यह जो कमी आती-जाती है वह साथ ही साथ पूरी भी होती जाए।
विद्युत के क्षेत्र मे इस आविष्कार के अतिरिक्त लियोन फौकॉल्ट ने ताप में तथा यन्त्र- शक्ति मे, यन्त्र-शक्ति में तथा चुम्बक-शक्ति में परस्पर सम्बन्धों पर भी अनुसन्धान किया। विद्युत में भ्रमरी धाराओं का आविष्कार भी उसी ने किया था और इसीलिए आज उन्हे फौकॉल्ट करेंटस कहते भी है। इंडक्शन द्वारा इन धाराओं को ताबे की एक थाली मे, थाली को एक सशक्त चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर पैदा किया जाता है। आज भी इसकी मूल कल्पना का प्रयोग हम घर-घर मे अपने इलेक्ट्रिक मीटरों में करते हैं।
फौकॉल्ट पेंडुलम न्यूटन के नियम का एक अद्भुत प्रमाण है कि कोई भी वस्तु उसी मार्ग पर निरन्तर गतिशील ही रहेगी जब तक कि उसे कोई बाह्य शक्ति आकर रोक नही देती। साथ ही यह इस बात का सबूत भी है कि धरती अपनी धुरी पर घूमती हैं। पेंडुलम को लटकाने के लिए एक प्राय सघर्ष-विहीन गेंद और एक सॉकेट बेयरिंग को इस्तेमाल में लाया जाता है। इधर यह गोला दाएं से बाएं, बाएं से दाएं गति करता है और, उधर उसके नीचे पृथ्वी चक्कर काट रही होती है। देखने वाले को लगता है कि पेंडुलम की दिशा बदल रही हैं। किन्तु यह भी हमारी दृष्टि की ही एक भ्रांति है। वैसी ही जो हमे बताती है कि सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर जा रहा है, जबकि यह पृथ्वी होती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर गतिशील होती है।
फौकॉल्ट के सभी आविष्कारों एव अनुसंधानों ने मानव-ज्ञान को समृद्ध किया है। किन्तु उसका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आविष्कार एक खिलौना है यह खिलौना शक्ल में धातु का बना एक पहिया है जिसके सिरे बहुत ही भारी है। लट्टू की तरह इसे घुमाएं तो पहिये की अक्षरेखा में बिलकुल फर्क नहीं आता।
सदियों से समुंद्र यात्री चुम्बक की सुई के द्वारा ही जान पाते थे कि उत्तर किस ओर है। कम्पास की सुई पृथ्वी के चुम्बक क्षेत्र की दिशा में ही उलटी पड़ जाती है। किन्तु जहाज़ों में लोहा इस्तेमाल होता है, अब कम्पास उत्तर की ओर सही दिशा संकेत न देकर स्वभावत: जहाज के स्टील की ओर आकृष्ट हो जाता, मानो विद्युत् की कोई धारा उसे घेरे हो। समस्या थी, कुछ ऐसा उपाय किया जाए कि उत्तर का संकेत भी मिलता रहे और सुई जहाज के लोहे से प्रभावित भी न होने पाए।
एक अमेरीकी आविष्कर्ता ऐल्मर एम्ब्रोस स्पेरी ने फौकॉल्ट के जाइरोस्कोप में प्रश्न का समाधान पा लिया। कुछ परिवर्तन लाकर उसने जाइरो कम्पास ईजाद कर लिया। जाइरो कम्पास को अगर चक्कर में इस तरह घुमा दिया जाए कि उसकी अक्षरेखा दक्षिण उत्तर की ओर रहे, उसकी इस दिशा में कुछ भी परिवर्तन नहीं आएगा।जहाज को चाहो जिधर भी घुमा दो। ब्रुकलिन नेवी यार्ड में 1911 में दुनिया का पहला जाइरो कम्पास लड़ाके जहाज ‘डिलाबेयर’ में प्रयुक्त हुआ था। वह परीक्षण उसी क्षण अपनी सफलता सिद्ध कर गया था।
जाइरोस्कोप के सिद्धान्त का प्रयोग कितने ही क्षेत्रों में कुछ हेराफेरी के साथ हो चुका है। यह आज एक ऑटोमेटिक पाइलेट का काम भी देता है। हवाई या समुद्री जहाज में तूफान और मौसम के धुंधलेपन का इस पर कुछ भी असर नहीं पडता। टॉर्पीडो का सही-सही नियन्त्रण भी इसके द्वारा सम्भव है। कुछ एक जाइरोस्कोपों और कुछ इलेक्ट्रिक कम्प्यूटरों के संयोग द्वारा समुंद्री यात्रा में एक प्रकार के अग॒ति संचार की व्यवस्था’ (इनशियल नैविगेशन सिस्टम) भी की जा सकती है, और कुछ ऐसा ही एक पेचीदा उपकरण था जिसकी बदौलत अणुचालित पनडुब्बी ‘नॉटिलस” उत्तरी श्रुव के नीचे-नीचे तिर आई थी।
स्पेरी के ही जाइरोस्कोपो में कुछ हेराफेरी लाकर आजकल उन्हे ग्रह-यात्राओं में पूर्व निदिष्ट मिसाइलों में और स्वयं मानव-निर्मित उपग्रहों को यात्रा-पथ पर डालने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। किन्तु दरअसल यह लियोन फौकॉल्ट का वह खिलौना ही था
जो यह सब स्पेरी के दिमाग में मुमकिन कर गया।