फ्लॉरेंस ()(इटली) में एक पहाड़ी है। एक दिन यहां सुनहरे बालों वाला एक नौजवान आया जिसके हाथ में एक पिंजरा था। पिंजरे को उसने खोला और पिंजरे में बन्द परिंदों को आसमान में छोड़ दिया। परिंदे खुली हवा में तैरते गए। हमारा नौजवान उन्हें बड़े ध्यान से देखता रहा। जो कुछ लियोनार्दो दा विंची ने देखा उसके वह नोट्स लेता गया।
वह परिंदों को देख भी इसी के लिए रहा था। क्योंकि उसे यह यकीन हो चुका था कि हवा में उड़ने के जो कुछ भी नियम हो सकते हैं वे आदमी के लिए और परिंदों के लिए एक से ही होने चाहिएं। वह अपने नोट्स उल्टी लिखावट में ले रहा था कि कहीं किसी और के हाथ न आ जाएं। इटली में पहले से ही बहुतों का ख्याल बन चुका था कि लियोनार्दो दा विंची पागल है और लियोनार्दो भी वहीं चाहता था कि वह किसी तरह भी जले पर नमक छिड़कने की एक गलती और कर जाए। आदमी उड़ने लगे–? नामुमकिन।
कितने ही इतिहासकारों का मत है कि लियोनार्दो दा विंची अपने युग का सबसे बड़ा परीक्षणशील वैज्ञानिक था, और यह तो सभी मानते ही हैं कि उसकी गणना मानव-इतिहास के श्रेष्ठतम कलाकारों में होनी चाहिए। चित्रकला में उसकी इस प्रसिद्धि का आधार दो चित्र माने जाते हैं–लास्ट सपर’ और ‘मोनालीसा’। कितने ही विश्वविख्यात चित्र वह अपने पीछे छोड़ गया और, इनके अतिरिक्त, 5000 से अधिक बड़े छोटे-छोटे अक्षरों में लिखे हुए सचित्र पृष्ठ भी जिनमें जो कुछ प्रत्यक्ष उसने किया और उन प्रत्यक्षों के आधार पर जितने भी आविष्कार (सभी तरह के) उसे सूझे, उनकी रूपरेखा अंकित है। जो कुछ भी उसने जिन्दगी-भर में लिखा, शीशे पर अक्स की शक्ल में उल्टी लिखावट में ही लिखा ताकि वह लोगों की निगाह से बचा रह सके। लियोनार्दो दा विंची एक आविष्कारक था। वह एक सिविल इंजीनियर, सैनिक इंजीनियर, ज्योतिर्विद, भूगर्भ-शास्त्री और शरीर-शास्त्री था। और साथ ही, शायद, वह दुनिया का पहला हवाबाज भी था। उसका हर क्षेत्र मे प्रवेश ही नही, एक विशेषज्ञ के समान पूर्ण अधिकार था। सर्वप्रथम वह एक कलाकार था, और कला के माध्यम से ही उसने विज्ञान में प्रवेश किया, और उसके वैज्ञानिक अध्ययनों ने भी सम्भवतः उसकी कला को चार चांद और लगा दिए।
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लियोनार्दो का जीवन परिचय
लियोनार्दो दा विंची का जन्म 1452 मे इटली के प्रसिद्ध शहर फ्लॉरेस के निकट विंची गांव में हुआ था। उसका पिता गांव का एक अफसर था, और मां विंची की ही किसी सराय मे कभी नौकरानी रही थी। लियोनार्दो दा विंची का बचपन अपने दादा के घर मे बीता।
स्कूल से ही लियोनार्दो की प्रतिभा सामने आने लग गई थी जबकि गणित की मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का समाधान वह चुटकियों में ही कर देता था। और इसी समय से ही चित्रकला में उसकी अद्भुत शक्ति भी अभिव्यक्ति पाने लगी थी। सोलह साल की उम्र मे आन्द्रेआ देल वेरोचिओं के यहा वह एप्रेण्टिस हो गया, और उसकी छत्रछाया मे लकडी, संगमरमर, तथा अन्यान्य धातुओं पर शिल्पकारी करना सीख गया। वेरोचिओ अपने शिष्य की अद्भुत योग्यता से प्रभावित हुआ और उसने लियोनार्दो को प्रेरित किया कि वह लेटिन और ग्रीक के गौरव-ग्रथों का स्वाध्याय करे और दर्शन, गणित तथा शरीर-विज्ञान मे दक्षता प्राप्त करे। वेरोंचिओ का विचार था कि एक सच्चा कलाकार बनने के लिए इन ग्रंथो और विषयो का स्वाध्याय आवश्यक है।
छब्बीस वर्ष की आयु में कही लियोनार्दो की यह शागिर्दी समाप्त हुई, जिसके बाद वह ‘कलाकार संघ’ का सदस्य बन गया। अब वह पूर्णतः स्वतन्त्र था कि उसकी कला के भी अपने ही प्रशंसक हो, अपने ही पारखी हो। संघ की छत्रछाया में उसने संगीत-वाद्यो
में एक नया परीक्षण किया। घोडे के सिर की शक्ल मे एक वीणा आविष्कृत की जिसके दांतो मे यह विशेषता थी कि वे संगीत के स्वरों का यथेष्ट ‘सकलन’ कर सकते थे। इस वीणा से ड्यूक लूदोविको स्फोर्जा, जो उन दिनो मीलान का राजा था, लियोनार्दो की ओर आकृष्ट हो गया।
इटली उन दिनो कितनी ही छोटी-छोटी रियासतों मे बटा हुआ था जिनमें आए दिन कोई न कोई झडप हो जाती। लियोनार्दो दा विंची का ध्यान परिणामत युद्ध के लिए उपयोगी सामग्री के निर्माण की ओर गया। और, ड्यूक की नौकरी करते हुए, उसने कुछ नये शहर बसाने की योजना सी भी बनाई कि वह प्लेग की महामारी से तंग आए शहरों को कुछ मुक्ति दिला सके। उसकी योजनाओ में शहर की गन्दगी को नालियो द्वारा दूर ले जाने की व्यवस्था का महत्त्व भी स्पष्ट है। कितनी ही योजनाएं उसने ड्यूक के सामने पेश की लेकिन मालिक को शायद उनमें कोई भी पसन्द नही आई, सो, ड्यूक के लिए वह एक सुन्दर चित्र “दि लास्ट सपर’ ही प्रस्तुत कर सका जिसे सान्ता मारिया की रिफेक्टरी को पेश करने के लिए बनाने का उसे हुक्म खुद ड्यूक ने दिया था।
सीलान मे रहते हुए उसकी अभिरुचि ‘शरीर रचना विज्ञान’
(एनॉटमी ) में जाग उठी। उस जमाने के मशहूर डाक्टरों के पास वह गया कि मुर्दों की चीरा-फाडी वह अपनी आंखों से देख सके। इस सबका नतीजा यह हुआ कि मानव-शरीर के अंग-अंग’ का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करने वाले लियोनार्दो के कितने ही कलापूर्ण रेखाचित्र आज विज्ञान की विरासत बन चुके हैं।

ड्यूक स्फोर्जा को फ्रांस के बादशाह ने पकड़ लिया और कैद में डाल दिया। परिणामतः लियोनार्दो का अब कोई अभिभावक न रहा। इस संकटकाल में वेनिस जाकर उसने अपने युद्ध-सम्बन्धी आविष्कारों को वहां के अधिकारियों के सम्मुख पेश किया।जिनमें गोताखोरों के लिए एक खास किस्म की पोशाक और एक तरह की पनडुब्बी भी थी। ये ईजादें विंची के उन थोड़े से आविष्कारों में से हैं जिनका कि उसकी नोट बुकों में पूरा-पूरा ब्यौरा नहीं मिलता। विंची का कहना था कि इन्हें बनाने के तरीकों को वह खोलकर पेश नहीं कर रहा क्योंकि उसे डर था कि “कहीं मनुष्यों की पशुता इनका प्रयोग समुंद्र तल में उतरकर संहार के लिए न करने लगे।
कुछ अरसे के लिए लियोनार्दो सेसारे बोगिया के यहां नक्शाकशी की नौकरी भी करता रहा। बोगिया एक जालिम हाकिम था जिसकी तजवीज सारे इटली को अपने कब्जे में ले आने की थी, उसने लियोनार्दो को नौकरी दी भी इसी इरादे से थी कि उसे इस बहाने टस्कनी और अम्ब्रिया के सही-सही नक्शे मिल जाएंगे। ये नक्शे लियोनार्दो ने खुद मौकों पर पहुंचकर, निरीक्षण के अनन्तर, और इंच-इंच जमीन को औज्ञारों से मापकर, फिर तैयार किए थे। सन् 1500 ई० में जब उसकी आयु 50 के करीब होने लगी, लियोनार्दो अपनी मातृभूमि फ्लॉरेंस को लौट आया और, अब 6 साल लगातार यहीं रहा। इसी अरसे में उसने मोनालिसा की वह प्रसिद्ध तस्वीर तैयार की जिसकी लुभावनी मुस्कुराहट को फ्रांस के लुब्र म्यूजियम मे देखकर आज भी हजारों की आंखो को तरावट मिलती है, और आध्यात्मिक तृप्ति मिलती है।
लियोनार्दो के ही समकालीन अन्य प्रसिद्ध कलाकार रैफेल तथा माइके ले जेलो,उन्ही दिनो वैटिकन मे, और वैटिकन के सिस्टीन चैपल मे, तस्वीरे बना रहे थे। लियोनार्दो भी रोम पहुचा, किन्तु एक भी आर्डर लेने मे असफल रहा। लोग लियोनार्दो को नही चाहते थे, क्योकि उसने आदमी के जिस्म को अन्दर से झांका था और अपने उन अध्ययनों की उसने तस्वीरे भी खींची थी। जनता की तथा अधिकारी वर्ग की, इस उपेक्षा का परिणाम यह हुआ कि उसे इटली छोडना पडा और वह लौटकर फिर घर कभी नही आया। उसकी जिन्दगी के बचे आखिरी साल फ्रांस के राजा की सेवा मे गुजरे।
कलाकार लियोनार्दो दा विंची के प्रामाणिक संस्करण निकल चुके है। आज भी उसके उन चित्रों मे मानव-प्रतिभा की अद्भुत अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष है, किन्तु वैज्ञानिक एवं आविष्कारक लियोनार्दो दा विंची का वर्णन कर सकना कुछ टेढी खीर है। वह अपने जमाने से कही आगे था। उसने जितनी भी कल्पनाएं की, सभी को मूर्ते रूप दिया जा सकता था, लेकिन अपने ही साथियों से वह इतने दूर की सम्भावनाएं पेश कर रहा था जिसके लिए समर्थन उसे शायद कही भी नही मिल सका। उसकी एक मुश्किल यह भी थी कि वह एक ही वक्त पर कितने ही काम अपने हाथ मे ले लेता और वक्त पर एक भी निभा न पाता क्योकि वक्त ही थोडा होता, और उन सभी पर एक साथ ध्यान वह खुद भी केन्द्रित नही कर सकता था।
लियोनार्दो दा विंची के आविष्कार
उसके आविष्कार जितने ही रोचक है, उतने ही विविध भी है। उसकी मशीनगन स्पेनिश-अमेरिकन युद्ध मे इस्तेमाल की गई अमेरिकन गेटलिग गन का पूर्व संस्करण है। लियोनार्दो की गन मे एक तिकोने आधार पर रखे बहुत-से बेरल इस्तेमाल होते है। एक ग्रुप की गने जब कारतूस छोड रही होती है तो दूसरे ग्रुप की भराई हो रही होती है, और तीसरा ग्रुप ठंडा हो रहा होता है। उसका ईजाद किया हुआ मिलिट्री टैंक एक चलता-फिरता घर है जिसमे कारतूसी ब्रीचो की भरी कितनी ही तोपें छिपाकर रखी होती है। टैंक चार ऐसे पहियों पर आगे बढता जिन्हें किसी भी दिशा मे घुमाया-फिराया जा सके और, जरूरत के वक्त, अलग भी किया जा सके, लेकिन टैंक को आगे धकेलने के लिए आदमी ही काम में लाए जाते। यह उन दिनो की बात है जबकि पानी और हवा को शक्ति के रूप में इस्तेमाल करने के अतिरिक्त कोई और कारगर वैज्ञानिक तरीका अभी विकसित नही किया जा सका था।
पनडुब्बियों और गोताखोरों की पोशाक के अलावा लियोनार्दो ने एक दो-मस्तूल वाला पानी का जहाज़ भी बनाया बाहर के मस्तूल को यदि दुष्मन बमबारी से तबाह भी कर दे तो जहाज़ बाकायदा चलता ही रहेगा। विज्ञान के उस क्षेत्र मे भी जिसे आधुनिक परिभाषा में यंत्र-विज्ञान कहते है लियोनार्दो का उतना ही प्रवेश था। हवा की रफ्तार को जानने के लिए उसने एक एनीमोमीटर ईजाद किया। यह एक तरह का पंखा था जिसे बीचोबीच इस प्रकार से टिका दिया जाता था कि जरा-सी भी हवा उसमें गति उत्पन्न कर जाए पंखा हवा में किस कोण पर डलता है, उससे हवा की रफ्तार बडी आसानी से मापी जा सकती है।
लियोनार्दो दा विंची की बडी घडी ही दुनिया की पहली घडी थी जिसमे घंटे और मिनट एक साथ पढे जा सकते थे। घडी की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए अन्दर एक भार लटका होता और एक तरफ से रेत के खिसकने के लिए एक एस्केपमेण्ट’ की
व्यवस्था होती। आजकल की मोटर गाड़ियों मे एक प्रकार का ऑडोमीटर लगा होता है जो यह बतलाता है कि गाडी कितना फासला तय कर चुकी है। ऑडोमीटर का काम यह होता है कि पहियों ने कितने चक्कर काटे है। उनको बाकायदा दर्ज करता चले और, गियरों और केबलो के जरिए इस सूचना को मीलों मे बदल दे। लियोनार्दो के पास कोई मोटर गाडी नही थी लेकिन अपनी नक्शाकशी के दौरान फासले मापना उसके लिए भी उतना ही जरूरी था जिसके लिए उसने एक तरह का ऑडोमीटर-सा ईजाद कर लिया एक छबील बैरो की शक्ल की-सी कुछ चीज जिसे आपरेटर सडक पर धकेलता हुआ आगे ले चलता जैसे-जैसे पहिये चलते, मशीन के गियर घूमने लगते, जिनका सम्बन्ध एक डायल की सुईयों के साथ पहले से ही बना हुआ होता। ये सुइयां किसी भी वक्त यह बता सकती थी कि ह्वील-बेरो कितने मील चल चुका है।
लियोनार्दो दा विंची ने कितनी ही इस तरह की छोटी-मोटी ईजादें की जो आज भी, थोडी-बहुत हेरा-फेरी के साथ, उसी शक्ल में इस्तेमाल हो रही है। उनमें कुछ फर्क अगर आ गया है तो यही कि लकडी की जगह अब स्टील इस्तेमाल होने लगा है किन्तु उनके मूल में काम कर रहे नियम सर्वप्रथम लियोनार्दो की सूक्ष्म बुद्धि ने ही विकसित किए थे। भारी वजनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए भी उसने एक यंत्र का निर्माण किया था जो हमारे आधुनिक “ऑटोमोबाइल जैक’ से बहुत भिन्न नही है। एक विरियेबल स्पीड ड्राइव का माडल भी उसकी नोट बुकों मे दर्ज है जिसमे गियर की शक्ल के भिन्न-भिन्न व्यास वाले पहियें इस्तेमाल होते है, और इन पहियों का सम्पर्क आप-से-आप एक किस्म के कोन ड्राइव के साथ होता चलता है। इस्तेमाल करने वाला जैसी भी रफ्तार चाहे इस सम्बन्ध को अदल-बदलकर मुमकिन कर सकता है। और तो और, लियोनार्दो ने रोलर बेयरिंग की ईजाद भी उन दिनो कर ली थी जबकि अभी ऐसी किसी चीज़ का किसी को ख्वाब भी न आ सकता था। उसने एक किस्म का डिफरैन्शल सी तैयार कर लिया था जिसका इस्तेमाल मोटर गाडियो के पिछले पहियों मे सिद्धान्त, हम आज भी उसी रूप में करते हैं। डिफरैन्शल का काम होता है कि दोनों पहियों मे एक की रफ्तार दूसरे से कुछ ज्यादा हो ताकि मोटर गाडी को किसी मोड पर मोडनें मे कोई दुर्घटना न पेश आए।
मशीनी औजार तैयार करने वाली फैक्टरियां शायद यह जानकर आज हैरान हो कि उनकी चुडियां काटने की और रेतिया काटने की मशीने प्रयोग मे लियोनार्दो की उन रूप रेखाओं से कोई बहुत भिन्न नही है। हाइड्रॉलिक, अर्थात् जलशक्ति, लियोनार्दो का एक बहुत ही प्रिय विषय था। उसने एक ऐसा पम्प आविष्कृत किया जिसमे प्रवाह की शक्ति स्वयं पानी को ऊपर उठा सकती थी। बहते पानी में एक पैडल-ह्वील होता जो एक बड़े भारी काग-ह्लील को आगे धकेलता, और यह काग-ह्वील सब कुछ पिस्टन पंपों को चालू कर देता जिनसे पानी धीरे- धीरे खुद-ब-खुद ऊपर उठने लगता। सारी मशीन कुल मिलाकर कोई 70 फुट ऊंची बन जाती है। इसके अतिरिक्त जलशक्ति के अन्य पाश्वों का भी विंची ने अध्ययन किया। पानी में तैरती-फिरती मछलियों की शक्लों को उसने बड़े गौर से देखा जिसके आधार पर उसने पानी के जहाज़ों के कुछ ऐसे डिजाइन बनाए कि वे भी मछलियों की तरह ही आज़ादी के साथ जिधर चाहें, बगेर किसी रोक-टोक के, आ-जा सके। जलशक्ति से सम्बद्ध दो ही प्रश्न महत्त्वपूर्ण थे, एक तो खेतों की सिंचाई का प्रश्न और दूसरा समुद्री यात्रा का प्रश्न, और इन्हीं को लक्ष्य में रखते हुए, लियोनार्दो ने नदी-प्रवाह की दिशा को बदल देने की कुछ महान योजनाएं भी तैयार की।
सन् 1490 के लगभग लियोनार्दो ने हवा में उड़ने की एक मशीन का नक्शा भी तैयार कर दिया। इस मशीन को जो उड़ी कभी नहीं लियोनार्दो की योजना में शुरू से आखीर तक खुद इन्सान को ही चालू करना था। ख्याल था कि उड़नेवाला ही अपने परों को चला चलाकर मशीन के बड़े-बड़े पंखों को गति देगा। एक किस्म का हेलीकोप्टर भी लियोनार्दो ने तैयार कर लिया था जिसका मुख्य पुर्जा एक भारी स्क्रू या चूड़ी था।लेकिन इस चूड़ी को आगे-पीछे धकेलने के लिए एक स्प्रिंग लगा दिया गया। इसमें कामयाबी उसे इस वजह से नहीं मिल सकी कि स्क्रू को चालू करने के लिए जो ताकत उस वक्त उपलब्ध थी वह बहुत ही थोड़ी थी। लियोनार्दो ने लकड़ी का पिरामिड की शक्ल का एक बड़ा ढांचा भी तैयार किया और उसे लिनन से ढंक दिया, यह था हमारा पहला पेराशूट जिसकी परीक्षा एक ऊंचे बुर्ज से करके दिखाई भी गई, कि किस प्रकार ऊपर से गिरता हुआ कोई वजन ज़मीन पर पहुंचते-पहुंचते अपनी रफ्तार को मद्धिम कर सकता है।
वनस्पतिशास्त्र में भी लियोनार्दो दा विंची का प्रवेश अद्भुत था। उसके रेखा चित्रों में तथा लेखों में स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि वनस्पतियों की प्रकाश ग्रहण की प्रवृत्ति का उसे पूर्ण ज्ञान था। कुछ पौधे स्वभावत: ‘सूर्य मुखी’ होते हैं जबकि कुछ दूसरे सूर्य के उदय होते ही अपना मुंह फेर लेते हैं। यही नहीं, लियोनार्दो ने यह भी प्रत्यक्ष किया कि कुछ जड़ों की प्रवृत्ति ज़मीन के नीचे की ओर बढ़ने की होती है, जबकि दूसरी किस्म की कुछ जड़ें स्वभावत: धरती के बाहर निकलने के लिए जैसे बेचेन रहती हैं। वनस्पतियों में, प्रकाश-वृत्ति की भांति, यह (एक प्रकार की) ‘भूमुखी-वृत्ति’ भी पाई जाती है, जो भिन्न-भिन्न वनस्पतियों में प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति के रूप में उसी प्रकार दृष्टिगोचर होती हैं। वृक्षों के तने को या शाखाओं को काटे तो हम देखेंगे कि कटी हुई जगह पर कुछ घेरे से पड़े़ होते हैं। लियोनार्दो ने ने इन घेरों का सम्बन्ध वृक्ष की आयु से स्थापित कर लिया। फूलों के जो रेखाचित्र लियोनार्दो पीछे छोड़़ गया है, उनसे यह स्पष्ट है कि उसे वनस्पति-जीवन में नर-नारी अथवा स्त्री-पुरुष की सत्ता का परिज्ञान था।
शरीर के अंगांग तथा अन्तरंग जानने की उत्सुकता भी लियोनार्दो को हुई तो इसके लिए भी उसने एक चिकित्सक के साथ अपना गठबन्धन कर लिया। जहां तक मानव-शरीर की रचना का प्रश्न है, उसकी अन्तर्व्यवस्था का लियोनार्दो को गम्भीर ज्ञान था। यह उसके शरीर विषयक रेखाचित्रों से ही स्पष्ट है। इन रेखाचित्रों से यह भी इतिहास मे पहली ही बार जाहिर हो सका कि मनुष्य के मस्तक मे तथा जबडो मे मुखद्वार होते है जिन्हें चिकित्साशास्त्री, क्रश , फ्रन्टल’ तथा ‘मैक्सिलरी”’ साइनस कहते है। चिकित्सा शास्त्र मे लियोनार्दो के रेखाचित्र ही पहली बार रीढ के दोहरे झुकाव को ठीक तरह से अंकित कर सके है, और, इतिहास मे, पहली ही बार मां के पेट में पडे (अजात ) शिशु की स्थिति बडी सुक्ष्मता के साथ दर्शाई गई है। लियोनार्दो के हृदय-सम्बन्धी रेखा-चित्रों तथा उपवर्णनों मे भी, अद्भुत यथार्थ अंकित हुआ है जिसमे हृदयऊक्ष, हृदयद्वार, तथा हृदय की आपूर्ण रचना सभी कुछ यथावत् चित्रित है।
लियोनार्दो के अनेक रेखाचित्रों को आज के माडलो के रूप मे परिवर्तित किया जा चुका है। कभी-कभी इन प्रतिमू्त आकृतियों का प्रदर्शन भी किया जाता है। इण्टर-नेशनल बिजनेस मशीन कॉपोरिशन’ के पास इनका एक प्रामाणिक एव विपुल सग्रह भी है। कॉर्पोरेशन के सस्थापक टॉमस जे० वाट्सन के शब्द है “आविष्कार मनुष्य की महानतम कलाओं मे एक है। शब्द के व्यापकतम अर्थों में सभी कलाओ का समावेश आविष्कार मे हो जाता है। लियोनार्दो दा विंची का अध्ययन जब हम उसके चित्रों, रेखाचित्रो, अन्वेषणो, वेज्ञानिक वेषणाओ तथा आविष्कारों के माध्यम से करते है, तो हमे एक अपूर्व उल्लास का अनुभव होता है कि एक ही मनुष्य अपनी विचारशक्ति, अनुभवशक्ति तथा निर्माण-शक्ति का अपने साथी मानवो की सेवा में पूर्णतम प्रयोग करते हुए, क्या कुछ नहीं कर सकता।