लालदासी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ, प्रवर्तक, शिक्षा और इतिहास Naeem Ahmad, November 16, 2023 लालदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत लालदास थे। ये अलवर राज्य के निवासी थे। इनकी जाति मेवा थी और पहले ये लकड़हारे का काम करते थे। ये बिलकुल पढ़े लिखे नहीं थे। परन्तु साधुओं के सत्संग से इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। संत लालदासी का जन्म सन 1540 में धोली धूप नामक गाँव में हुआ था। ये गृहस्थी थे। इन्हें एक पुत्र और एक कन्या थी। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् ये लोगों को उपदेश देते थे तथा जनसेवा में रत रहते-थे। इनके उपदेश से प्रभावित होकर कई लोग इनके शिष्य हो गये, जिनमें हिन्दू, और मुसलमान दोनों थे। अपने विरोधियों की ओर से तथा तत्कालीन शास्त्रों, की ओर से इन्हें बहुत कष्ट सहने पड़े थे, किन्तु फिर भी ये अपने भक्ति प्रचार एवं परोपकार के कार्य से विरत, नहीं हुए। Contents1 लालदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक कौन थे1.1 लालदासी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ2 हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— लालदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक कौन थे लालदासी सम्प्रदाय में नाम स्मरण एवं कीर्तन को बहुत महत्व दिया जाता है। इनके अनुयायी निगुण ब्रह्म के उपासक है। परमात्मा को राम के नाम से स्मरण करते है। इस दृष्टि से यह पंथ कबीर पंथ तथा दादू पंथ के निकट जा सकता है। हिन्दू मुसलमान के भेद-भाव तथा ऊँच-नीच के भेद-भाव को ये स्वीकार नहीं करते। लालदासी पंथ में जीवन की पवित्रता तथा आचरण की शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस पंथ में भिक्षा मांगना हेय समझा जाता है लालादास जी ने अपने अनुयायियों को स्वावलंबी बनने का उपदेश दिया था। इस सम्बन्ध में उनका यह पद प्रसिद्ध है :– लाल जी साधु ऐसा चाहिए, धन कमाकर खाये। हिरदे हर की चाकरी, घर-घर क्यू न जाये।। सात्विक जीवन एवं सत्य आचरण लालदासी पंथ के मुख्य सिद्धान्त हैं। लालदास जी अपने शिष्यों को प्रेम-श्रृद्धा एवं पवित्रता से जीवन, जीने तथा दृढ़ चरित्र-बल प्राप्त करने का उपदेश देते थे। इनका मानना था कि साधु को भी स्वयं परिश्रम करके अपना निर्वाह करना चाहिए। ज्ञान एवं शक्ति का गर्व नहीं करना चाहिए। त्याग और परोपकार मनुष्य के जीवन का आदर होना चाहिए। लालदासी सम्प्रदाय संत लालदास जी बड़े चमत्कारी संत थे। एक बार शासकों के द्वारा इन्हें विषैले कुएं का पानी पीने की आज्ञा हुई। कहते हैं इनके स्पर्श से ही कुएं का पानी मीठा हो गया था। वह कुआं आज तक भी मीठा कुआं के नाम से प्रसिद्ध है। एक बार एक कुष्ठ रोग से पीड़ित किसी धनिक को इन्होंने आशीर्वाद से स्वस्थ कर दिया था। परन्तु बदले में उसकी सारी संपत्ति साधुओं में वितरित करवा दी थी। लालदासी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ संत लालादास जी का देहांत सन 1648 में 108 वर्ष की आयु मे हुआ। अलवर की सीमा के निकट भरतपुर राज्य में नगला नामक स्थान पर इनकी समाधि है। जो लालदासी पंथ के अनुयायियों का बड़ा भारी तीर्थ स्थान माना जाता है। यह लालदासी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है। इनके अनेक शिष्य हुए, जिनमें विभिन्न जातियों के लोग थे। परन्तु आज मेवा अथवा मेओ जाति में इस पंथ का अधिक प्रचार है। संत लालदास की वाणियां, लालदास की चेतावणी नामक ग्रन्थ में संग्रहीत हैं जिसकी हस्तलिखित प्रति जयपुर के पुरोहित हरिनारायण जी के पुस्तकालय में सुरक्षित है। लालदासी पंथ का प्रचार भी राजस्थान में ही विशेषतः अलवर के आसपास अधिक हुआ है। उक्त संत सम्प्रदायों के अतिरिक्त नाथ पंथ,रामानन्द-सम्प्रदाय एवं कबीर सम्प्रदाय का भी प्रचार हुआ है। ये तीनों ऐसे है जिनकी स्थापना हमारे आलोच्य विषय से सम्बन्धित क्षेत्र से बाहर हुई है। किन्तु इनकी शाखाएं राजस्थान गुजरात में भी फैली तथा यहां के अन्य संम्प्रदायों पर उसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ा। इसलिये नाथ पंथ, रामानन्द एवं कबीर पंथ के प्रमुख सिद्धान्तो तथा उनके प्रभाव का यहाँ विचार करना उपयुक्त प्रत्तीत होता है। जिसको हम अपने अगले लेखों में करेंगे। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— तानसेन का जीवन परिचय, गुरु, पिता, पुत्र, दूसरा नाम और शिक्षा संगीत सम्राट तानसेन का नाम सवत्र प्रसिद्ध है। आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भारतीय संगीत के क्षितिज पर यह Read more कवि भीम का जीवन परिचय और इतिहास आज के अपने इस लेख में हम उस प्रसिद्ध भक्त एंव कवि के जीवन चरित्र के बारे में जानेंगे जिसने गुजराती Read more कवि भालण का जन्म कब हुआ और समय काल मध्यकाल के प्रसिद्ध एवं समर्थ आख्यानकार गुजरात के कवि भालण के जन्म काल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। Read more निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक, प्रधान पीठ, गुरु परंपरा व इतिहास रामानुज संप्रदाय के पश्चात् निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रचार गुजरात एवं राजस्थान में मध्यकाल में हुआ है। गुजरात में प्राचीन ग्रन्थ भंडारों Read more 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