लालकोट का किला दिल्ली महरौली पहाड़ी पर स्थित है। वर्तमान में इस किले मात्र भग्नावशेष ही शेष है। इस पहाड़ी के सिरे पर पहुँच कर यदि हम ध्यान पूर्वक सड़क के दोनों ओर देखें तो प्रतीत होगा कि कुछ पत्थर ओर मिट्टी खुदी हुई है। अधिक ध्यान देने पर प्रतीत होगा कि यह पत्थर किसी दीवार के भाग हैं ओर वह दीवार नगर की बड़ी दीवार की एक भाग मात्र है। यह नगर की दीवार बड़ी मोटी और मज़बूत है। यह दीवार प्राचीन हिन्दू दिल्ली नगर की दीवार का एक भाग है। आर्कियालॉजिकल विभाग ने नगर की खुदाई की है अभी समस्त नगर को खुदाई नहीं हो पाई है।
कहते हैं कि 1170 ईसवी में दिल्ली शहर को दिल्ली नाम राजा अनंगपाल ने दिया था। राजा अनंगपाल ने यहां लालकोट किले स्थापना की, यह भी कहा जाता है कि लालकोट का किला कई किलोमीटर क्षेत्र में फैला था। राजा अनंगपाल को पृथ्वीराज चौहान ने हराकर इस नगर पर कब्जा कर लिया था, उसके बाद इस नगर का विकास पृथ्वीराज चौहान ने करवाया। और यह किला राय पिथौरा के नाम से आज भी दिल्ली के साकेत में स्थित है। वर्तमान में इस किले मात्र दीवार ही प्रकाश में आई है। संभावना है की और खुदाई होने पर लालकोट किले का रहस्य प्रकाश में आ जाएगा।
लालकोट का किला
कुतुब मस्जिद से दाहिने ओर जो सड़क जाती है वही सड़क महरौली को जाती है। बाई! ओर की सड़क तुगलकाबाद को जाती है। महरौली नगर जाने वाली सड़क पर आदम खां ओर अनगा खां के मक़बरे हैं। आगे बाई ओर एक मार्ग पर गंडकी बावली है। महरौली बाज़ार पहुँच जाने पर बाजार के मध्य से एक सड़क बाई’ ओर धूम जाती है। यही सड़क कुतुब साहब की दरगाह को जाती है। फीरोजशाह के समय में कुतुब शाह एक प्रसिद्ध संत थे। 1236 ई० में उनकी मृत्यु हुईं। वह इतने बड़े. साधु संत थे कि बड़े बड़े लोगों ने अपनी समाधि बनाने की इच्छा उन्हीं के समाधि के समीप ही प्रकट की थी। कुतुब॒ साहब की क़ब्र समतल साधारण भूमि की है पर इसके चारों ओर संगमरमर का घेरा है। इसी के समीप कुछ मुगल बादशाहों की समाधियां हैं। वहीं बहादुर शाह प्रथम ओरंगजेब का पुत्र का मक़बरा है। बहादुर शाह ने मराठों ओर राजपूतों से संधि करके पंजाब में शान्ति स्थापना की थी। वह बड़ा ही उदार व्यक्ति था अतः उसे लोग बेखबर कहा करते थे। उसी के समीप शाह आलम की समाधि है। शाह आलम ने 1806 ई० से 1837 ई० तक राज्य किया था।
कुतुब दरगाह से मिला हुआदिल्ली के अंतिम सम्राट बहादुर शाह द्वितीय का महल है। महल का द्वार अब भी बना हुआ है पर महल गिर कर खंडहर हो गया है। वर्षा ऋतु में बहादुर शाह यहीं आकर रहता था। बहादुर शाह की समाधि रंगून में है। महरौली बाज़ार में एक सुन्दर सरोवर है जिसके चारों ओर गुम्बद बने हैं। इसे तेरहवीं सदी में अल्तमश ने बनवाया था। इसके अतिरिक्त महरौली में ओर भी देखने योग्य स्थान है। मुगल काल में बड़े बड़े सरदार वर्षा काल में महरौली में आकर रहा करते थे अब भी दिल्ली के लोग वर्षा में महरौली में आकर रहते हैं। लालकोट किला देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक आते हैं। स्थानीय लोग भी यहां सुबह शाम घुम्ने के लिए आते हैं।