लखनवी पान की गिलौरी का सुगंधित स्वाद

लखनवी पान

लखनवी पान:–पान हमारे मुल्क का पुराना शौक रहा है। जब यहाँ हिन्दू राजाओं का शासन था तब भी इसका बड़ा महत्व रहा है, हर एक शुभ काम में पान की मौजूदगी ज़रूरी है। राजा जब युद्ध के लिए निकलता तब एक आदमी थाल में पान के बीड़े लगा कर सामने लाता, राजा थाली में रखे मखमली कपड़े मे ढक्के उन पानों की ओर नजर डालकर कहता– कौन बीड़ा उठायेगा ?’ इसका तात्पर्य यह होता कि इस युद्ध या अभियान की सारी जिम्मेदारी कौन लेगा।

लखनवी पान का सुगंधित स्वाद

सेनापति मंत्री या अन्य कोई वीर पुरुष जब उस बीड़े को उठा लेता तो यह समझा जाता कि उसने उस कार्य का सारा उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया। है, धीरे-धीरे एक शब्द ही मशहूर हो गया- बीड़ा उठाना।

जब दरबार में किसी विशिष्ठ व्यक्ति का पदारपर्ण होता तो सबसे पहले उसको खातिरदारी में पानों का बीड़ा हाजिर किया जाता। यही पान जब अवध के दिल यानि कि लखनऊ आया तो पान और उसमें डाले जाने वाले तमाम तरह के मसाले बड़े मशहूर हुए। एक बार जिसके मुँह में लखनवी पान का जायका लग जाता वह उसे जिन्दगी भर न भुला पाता। वह और बात है कि फिल्म वालों ने बनारस के पान को मशहूर कर दिया। हाँ आज वह खूबी तो लखनवी पान में न बची जो पहले कभी हुआ करती थी।

लखनऊ में पान और पान में लगने वाले तरह-तरह के मसालों को रखने के लिए एवं पान की पीक थूकने के लिए निहायत खूबसूरत बर्तन जिन्हें पानदान और ‘पीकदान’ कहा जाता था, ईजाद हुए। पान और और उसके मसाले रखने वाले को पानदान तथा पान का पीक थूकने वाले बर्तन को पीकदान कहते है। यह इतने खूबसूरत होते थे कि बाहर से जो भी शख्सलखनऊ आता वह इन बर्तनों को खरीद कर जरूर ले जाता।

लखनवी पान
लखनवी पान

पान और तम्बाकू का तो चोली दामन का साथ है। पान मशहूर हुआ तो तम्बाकू भी अपने खुशबूदार लेकिन तेज-तर्रार तेवर के कारण बड़ी मशहूर हुई। कहते हैं कि सुबह तम्बाकू का पान लोग खा लेते तो शाम तक खुशबू बनी रहती। कत्था बनाते वक्‍त यह ध्यान रखा जाता कि उसमें कड़वाहट न रहने पाये। इसी तरह चूना भी खाने लायक बनाया जाता।

हर जगह और हर शहर में मामूली चूना इस्तेमाल होता है, जो अक्सर छना व साफ नहीं होता सिवाय इसके कि चूना बहुत ही तेज़ और अक्काल चीज है। चूने को खूब छानकर और साफ करके इसमें थोड़ी सी मलाई, ताजे दही का तोड़ छानकर मिला देते इस तरीके से लखनऊ के नफीस मिजाज लोगों के पानदानों में ऐसा अच्छा बढ़िया और नुकसान न पहुँचाने वाला चूना होता कि और जगह नहीं मिल सकता।

दूसरी चीज है कत्था छोटे-छोटे टुकड़े करके उसे पानी में पकाते और जब उबलकर वह लाल शर्बत सा हो जाता तो कपड़े से छानकर पानी रखकर जमा देते। आमतौर पर इतना सभी जगह ही होता। मगर यहाँ (लखनऊ में ) एक थाल या तवे में राखा भरकर उस पर एक कपड़ा डालते और उस कपड़े पर जमे हुए कत्थे को रोटी की तरह फैला देते और बराबर पानी छिड़कते जाते। पानी उसकी सुर्खी को लेकर जिसमें बखटापन होता है, राख में समा जाता इस तरह साफ करते-करते कत्थे का सिर्फ वह मजेदार हिस्सा बाकी रह जाता जो धोये कपड़े का सा सफेद और बहुत ही उम्दा होता। फिर उसमें केवड़े की खुशबू देकर या केवड़े के फूल में रखकर सुखा लेते। यह ईजाद लखनऊ की है।

आज भी लखनऊ के चौक, हजरतगंज, चारबाग क्षेत्र में ऐसी दुकानें हैं कि उनका लखनवी पान खा लीजिए तो ताजगी महसूस होने लगती है।फिर भी अब लखनवी पान में वह बात तो रही नहीं।

नवाबीन वक्‍त में हर घर में एक पानदान जरूर होता। अधिकांशतः पानदान चाँदी और ताँबे के होते। ताँबे के पानदानों पर ऐसी पालिश कर दी जाती थी कि दूर से अन्दाजा लगाना मुश्किल होता कि पानदान चाँदी का है या ताँबे का। अधिकांशतः पानदान संदूकची के आकार के होते थे। इन पर बड़ी बारीकी से डिजाइनें बनाई जाती। पान के अन्दर तमाम खाने होते जिसमें सबसे बड़ा खाना पान रखने और छोटे खाने तम्बाकू, चूना, कत्था, डली आदि रखने के लिए होते थे। बेस तो पानदानों के ऊपर भी बन्द करने के लिए ढक्‍कन होता था फिर भी अन्दर इन सभी खानों को ढकने के लिए छोटे-छोटे खूबसूरत ढक्कन होते थे।पानदान दो तरह के होते थे एक तो घर में इस्तेमाल करने और दूसरा जेब में रखने लायक। अब बाहर जाते वक्‍त बड़ा सा पानदान साथ लेकर चलना तो मुनासिब नहीं।

‘पीकदान’ भी खूबसूरती में कम नहीं थे। ज्यादातर यह खड़े बनाये जाते थे। इनका निचला हिस्सा गोलाकार होता था। जिसके ऊपर एक रॉड लगी होती और इसी रॉड के ऊपरी सिरे पर कटोरे की तरह का पीकदान बना होता जिस पर ढककन भी होता था।

वक्‍त के साथ ही साथ पान भी अपनी विशेषताएँ खोता गया और लुप्त होते गये खूबसूरत बर्तन भी। एक जमाना था जब कोई मेहमान तशरीफ लाता तो उनकी खातिरदारी में सबसे पहले पान पेश किया जाता था। जिसकी जगह अब चाय” और ‘कॉफी’ ने हासिल कर ली है। शहर में लखनवी पान आज भी कई जगह के प्रसिद्ध है, और उनमें तरह तरह की वैरायटी भी मौजूद हैं, शहर के लगभग अधिकतर नुक्कड़ चौराहों पर आज भी पान की कोई न कोई दुकान आपको मिल ही जायेगी, जिनमें कुछ प्रसिद्ध दुकानों पर आपको पचास तरह की वैरायटी के भी पान मिल जायेंगे। लखनवी पान के शौक़ीन लोग आज इनका स्वाद लेने दूर दूर से आते हैं।

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