लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेगबहादुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – लखनऊ का गुरुद्वारा इतिहास
Naeem Ahmad
उत्तर प्रदेश की की राजधानीलखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यहियागंज बाजार लखनऊ का जनरल मर्चेंट, पटाखा, रेडीमेड, होजरी, ऊन एवं बर्तनों का थोक बाजार है। इस बाजार में पूर्वांचल के दस पंद्रह जिलो के व्यापारी माल खरीदने आते है। यह बाजार लगभग दो किलोमीटर लम्बा तथा बारह फुट चौडी गली में बसा है। यहां लगभग दो हजार से अधिक दुकाने है।
लखनऊ गुरुद्वारा पांच मंजिला भवन में है जिसमें भूतल में गुरुद्वारा, प्रथम तल पर ज्ञानी व रागी के लिए कमरे, द्वितीय तल पर लंगर हाल जहां श्रृद्धालुओं के लिए लंगर बनाया व छकाया जाता है। तृतीय चौथे व पंचम तल पर सेवादारों के लिए लगभग 40 से अधिक कमरे है। भंडारे के लिए बर्तन आदि की व्यवस्था स्वयं गुरुदारे की है। शहर मे होने वाले अन्य धार्मिक उत्सवों पर गुरुदारे द्वारा प्रसाद, चाय नाश्ता तथा जल की निःशुल्क व्यवस्था की जाती हैं।
सन् 2013 में अलीगंज के एक सिंधी परिवार के बेटे का अपहरण हुआ था। वह परिवार बहुत परेशान था। उनके एक पड़ोसी श्री नानक चंद्र गुरुनानी जी की प्रेरणा से वह इस गुरुदारे में आये और यहां पर अखंड पाठ करवाया। 48 घंटे के उपरांत समाप्ति की अरदास जैसे ही समाप्त हुई तो उनका बेटा वापस मिल गया। कहते है कि इस गुरुदारे साहिब की एक विशेषता यह भी है कि यहां पर जो श्रृद्धालु लगातार 40 दिन मत्था टेकता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेगबहादुर साहिब
लखनऊ गुरुद्वारा भवन लगभग 35 फुट चौड़ा है। जिसे दर्शन ड्योढ़ी भी कहा जाता है। मुख्य हाल जहां संगत बैठती है, 7500 वर्ग फुट का है। जहां की साजसज्जा अद्वितीय है। यहां 24 चकौर खंभे है जो चारों ओर से रंगीन कांच से मढ़े हुए है। यह कांच का बहुत ही चित्ताकर्षक कार्य है, हजारों कांच के टुकड़ों पर जब रोशनी पडती है तो वो अद्भुत नजारा होता है। यहां पर गुरु महाराज की पालकी साहिब 3 किलो सोने के पित्तरों से मढ़ी हुई है। रागियों के लिए दाईं ओर स्टेज है, साथ में सभी संगतों के बैठने का स्थान है। दर्शनी ड्योढ़ी में दायी ओर निःशुल्क जूता है जहां पर सभी श्रृद्धालु अपने जूता चप्पल रखते है। आगे बढ़कर दायीं ओर श्री गुरु तेग बहादुर जी की एक सुंदर फोटो लगी है। उनको प्रणाम कर श्रृद्धालु हॉल मे प्रवेश करते है। दायी ओर ही गुरुदारे के संबंध में एक सूचना पट लगा हुआ है जिसमें गुरुदारे का इतिहास लिखा हुआ है। लखनऊ गुरुदारे का सम्मपूर्ण क्षेत्रफल 1200 स्कवायर फुट है, जिसमें एक हजार स्कवायर फुट मे गुरुद्वारा भवन है। तथा दो सौ वर्ग फुट में कार्यालय तथा रसोईघर स्थित है। लखनऊ के गुरुद्वारों में यह एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है।
लखनऊ गुरुद्वारा गुरु तेगबहादुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – लखनऊ के गुरुदारे का ऐतिहासिक महत्व
सन् 1670 में गुरु तेग बहादुर जी महाराज यहां आये थे। और आज जहा लखनऊ गुरुद्वारा साहिब स्थापित है उसी जगह तीन दिन रुके थे। जब वे पटना से लौट रहे थे तभी इस जगह वे रूके थे। गुरु तेग बहादुर जी की यादगार में यह गुरुद्वारा स्थापित किया गया था। यहां पर उन्होंने संगत भी की, तभी से लखनऊ के इस गुरुदारे का महत्व है।
सन् 1672 में यहां पर पटना साहिब से आनंदपुर जाते हुए सिक्ख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की माता गुजरी, मामा कृपाल जी के साथ इस पवित्र स्थान पर दो महीने रूके थे। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के हस्तलिखित हुक्मनामे व हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति आज भी इस पवित्र स्थान पर विद्यमान है।
गुरुद्वारा लखनऊ गुरु तेग बहादुर साहिब के दर्शन हेतू देश विदेश से हजारों श्रृद्धालु प्रतिदिन आते है। वर्ष में 365 दिन श्रृद्धालुओं के लिए प्रतिदिन लंगर, चाय नाश्ते व ठहरने की निःशुल्क व्यवस्था गुरुद्वारा कमेटी की ओर से की जाती है। गुरुदारे की सम्पूर्ण व्यवस्था गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा की जाती है।
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