लखनऊ नवाबों, रईसों तथा शौकीनों का शहर रहा है, सो पहनावे के मामले में आखिर क्यों पीछे रहता। पुराने समय में तरह-तरह के लिबासों का लखनऊ में चलन था। और लखनऊ का पहनावा प्रसिद्ध भी काफी था।
लखनऊका पहनावा का जिक्र अगर सिर पर पहनने वाली टोपी से शुरू किया जाए तो बेहतर होगा। नवाबों के वक्त में एक टोपी बड़ी मशहूर थी जिसे ‘पंचगोशी टोपी’ कहते थे। यह टोपी खासकर नवाबों में बड़ी लोकप्रिय रहीं। कहते हैं इस टोपी को जो शख्स पहनकर निकलता उसे काफी इज्जत बख्शी जाती लोग समझते हो न हो हो इस आदमी की पहुँच ऊपर दरबार तक जरूर होगी।
लखनऊ का पहनावा
जैसा कि नाम से कुछ-कुछ अन्दाजा लगाया जा सकता है ‘पंचगोशी’— अर्थात– वह टोपी जिसमें पाँच गोशे (किनारे) हों। इस टोपी का ऊपरी हिस्सा बंधा हुआ रहता था। कुछ लोग ‘दुपलली टोपी का इस्तेमाल करते थे। यह टोपी खासकर मौलाना लोग धारण करते थे। जिसका आकार नाव की तरह का होता था और मुख्यतः दो रंगों में ही होती थी। एक सफेद और दूसरी काले।
नवाब सआदत अली खां एक नयी प्रकार की टोपी लगाते थे। जिसे लोग शमला कहते थे। वाजिद अलीशाह भी एक खास तरह की टोपी पहनते थे जिसे आलम पसन्द कहते थे। इस टोपी का नाम आलम पसन्द इसलिए पड़ा कि यहनवाब वाजिद अली शाह को बड़ी पसन्द थी और उन्हीं की खोज भी थी।
लखनऊ का पहनावा
जिस शख्स को दौला का खिताब मिलता उसको आलम पसन्द भी दी जाती थी। यही कारण था कि इस टोपी धारण करने वाले शख्स की काफी इज्जत होती थी। आलम पसन्द टोपी को पहनकर दरबार में आना अनिवार्य था। जिसे ‘दरोगा’ का खिताब मिलता तो उसे ‘शमला टोपी भी दी जाती।
नवाबीन वक्त में अंगरखे का काफी चलन था। अंगरखे में बायीं ओर की छाती खुली रहती थी। दूसरी खुसूसियतः यह कि इसका निचला सिरा चोड़ा होता था।
छकलिया को नवाबीन सर्दियों में इस्तेमाल करते थे। इसमें नीचे की ओर कल्ली लगी होती थी। आज जो शेरवानी नजर आ रही है उस समय चलन में न थी। यह हैदराबाद दक्खिन का मुख्य पहनावा था।
जाड़ों में शालों की खूब बिक्री हुआ करती थी। जाड़े शुरू होने पर पहाड़ी क्षेत्रों से तमाम कारीगर लखनऊ आ जाते थे और इस मौसम में जमकर कमाई करते। अनेक कारीगर अपनी अच्छी आमदनी होती देखकर लखनऊ में ही बस गये थे।
उन दिनों लोगों में चूड़ीदार पायजामा ज्यादा चलन में था। अलीगढ़ पैजामेका कोई नामोनिशान न था। दूसरी तरह का पायजामा जिसकी मोहरी चौड़ी होती थी प्रायः आम चलन में था।
अब एक नज़र जूतों पर भी डाल लेते है– जिस तरह से मन्दिरों में पुजारी लोग खड़ाऊँ पहने हैं उसी तरह मौलाना लोग भी एक प्रकार की जूतियाँ पहनते थे। जो पीछे से खुली रहती थी। इसके अतिरिक्त मखमली, पेताली, नागरा आदि तमाम तरह के जूते भी बड़े मशहूर रहे।
लखनऊ का पहनावा में महिलाओं में लखनवी चिकन के कुर्ते बड़े ही प्रसिद्ध हुआ करते थे। कुत्तों पर चिकनकारी बहुत सुंदर डिजाइनों में हुआ करती थी। कुर्ती के साथ सलवार और दुपट्टा महिलाओं की काफी पसंदीदा पहनावा है। महिलाओं में ये कुर्ते तो आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं पसंद करती हैं।
वर्तमान में तो हर जगह के पहनावे की जगह वेस्टर्न पहनावे ने ले ली। लखनऊ शहर भी इससे अछूता नहीं रहा। लखनऊ का पहनावा जो कभी नवाबी दौर से चला आ रहा था। लोग उसे धीरे धीरे त्याग करते गए। आज इक्का दुक्का की लोग आपको पुराने लखनवी पहनावे में दिखाई पड़ सकते हैं। वरना तो लखनऊ का पहनावा लोग त्याग कर पश्चिमी देशों के पहनावे को ज्यादा पसंद करने लगे हैं।
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